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गुणसूत्र और आनुवंशिकता की जानकारी

गुणसूत्र

नमस्कार छात्रों इस पेज पर आप जीव विज्ञान के महत्वपूर्ण अध्याय गुणसूत्र के बारे में सम्पूर्ण जानकारी विस्तार से पढ़ेंगे।

पिछले पेज पर हमने मनुष्य के दांत की जानकारी शेयर की है उसे जरूर पढ़े।

चलिए आज हम गुणसूत्र के बारे में विस्तार से पढ़ते है।

गुणसूत्र किसे कहते है

गुणसूत्र का नामकरण हेनरिक विलहेल्म वॉल्डेयर (Heinrich Wilhelm Gottfried) के द्वारा किया गया था। कोशिका विभाजन के समय क्रोमोटिन सुकुड़ के या टूटकर छोटे भागों में विभाजित हो जाता हैं जो कि गुणसूत्र का निर्माण करते हैं।

जीन्स को वहन करने वाली वे वैयक्तिक जीव द्रव्य इकाइयां जो नियमित रूप से उत्तरोत्तर कोशिका विभाजनों द्वारा गुणन करती हैं तथा अपने व्यक्तिगत, आकारिकी एवं कार्य को बनाये रखती हैं गुणसूत्र कहलाती हैं।

गुणसूत्र जिस रंगहीन द्रव्य पदार्थ में लिपटे रहते है उसे मैट्रिक कहा जाता हैं। जबकि गुणसूत्र में उपस्थित आनुवंशिक लक्षणों को संचरित करने वाला पदार्थ जीनोम कहा जाता हैं प्रत्येक जाती के जीवों में गुण सूत्रों की संख्या अलग-अलग होती हैं।

गुणसूत्र का चित्र

गुणसूत्र की सामान्य संरचना

समस्त जीवों के गुण सूत्र लगभग समान होते हैं।

सामान्यतः एक गुणसूत्र में निम्न संरचनाएँ पायी जाती हैं।

1. पेलिकल

गुणसूत्र की सबसे बाहरी पतली झिल्ली पेलिकल कहलाती हैं यह समांगी आधार द्रव्य को चारों ओर से घेरे रहती हैं।

2. मेट्रिक्स

यह पेलिकल के अंदर पाया जाता हैं इसमें क्रोमोनीमेटा स्थित होते हैं।

3. क्रोमेटिड या क्रोमोनिमा

प्रत्येक गुणसूत्र में क्रोमेटिड या क्रोमोनिमा पाया जाता हैं प्रत्येक क्रोमेटिड के आधार द्रव्य में पूरी लम्बाई में कुंडलित तन्तु पाए जाते हैं जिसे क्रोमोनीमेटा कहते है।

4. क्रोमोमियर

क्रोमोनीमेटा के ऊपर समान दूरी पर बटन या गांठ के समान रचनाएँ पायी जाती हैं जिन्हें क्रोमोमियर कहते हैं आनुवंशिक इकाइयां (जीन) क्रोमोमियर में ही स्थित होती हैं।

5. सैंट्रोमीयर

प्रत्येक गुणसूत्र एक स्थान पर धँसकर या दबकर सनकरक हो जाता हैं यह संकरा स्थान सेंट्रो मियर या प्राथमिक संकीर्णन कहलाता हैं। किसी-किसी गुणसूत्र में एक से अधिक संकीर्णन पाए जाते है उन्हें द्वितीयक संकीर्णन कहते हैं।

6. सेटेलाइट

गुणसूत्र के द्वितीयक संकीर्णन के आगे का भाग सेटेलाइट कहलाता हैं।

मनुष्य में लिंग निर्धारण

मनुष्य में गुण सूत्रों की कुल संख्या 46 होती हैं जो 23 जोड़ो के रूप में होती हैं पुरुष में (22 + xy) और महिलाओं में (22 + xx) के रूप में पाए जाते हैं।

मनुष्यों में 22 जोड़े तो महिला पुरुष में समान होते हैं किन्तु 23 वां जोड़ा अलग-अलग होता हैं जोकि नर और मादा जननांग के निर्धारण में पुरूष का 23 (xy) जोड़ा मुख्य होता हैं।

अनुवांशिकी की परिभाषा

वे लक्षण जो पीढ़ी दर पीढ़ी संचरित होते हैं  अनुवांशिक लक्षण कहलाते हैं अनुवांशिक लक्षणों के पीढ़ी दर पीढ़ी संचरण की विधियों और कारणों के अध्ययन को अनुवांशिक कहते हैं।

अनुवांशिकता के बारे में सर्वप्रथम जानकारी आस्ट्रिया निवासी ग्रेगर जोहान मेंडल ने दी थी। इसी कारण उन्हें आनुवंशिकता का पिता कहा जाता हैं। आनुवंशिकी संबंधी प्रयोग के लिए मेंडल ने मटर के पौधे का चुनाव किया था।

मेंडर ने पहले एक जोड़ी फिर दो जोड़े विपरीत गुणों की वंशगति का अध्ययन किया जिन्हें क्रमशः एकसँकरीय तथा द्विसकरीय क्रॉस कहते हैं।

एकसँकरीय क्रॉस

मेंडर ने एक संकरीय क्रॉस के लिए लंबे (TT) एवं बौने (tt) पौधों के बीच क्रॉस कराया तो F2 पीढ़ी का पौधे का फिनो टाइप अनुपात 3 : 1 और जीनोटाइप अनुपात 1 : 2 : 1 प्राप्त हुए।

द्विसकरीय क्रॉस

मेंडर ने द्विसकरीय क्रॉस के लिए गोल तथा पीले बीज (RRYY) व हरे एवं झुर्रीदार बीज (rryy) से उत्पन्न पौधों को क्रॉस कराया, इसमें गोल तथा पिला बीज प्रभावी होते हैं।

अतः F2 पीढ़ी के पौधों का फिनो टाइप अनुपात 9 : 3 : 3 : 1 प्राप्त हुए तथा f2 पीढ़ी के पौधों का जीनो टाइप अनुपात 1 : 2 : 1 : 2 : 4 : 2 : 1 : 2 : 1 प्राप्त हुए।

उपयुक्त दोनों प्रकार के प्रयोगों के आधार पर मेंडर ने आनुवंशिकता संबंधी कुछ नियम दिए हैं जिन्हें मेंडर के आनुवंशिकता के नियम से जाना जाता हैं इन नियमों में से पहला एवं दूसरा नियम एक संकरीय क्रॉस के आधार पर व तीसरा नियम द्विसकरीय क्रॉस पर आधारित हैं।

मेंडर के नियम

मेंडर के तीन नियम है।

प्रभाविकता का नियम

एक जोड़ा विपर्ययी गुणों वालेे शुद्व पिता या माता में संकरण करने से प्रथम पीढ़ी में प्रभावी गुण प्रकट होते हैं जबकि अप्रभावी गुण छिप जाते हैं।

प्रथम पीढ़ी में केवल प्रभावी गुण ही दिखाई देता हैं लेकिन अप्रभावी गुण उपस्थित अवश्य रहता हैं यह गुण दूसरी पीढ़ी में प्रकट होता हैं।

पृथक्करण का नियम

लक्षण कारकों (जीनों) के जोड़ों के दोनों कारक युग्म बनाते समय प्रथक हो जाते है और इनमें से केवल एक कारक ही किसी एक युग्मक में पहुँचता हैं इस नियम को युगमकों की शुद्धता का नियम भी कहते हैं।

स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम

जब दो जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता हैं तो दोनों लक्षणों का पृथक्करण स्वतंत्र रूप से होता हैं एक लक्षण की वंशानुगति दूसरे को प्रभावित नहीं करती ही।

मनुष्यों में होने वाले आनुवंशिक रोग

मनुष्य को निम्न अनुवांशिक रोग होते है।

1. टर्नर सिंड्रोम (Turner’s Syndrome)

यह रोग मुख्य रूप से महिलाओं में होते हैं इस रोग से पीड़ित महिला में गुणसूत्रों की संख्या 46 ना हो कर इससे कम 45 हो जाती हैं। जिससे शरीर में अन्य लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।

2. क्लीनेफेल्टर सिंड्रोम (Klinefelter’s Syndrome)

यह रोग मुख्य रूप से पुरुषों में होता हैं इससे पीड़ित पुरुषों में गुण सूत्रों की संख्या में वृद्वि होती हैं गुणसूत्र 46 ना होकर 47 हो जाते हैं। इसमें पुरुषों का वृषण अल्प विकसित एवं स्तन स्त्रियों के समान विकसित हो जाता हैं इस कारण से निम्न शारीरिक विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं।

3. वर्णान्धता (Colourblindness)

इसमें रोगी को लाल व हरा रंग पहचानने की क्षमता नहीं होती हैं इस रोग से मुख्य रूप से पुरुष प्रभावित होता हैं स्त्रियों में यह तभी होता हैं जब इसके दोनों गुणसूत्र (XX) प्रभावित हों। इस रोग की वाहक स्त्रियां होती हैं।

4. हीमोफीलिया (Haemophilia)

इस रोग में व्यक्ति को चोट लगने पर आधा घण्टा से 24 घण्टे (सामान्य समयांतराल औसतन 2 से 5 मिनट) तक रक्त का थक्का नहीं बनता हैं।

यह मुख्यतः पुरुषों में होता हैं स्त्रियों में यह रोग तभी होता हैं जब इसके दोनों गुणसूत्र (XX) प्रभावित हों। इस रोह की वाहक स्त्रियां होती हैं। हेल्डन का मानना हैं कि यह रोग ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया से प्रारम्भ हुआ था।

5. डाउन्स सिंड्रोम (Down’s Syndrome)

इस रोग से ग्रसित रोगी मन्द बुद्धि, आंखे टेढ़ी, जीभ मोटी तथा अनियमित शारीरिक ढाचा होता हैं। इसे मांगोलिज्म भी कहते है।

6. पटाऊ सिंड्रोम (Patau’s Syndrome)

इसमें रोगी का ऊपर का ओठ बीच से कट जाता हैं तालु में दरार हो जाता हैं। इस रोग में रोगी मन्द बुद्धि, नेत्ररोग आदि से प्रभावित हो सकता हैं।

जीव जंतुओं में गुण सूत्रों की संख्या

जीव/जातिगुणसूत्र
एस्केरिस2
मच्छर6
मटर14
प्याज16
मक्का20
टमाटर24
मेंढक26
नींबू18,36
बिल्ली38
चूहा40
गेहूँ42
खरगोश44
मनुष्य46
आलू48
चिम्पैंजी48
तम्बाकू48
घोड़ा64
कुत्ता78
कबूतर80
घरेलू मक्खी12
टेरिडोकइट्स1300 – 1600

अनुवांशिकता और गुणसूत्र से संबंधित प्रश्न उत्तर

प्रश्न1. गुणसूत्र का नामकरण किसके द्वारा किया गया था।

उत्तर:- डब्ल्यू वाल्डेयर

प्रश्न2. मनुष्य में गुणसूत्रों की संख्या कितनी होती हैं?

उत्तर:- 46

प्रश्न3. अनुवांशिकता के बारे में सर्वप्रथम जानकारी किसने दी थी?

उत्तर:- ग्रेगर जोहान मेंडल

प्रश्न4. ग्रेगर जोहान मेंडल ने आनुवंशिकता केे बारे में जानकारी कौन से सन में दी थी?

उत्तर:- 1822 से 1884

प्रश्न5. आनुवंशिकता का पिता किसे कहा जाता हैं?

उत्तर:- ग्रेगर जोहान मेंडल

प्रश्न6. वे लक्षण जो पीढ़ी दर पीढ़ी संचरित होते हैं कौन से लक्षण कहलाते हैं?

उत्तर:- आनुवंशिक लक्षण

प्रश्न7. गुणसूत्रों का नामकरण किसने किया था?

उत्तर:- डब्ल्यू. वाल्टेयर

प्रश्न8. डब्ल्यू. वाल्टेयर ने गुणसूत्रों का नामकरण कौन से सन में किया था?

उत्तर:- 1888 ई.

प्रश्न9. गुणसूत्रों में पाए जाने वाले आनुवंशिक पदार्थ को क्या कहते हैं?

उत्तर:- जीनोम

प्रश्न10. मानव में आवश्यक एमीनों एसिड कितने पाए जाते हैं?

उत्तर:- 20

प्रश्न11. एस. बेंजर द्वारा जीन की आधुनिक विचारधारा कौन से सन में दी गई थी?

उत्तर:- 1956

प्रश्न12. एस. बेंजर के द्वारा जीन के कार्य की पुनः संयोजन की इकाई को क्या कहाँ जाता हैं?

उत्तर:- रेकान

प्रश्न13. शुक्रजनन में अर्द्वसूत्री विभाजन के द्वारा कितने प्रकार के शुक्राणु बनते हैं?

उत्तर:- 2 प्रकार के

प्रश्न14. परखनली शिशु के मामले में निषेचन कहाँ होता हैं?

उत्तर:- परखनली के अंदर

प्रश्न15. मच्छर में गुणसूत्रों की संख्या कितनी होती हैं?

उत्तर:- 6

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आशा है गुणसूत्र और अनुवांशिकता की जानकारी आपको पसंद आयी होगी

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