इस पेज पर हम हिंदी व्याकरण के अगले महत्वपूर्ण अध्याय अलंकार की परिभाषा प्रकार और उदाहरण को पढ़ेंगे।
पिछली पोस्ट में हम हिंदी व्याकरण के महत्वपूर्ण अध्याय छन्द की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण की जानकारी शेयर कर चुके है उसे जरूर पढ़े
चलिए अब अलंकार की जानकारी को पढ़कर समझते है।
अंलकार किसे कहते है
“काव्य की शोभा बढ़ाने वाले शब्दों को अलंकार कहा जाता हैं इसका शाब्दिक अर्थ आभूषण होता हैं।”
अलंकार दो शब्दों से मिलकर बने होते है – (अलम + कार = अलंकार)
यहाँ पर अलम का अर्थ होता है आभूषण, उसकी प्रवर्ती के कारण ही अलंकारों को जन्म दिया गया है।
जिस तरह से एक नारी अपनी सुन्दरता को बढ़ाने के लिए आभूषणों को पहनती हैं उसी प्रकार भाषा को सुन्दर बनाने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया जाता है।
अथार्त जो शब्द काव्य की शोभा को बढ़ाते हैं उसे अलंकार कहते हैं।
अलंकार का महत्व
कविता की रोचकता, हृदयग्राहाता, सरसता और चमत्कार बढ़ जाता हैं। अनेक विद्वान तो अलंकार को काव्य की आत्मा तक मान बैठे हैं।
उदाहरण :-
कनक-कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय!
वा खाये बौराए नर, वा पाये बौराये।
अलंकार के प्रकार
अंलकार मुख्य तीन प्रकार के होते हैं।
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
- उभयालंकार
शब्दालंकार की परिभाषा
शब्दालंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है शब्द + अलंकार।
शब्द के दो रूप होते हैं ध्वनी और अर्थ।
ध्वनि के आधार पर शब्दालंकार की सृष्टी होती है। जब अलंकार किसी विशेष शब्द की स्थिति में ही रहे और उस शब्द की जगह पर कोई और पर्यायवाची शब्द के रख देने से उस शब्द का अस्तित्व न रहे उसे शब्दालंकार कहते हैं।
अर्थात जिस अलंकार में शब्दों को प्रयोग करने से चमत्कार हो जाता है और उन शब्दों की जगह पर समानार्थी शब्द को रखने से वो चमत्कार समाप्त हो जाये वहाँ शब्दालंकार होता है।
शब्दालंकार के प्रकार
शब्दालंकार के 6 प्रकार निम्लिखित हैं।
1. यमक अलंकार क्या है
जहां शब्दों की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार होती हैं किंतु प्रत्येक बार (स्थिति के अनुसार प्रत्येक शब्द अर्थ भिन्न होते हैं यमक अंलकार होता हैं।
उदाहरण :-
कनक-कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय!
वा खाए वैराय जग, या पाए वैराय!!
2. अनुप्रास अंलकार क्या है
जहां पर एक या एक से अधिक वर्णों (व्यंजन) की आवृत्ति एक से अधिक बार होती हैं वहां पर अनुप्रास अलंकार होता हैं।
उदाहरण :-
बंदऊ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुवाम सरल अनुरणा
ब, प, स, द, र, ग (वर्णो की आवृत्ति)
3. श्लेष अलंकार क्या है
जिस अंलकार में शब्दों की आवृत्ति एक से अधिक बार आवृति हुए बिना प्रसन्न अनुसार दो या दो से अधिक अर्थ निकले वहां पर श्लेष अलंकार होगा।
उदाहरण :-
रहिमन पानी रखिए, विन पानी सब चुन!
पानी गए न ऊबरे, मोती मानुस चुन!!
Note :- श्लेष अलंकार में जिन वर्णों की आवृति होती हैं उनके अर्थ समान किन्तु विशेष रूप से शब्दों की आवृत्ति हुए बिना शब्दों के एक से अधिक अर्थ होते हैं।
उदाहरण :-
भाया महाठागिनी हम जानी!
तिरगुन दौष लिए कर दौले, बोले मधुवानी!!
4. वक्रोक्ति अलंकार क्या है
इस अलंकार में ध्वनि के विकार के आधार पर समान शब्दों का अर्थ अलग-अलग होता हैं किंतु यहां पर शब्दों की आवृत्ति नहीं होती।
उदाहरण :-
रुको, मत जाने दो।
रुको मत, जाने दो।।
5. पुनरुक्ति अलंकार क्या है
जब कोई शब्द दो बार दुहराया जाता है वह पुनरुक्ति अलंकार होता है।
पुनरुक्ति दो शब्दों से मिलकर बना है।
पुनः + उक्ति = पुनरुक्ति
6. विप्सा अलंकार क्या है
जब हर्ष, शोक, आदर और विष्मय बोधक आदि भावो को प्रभावशाली रूप से व्यक्त करने के लिए शब्दि की पुनरावृत्ति होती है तो वह विप्सा अलंकार होता है।
उदाहरण :-
मोहि-मोहि मोहन को मन भयो राधामय।
राधा मन मोहि-मोहि मोहन मयी-मयी।।
अर्थालंकार की परिभाषा
जिस काव्य रचना में शब्दों के अर्थ के आधार पर काव्य में रचनात्मक परिवर्तन (शोभा बढ़ाने वाले शब्दों को ही अर्थालंकार कहते हैं।)
उदाहरण :-
उत्प्रेक्षा, अतिश्योक्ति, उपमा, रूपक, अन्योक्ति, व्याजनिदा, दृष्टांत, व्यति, रेखा, व्याजस्तुति, भाँतिमान, संदेह।
अर्थालंकार के प्रकार
अर्थालंकार के 23 प्रकार निम्नलिखित हैं।
1. उपमा अलंकार क्या है
उपमा अलंकार को अलंकारों का अंलकार सिरमोर/सिरोरत्न भी कहा जाता हैं।
जहां पर दो वस्तुओं की वास्तविक तुलना उन वस्तुओं के गुण, दोष स्थति के आधार पर की जाती हैं वहाँ उपमा अलंकार होता हैं।
उपमा अलंकार के 4 अंग होते है।
- उपमेय
- उपमान
- समान गुण
- समान वाचक शब्द
उपमेय :- दो वस्तुओं में से जिस वस्तु की तुलना (अस्तित्व मान वस्तु) की जाती हैं उसे उपमा अंलकार में उपमेय माना जाता हैं।
उपमान अलंकार :- दो वस्तुओं में से जिस वस्तु से तुलना की जाती हैं उसे उपमा अलंकार में उपमान कहा जाता हैं।
समान गुण अंलकार :- दोनों वस्तुओं में तुलना उन वस्तु के जिस गुण के कारण होती हैं उस गुण को ही गुण धर्म कहाँ जाता हैं।
समान वाचक शब्द :- वे शब्द जो दो वस्तुओं की तुलना को प्रसिद्ध करते हैं समान वाचक शब्द कहलाते हैं।
उपमा अलंकार के दो भेद होते हैं।
- पुणोपमा अलंकार
- लुप्तोपमा अलंकार
पुणोपमा अलंकार :- इस अलंकार में उपमा अलंकार के चार भेद या अंग (उपमान, उपमेय, गुण धर्म, समान वाचक शब्द) उपस्थित होते हैं।
उदाहरण :- राम श्याम के ही समान मोटा हैं।
लुप्तोपमा :- इस अलंकार में उपमा अलंकार के चार अंगों में से कोई एक अंक या एक से अधिक भी अनुपस्थित होते हैं वहाँ पर लुप्तोपमा अलंकार होता हैं।
उदाहरण :- मुख चन्द सा हैं।
2. रूपक/कल्पना अलंकार क्या है
जिस अलंकार में एक वस्तु में दूसरी वस्तु व्यक्ति की कल्पना कर ली जाती हैं वहाँ पर रूपक अलंकार होता हैं इसमें मुख्य रूप से रूपी शब्द अर्थ में समाहित होता हैं जो कि इसकी पहचान हैं।
उदाहरण :- पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
3. उत्प्रेक्षा अलंकार क्या है
जहां उपमेय में उपमान की संभावना हो अर्थात एक वस्तु में दूसरी वस्तु की संभावना को बताना ही उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतर्गत आता हैं।
इस प्रकार की छन्द रचना में पहचान कर रूप में जनु, जानो, जनाहू, मनु, मनहु, मानो शब्दों का उपयोग वाचक शब्दों के रूप में किया जाता हैं।
उदाहरण : मुख मानो चन्द्र हैं।
4. अतिश्योक्ति अलंकार क्या है
जहां किसी गुण, स्थिति या घटना का उल्लेख बड़ा चढ़ा कर प्रदर्शित किया जाता हैं वहां पर अतिशयोक्ति अलंकार होता हैं।
उदाहरण :
पत्रा ही तिथि पाइए वा घर के चहुँ पास।
नित प्रति पुन्यों ही रहे, आनन ओज ऊजास।।
5. अन्योक्ति अलंकार क्या है
जहां पर उल्लेखित तथ्य या घटना को छिपा कर दूसरे आधार के माध्यम से अपनी बात को कहना अर्थात अपनी बात को सीधे तरीके से ना कह कर अप्रत्यक्ष तरीके से कहा जाता हैं।
उदाहरण :-
माली आवत देखकर, कलियन करै पुकार।
फुले फुले चुन लिए, कलहि हमारी बार।।
6. द्रष्टान्त अलंकार क्या है
उपमेय, उपमान में बिम्ब प्रतिबिम्ब का उल्लेख होना अर्थात किसी वस्तु या घटना कि यर्थाथ सत्यता को प्रमाणित किया जाना द्रष्टान्त कहलाता हैं।
उदाहरण :-
करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सूजान।
रसरि आवत जात ही, सिलपर परत निशान।।
7. विभावना अलंकार क्या है
यह विशेष युक्ति अलंकार का उल्टा होता हैं इसमें कारण के ना रहने पर भी कार्य का वर्णन किया जाता हैं वहां विभावना अलंकार होता हैं।
उदाहरण :-
विन घनश्याम धाम व्रजमण्डल।
नित बंसत बहार वर्षों की।।
8. सन्देह अलंकार अलंकार क्या है
उपमेय में उपमान का संदेह अर्थात जहां किसी वस्तु को देखकर या सुनकर सन्देह उत्पन्न होता हैं और यह निश्चित न हों सकें कि वह क्या है वहां पर संदेह अलंकार होता हैं।
उदाहरण :-
आंख का आँसू झलकता देख कर,
जी तड़प कर के हमारा रह गया।
क्या गया मोती किसी का बिखर,
या हुआ पैदा रत्न कोई नया।।
9. उल्लेख अलंकार क्या है
जहां किसी एक वस्तु का अनेक प्रकार से विषम वस्तुओं में उल्लेख होता हैं वहां पर उल्लेख अलंकार होगा।
उदाहरण :-
जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूर्ति देखी तिन तैसी।
देखहि भूप महा रनधीरा, मनहु वीर रस धरे सरीरा।
डरे कुटिल नृप प्रभुहि निहारी, मनहु भयानक मूर्ति भारी।।
10. भ्रांति मान अलंकार क्या है
जहां भ्रमण किसी वस्तु को मान लिया जाए वहां पर भ्रांतिमान अलंकार होता हैं।
Note : भ्रांतिमान अलंकार में उपमेय और उपमान के साद्रय को आभास मान लिया जाता है किंतु संदेह अलंकार में दुविधा होती हैं जैसे ये हैं या वो हैं।
उदाहरण :-
बादल से काले-काले केशों को देख निराले।
नाचा करते हैं हर दम पालतू मोर मतबाले।।
11. उपमेयोपमा अलंकार क्या है
इस अलंकार में उपमान और उपमेय को परस्पर उपमेय और उपमान बनाने की कोशिस की जाती हैं इसमे उपमेय और उपमान की उजमा दी जाती है।
12. प्रतीप अलंकार क्या है
प्रतीप का अर्थ होता है उल्टा,
अतः इसमे उपमेय और उपमान को यथार्त नाम से न बोलकर उल्टा उपमेय को उपमान और उपमान को उपमेय कहते हैं।
13. अनन्वय अलंकार क्या है
जब उपमेय की समता में कोई उपमान नहीं आता और कहा जाता है कि उसके समान वही है, तब अनन्वय अलंकार होता है।
जैसे :- यद्यपि अति आरत-मारत है, भारत के सम भारत है।
14. दीपक अलंकार क्या है
जहाँ पर प्रस्तुत और अप्रस्तुत का एक ही धर्म स्थापित किया जाता है वहाँ पर दीपक अलंकार होता है।
जैसे :-
चंचल निशि उदवस रहें, करत प्रात वसिराज।
अरविंदन में इंदिरा, सुन्दरि नैनन लाज।।
15. अपहृति अलंकार क्या है
अपहृति का अर्थ होता है छिपाव। जब किसी सत्य बात या वस्तु को छिपाकर उसके स्थान पर किसी झूठी वस्तु की स्थापना की जाती है वहाँ अपहृति अलंकार होता है। यह अलंकार उभयालंकार का भी एक अंग है।
जैसे :-
सुनहु नाथ रघुवीर कृपाला।
बन्धु न होय मोर यह काला।।
16. व्यतिरेक अलंकार क्या है
व्यतिरेक का शाब्दिक अर्थ होता है आधिक्य। व्यतिरेक में कारण का होना जरुरी है। अत: जहाँ उपमान की अपेक्षा अधिक गुण होने के कारण उपमेय का उत्कर्ष हो वहाँ पर व्यतिरेक अलंकार होता है।
जैसे :-
का सरवरि तेहिं देउं मयंकू। चांद कलंकी वह निकलंकू।
मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे दूँ।।
17. विशेषोक्ति अलंकार क्या है
काव्य में जहाँ कार्य सिद्धि के समस्त कारणों के विद्यमान रहते हुए भी कार्य न हो वहाँ पर विशेषोक्ति अलंकार होता है।
जैसे :-
नेह न नैनन को कछु, उपजी बड़ी बलाय।
नीर भरे नित-प्रति रहें, तऊ न प्यास बुझाई।।
18. अर्थान्तरन्यास अलंकार क्या है
जब किसी सामान्य कथन से विशेष कथन का अथवा विशेष कथन से सामान्य कथन का समर्थन किया जाये वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है।
जैसे :-
बड़े न हूजे गुनन बिनु, बिरद बडाई पाए।
कहत धतूरे सों कनक, गहनो गढ़ो न जाए।।
19. विरोधाभाष अलंकार क्या है
जब किसी वस्तु का वर्णन करने पर विरोध न होते हुए भी विरोध का आभाष हो वहाँ पर विरोधाभास अलंकार होता है।
जैसे :-
आग हूँ जिससे ढुलकते बिंदु हिमजल के।
शून्य हूँ जिसमें बिछे हैं पांवड़े पलकें।।
20. असंगति अलंकार क्या है
जहाँ आपतात: विरोध दृष्टिगत होते हुए, कार्य और कारण का वैयाधिकरन्य रणित हो वहाँ पर असंगति अलंकार होता है।
जैसे :-
- ह्रदय घाव मेरे पीर रघुवीरै।
21. मानवीकरण अलंकार क्या है
जहाँ पर काव्य में जड़ में चेतन का आरोप होता है वहाँ पर मानवीकरण अलंकार होता है अथार्त जहाँ जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं और क्रियांओं का आरोप हो वहाँ पर मानवीकरण अलंकार होता है।
जैसे :-
बीती विभावरी जागरी , अम्बर पनघट में डुबो रही तास घट उषा नगरी।
22. काव्यलिंग अलंकार क्या है
जहाँ पर किसी युक्ति से समर्थित की गयी बात को काव्यलिंग अलंकार कहते हैं अथार्त जहाँ पर किसी बात के समर्थन में कोई-न-कोई युक्ति या कारण जरुर दिया जाता है।
जैसे :-
कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
उहि खाय बौरात नर, इहि पाए बौराए।।
23. स्वभावोती अलंकार क्या है
किसी वस्तु के स्वाभाविक वर्णन को स्वभावोक्ति अलंकार कहते हैं।
जैसे :-
सीस मुकुट कटी काछनी , कर मुरली उर माल।
इहि बानिक मो मन बसौ , सदा बिहारीलाल।।
उभयालंकार की परिभाषा
वे अंलकार जो की शब्द और अर्थालंकार के संयोग में मिलकर किन्तु अलग या भिन्न होते हैं उभयालंकार कहलाते हैं।
जो अलंकार शब्द और अर्थ दोनों पर आधारित रहकर दोनों को चमत्कारी करते हैं वहाँ उभयालंकार होता है।
जैसे :- कजरारी अंखियन में कजरारी न लखाय।
उदाहरण :- मानवीकरण अलंकार, द्रवन्यार्थ अलंकार, विशेषण विपर्याय।
जरूर पढ़े :-
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