रूस और यूक्रेन के युद्ध का कारण

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यूक्रेन शुरुआत में सोवियत संघ का एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में जाना जाता था लेकिन किन्ही कारणों से यूक्रेन ने 1991 में स्वतंत्र रूप से शासन करने की घोषणा की जहां पर सोवियत संघ का दबाव पूर्ण रूप से खत्म हो चुका था।

यूक्रेन का स्वतंत्र होना

नाटो की भूमिका

नाटो एक ऐसा सैन्य समूह है जिसके अंतर्गत लगभग 30 देश शामिल हैं जिनमें अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे बड़े देश शामिल हैं। ऐसे में यूक्रेन भी नाटो के सदस्य में शामिल होना चाहता है लेकिन इस बात से रूस को खास ऐतराज है।

यूक्रेन और रूस युद्ध की असमानताएं

रूस एक ऐसा देश है जिसके पास एक बड़ी सैन्य शक्ति है जो लगभग 2.9 मिलियन है वही यूक्रेन की अब सैन्य शक्ति काफी कम जो कि 1.1 मिलियन है।

इस युद्ध में यूक्रेन की तरफ से कई सारे लड़ाकू विमान भी हैं जिनमें मुख्य रुप से 98 लड़ाकू विमान शामिल है तो वहीं रूस के पास करीब 1500 लड़ाकू विमान है, जो आसानी के साथ जीत हासिल कर पाने के लिए सक्षम है।

भारत की रूस और यूक्रेन युद्ध में  भूमिका

सामान्य रूप से देखा जाता है कि रूस के साथ भारत के अच्छे संबंध हैं, जहां से भारत लगभग 60 फ़ीसदी हथियार खरीदता है तो वही यूक्रेन का साथ अमेरिका दे रहा है और अमेरिका के साथ भी भारत के काफी अच्छे संबंध है। ऐसे में भारत, रूस और यूक्रेन में से किसी एक का चुनाव नहीं कर सकता क्योंकि दोनों सहयोगियों के साथ भारत के बहुत अच्छे संबंध स्थापित है

रूस और यूक्रेन के युद्ध में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल

रूस और यूक्रेन के इस युद्ध में हार और जीत चाहे किसी भी देश की हो लेकिन एक बड़ा आर्थिक, सामाजिक नुकसान निश्चित रूप से दोनों ही देशों का होने वाला है। जहां अब रूस की सेना लगातार अंदर के इलाकों में घुसी चली जा रही है वहीं इस बात का भी अंदेशा लगाया जा रहा है कि यूक्रेन के लिए 24 घंटे अहम होने वाले हैं। इसके अंतर्गत इस बात पर भी संदेह किया जा रहा है कि इस युद्ध में रूस की ओर से परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किया जा सकता है जिसके बाद पूरे विश्व में एक गहरा आघात पहुंच सकता है।

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