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वायुमंडल की परिभाषा, महत्व, संरचना और गैसों की मात्रा

वायुमंडल

पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन संभव है और इसके अलग-अलग कारण है जैसे कि जल, ऑक्सीजन, पेड़-पौधे इत्यादि। इन सभी के अलावा पृथ्वी का वायुमंडल भी एक ऐसा कारण है जिससे यहां जीवन संभव है।

आज इस लेख में हम पृथ्वी के वायुमंडल के बारे में जानेंगे, कि वायुमंडल क्या है, इसका महत्व, संरचना और अन्य जानकारी के बारे में पड़ेगें।

वायुमंडल की परिभाषा

पृथ्वी के चारों ओर हजारों किलोमीटर ऊंचाई तक फैले हुए गैसों के आवरण को वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल की ऊपरी परत के अध्ययन को वायुमण्डल मतलब Aerology और निचली परत के अध्ययन को ऋतुविज्ञान मतलब Meteorology कहते हैं।

वायुमंडल का 97% भाग 29 किलोमीटर की ऊंचाई तक सीमित है लेकिन इसकी अधिकतम ऊपरी सीमा 10,000 किलोमीटर तक मानी जाती है।

वायुमंडल घर में लगे कांच की तरह हानिकारक Ultraviolet Rays को पृथ्वी पर आने से रोकता है और पृथ्वी पर निश्चित तापमान बनाए रखता है। गर्मी को रोककर यह घर के कांच के जैसा ही काम करता है।

वायुमंडल में अनेक प्रकार की गैसे पाई जाती है जैसे नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, आर्गन इत्यादि। गैसों के साथ-साथ वायुमंडल में जलवाष्प तथा धूल के कण भी पाए जाते हैं।

वायुमंडल का महत्व

वायुमंडल किसी भी तरह के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह एक ग्रह की सतह को आकार देने का काम करता है। पृथ्वी की सतह का अध्ययन करने से लेकर दूसरे ग्रहों के वातावरण और जलवायु को समझने के लिए वायुमंडल बहुत अधिक महत्वपूर्ण है।

पृथ्वी के वायुमंडल में कई प्रकार की रचनाएं पाई जाती है जिसमें विभिन्न तरह के काम किए जाते हैं। वायुमंडल की वजह से पृथ्वी का संतुलन बना रहता है और वायुमंडल में पाया जाने वाला ओजोन लेयर सूर्य की हानिकारक किरणों से हमें बचाता है।

कुल मिलाकर कहें तो वायुमंडल के बिना किसी भी ग्रह की सुरक्षा कम हो जाती है। अंतरिक्ष में होने वाले किसी भी प्रक्रिया का असर वायुमंडल के ना होने पर अधिक पड़ता है।

वायुमंडल की संरचना

वायुमंडल को निम्नलिखित परतो में बांटा गया है।

1. क्षोभ मंडल (Troposphere)

यह वायुमंडल की सबसे नीचे वाली परत है। इसकी ऊंचाई ध्रुवों पर 8 किलोमीटर तथा विषुवत रेखा पर लगभग 18 किलोमीटर होती है। इस मंडल को परिवर्तन मंडल भी कहते हैं क्योंकि पृथ्वी के तल से ऊपर जाने पर प्रति 1000 मीटर पर 6.5°C से तापमान कम हो जाता है।

इस मंडल को संवहन मंडल भी कहते हैं क्योंकि संवहन धाराएं इसी मंडल की सीमा तक सीमित होती है। इसके अलावा इस मंडल को अधोमंडल भी कहते हैं। जाड़े के तुलना में गर्मी में इसकी सीमा ऊंची हो जाती है। 

इसी मंडल में भारी गैस, जलवाष्प तथा धूल के कण ज्यादा रहते हैं। मौसम में होने वाली लगभग सभी घटनाएं जैसे कोहरा, बादल, ओला, तुषार, आंधी, तूफान, बादल का गरजना, बिजली का चमकना इसी भाग में होते हैं। 

यह पृथ्वी की वायु का सबसे घना भाग है और पूरे वायुमंडल का लगभग 80% हिस्सा इसमें मौजूद है। छोभ मंडल तथा समताप मंडल के बीच डेढ़ किलोमीटर मोटी परत को क्षोभ सीमा कहते हैं।

यह सीमा छोभ मंडल तथा समताप मंडल को दो भागों में बांटती है। छोभ सीमा में मौसमी घटनाएं नहीं होती है इसलिए इसे शांत मंडल भी कहते हैं।

2. समताप मंडल (Stratosphere)

यह मंडल क्षोभ सीमा के ऊपर स्थित होती है। इसकी ऊंचाई पृथ्वी के तल से 50 किलोमीटर है जबकि इसकी वास्तविक ऊंचाई 18 से 32 किलोमीटर तक है। इसकी मोटाई भूमध्य रेखा पर कम तथा ध्रुवों पर अधिक होती है।

इस के निचले भाग में तापमान लगभग एक जैसा रहता है और ऊपरी भाग में 50 किलोमीटर की ऊंचाई तक तापमान बढ़ता है। इसमें मौसमी घटनाएं जैसे आंधी, बादलों का गर्जना, बिजली का कड़कना, धूल कण एवं जलवाष्प आदि कुछ नहीं होता है।

इस मंडल में हवाई जहाज, जेट विमान इत्यादि उड़ाए जाते हैं। ओजोन परत पृथ्वी के समताप मंडल के निचले भाग में पृथ्वी की सतह के ऊपर लगभग 10 किलोमीटर से 50 किलोमीटर की दूरी तक पाई जाती है।

यह सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों को पृथ्वी पर आने से रुकती है। ओजोन परत के कारण इस मंडल को ओजोन मंडल भी कहा जाता है। 

3. ओजोन मंडल (Ozonosphere)

यह पृथ्वी के तल से 32 किलोमीटर से 7 किलोमीटर के बीच में स्थित होता है। इस मंडल में ऊंचाई के साथ तापमान बढ़ता जाता है।

प्रति 1 किलोमीटर की ऊंचाई पर तापमान में 5°C की वृद्धि होती है। इस मंडल में ओजोन गैस की एक परत पाई जाती है जो सूर्य से आने वाले पराबैगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है इसलिए इसे पृथ्वी का सुरक्षा कवच कहते हैं।

ओजोन परत को नष्ट करने वाली गैस CFC मतलब क्लोरोफ्लोरोकार्बन है। जो कार्बन, क्लोरीन, हाइड्रोजन और क्लोरीन परमाणुओं से मिलकर बनती है। इसका इस्तेमाल रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर में होता है। 

CFC से ओजोन परत को नुकसान होता है। इसलिए आजकल CFC की जगह HFC मतलब हाइड्रो क्लोरो फ्लोरो का उपयोग किया जा रहा है। ओजोन परत की मोटाई नापने में डाब्सन इकाई का प्रयोग किया जाता है।

4. मध्य मंडल (Mesosphere)

यह मंडल समताप मंडल के ऊपर स्थित होता है और 50 से 80 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैला हुआ है। इस मंडल में ऊंचाई के साथ तापमान में कमी होती है।

इसमें लगभग 80 किलोमीटर की ऊंचाई पर तापमान 100000° सेंग्रे हो जाता है। सबसे कम तापमान की सीमा को मेसोपोज कहते हैं जिसके ऊपर जाने पर तापमान में फिर से वृद्धि होने लगती है।

5. ताप मंडल (Thermosphere)

मेसोपोज के 80 किलोमीटर के ऊपर वाला वायुमंडलीय भाग ताप मंडल कहलाता है। इसमें ऊंचाई के साथ तापमान बढ़ता जाता है। इसकी ऊपरी सीमा पर तापमान लगभग 1000 डिग्री सेंग्रे हो जाता है।

माना जाता है कि पृथ्वी तल पर थर्मामीटर द्वारा नापे गए तापमान से इस उच्च तापमान की तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि इस ऊंचाई पर गैस इतनी विरल हो जाती है कि सामान्य थर्मामीटर इसके तापमान को नाप नहीं पाता है।

यही कारण है कि इतने उच्च तापमान के होते हुए भी यदि इसमें हाथ फैलाया जाए तो हमें गर्मी महसूस नहीं होती है क्योंकि विरल गैस बहुत ही कम ऊष्मा को रख पाती है।

6. आयन मंडल (Ionosphere)

इसकी ऊंचाई 60 किलोमीटर से 640 किलोमीटर तक होती है जबकि इसका विस्तार 80 से 400 किलोमीटर तक है। इस मंडल में तापमान में तेजी से बढ़ोतरी होती है इसकी ऊपरी सीमा पर तापमान बढ़कर 1000 डिग्री सेंटीग्रेड हो जाता है।

इसकी हवा विद्युत आवेशित (Electric Charged) होती है। पृथ्वी से जानें वाले रेडियो तरंगे इसी मंडल से परावर्तित होकर पृथ्वी पर लौट आती है।

आयन मंडल को 4 परतों में बांटा गया है

D-Layer : पृथ्वी के लगभग 55 किलोमीटर के बाद से ही डी परत शुरू होती है। इस परत से लॉन्ग रेडियो वेव परावर्तित होती है।

E-Layer : इस के बाद इ परत शुरू होती है जो आयन युक्त होती है। यह आयन मंडल की सबसे टिकाऊ परत है और इसकी पृथ्वी से ऊंचाई लगभग 145 किलोमीटर होती है। इस परत से शॉर्ट रेडियो वेब परावर्तित होती है।

F1-Layer : यह पृथ्वी से लगभग 200 किलोमीटर की ऊंचाई पर होती है। गर्मियों की रात तथा जाड़ों में यह अपने ऊपर की परतों में समा जाती है। यह परत भी शार्ट रेडियो वेव परावर्तित करती है।

F2-Layer : यह सबसे आखिर की परत होती है यह 240 किलोमीटर से 320 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित होती है। इस परत में भी शॉट रेडियो वेव परावर्तित होती है।

आयन मंडल में लोंग रेडियो वेव और शार्ट रेडियो वेव के परिवर्तित होने से पृथ्वी पर रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन एवं रडार आदि की सुविधा प्राप्त होती है। 

7. बाह्य मंडल (Exosphere)

वायुमंडल में 640 किलोमीटर से ऊपर के भाग को बाह्य मंडल कहा जाता है। इसकी कोई ऊपरी सीमा तय नहीं होती है। इस मंडल में हाइड्रोजन और हीलियम गैस ज्यादा पाई जाती है और इसका तापमान लगभग 55660 डिग्री सेंटीग्रेड होता है।

इस मंडल की खास बात यह है कि इसमें औरोरा ऑस्ट्रालीस और औरोरा बोरियलिस घटनाएं होती है। औरोरा का मतलब प्रातः काल होता है जबकि बोरियलिस तथा ऑस्ट्रेलिस का मतलब उत्तरी एवं दक्षिणी होता है। इसी कारण इसे उत्तरी ध्रुव प्रकाश और दक्षिणी ध्रुव प्रकाश कहा जाता है।

वायुमंडल में पाए जाने वाली महत्वपूर्ण गैस

जैसा कि हमने बताया वायुमंडल में अनेक प्रकार की गैसे पाई जाती है। नीचे हम उनके बारे में बता रहे हैं।

1. नाइट्रोजन

यह वायुमंडल में सबसे ज्यादा पाया जाता है। नाइट्रोजन के कारण ही वायुदाब, पवन की शक्ति तथा प्रकाश का परावर्तन होता है। इस गैस का कोई रंग और स्वाद नहीं होता। नाइट्रोजन गैस का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह वस्तु को तेजी से जलने से बचाता है।

यदि वायुमंडल में नाइट्रोजन ना हो तो आग पर नियंत्रण करना कठिन हो जाता है। नाइट्रोजन से पेड़ पौधों में प्रोटीन का निर्माण होता है जो भोजन का मुख्य अंग है। यह गैस वायुमंडल में 128 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैला हुआ है।

2. ऑक्सीजन

यह दूसरे पदार्थ के साथ मिलकर जलने का कार्य करती है। ऑक्सीजन के बिना हम कोई भी वस्तु नहीं जला सकते हैं और इंसान को जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है। इसलिए यह ऊर्जा का मुख्य स्रोत है।

यह गैस वायुमंडल में 64 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैली हुई है लेकिन 16 किलो मीटर से ऊपर जाकर इसकी मात्रा बहुत कम हो जाती है।

3. कार्बन डाइऑक्साइड

यह सबसे भारी गैस है और इस कारण यह वायुमंडल की सबसे निचली परत में मिलती है फिर भी यह 32 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैली हुई है। 

यह गैस सूर्य से आने वाले Ultraviolet Rays के लिए Transparent तथा पृथ्वी से परिवर्तित होने वाले Ultraviolet Rays के लिए अपरगम्य होती है। यह गैस ग्रीन हाउस इफेक्ट के लिए जिम्मेदार होती है और वायुमंडल की निचली परत को गर्म करके रखती है।

4. ओजोन

यह गैस ऑक्सीजन का ही एक विशेष रूप है। यह वायुमंडल में ही बहुत ज्यादा ऊंचाई पर बहुत कम मात्रा में मिलती है। यह सूर्य से आने वाली तेज पराबैगनी किरण के कुछ भाग को Absorb कर लेती है।

यह 10 से 50 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित है। वायूमंडल में ओजोन गैस की मात्रा में कमी होने से सूर्य की पराबैंगनी विकिरण अधिक मात्रा में पृथ्वी पर पहुंच सकती है जिससे कैंसर जैसी भयानक बीमारियां फैल सकती है।

5. जलवाष्प

वायुमंडल में जलवाष्प सबसे ज्यादा पाया जाने वाला गैस है। वायुमंडल के जलवाष्प का 90% भाग 8 किलोमीटर की ऊंचाई तक स्थित है। इसके संगठन होने के कारण बादल, वर्षा, कोहरा, ओस, तुषार, हीम आदि का निर्माण होता है।

जलवाष्प सूर्य से आने वाले सूर्य ताप के कुछ भाग को Absorb कर लेता है और पृथ्वी द्वारा उत्पन उष्मा को संजोए रखता है। इस प्रकार यह एक कंबल का काम करता है जिससे पृथ्वी ना तो ज्यादा गर्म और ना ज्यादा ठंडी हो सकती है।

पृथ्वी के वायुमंडल में गैसों की मात्रा

सूर्यताप (Insolation)

सूर्य से पृथ्वी तक पहुंचने वाले सौर विकिरण ऊर्जा को सूर्यताप कहते हैं। यह ऊर्जा लघु तरंगों के रूप में सूर्य से पृथ्वी पर पहुंचती है। 

वायुमंडल की बाहरी सीमा पर प्राप्त होने वाले सौर विकिरण का लगभग 32% भाग बादलों की सतह से परावर्तित होकर अंतरिक्ष में लौट जाता है। सूर्य ताप का लगभग 2% भाग धरती के तल से परावर्तित होकर अंतरिक्ष में वापस चला जाता है।

इस प्रकार सौर विकिरण का 34% भाग परावर्तित होकर वापस अंतरिक्ष में चला जाता है। सूर्य के वायुमंडल में आने और परिवर्तित होने से वायुमंडल ठंडा तथा गर्म होता है।

वायुमंडल गर्म तथा ठंडा होने की विधियां –

1. विकिरण (Radiation)

किसी पदार्थ को ऊष्मा तरंगों के संचार द्वारा सीधे गर्म होने को ही विकिरण कहते हैं। जैसे सूर्य से प्राप्त होने वाली किरणों से पृथ्वी तथा पृथ्वी का वायुमंडल गर्म होता है।

सूर्य से आने वाली किरने लघु तरंगों वाली होती है जो वायुमंडल को बिना अधिक गर्म किए ही उसे पार करके पृथ्वी पर पहुंचती है। पृथ्वी पर पहुंची गए किरणों का बहुत सारा भाग वायुमंडल में चला जाता है इसे भौमिक विकिरण (Terrestrial Radiation) कहते हैं।

2. संचालन (Conduction)

जब असमान ताप वाली दो वस्तुओं एक दूसरे के संपर्क में आती है तो अधिक तापमान वाली वस्तु से कम तापमान वाली वस्तु की ओर उष्मा प्रवाहित होती है मतलब जिस वस्तु का तापमान अधिक होता है तो उसमे से अतिरिक्त तापमान कम तापमान वाले वस्तु की ओर जाती है।

यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक दोनों वस्तुओं का तापमान एक जैसा ना हो जाए। संचालन प्रक्रिया वायुमंडल को गर्म करने के लिए सबसे कम महत्वपूर्ण है इससे वायुमंडल का केवल निचला परत ही गर्म हो पाता है।

3. संवहन (Convection)

किसी गैस या तरल पदार्थ के एक भाग से दूसरे भाग की ओर इसके अणु द्वारा ऊष्मा के संचार को संवहन कहते हैं। यह संचार गैसीय तथा तरल पदार्थों में इसलिए होता है क्योंकि उनके अणुओं के बीच का संबंध कमजोर होता है।

जब वायुमंडल की निचली परत भौमिक विकिरण से गर्म हो जाती है तो उसका घनत्व कम हो जाता है। घनत्व कम होने से बाहर की हो जाती है और ऊपर उठती है। गर्म हवा के ऊपर आने से ठंडी हवा नीचे आती है और कुछ देर बाद वह भी गर्म हो जाती है।

इस तरह से यह प्रक्रिया चलती रहती है। वायुमंडल गर्म होने में यह मुख्य भूमिका निभाती है।

4. अभीवहन (Advection)

इस प्रक्रिया में गर्म हवा ठंडे इलाकों में जाती है तो उन्हें गर्म कर देती है।

वायुमंडलीय दाब 

हवा के भार मतलब वजन के कारण पृथ्वी के तल पर पड़ने वाले दबाव ही वायुमंडलीय दबाव या वायुदाब कहलाता है। यह ऊंचाई बढ़ने के साथ कम होता है। तापमान बढ़ने से घटता है और घटने से बढ़ता है।

हवा में जलवाष्प बढ़ने पर वायुदाब कम होता है और जलवाष्प कम होने से यह बढ़ता है। वायुदाब को बैरोमीटर से मापा जाता है। इसे मौसम का अनुमान लगाने के लिए एक महत्वपूर्ण सूचक माना जाता है।

पृथ्वी पर वायुमंडलीय दाब के सात क्षेत्र हैं इनमें से तीन कम या निम्न और चार उच्च या अधिक वायुदाब क्षेत्र है। पृथ्वी पर चार वायुदाब कटिबंध है जो निम्नलिखित है :

1. विषुवत रेखीय निम्न वायुदाब कटिबंध : यह क्षेत्र भूमध्य रेखा से 10° उत्तरी तथा 10° दक्षिणी अक्षांश के बीच स्थित है। यहां सालभर सूर्य की किरने लंबवत पड़ती है जिसके कारण यहां तापमान हमेशा अधिक रहता है।

2. उपोषण उच्च वायुदाब कटिबंध : उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्ध में कर्क और मकर रेखा से 35 डिग्री अक्षांश तक उच्च दाब क्षेत्र पाए जाते है। इसे अश्व अक्षांश भी कहते हैं क्योंकि पुराने समय में एक घोड़े के व्यापारी को यहां जहाज बचाने के लिए घोड़े को समुद्र में फेंकना पड़ा था। 

3. उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबंध : 60 से 65 डिग्री अक्षांश उत्तर और दक्षिण में निम्न वायुदाब पाया जाता है इसे उप ध्रुवीय निम्न वायुदाब कहते हैं।

4. ध्रुवीय उच्च वायुदाब कटिबंध : उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव पर ठंड अधिक पड़ने के कारण उच्च दाब पाया जाता है। इसे ध्रुवीय उच्च दाब कटिबंध कहते हैं।

विभिन्न ग्रहों के वायुमंडल

पृथ्वी एक मात्र ऐसा ग्रह नहीं है जिस पर वायुमंडल स्थित है। सौरमंडल में अन्य ग्रह पर भी वायुमंडल है। विभिन्न ग्रहों पर पाए जाने वाले वायुमंडल निम्नलिखित है।

1. सूर्य : सूर्य एक गैस का गोला है जिसमें हाइड्रोजन 71% हिलियम 26.5% और अन्य तत्व 2.5% है। सूर्य का केंद्रीय भाग कोड Core कहलाता है जिसका तापमान 15,000,000 डिग्री सेल्सियस होता है तथा सूर्य की बाहरी सतह का तापमान लगभग 6000 डिग्री सेल्सियस है।

2. बुध : बुध में हाइड्रोजन, हिलियम, ऑक्सीजन, सोडियम, कैल्शियम, पोटेशियम और जलवाष्प का एक बहुत ही कमजोर वायुमंडल है। इसका तापमान सभी ग्रहों में सबसे अधिक है।

3. शुक्र : शुक्र के वायुमंडल में जो गैस है वह मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड से बनी है और पृथ्वी की तुलना में बहुत अधिक गर्म है। इसके वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के अलावा नाइट्रोजन भी पाया जाता है।

4. बृहस्पति : वृहस्पति सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। इसका वायुमंडल हाइड्रोजन और हीलियम से बना है। अन्य रासायनिक यौगिक बहुत कम मात्रा में मौजूद हैं। इसमें मिथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन सल्फाइड और पानी भी शामिल होते हैं।

5. मंगल : मंगल ग्रह का वायुमंडल मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन और आर्गन से बना होता है इसमें जलवाष्प, ऑक्सीजन, कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन बहुत कम होते हैं। मंगल ग्रह का वायुमंडल पृथ्वी की तुलना में बहुत पतला होता है। रिसर्च के मुताबिक पता चला है कि अतीत में मंगल ग्रह का वायुमंडल बहुत मोटा था।

6. शनि : शनि का वायुमंडल हाइड्रोजन और हीलियम से बना है। इसके अलावा शनी के वायुमंडल में अमोनिया, एसिटिलीन, एथेन, प्रोपेन, फास्फीन और मीथेन गैस कम मात्रा में पाई जाती हैं।

7. अरुण : अरुण ग्रह का वायुमंडल मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम से बना है। इस ग्रह की गहराई में पानी, अमोनिया और मीथेन पाए जाते हैं। यूरेनस का वायुमंडल सभी ग्रहों में सबसे ठंडा है।

8. वरुण : वरुण ग्रह का वायुमंडल हाइड्रोजन और हीलियम से बना होता है। इस ग्रह के चारों ओर मिथेन का बादल छाया हुआ है।

आशा है वायुमंडल की जानकारी आपको पसंद आयी होगी।

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