शृंगार रस की परिभाषा, अवयव, प्रकार और उदाहरण

नमस्कार दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम शृंगार रस की जानकारी पड़ने वाले हैं तो यदि आप इसकी जानकारी जानना चाहते हैं तो इस आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़े।

पिछले पेज पर हमने रस की जानकारी को शेयर किया था तो उस आर्टिकल को भी पढ़े। चलिए आज हम शृंगार रस की जानकारी को पढ़ते और समझते हैं।

शृंगार रस की परिभाषा

जहां नायक और नायिका की अथवा महिला पुरुष के प्रेम पूर्वक श्रेष्ठाओं क्रिया कलापों का श्रेष्ठाक वर्णन होता हैं वहां शृंगार रस होता हैं।

अर्थात जहां नायक और नायिका के मन में पूर्ण रूप से स्थित रति या प्रेम जब रस की अवस्था में पहुँच जाता हैं तो उसे शृंगार रस कहते हैं।

शृंगार रस को रसराज भी कहा जाता हैं।

उदाहरण :-

राम को रूप निहारत जानकी,
कंगन के नग की परछाई।
याते सवै सुध भूल गई,
कर टेक रही पल टारत नाही।।

व्याख्या – प्रस्तुत पंक्‍तियों में तुलसीदास जी कहते हैं कि माता सीता प्रभु श्रीराम का रूप निहार रही हैं क्योंकि दूल्हे के वेश में श्रीराम अत्यन्त मनमोहक दिख रहे हैं।

जब अपने हाथ में पहने कंगन में जड़ित नग में प्रभु श्रीराम की मनमोहक छवि की परछाई देखती हैं तो वो स्वयं को रोक नही पातीं हैं और एकटक प्रभु श्रीराम की मनमोहक छवि को निहारती रह जाती हैं।

शृंगार रस के उदाहरण

मेरे तो गिरधर गोपाला, दूसरों ना कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।।

यह तन जारों छार कै कहों कि पवन उड़ाउ।
मकु तेहि मारग होइ परों कंत धरै वहं पाउ।।

अरे बता दो मुझे कहाँ प्रवासी है मेरा।
इसी बावले से मिलने को डाल रही हूँ मैं फेरा।।

हौं ही बोरी बिरह बरा, कै बोरों सब गाउँ।
कहा जानिए कहत है, समिहि सीतकर नाउँ।।

दरद कि मारी वन-वन डोलू वैध मिला नाहि कोई।
मीरा के प्रभु पीर मिटै, जब वैध संवलिया होई।।

कहत, नटत, रीझत, खीझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरै भौन में करत है, नैनन ही सों बाता।

तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।
झके कूल सों जल परसन हित मनहुँ सुहाये।।

हरिजन जानि प्रीति अति बाढ़ी।
सजल नयन पुलकाबलि ठाढ़ी।।

गोपी ग्वाल गाइ गो सुत सब,
अति ही दीन बिचारे।
सूरदास प्रभु बिनु यौं देखियत,
चंद बिना ज्यौं तारे।।

कर मुंदरी की आरसी, प्रतिबिम्बित प्यौ पाइ।
पीठ दिये निधरक लखै, इकटक दीठि लगाइ।।

रे मन आज परीक्षा तेरी।
सब अपना सौभाग्य मनावें।
दरस परस निःश्रेयस पावें।
उद्धारक चाहें तो आवें।
यहीं रहे यह चेरी।

थके नयन रघुपति छबि देखें।
पलकन्हिहूँ परिहरीं निमेषें।।
अधिक सनेहँ देह भै भोरी।
सरद ससिहि जनु चितव चकोरी।।

बचन न आव नयन भरि बारी।
अहह नाथ हौं निपट बिसारी।।

लता ओर तब सखिन्ह लखाए।
श्यामल गौर किसोर सुहाए।।

दूलह श्रीरघुनाथ बने दुलही सिय सुंदर मंदिर माही।
गावति गीत सबै मिलि सुन्दरि बेद जुवा जुरि विप्र पढ़ाही।।
राम को रूप निहारित जानकि कंकन के नग की परछाही।
यातें सबै भूलि गई कर टेकि रही, पल टारत नाहीं।।

मन की मन ही माँझ रही
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाही परत कही
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही
अब इन जोग संदेशनि, सुनि-सुनि बिरहिनी बिरह दही।

अति मलीन वृषभानुकुमारी।
हरि स्त्रम जल भीज्यौ उर अंचल, तिहिं लालच न धुवावति सारी।।
अध मुख रहति अनत नहिं चितवति, ज्यौ गथ हारे थकित जुवारी।
छूटे चिकुरे बदन कुम्हिलाने, ज्यौ नलिनी हिमकर की मारी।।
हरि सँदेस सुनि सहज मृतक भइ, इक विरहिनि, दूजे अलि जारी।
सूरदास कैसै करि जीवै, व्रजवनिता बिन स्याम दुखारी।।

के पतिआ लए जाएत रे मोरा पिअतम पास।
हिए नहि सहए असह दुख रे भेल साओन मास।।

क्या पूजा, क्या अर्चन रे।
उस असीम का सुन्दर मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे।
मेरी श्वासें करती रहतीं नित प्रिय का अभिनंदन रे।
पदरज को धोने उमड़े आते लोचन जलकण रे।

लज्जाशीला पथिक महिला जो कहीं दृष्टि आये।
होने देना विकृत-वसना तो न तू सुन्दरी को।।
जो थोड़ी भी श्रमित बह हौ गोद ले श्रान्ति खोना।
होठों की ओ कमल-मुख की म्लानतायें मिटाना।।

एक पल, मेरे प्रिया के दृग पलक
थे उठे ऊपर, सहज नीचे गिरे।
चपलता ने इस विकंपित पुलक से,
दृढ़ किया मानो प्रणय संबन्ध था।।

महा मधुर रस प्रेम कौ प्रेमा।
पीवत ताहिं भूलि गये नेमा।।
तैसी सखी रहै दिन-राती।
हित ध्रुव’ जुगल-नेह मदमाती।।

मैं निज अलिंद में खड़ी थी सखि एक रात
रिमझिम बूदें पड़ती थी घटा छाई थी।
गमक रही थी केतकी की गंध चारों ओर
झिल्ली झनकार यही मेरे मन भायी थी।

बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै, भौंहनु हँसे, देन कै नटि जाय।।

सतापों को विपुल बढ़ता देख के दुःखिता हा।
घार बोली स-दुःख उससे श्रीमती राधिका यों।।
प्यारी प्रात: पवन इतना क्यों मुझे है सताती।
क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से।।

शृंगार रस के अवयव

स्थायी भावरति
आलंबन (विभाव)खुशबू, पंछियों का गुंजन, सुहावना मौसम
उद्दीपन (विभाव)कीर्ति या मान की इच्छा, विपक्षी का पराक्रम या विपक्षी का अहंकार
अनुभावनायक तथा नायिका की चेष्टाएँ आदि
संचारी भावउन्माद, अभिलाषा, आवेग, हर्ष आदि

शृंगार रस के प्रकार

  • संयोग शृंगार
  • वियोग शृंगार

वियोग शृंगार का दूसरा नाम “विप्रलंभ शृंगार”‌ भी है।

1. संयोग शृंगार रस

संयोग शृंगार के अंतर्गत नायक-नायिका का परस्पर मिलन होता है। दोनों के द्वारा किए गए क्रियाकलापों को उनके सुखद अनुभूतियों को संयोग शृंगार के अंतर्गत माना गया हैं।

उदाहरण :-

बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय,
सौंह करे भौंहन हंसे देन कहे नटि जाय।।

व्याख्या :- गोपियाँ अपने परम प्रिय कृष्ण से बातें करने का अवसर खोजती रहती हैं। इसी बतरस (बातों के आनंद) को पाने के प्रयास में उन्होंने कृष्ण की वंशी को छिपा दिया है। कृष्ण वंशी के खो जाने पर बड़े व्याकुल हैं।

2. वियोग शृंगार रस

वियोग शृंगार रस वहाँ होता हैं जहां नायक और नायिका का वियोग होता। दोनों मिलने के लिए व्याकुल होते हैं। यह बिरह इतना तीव्र होता हैं कि सब कुछ जला कर भस्म करने के लिए सदैव आतुर रहता हैं।

उदाहरण :-

उधो, मन न भए दस बीस।
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस।।

व्याख्या :- गोपियां कहती है, मन तो हमारा एक ही है, दस-बीस मन तो हैं नहीं कि एक को किसी के लगा दें और दूसरे को किसी और में। अब वह भी नहीं है, कृष्ण के साथ अब वह भी चला गया।

यों तो हम बिना सिर की-सी हो गई हैं, हम कृष्ण वियोगिनी हैं, तो भी श्याम-मिलन की आशा में इस सिर-विहीन शरीर में हम अपने प्राणों को करोड़ों वर्ष रख सकती हैं। तुम तो योगियों में भी शिरोमणि हो।

शृंगार रस से संबंधित प्रश्न उत्तर

1. रसराज किस रस को कहा जाता है?
A. हास्य रस
B. करूण रस
C. शृंगार रस
D. वीर रस

Ans. शृंगार रस

2. शृंगार रस का स्थाई भाव बताये?
A. भय रस
B. रति
C. भाव
D. शोक

Ans. रति

3. शृंगार रस के कितने अवयव है?
A. 11
B. 4
C. 8
D. 5

Ans. 5

4. कवि बिहारी मुख्यतः किस रस के कवि हैं?
A. करुण
B. भक्ति
C. वीर
D. श्रृंखला

Ans. श्रृंगार

5. सर्वश्रेष्ठ रस किसे माना जाता हैं?
A. रौद्र रस
B. श्रृंगार रस
C. करुण रस
D. वीर रस

Ans. श्रृंगार रस

6. श्रृंगार रस कितने प्रकार के होते है?
A. 1
B. 2
C. 3
D. 4

Ans. 2

7. माधुर्य गुण का किस रस में प्रयोग होता है?
A. शांत रस
B. भयानक रस
C. शृंगार रस
D. रौद्र रस

Ans. शृंगार रस

8. राम को रूप निहारत जानकी,
कंगन के नग की परछाई।
याते सवै सुध भूल गई,
कर टेक रही पल टारत नाही।।

किस रस का उदाहरण है?
A. भयानक
B. शृंगार रस
C. हास्य
D. वीर रस

Ans. शृंगार रस

9. मेरे तो गिरिधर गोपाला दुसरो न कोई, जके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई, इन पंक्तियों में कौन सा रस है?
A. शांत रस
B. वीर रस
C. करूण रस
D. शृंगार रस

Ans. शृंगार रस

10. शृंगार रस को और किस नाम से जाना जाता है?
A. रति
B. शांत
C. रसराज
D. भय

Ans. रसराज

FAQ

Q.1 शृंगार रस किसे कहते हैं?


Ans. यह एक ऐसा रस है, जिसमें प्रेम व रति या वियोग का भाव निहित होता है। यह प्रेम व वियोग चाहे नायक और नायिका का एक दुसरे के प्रति हो, किसी चरित्र का या प्रकृति के प्रति हो।

Q.2 शृंगार रस का उदाहरण बताइए?


Ans. राम को रूप निहारत जानकी,
कंगन के नग की परछाई।
याते सवै सुध भूल गई,
कर टेक रही पल टारत नाही।।

Q.3 शृंगार रस के कितने प्रकार होते हैं ?

Ans. शृंगार रस के दो प्रकार होते हैं।

संयोग शृंगार, वियोग शृंगार

Q.4 शृंगार रस का स्थायी भाव क्या हैं ?


Ans. रति

Q.5 रसराज किसे कहाँ जाता हैं ?

Ans. शृंगार रस

उम्मीद हैं आपको शृंगार रस की जानकारी पसंद आयी होगी। यदि आपको यह जानकारी पसंद आयी हो तो इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें।

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.