नमस्कार दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम हास्य रस की जानकारी पड़ने वाले हैं तो यदि आप इसकी जानकारी जानना चाहते हैं तो इस आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़े।
पिछले पेज पर हमने रस की जानकारी को शेयर किया था तो उस आर्टिकल को भी पढ़े। चलिए आज हम हास्य रस की जानकारी को पढ़ते और समझते हैं।
हास्य रस की परिभाषा
किसी काव्य को सुनने पर जब हास्य कि उत्पत्ति या हास्य से आनंद या भाव की अनुभूति होती है तो इस अनुभूति को ही हास्य रस कहते हैं।
जब किसी पदार्थ या व्यक्ति की असाधारण आकृति, वेशभूषा, चेष्टा आदि को देखकर हृदय में जो विनोद का भाव जाग्रत होता है, उसे हास्य कहा जाता है।
हास्य रस की उपस्थिती में किसी विचार, व्यक्ति, वस्तु व घटना का स्वरुप विचित्र होता है। परन्तु यह विचित्रता विस्मय या आश्चर्य को पैदा नहीं करती, वरन यह विचित्रता लक्षित व्यक्ति को गुदगुदा जाती है
हास्य रस का स्थायी भाव हास है।
विद्वानों द्वारा हास्य रस की परिभाषा
भरतमुनि के द्वारा हास्य रस की परिभाषा – दूसरों की चेष्टा से अनुकरण से ‘हास’ उत्पन्न होता है, तथा यह स्मित, हास एंव अतिहसित के द्वारा व्यंजित होता है।
पण्डितराज के द्वारा – ‘जिसकी, वाणी एवं अंगों के विकारों को देखने आदि से, उत्पत्ति होती है और जिसका नाम खिल जाना है, उसे ‘हास’ कहते हैं।”
हास्य रस के अवयव
- स्थायी भाव : हास।
- आलंबन (विभाव) : कोई विचित्र वेशभूषा भी वस्तु, अतरंगी चरित्र, हास्यस्पद घटना या विचार आदि जिससे सामना होने पर हँसी। उत्पन्न हो जाए तथा मन में प्रसन्नता बनी रहे।
- उद्दीपन (विभाव) : विचित्र दृश्य, उलटबांसी, हास्यस्पद श्रव्य, गुदगुदाने वाली अनुभूति या चेष्टा।
- अनुभाव : ठहाका लगना, मुख का खुल जाना, मुस्कान छूट पड़ना, आँसू निकल पढ़ना, कभी-कभी आँखें बंद हो जाना आदि।
- संचारी भाव : शरीर में रक्त संचार का बढ़ जाना, प्रसन्नता महसूस होना, आदि।
रस का नाम | हास्य रस |
स्थायी भाव | हास |
आलम्बन विभाव | विकृत वेशभूषा, आकर एवं चेष्टाएँ |
उद्दीपन विभाव | आलम्बन की अनोखी आकृति, बातचीत, चेष्टाएँ आदि। |
अनुभाव | आश्रय की मुस्कान, नेत्रों का मिचमिचाना एवं अट्टहास |
संचारी भाव | हर्ष, आलस्य, निद्रा, चपलता, कम्पन, उत्सुकता आदि। |
हास्य रस के प्रकार
आचार्य केशव दास के द्वारा हास रस के प्रकार –
- मन्दहास,
- कलहास,
- अतिहास एवं
- परिहास
साहित्य शास्त्रियों के द्वारा हास रस के प्रकार –
- स्मित
- हसित
- विहसित
- उपहसित
- अपहसित
- अतिहसित
हास्य रस के भाव
- स्थाई भाव – हास (हास्य)
- आलंबन विभाव – विकृत वेशभूषा, आकार, क्रियाएं, चेष्टाएँ आदि।
- उद्दीपन विभाव – अनोखा पहनावा और आकार, बातचीत और क्रिया कलाप
- अनुभाव – आश्रय की मुस्कान, आंखों का मिचमिचाना, ठहाकेदार हंसी, अट्ठहास आदि।
- संचारी भाव – हंसी, उत्सुकता, चपलता, कंपन, आलस्य आदि।
हास्य रस के उदाहरण
उदाहरण 1.
“हँसि-हँसि भाजैं देखि दूलह दिगम्बर को,
पाहुनी जे आवै हिमाचल के उछाह में। ”
उदाहरण 2.
” सीस पर गंगा हँसै, भुजनि भुजंगा हँसै,
हास ही को दंगा भयो, नंगा के विवाह में॥
उदाहरण 3.
” मैं यह तोहीं मैं लखी भगति अपूरब बाल।
लहि प्रसाद माला जु भौ तनु कदम्ब की माल। ”
उदाहरण 4.
जेहि दिसि बैठे नारद फूली।
सो दिसि तेहि न बिलोकी भूली॥
उदाहरण 5.
लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष सनाना
का छति लाभु जून धनु तोरे। रेखा राम नयन के शोरे।।
उदाहरण 6.
” बिहसि लखन बोले मृदु बानी, अहो मुनीषु महाभर यानी।
पुनी पुनी मोहि देखात कुहारू, चाहत उड़ावन फुंकी पहारु। ”
उदाहरण 7.
हाथी जैसा देह, गैंडे जैसी चाल।
तरबूजे-सी खोपड़ी, खरबूजे-सी गाल॥
उदाहरण 8.
पत्नी खटिया पर पड़ी, व्याकुल घर के लोग
व्याकुलता के कारण, समझ न पाए रोग
समझ न पाए रोग, तब एक वैद्य बुलाया
इसको माता निकली है, उसने यह समझाया
कह काका कविराय, सुने मेरे भाग्य विधाता
हमने समझी थी पत्नी, यह तो निकली माता। ।
उदाहरण 9.
तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप,
साज मिले पंद्रह मिनट, घण्टा भर आलाप |
घण्टा भर आलाप, राग में मारा गोता,
धीरे – धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता |
उदाहरण 10.
सखि। बात सुनों इक मोहन की,
निकसी मटुकी सिर रीती ले कै।
पुनि बाँधि लयो सु नये नतना
रु कहूँ-कहुँ बुन्द करीं छल कै॥
निकसी उहि गैल हुते जहाँ मोहन,
लीनी उतारि तबै चल कै।
पतुकी धरि स्याय खिसाय रहे,
उत ग्वारि हँसी मुख आँचल कै॥
उदाहरण 11.
तेहि समाज बैठे मुनि जाई। हृदय रूप-अहमिति अधिकाई॥
तहँ बैठे महेस-गन दोऊ। विप्र-बेस गति लखइ न कोऊ॥
सखी संग दै कुँवर तब चलि जनु राज-मराल।
देखत फिरइ महीप सब कर-सरोज जय-माल॥
जेहि दिसि नारद बैठे फूली। सो दिसि तेहि न बिलोकी भूली॥
पुनि-पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं।
देखि दसा हर-गन मुसकाहीं॥
उदाहरण 12.
बुरे समय को देखकर गंजे तू क्यों रोय।
किसी भी हालत में तेरा बाल न बाँका होय।।
उदाहरण 13.
मतहिं पितहिं उरिन भये नीके।
गुरु ऋण रहा सोच बड़ जी के।।
उदाहरण 14.
बिन्ध्य के बासी उदासी तपो ब्रतधारि महा बिनु नारि दुखारे।
गौतम तीय तरी तुलसी सो कथा सुनि भे मुनिबृन्द सुखारे॥
ढहैं सिला सब चन्द्रमुखी परसे पद मंजुल कंज तिहारे।
कीन्हीं भली रघुनायक जू ! करुना करि कानन को पगु धारे॥
उदाहरण 15.
लखन कहा हसि हमरे जाना।
सुनहु देव सब धनुष सनाना।।
का छति लाभु जून धनु तोरे।
रेखा राम नयन के शोरे।।
Ans. किसी काव्य को सुनने पर जब हास्य कि उत्पत्ति या हास्य से आनंद या भाव की अनुभूति होती है तो इस अनुभूति को ही हास्य रस कहते हैं।
Ans. हाथी जैसा देह, गैंडे जैसी चाल।
तरबूजे-सी खोपड़ी, खरबूजे-सी गाल॥
Ans. हर्ष, आलस्य, निद्रा, चपलता, कम्पन, उत्सुकता आदि।
Ans. हास
उम्मीद हैं आपको हास्य रस की जानकारी पसंद आयी होगी।
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