उपन्यास की परिभाषा, प्रकार, विकास, तत्त्व और विशेषताएँ

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उपन्यास किसे कहते हैं

उपन्यास किसी भी साहित्य की एक लोकप्रिय विद्या है। प्रेमचंद्र ने उपन्यास के बारे में अपने विचार प्रकट करते हुए कहा है कि, मैं उपन्यास को मानव-चरित्र का चित्र-मात्र समझता हूं। मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्य को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्त्व है।

उपन्यास की परिभाषा

बाबू गुलाब के अनुसार,” उपन्यास जीवन का चित्र हैं, प्रतिबिंब नहीं। जीवन का प्रतिबिंब कभी पूरा नही हो सकता हैं। मानव-जीवन इतना पेचीदा है कि उसका प्रतिबिंब सामने रखना प्रायः असंभव है।

उपन्यासकार जीवन के निकट से निकट आता हैं, किन्तु उसे भी जीवन में बहुत कुछ छोड़ना पड़ता हैं, किन्तु जहाँ वह छोड़ता हैं वहाँ अपनी ओर से जोड़ता भी हैं।” 

श्यामसुन्दर दास के अनुसार,” उपन्यास मनुष्य के वास्तविक जीवन की काल्पनिक कथा हैं।” 

प्रेमचंद के अनुसार,” मैं उपन्यास को मानव चरित्र का चित्र मानता हूँ। मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्व हैं।” 

हडसन के अनुसार,” उपन्यास में नामों और तिथियों के अतिरिक्त और सब बातें सच होती हैं। इतिहास में नामों और तिथियों के अतिरिक्त कोई बात सच नहीं होती।” 

उपन्यास के प्रकार

सूक्ष्म अनुशीलन पर निम्न प्रकार के उपन्यासों के दर्शन होते हैं।

  1. सांस्कृतिक उपन्यास
  2. सामाजिक उपन्यास
  3. यथार्थवादी उपन्यास
  4. ऐतिहासिक उपन्यास
  5. मनोवैज्ञानिक उपन्यास
  6. राजनीतिक उपन्यास
  7. प्रयोगात्मक उपन्यास
  8. तिलिस्मी जादुई उपन्यास
  9. वैज्ञानिक उपन्यास
  10. धार्मिक उपन्यास
  11. लोक कथात्मक उपन्यास
  12. आंचलिक उपन्यास
  13. रोमानी उपन्यास
  14. कथानक प्रधान उपन्यास
  15. चरित्र प्रधान उपन्यास
  16. वातावरण प्रधान उपन्यास
  17. महाकाव्यात्मक उपन्यास
  18. जासूसी उपन्यास
  19. समस्या प्रधान उपन्यास
  20. भाव प्रधान उपन्यास
  21. आदर्शवादी उपन्यास
  22. नीति प्रधान उपन्यास
  23. प्राकृतिक उपन्यास

हिंदी उपन्यास का उद्भव एवं विकास

हिंदी साहित्य में उपन्यास का उदय अंग्रेजी उपन्यास के बाद हुआ लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इससे पहले भारत में उपन्यास जैसी विधा नहीं थी। 

संस्कृत, पालि, प्राकृत अपभ्रंश आदि में अनेक नीति कथाएँ मिलते हैं जिनमें उपन्यास विधा के अनेक तत्त्व मिलते हैं । लेकिन हम उनको उपन्यास नहीं कह सकते। 

वास्तव में, उपन्यास का विकास पहले यूरोप में हुआ। बाद में बांग्ला के माध्यम से यह हिंदी साहित्य में आयी। 

लाला श्रीनिवास दास का परीक्षा गुरु (1888) ईशा अल्ला खां द्वारा रचित रानी केतकी की कहानी तथा श्रद्धा राम फिल्लौरी कृत ‘भाग्यवती आदि कुछ ऐसी रचनाएँ हैं जिन्हें हिंदी का प्रथम उपन्यास माना जाता है। 

हिंदी उपन्यास के विकास क्रम को तीन भागों में बाटा जा सकता है।

  1. प्रेमचंद पूर्व हिंदी उपन्यास
  2. प्रेमचंदयुगीन हिंदी उपन्यास
  3. प्रेमचंदोत्तर हिंदी उपन्यास

1. प्रेमचंद पूर्व हिंदी उपन्यास

इस युग के उपन्यासों को हम पाँच भागों में विभाजित कर सकते हैं।

  • सामाजिक उपन्यास
  • तिलस्मी तथा ऐय्यारी के उपन्यास 
  • जासूसी उपन्यास
  • प्रेमाख्यात्मक उपन्यास
  • ऐतिहासिक उपन्यास

2. प्रेमचंदयुगीन हिंदी उपन्यास

हिन्दी उपन्यासकारों में प्रेमचंद अपनी महान प्रतिभा के कारण युग परिवर्तन के लिए जाने जाते हैं। प्रेमचंद के उपन्यास राष्ट्रीय आंदोलन, कृषक समस्या, मानवतावाद, भारतीय संस्कृति शोषण विधय विवाह, अनमेल विवाह, दहेज प्रथा आदि विविध विषयों से संबंधित होते हैं। 

प्रेमचन्द युग के अन्य उपन्यासकारों में जयशंकर प्रसाद, विशम्भर नाथ कौशिक, बेचन शर्मा उम्र, ऋषभचरण जैन तथा वृन्दावन लाल वर्मा आदि प्रमुख हैं।

3. प्रेमचंदोत्तर हिंदी उपन्यास

सन् 1936 के बाद उपन्यास क्षेत्र में व्यक्ति के मन को जानने की प्रवृत्ति बढ़ी। एक पात्र को अलग-अलग परिस्थितियों में डालकर उसके हृदय में आने वाले भावों, प्रेरणाओं, रहस्यों का उद्घाटन और उनको जानना ही उपन्यासकारों का उद्देश्य हो गया। इस काल के उपन्यासों को निम्नलिखित प्रकार से विभाजित किया जा सकता है।

  • मनोवैज्ञानिक उपन्यास 
  • सामाजिक उपन्यास
  • आंचलिक उपन्यास

उपन्यास के तत्त्व

उपन्यास के निम्नलिखित तत्व है।

  1. कथा वस्तु
  2. चरित्र-चित्रण
  3. परिवेश
  4. संवाद
  5. प्रतिपाद्य

उपन्यास की विशेषताएं

उपन्यास की उपरोक्त परिभाषाओं के विश्लेषणणोपरान्त उपन्यास की निम्नलिखित विशेषताएं हैं।

1. यह अपेक्षाकृत विस्तृत रचना होती हैं।

2. उपन्यास जीवन के विविध पक्षों का समावेश होता हैं।

3. उपन्यास में वास्तविकता तथा कल्पना का कलात्मक मिश्रण होता हैं।

4. कार्य-कारण श्रंखला का निर्वाह किया जाता हैं।

5. उपन्यास में मानव-जीवन के सत्य का उद्घाटन होता हैं।

6. जीवन की समग्रता का चित्र इस प्रकार उपस्थित किया जाता है कि पाठक उसकी अन्तर्वस्तु तथा पात्रों से अपना तादात्मीकरण कर सके।

हिंदी के प्रमुख उपन्यास एवं उपन्यासकार

क्रमांकउपन्यासउपन्यासकार
1.लज्जा, सन्यासी, जिप्सीइलाचंद्र जोशी
2.एक रात का नरक, गर्म राख, गिरती दीवारेंउपेंद्र नाथ ‘अश्क’
3.वरुण के बेटे, बलचनमा, इमरतिया, गरीबदासनागार्जुन
4.राग दरबारी, आदमी का जहर, अज्ञातवास, मकानश्रीलाल शुक्ला
5.अनामदास का पोथा, चारु चंद्र लेख, पुनर्नवाहजारी प्रसाद द्विवेदी
6.औरत, दिल्ली दूर है, नीला चांद, कुहरे में युद्धशिवप्रसाद सिंह
7.दो एकांत, प्रथम फागुन, धूमकेतु: एक श्रुतिनरेश मेहता
8.रथ के पहिए, कठपुतलीदेवेंद्र सत्यार्थी
9.शह और मात, उखड़े हुए लोग, मुखर चिंतनराजेंद्र यादव
10.गंगा मैया, शोले, धरती, भाग्य देवताभैरव प्रसाद गुप्त

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