अद्भुत रस की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण

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अद्भुत रस की परिभाषा

जहां पर किसी आलौरिक क्रिया कलाप आश्चर्य चकित वस्तुओं को देखकर या उन से सम्बंधित घटनाओं को देखकर मन में जो भाव उत्पन्न होते हैं वहाँ पर अद्भुत रस होता हैं।

जब विस्मय भाव अपने अनुकूल, आलंबन, उद्दीपन, अनुभाव और संचारी भाव का सहयोग पाकर अस्वाद का रूप धारण कर लेता है तो उसे अद्भुत रस कहते हैं।

भारतीय काव्य शास्त्र के विभिन्न रसों में से एक है, इसका स्थायी भाव आश्चर्य होता है। जब किसी जीव के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि का भाव उत्पन्न होता है , उसे अद्भुत रस कहा जाता है।

इसके अन्दर आँसु आना, रोमांच, गद्गद होना, काँपना, आँखे फाड़कर देखना आद शामिल हैं। अद्भुत रस के भरतमुनि ने दो भेद दिये हैं: दिव्य तथा आनन्दज। वैष्णव आचार्य इसके दृष्ट, श्रुत, संकीर्तित तथा अनुमित नामक भेद करते हैं।

उदाहरण :

अखिल भुवन चर-अचर सब, हरि मुख में लिख मातु।
चकित भई गद्गद बचना, विकसित दृग पुलकातु।।

अद्भुत रस के अवयव

  • स्थायी भाव : आश्चर्य।
  • आलंबन (विभाव) : खुशबू वह व्यक्ति या वास्तु या को स्थिती या विचार जो आश्चर्य उत्पन्न करता हो।
  • उद्दीपन (विभाव) :  अपूर्व अथवा अनापेक्षित घटना वस्तु या स्थिती के दर्शन अथवा श्रवण या जानकारी या चेतना।
  • अनुभाव : आँखें फाड़ कर देखना, स्तब्ध रह जाना, गदगद होना, काम्पना, दांतों के बीच ऊँगली दबा लेना आदि।
  • संचारी भाव : उन्माद, अभिलाषा, आवेग, हर्ष आदि।

अद्भुत रस के उदाहरण

उदाहरण – 1

अखिल भुवन चर-अचर जग हरिमुख में लखि मातु ।
चकित भयी, गदगद वचन, विकसित दृग पुलकातु ॥

स्पष्टीकरण – रस-अद्भुत। स्थायी भाव-विस्मय । आश्रय-माता यशोदा। आलम्बन – कृष्ण का मुख। उद्दीपन-मुख में अखिल भुवनों और चराचर प्राणियों का दीखना। अनुभाव-स्वरभंग, रोमांच, नेत्रों का विकास। संचारी भाव-त्रास आदि । अतः यहाँ पर अद्भुत रस है।

उदाहरण – 2

दिखरावा निज मातहि अद्भुत रूप अखंड
रोम-रोम प्रति लागे कोटि-कोटि ब्रह्मंड ॥
अगनित रवि-ससि सिव चतुरानन। बहु गिरि सरित सिन्धु महि कानन ।
तनु पुलकित, मुख बचन न आवा। नयन मूँदि चरनन सिर नावा ॥

स्पष्टीकरण – रस- अद्भुत । स्थायी भाव-विस्मय । आश्रय-कौशल्या । आलम्बन-राम का अद्भुत रूप। उद्दीपन-रूप की अद्भुता, रोम-रोम में करोड़ों ब्रह्माण्ड, असंख्य सूर्य आदि। अनुभाव-रोमांच, स्वरभंग, नेत्रों को मूँदना, सिर नवाना। अतः यहाँ पर अद्भुत रस है।

उदाहरण – 3

सती दीख कौतुक मग जाता। आगे राम सहित सिय-भ्राता ॥
फिर चितवा पाछे प्रभु देखा। सहित बन्धु-सिय सुन्दर बेखा ॥
जहँ चितवइ तहँ प्रभु आसीना। सेवहिं सिद्ध मुनीस प्रवीना ॥
सोइ रघुबर, सोइ लक्ष्मन-सीता। देखि सती अति भयी सभीता॥
हृदय कम्प, तन सुधि कछु नाहीं। नयन मूँदि बैठा मग माहीं ॥

स्पष्टीकरण – रस-अद्भुत। स्थायी भाव-विस्मय । अश्रय – सती । आलम्बन – राम का आगे- पीछे सर्वत्र दिखायी देना। अनुभाव- कम्प, स्तम्भ, नेत्र मूँदकर बैठ जाना। संचारी भाव-त्रास, जड़ता, मोह। अतः यहाँ पर अद्भुत रस है।

अद्भुत रस के उदाहरण

1. इहाँ उहाँ दुई बालक देखा।
मति भ्रम मोरि कि आन बिसेखा॥

2. देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया।
क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काया ।।

3. केशव नहि न जाई का कहिये,
देखत तब रचना विचित्र अति समुझि मनहि मन दहिये।

4. सुत की शोभा को देख मोद में फूली,
कुन्ती क्षण भर को व्यथा-वेदना भूली।
भरकर ममता-पय से निष्पलक नयन को,
वह खड़ी सींचती रही पुत्र के तन को।    

5. मैं फिर भूल गया इस छोटी सी घटना को
और बात भी क्या थी, याद जिसे रखता मन!
किंतु, एक दिन जब मैं संध्या को आँगन में
टहल रहा था, तब सहसा मैंने जो देखा
उससे हर्ष विमूढ़ हो उठा मैं विस्मय से!
देखा, आँगन के कोने में कई नवागत
छोटी-छोटी छाता ताने खड़े हुए हैं।

6. अखिल भुवन चर-अचर सब, हरि मुख में लखि मातु।
चकित भई गद्गद् वचन, विकसित दृग पुलकातु।।

7. उज्जवत् उज्ज्वल मनोहर थी वहाँ की भूमि सारी स्वर्ण की।
थी जड़ रही जिसमें विपुल मणियाँ अनेकों वर्ण की।।

8. यह अंतिम जप, ध्यान में देखते चरण-युगल, राम ने बढ़ाया कर लेने को नीलकमल।
कुछ लगा न हाथ, हुआ सहसा स्थिर मन चंचल, ध्यान की भूमि से उतरे, खोले पलक विमल।।

9. आगे नदियां खरी अपार,
घोड़ा कैसे उतरे,
राणा ने सोचा इस पार,
तब तक चेतक था उस पार।

10. अस जिय जानि जानकी देखी। प्रभु पुलके लखि प्रीति बिसेखी।।
गुरुहिं प्रनाम मनहिं मन कीन्हा। अत लाघवं उठाइ धनु लीन्हा।।
दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ। पुनि नभ धनुमंडल सम भयऊ।।
लेत चढ़ावत सैंचत गाढ़े। काह न लखा देख सबु ठाड़ें।।
तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि घोर कठोरा।।

11. सुत की शोभा को देख मोद में फूली, कुन्ती क्षण भर को व्यथा-वेदना भूली।
भरकर ममता-पय से निष्पलक नयन को, वह खड़ी सींचती रही पुत्र के तन को।।

12. दूध-दूध गंगा तू ही अपनी पानी को दूध बना दे।
दूध-दूध उफ कोई है तो इन भूखे मुर्दों को जरा दें।।

13. अखिल भुवन चर-अचर जग हरिमुख में लखि मातु ।
चकित भयी, गदगद वचन, विकसित दृग पुलकातु ॥

14. दिखरावा निज मातहि अद्भुत रूप अखंड
रोम-रोम प्रति लागे कोटि-कोटि ब्रह्मंड ॥
अगनित रवि-ससि सिव चतुरानन। बहु गिरि सरित सिन्धु महि कानन ।
तनु पुलकित, मुख बचन न आवा। नयन मूँदि चरनन सिर नावा ॥

15. सती दीख कौतुक मग जाता। आगे राम सहित सिय-भ्राता ॥
फिर चितवा पाछे प्रभु देखा। सहित बन्धु-सिय सुन्दर बेखा ॥
जहँ चितवइ तहँ प्रभु आसीना। सेवहिं सिद्ध मुनीस प्रवीना ॥
सोइ रघुबर, सोइ लक्ष्मन-सीता। देखि सती अति भयी सभीता॥
हृदय कम्प, तन सुधि कछु नाहीं। नयन मूँदि बैठा मग माहीं ॥

FAQ

Q.1 अद्भुत रस का स्थाई भाव क्या है?


Ans. अद्भुत रस का स्थाई भाव आश्चर्य है।

Q.2 अद्भुत रस के उदाहरण


Ans. लक्ष्मी थी या दुर्गा वह,
स्वयं वीरता की अवतार।
देख मराठे पुलकित होते,
उसकी तलवारों के वार।।

Q.3 अद्भुत रस किसे कहते हैं?


Ans. काव्य में जब किसी पंक्ति में विचित्र वस्तु या घटना का उल्लेख हो या उसे सुन कर जब आश्चर्य की अनुभूति हो तो उस अनुभूति को अद्भुत रस कहते हैं।

Q.4 अद्भुत रस का संचारी भाव क्या हैं?


Ans. वितर्क, भ्रान्ति, हर्ष, आवेग आदि।

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