भूकंप क्या हैं भूकंप के कारण, प्रकार, प्रभाव एवं बचाव के उपाय

इस पेज पर आप भूकंप की समस्त जानकारी पढ़ने वाले हैं तो आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़िए।

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चलिए आज हम भूकंप की समस्त जानकारी को पढ़ते और समझते हैं।

भूकंप क्या हैं

पृथ्वी जब अचानक कांपने या हिलने लगती है तो उसे भूकंप कहते हैं। यह भूकंपीय तरंगों के कारण होता है जो पृथ्वी के स्थलमंडल में टेक्टोनिक प्लेटों की गति से उत्पन्न होती हैं। कोई भी भूकंपीय घटना, प्राकृतिक या मानव निर्मित जो भूकंपीय तरंगें उत्पन्न करती है, भूकंप मानी जाती हैं।

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भूकंप

भूकंप की तीव्रता अलग अलग होती है, कभी-कभी यह बहुत कम होती है कि इसे महसूस नहीं किया जा सकता है और कभी-कभी यह इतना तेज होता है कि लोगों को इधर-उधर कर देता है और पूरे शहर, गांव, शहर आदि को नष्ट कर देता हैं।

पृथ्वी के दो ब्लॉकों (टेक्टॉनिक प्लेट्स) के अचानक खिसकने के कारण या जब यह प्लेटें अचानक एक दूसरे से फिसलने के कारण हिलती हैं तब भूकम की स्थिति पैदा होती हैं। फॉल्ट या फॉल्ट प्लेन वह सतह है जहां प्लेट या ब्लॉक अचानक फिसल जाते हैं।

भूकंप के कारण

भूकंप के अब तक जितने भी कारण सामने आए हैं वह निम्नलिखित हैं।

1. ज्वालामुखी क्रिया

भूकंप के आने का एक प्रमुख कारण ज्वालामुखी है क्योंकि पृथ्वी के भीतर से गर्म लावा और गैसों के निकलने से आसपास के भूपर्पटी पर बल पड़ता है और वहां कंपन उत्पन्न होता हैं।

ज्वालामुखी विस्फोट से सीमित क्षेत्र में ही सही लेकिन धरातल की चट्टानें टूट जाती है और हवा में उड़ जाती हैं। जिस कारण सैकड़ों हजारों किलोमीटर तक भूकंप का अनुभव किया जाता है। जापान में ज्वालामुखी द्वारा बराबर भूकंप आते रहते हैं।

2. भ्रंश की क्रिया

जब भी पृथ्वी की प्लेटों में खिंचाव बढ़ जाता है तब सतह पर दरारें उत्पन्न होती हैं। जब प्लेटों पर पड़ा दबाव बहुत अधिक होता है तब यह प्लेटें टूट जाती है इसके प्रभाव से उसके आसपास के क्षेत्रों में तेजी से चट्टानों के खिसकने या हिलने के कारण भूकंप आ सकते हैं। असम में अगस्त 1950 का भूकंप इसी कारण से आया था।

3. भूमि संतुलन

पृथ्वी के ऊपर उठे हुए भाग और निचले भाग में सामस्थितिक समायोजन (Isostatic Adjustment) हमेशा एक समान नहीं रहता है।

महाद्वीपों से मलबे बहकर समुंद्र में चले जाते हैं यह मलबे पृथ्वी के संतुलन को बिगाड़ देते हैं। यह संतुलन भूभाग के पुनः उठने से संतुलित हो जाता है। इस प्रक्रिया में पृथ्वी के कमजोर भाग में भूकंप की उत्पत्ति होती हैं।

4. प्रत्यास्थ प्रतिक्षेप सिद्धांत

प्रसिद्ध अमेरिकी भूगोलवेत्ता प्रोफेसर H.F.Read के अनुसार पृथ्वी के अंदर की चट्टाने लचीली होती है मतलब रबड़ के समान उन में घटने बढ़ने का गुण होता हैं।

दबाव पड़ने पर चट्टाने अपने लचीले स्वभाव के कारण उसे सहन करती रहती है लेकिन एक समय ऐसा आता है कि जब वह अधिक दबाव सहन नहीं कर पाती है तब यह टूट जाती है। इस तरह से भी भूकंप उत्पन्न होते हैं। 1906 कैलिफोर्निया का भूकंप इसी प्रकार का था।

5. प्लेट टेक्टोनिक

स्थलमंडल कठोर प्लेटो से बने हुए हैं यह प्लेट हमेशा गति करते रहते हैं। जब यह प्लेट आपस में टकराते हैं तो अधिक घनत्व वाला प्लेट कम घनत्व वाले प्लेट के नीचे चला जाता है।

टकराने से जब प्लेट आपस में रगड़ते हैं तो यह टूटते हैं और फिर अलग हो जाते हैं। अलग होने में ही पृथ्वी में झटके उत्पन्न होते है जिससे भूकंप आता हैं।

6. पृथ्वी का सिकुड़ना

माना जाता है कि पृथ्वी धीरे-धीरे ठंडी होती जा रही है जिससे इसकी गर्मी शांत हो रही है और इसलिए बहुत अधिक मात्रा में पृथ्वी के केंद्र में भाप बनने पर उसका फुटकर निकालना निश्चित है।

पृथ्वी के केंद्र में स्थित भाप और जब पृथ्वी के बाहर निकलती है तब कितने ही भागों में उथल-पुथल मच जाती है और वहां भूकंप आ जाता हैं।

भूकंप के प्रकार

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भूकंप

भूकंप को गहराई के आधार पर मुख्यतः तीन भागों में बांटा गया हैं।

1. सामान्य भूकंप :- ऐसे भूकंप की उत्पत्ति धरातल से 60 किलोमीटर की गहराई तक होती है लेकिन ज्यादातर भूकंप 7 किलोमीटर की गहराई तक ही उत्पन्न होते हैं।

विश्व के ज्यादातर भूकंप इसी प्रकार के होते हैं यह बहुत विनाशकारी भूकंप होते हैं।1960 में मोरक्को का भूकंप जिसने 12000 लोगों की जान ली थी इसी प्रकार का भूकंप था।

2. मध्यवर्ती भूकंप :- ऐसे भूकंप 60 किलोमीटर से 300 किलोमीटर तक की गहराई में उत्पन्न होते हैं।

3. गहरे भूकंप :- इस भूकंप को पातालीय भूकंप भी कहते हैं। यहां 300 किलोमीटर से लगभग 720 किलोमीटर तक की गहराई में उत्पन्न होते हैं। इस भूकंप के विषय में बहुत कम जानकारी उपलब्ध हैं।

भूकंप का प्रभाव

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भूकंप

1. भूकंप एक अचानक घटने वाली घटना है। भूकंप ने मानव जीवन और संपत्ति को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाया है। उनके आधार पर भूकंप के निम्नलिखित परिणाम होते हैं।

2. भूकंप से भूमि पर जहां-तहां दरारे पड़ जाती है और उनसे होकर भूमि के भीतर का बालू और पानी बाहर निकलने लगते हैं। कभी-कभी उनसे लावा भी निकलने लगता है।

कभी-कभी भूकंप से अनेक जगह की नदी की सतह ऊपर उठ जाती है या बांध टूट जाता है। जिससे आसपास के क्षेत्रों में अचानक बाढ़ आ जाती है।

3. भूकंप से कभी-कभी भूमि का भाग नीचे धंस जाता है। बहुत सारे भूभाग धसकर समुद्र में चले जाते हैं। तटीय भाग में भूकंप के घटने के कारण गहरी खाई बनती है तो वही भूकंप से पर्वतीय क्षेत्रों में लैंडस्लाइड होता है।

4. भूकंप आने पर इलेक्ट्रिक तारों के आपस में संपर्क में आने पर डिवाइस में आग लग जाती हैं।

5. भूकंप का प्रभाव समुद्री भागों पर भी पड़ता है। भूकम्प अगर समुंद्र में हुआ तो इसके प्रभाव से वहां ऊंची ऊंची लहरें उत्पन्न होती है जिसे सुनामी कहते हैं।

भूकंप से बचाव के उपाय

भूकंप एक प्राकृतिक आपदा है जिससे बचाव के लिए हम निम्नलिखित तरीके अपना सकते हैं।

1. भूकंप का पहले पता लगाना :- अगर भूकंप मापने वाले मशीनों का ठीक से उपयोग किया जाए तो बड़े भूकंप का पहले से ही पता लगाया जा सकता हैं।

चीन जैसे देश में रेंगने वाले जानवर, बड़े जानवर और पक्षियों के आधार पर भूकंप का पता लगाने का कार्य किया जा रहा हैं।

2. भवन निर्माण :- भूकंप के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए घर बनाने के पहले इन बातों को ध्यान रखना चाहिए कि क्या वह इमारत भूकंप विरोधी तकनीकों पर आधारित हैं।

भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में भूकंप निरोधी तकनीक के आधारों पर बनने वाले इमारतों के लिए विशेष पैकेज की भी आवश्यकता होती हैं।

3. जान माल की सुरक्षा :- किसी भी भूकम्प का सीधा प्रभाव जानमाल पर पड़ता है। अतः जानमाल की सुरक्षा के लिए विभिन्न तरीकों को अपनाना चाहिए।

4. गैर सरकारी संगठनों का सहयोग :- भूकंप के साथ साथ किसी भी प्रकार की आपदा के प्रबंधन में स्कूल, आम लोगों और NGO बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

जब भूकंप आता है तो दबे हुए पत्थरों से आम लोगों को निकालने के लिए सामान्य तरीकों के अलावा सरकार की मदद से तकनीक का प्रयोग करते हुए इंसानों का बचाने का कार्य कर सकते हैं। नार्वे जैसे देश में इसके लिए कुत्तों को तैयार किया जा रहा हैं।

भूकंपीय तरंगे

भूकंप के समय उठने वाले कंपन को भूकंपीय तरंग कहते हैं। इन्हें मुख्यतः तीन भागों में बांटा गया हैं।

1. प्राथमिकी तरंगे :- इन्हें P तरंगे भी कहा जाता है। यह ध्वनि तरंग के भांति चलती है। यह सबसे तेज तरंग होती है। यह ठोस के साथ-साथ तरल माध्यम में भी चल सकती है। S तरंगों की तुलना में इनकी गति 40% अधिक होती हैं।

2. द्वितीयक तरंगे :- इन्हें S तरंगे भी कहा जाता है। यह प्रकाश तरंग के जैसे चलती हैं। यह सिर्फ ठोस माध्यम में ही चल सकती हैं।

3. धरातलीय तरंगे :- इसे लंबी तरंग या तरंगे भी कहा जाता है क्योंकि P और S तरंगों के तुलना में इसे ज्यादा लंबा रास्ता तय करना पड़ता है। यह सबसे ज्यादा दूरी तय करने वाली भूकंप तरंगे हैं जो अधिक गहराई में नहीं जा पाती हैं।

भूकंप की तरंगों को मापने के लिए जिस मशीन का उपयोग किया जाता है उसे सिस्मोग्राफ कहते हैं।

भारत में भूकंप के क्षेत्र

भारत के लगभग सभी भागों में भूकंप के झटके आते हैं। लेकिन इन में बहुत अंतर होता है इसके आधार पर भारत को पांच भूकंप जोन में बांटा गया है जो निम्नलिखित हैं।

Zone 1 : Zone 1 में दक्षिणी पठारी क्षेत्र आते हैं। यहां भूकंप का खतरा नहीं के बराबर होता हैं।

Zone 2 : इसके अंदर प्रायद्वीपीय भारत के तटीय मैदानी क्षेत्र आते हैं। यहां भूकंप की संभावना तो होती है लेकिन भूकंप की गति कम होने के कारण बहुत ही कम खतरे होते हैं।

Zone 3 : इसके अंदर गंगा, सिंधु का मैदान, राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात के कुछ क्षेत्र आते हैं। यहां भूकंप का प्रभाव तो देखने को मिलता है लेकिन यह कभी-कभी ही हानिकारक होते हैं।

Zone 4 : इस जोन में अधिक खतरे की संभावना होती है। इसमें मुख्यता शिवालिक हिमालय का क्षेत्र, पश्चिम बंगाल का उत्तरी भाग और असम घाटी तथा पूर्वोत्तर भारत का क्षेत्र आता है। इस जोन में ही अंडमान निकोबार द्वीप समूह भी आते हैं।

Zone 5 : यह सबसे ज्यादा खतरे वाला क्षेत्र होता है। इसके अंदर गुजरात का कच्छ प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड का कुमाऊं पर्वतीय क्षेत्र, सिक्किम, दार्जिलिंग का पहाड़ी क्षेत्र आता है। भारत में इस क्षेत्र में कई विनाशकारी भूकंप आ चुके हैं।

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