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मानव श्वसन तंत्र की समस्त जानकारी

श्वसन

नमस्कार दोस्तों यदि आप मानव श्वसन तंत्र के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही जगह आए हैं क्योकि इस पेज के माध्यम से आपको मानव श्वसन तंत्र की सम्पूर्ण जानकारी विस्तार पूर्वक दी जाएंगी।

पिछली पोस्ट में हमने मानव शरीर के हृदय की परिभाषा, प्रकार, कोष्ठक और कपाट की सम्पूर्ण जानकारी दी हुई है यदि आपने वह पोस्ट नही पढ़ी हैं तो उसे जरूर पढ़े।

चलिए आज हम मानव शरीर के श्वसन तंत्र के बारे में विस्तार से पढ़ते हैं।

मानव श्वसन तंत्र

मानव श्वसन में वायु फेफड़ों तक एवं फेफड़ों से बाहर जिस मार्ग से होकर गुजरती हैं उस मार्ग में उपस्थित सभी तंत्रों को मिलाकर ही श्वसन तंत्र कहाँ जाता हैं।

मनुष्य श्वसन तंत्र की संरचना

मनुष्य में फेफड़ों द्वारा श्वसन होता है ऐसे श्वसन को फुफ्फुसीय श्वसन (Pulmonary Respiration) कहते हैं। जिस मार्ग से बाहर की वायु फेफड़ों में प्रवेश करती है तथा फेफड़ों से कार्बनडाईआक्साइड बाहर निकलती है उसे श्वसन मार्ग कहते हैं।

मनुष्यों में बाहरी वायु तथा फेफड़ों के बीच वायु के आवागमन हेतु कई अंग होते हैं। ये अंग श्वसन अंग कहलाते हैं। ये अंग परस्पर मिलकर श्वसन तंत्र का निर्माण करते हैं।

श्वसन तंत्र की संरचना मनुष्यों और जंतुओं में भिन्न होती है मानव में फेफड़े श्वसन तंत्र का प्रमुख भाग है खाद्य पदार्थों के ऑक्सीकरण से कोशिकाओं को ऊर्जा प्राप्त होती है श्वसन एक अपचयी और अनैच्छिक (involuntary) क्रिया है।

श्वसन तंत्र से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदु

श्वसन तंत्र के भाग

श्वसन तंत्र को चार भागों में बांटा गया हैं

1. बाह्य श्वसन तंत्र

इस प्रकार के श्वसन तंत्र में वायु नासमार्ग से होकर फेफड़ों तक पहुँचायी जाती हैं।

बाह्य श्वसन तंत्र के 6 प्रकार होते हैं।

(a). नासमार्ग

यह श्वसन तंत्र का मुख्य भाग होता हैं जोकि म्यूकस कला का निर्माण करता हैं प्रतिदिन औसतन म्यूकस कला का निर्माण होता हैं।

इसका मुख्य कार्य वायु में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणुओं, धूल के कण, वायु प्रदूषण तत्व आदि को अंदर जाने से रोकती हैं और यह अंदर जाने वाली वायु को शरीर के तापानुसार नम बनाती हैं नासामार्ग का मुख्य कार्य सूंघना हैं।

(b). ग्रसनी (Pharynx)

यह नासामार्ग का पिछला भाग होता हैं यही पर स्वतंत्रिकाए आंशिक रूप से होती हैं। नासिका गुहा आगे चलकर मुख में खुलती है।

यह स्थान मुखीय गुहा अथवा ग्रसनी कहलाता है। यह कीप की समान आकृति वाली अर्थात आगे से चौड़ी एवं पीछे से पतली रचना होता है।

यह तीन भागों में बटी होती है।

नासाग्रसनी (Nossopharynx):- यह नासिका में पीछे और कोमल तालु के आगे वाला भाग है। इसमें नासिका से आकर नासाछिद्र खुलते हैं। इसी भाग में एक जोड़ी श्रावणीय नलिकाएं कर्णगुहा से आकर खुलती हैं इन नलिकाओं का सम्बन्ध कानों से होता है।

मुखग्रसनी (Oropharynx):- यह कोमल तालू के नीचे का भाग है जो कंठच्छद तक होता है, यह भाग श्वास के साथ साथ भोजन के संवहन का कार्य भी करता है अथार्त इस भाग से श्वास एवं भोजन दोनों गुजरते हैं।

स्वर यन्त्र ग्रसनी (Larynigopharynx):- यह कंठच्छद के पीछे वाला ग्रासनली से जुड़ा हुआ भाग है। इसमें दो छिद्र होते हैं पहला छिद्र भोजन नली का द्वार और दूसरा छिद्र श्वास नली का द्वार होता है। अर्थात यहां से आगे एक ओर भोजन तथा दूसरी ओर श्वास का मार्ग होता है।

ग्रसनी के कार्य

(c). लारेक्सि

यह ग्रसनी और रेटिका को जोड़ने का कार्य करता हैं यहीं पर एक पतला पत्तिनुमा कपाट पाया जाता हैं जिसे इपिलाइटिक कहाँ जाता हैं।

यह कपाट खाना निगलते समय बंद हो जाता हैं यहीं पर उपस्थित स्वर तन्तु के कंपन होने के कारण ही आवाज उत्तपन्न होती हैं।

(d). ट्रेकिया

इसे श्वसन तंत्र का वक्षीय द्वार कहा जाता हैं ट्रेकिया के मुख्य दो भागों को ही ब्रोकोई कहा जाता हैं जो आगे जाकर ब्रोंकिओल बनाते हैं।

दांया ब्रोंकिओल तीन भागों में विभाजित होकर फेफड़े से जुड़ता हैं जबकि बांया ब्रोंकिओल दो भागों में  विभाजित होकर बांये फेफड़े से जुड़ता हैं।

(e). फेफड़ा

मानव शरीर मे एक जोड़ी (दो) फेफड़े (फुफ्फुस) होते हैं जिनमें वायु निः श्वसन प्रक्रिया के आधार पर वायु अंदर जाती हैं जब तक फेफड़ों के अंदर  एवं बाहर वायु का दाब बराबर या समान न हो जाए।

इनका रंग हल्का लाल होता हैं जोकि स्पंज की तरह कार्य करते हैं दांया फेफड़ा बांए फेफड़े की अपेक्षा बड़े होते हैं। फेफड़ा के अंदर की वायु को रक्त में मिलाया एवं उससे अलग किया जाता हैं।

फेफड़ों के कार्य

डायाफ्राम (Diaphragm)

यह लचीली मांसपेशियों से निर्मित श्वसन अंग है। श्वसन मांसपेशियों में यह सबसे शक्तिशाली मासपेशी होती हैं जिसका सम्बन्ध दोनों फेफड़ों के साथ होता है। यह डायाफ्राम दोनों फेफड़ों को नीचे की ओर साधकर रखता है।

डायाफ्राम के कार्य:-

2. वायु परिवहन / संवेदन श्वसन तंत्र

वायु श्वसन तंत्र के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंचाना निः श्वसन कहलाता हैं जबकि फेफड़ों की वायु को श्वसन तंत्र के माध्यम से बाहर निकालना वायु परिवहन कहलाता हैं।

3. आन्तरिक श्वशन तंत्र

फेफड़ों से वायु को शरीर के विभिन्न अंगों की कोशिकाओं तक पंहुचाने में आन्तरिक श्वसन तंत्र कार्य करता हैं इसमें रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन और 80% आँक्सीजन एवं शेष अन्य गैसों को कोशिकाओं तक पंहुचाने का कार्य करता हैं जबकि कोशिकाओं से फेफड़ों तक कार्बनडाइआक्साइड को लसिका के माध्यम से पहुँचाया जाता हैं।

4. कोशिकीय श्वशन तंत्र

खाघ पदार्थो के पाचन से प्राप्त होने वाले ग्लूकोज का कोशिका के अंदर अपघटन और इस अपघटन में उतपन्न ऊर्जा को मिलाकर ही (संपूण प्रक्रिया) को ही कोशिकीय श्वसन कहा जाता हैं।

कोशिकीय श्वसन के दो प्रकार होते हैं

एनाक्सी श्वसन

यह कोशिका के अंदर आँक्सीजन की अनुपस्थिति में सम्पन्न होने वली प्रक्रिया हैं। इस प्रक्रिया में प्राप्त ग्लूकोज (आक्सीजन की अनुपस्थिति) में विघटित होकर या टूटकर लैक्ट्रिक अम्ल, वैक्ट्रीरिया, एथनाल एल्कोहल, पारुइक अम्ल आदि में परिवर्तित हो जाता हैं इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को ग्लाइकोलिसिस कहा जाता हैं।

एनाक्सी श्वसन में अंतिम रूप पाईरुविक अम्ल का निर्माण होता हैं। ग्लाइकोलिसिस प्रक्रिया में (A.T.P. – एड्रीनों ट्राई फास्फेट) टूटकर 2 A.T.P. के अणु बनते हैं। एक A.T.P. के अणु से 8000 किलो कैलोरी ऊर्जा मुक्त होती हैं।

आक्सी श्वसन

आक्सी श्वशन कोशिका के अंदर आक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोज को विघटित करने वाली प्रक्रिया हैं। इस प्रक्रिया के संपन्न होने पर जल, कार्बनडाइआक्साइड के साथ-साथ ऊर्जा (2880 किलो कैलोरी) उतपन्न होती हैं।

वायु की धारिता

एक मनुष्य द्वारा प्रत्येक श्वास में जिस मात्रा में वायु ग्रहण की जाती है तथा प्रश्वास में जिस मात्रा में वायु छोड़ी जाती है इस मात्रा की नाप वायु धारिता कहलाती है। इसे नापने के लिए स्पाइरोमीटर (Spirometer) नामक यंत्र का प्रयोग किया जाता है।

मनुष्य की वायु धारिता के कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं का वर्णन इस प्रकार है

प्राण वायु (Tidal volume)

वायु की वह मात्रा जो सामान्य श्वास में ली जाती है तथा सामान्य प्रश्वास में छोड़ी जाती है प्राण वायु कहलाती है। यह मात्रा 500उस होती है। यह मात्रा स्त्री और पुरुष दोनों में समान होती है

प्रश्वसित आरक्षित आयतन (Inspiratory Reserve Volume)

सामान्य श्वास लेने के उपरान्त भीे वायु की वह मात्रा जो अतिरिक्त रूप से ग्रहण की जा सकती है। प्रश्वसित आरक्षित आयतन कहलाती है। वायु की यह मात्रा 3300 होती है।

निश्वसित आरक्षित आयतन (Expiratory Reserve Volume)

सामान्य प्रश्वास छोड़ने के उपरान्त भी वायु की वह मात्रा जो अतिरिक्त रूप से बाहर छोड़ी जा सकती है, निश्वसित आरक्षित आयतन कहलाती है। वायु की यह मात्रा 1000 होती है।

अवशिष्ट आयतन (Residual Volume)

हम फेफड़ों को पूर्ण रूप से वायु से रिक्त नहीं कर सकते अपितु गहरे प्रश्वास के उपरान्त भी वायु की कुछ मात्रा फेफड़ों में शेष रह जाती है, वायु की यह मात्रा अवशिष्ट आयतन कहलाती है। वायु की इस मात्रा का आयतन 1200 होता है।

फेफड़ों की प्राणभूत वायु क्षमता (Vital Capcity)

गहरे श्वास में ली गयी वायु तथा गहरे प्रश्वास में छोड़ी गयी वायु का आयतन फेफड़ों की प्राणभूत वायु क्षमता कहलाती है। वायु की यह मात्रा 4800 उस होती है।

फेफड़ों की कुल वायु धारिता (Total lung capacity)

फेफड़ों द्वारा अधिकतम वायु ग्रहण करने की क्षमता फेफड़ों की कुल वायु धारिता कहलाती है। वायु की यह मात्रा 6000 उस होती है।

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आशा हैं कि आपको मानव शरीर के श्वसन तंत्र की यह पोस्ट अच्छी लगी होगी। और यदि आपने पिछली पोस्ट मनुष्य के हृदय के बारे में ना पड़ा हो तो उसे भी जरूर पढ़े और कोई प्रश्न हो यह कुछ चीज समझ ना आ रही हो तो कमेंट में जरूर पूछे धन्यवाद।

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