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चलिए आज हम जैन धर्म के सिद्धांत एवं जैनधर्म के 24 तीर्थंकर की सूची को पढ़ते और समझते हैं।
जैन धर्म का परिचय
भारत में अनेक धर्मों के लोग पाए जाते हैं। सभी धर्मों के अपने अपने सिद्धांत है, उनका अपना इतिहास और अपनी परंपराए है। जैन धर्म भी भारत के धर्मों में से एक है।
जैन शब्द जिन शब्द से बना है। जिन शब्द का सामान्य अर्थ जीतने वाला होता हैं। अर्थात जो व्यक्ति अपने इंद्रियों, मानसिक विकारों, इच्छाओं और वासना जैसी भावनाओं पर विजय पा लेता है वह जिन कहलाता हैं। जिन के अनुयायी ही जैन कहलाते हैं।
जिस प्रकार बुद्ध द्वारा प्रवर्तित धर्म को बौद्ध धर्म, ईसा द्वारा प्रवर्तित धर्म को ईसाई धर्म कहते हैं उसी प्रकार जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म को जैन धर्म कहते हैं।
जिन को प्राप्त करना जिनत्व कहलाता हैं। साधारण मनुष्य भी आध्यात्मिक ध्यान से जिनत्व को प्राप्त कर सकता हैं। जैन धर्म में व्यक्ति पूजा की मान्यता नहीं हैं। इस धर्म का मानना है कि जो व्यक्ति जिनत्व को प्राप्त कर लेता है वह व्यक्ति पूजनीय होता हैं।
जैन धर्म के तीर्थकर
जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे, जो काशी इक्ष्वाकु वंशीय राजा अश्वसेन के पुत्र थे। इन्होंने 30 वर्ष की आयु में सन्यास जीवन को स्वीकार कर लिया था।
महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें एवं अंतिम तीर्थ कर थे। इनका जन्म 540 ईसा पूर्व में कुंडग्राम, वैशाली में हुआ था। इनके पिता सिद्धार्थ ज्ञात्रिक स्कूल के सरदार थे और माता त्रिशला लिच्छवी राजा चेटक की बहन थी।
महावीर की पत्नी का नाम यशोदा एवं पुत्री का नाम अनोज्जा प्रियदर्शनी था। महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था। इन्होंने 30 वर्ष की उम्र में माता-पिता की मृत्यु के बाद अपने बड़े भाई नंदीवर्धन से अनुमति लेकर सन्यास जीवन को स्वीकारा था।
जैनधर्म के 24 तीर्थंकर की सूची
- ऋषभदेव
- अजितनाथ
- सम्भवनाथ
- अभिनन्दन नाथ
- सुमतिनाथ
- पद्मप्रभ
- सुपार्श्वनाथ
- चन्द्रप्रभ
- पुष्पदन्त
- शीतलनाथ
- श्रेयांसनाथ
- वासुपूज्य
- विमलनाथ
- अनन्तनाथ
- धर्मनाथ
- शान्तिनाथ
- कुन्थुनाथ
- अरहनाथ
- मल्लिनाथ
- मुनिसुव्रतनाथ
- नमिनाथ
- नेमिनाथ
- पार्श्वनाथ
- महावीर
जैन धर्म के सिद्धांत
महावीर ने वैदिक सिद्धांतों को खारिज कर दिया। वह ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते थे। उनका विश्वास था कि शरीर मरता है लेकिन आत्मा नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार ‘अच्छा’ या ‘बुरा’ हो सकता है, जन्म के अनुसार नहीं।
जैन धर्म के त्रिरत्न
जैन धर्म के त्रिरत्न निम्नलिखित हैं।
- सम्यक दर्शन
- सम्यक ज्ञान
- सम्यक आचरण
1. सम्यक दर्शन
इसका अर्थ है चीजों को ठीक से देखना (सुनना, महसूस करना, आदि) और अंधविश्वासों से बचना।
सम्यक् दर्शन और सम्यक् ज्ञान की उत्पत्ति एक साथ होती है। जैसे दीपक का प्रकाश और प्रताप साथ-साथ होता है वैसे ही ज्ञान और दर्शन की उत्पत्ति साथ-साथ होती है।
क्योंकि हमारी जैसी मान्यता होती है, ज्ञान उसी रूप में ढल जाता है। मान्यता यदि झूठी होती है तो ज्ञान भी झूठा कहलाता है। मान्यता के सम्यक् होते ही ज्ञान सम्यक् हो जाता है।
2. सम्यक ज्ञान
इसका अर्थ है वास्तविक ब्रह्मांड का सटीक और पर्याप्त ज्ञान होना। इसके लिए सही मानसिक दृष्टिकोण के साथ ब्रह्मांड के पांच पदार्थों और नौ सत्यों का सही ज्ञान होना आवश्यक है।
वस्तुओं को जैसा का तैसा जानना सम्यक् ज्ञान कहलाता है। सम्यक दर्शन के पश्चात् उत्पन्न हुआ ज्ञान आत्मविकास का कारण होता है।
सम्यक् ज्ञान के आठ अङ्ग बताए गये हैं।
- शब्दाचार
- अर्थाचार
- तदुभयाचार
- कालाचार
- विनयाचार
- उपधानाचार
- बहुमानाचार
- अनिह्नवाचार
3. सम्यक आचरण
सम्यक आचरण का अर्थ सम्यक चरित्र है। इसका अर्थ है जीवों को नुकसान पहुँचाने से बचना और अपने आप को मोह और अन्य अशुद्ध विचारों और दृष्टिकोणों से मुक्त करना।
सम्यक चरित्र या आचरण का अर्थ हैं समस्त द्वेष, ईर्ष्या, अहंकार जैसी भावनाओं का त्याग करना।
उपर दिए गए जैन धर्मों के सिद्धांतो को टाइट्रेंट के रूप में जाना जाता है। त्रिरत्न प्राप्त करने के लिए पंच महाव्रत (पांच महाव्रत) का पालन करना होता है।
जैन धर्म के महाव्रत
त्रिरत्न के अनुशीलन में निम्लिखित पांच महाव्रतों का पालन अनिवार्य है।
- अहिंसा
- सत्य वचन
- अस्तेय (चोरी न करना)
- ब्रह्मचर्य
- अपरिग्रह (किसी प्रकार की संपत्ति न रखना)
1. अहिंसा :- अहिंसा सर्वोच्च धर्म है। अहिंसा जैन धर्म की आधारशिला है। किसी भी जीवित प्राणी को जानवरों, पौधों और यहां तक कि कीड़ों सहित किसी भी अन्य जीवित प्राणी को घायल करने, नुकसान पहुंचाने या मारने का अधिकार नहीं है।
जैन धर्म का पालन करने वाले सामान्य लोगों को दो या दो से अधिक इंद्रियों वाले जीवों को नुकसान पहुंचाने से बचना चाहिए। जैन धर्म शाकाहार का सख्ती से पालन करता है।
जैन धर्म में नुकसान पहुंचाने का अर्थ है करुणा की अनुपस्थिति, अज्ञानता जो व्यक्ति को हिंसक बनाती है। अहिंसा को कर्म, वाणी और विचार में भी देखा जाना चाहिए।
2. सत्य :- जैन धर्म में झूठ के लिए कोई जगह नहीं है, हमेशा सच बोलना चाहिए और जो लोभ, भय, ईर्ष्या, क्रोध, अहंकार और तुच्छता पर विजय प्राप्त कर चुके हैं वही सच बोल सकते हैं।
3. अस्तेय (चोरी न करना) :- जैन धर्म अन्यायपूर्ण या अनैतिक तरीकों से संपत्ति की चोरी या हथियाने के खिलाफ है। सहायत लेते हुए या भिक्षा स्वीकार करते हुए भी आवश्यकता से अधिक नहीं लेना चाहिए।
4. ब्रह्मचर्य (शुद्धता) :- यह व्रत महावीर द्वारा जोड़ा गया था। ब्रह्मचर्य का अर्थ है काम वासना जैसे सुखों से परहेज। यहां तक कि जैन धर्म में कामुक आनंद का विचार भी निषिद्ध है।
भिक्षुओं को इस व्रत का पूरी तरह से पालन करने की आवश्यकता होती है, जबकि जैन धर्म का पालन करने वाले सामान्य लोगों को अपने स्वयं के जीवनसाथी के अलावा किसी भी शारीरिक संबंध में नहीं होना चाहिए।
5. अपरिग्रह (किसी प्रकार की संपत्ति न रखना) :- जो आध्यात्मिक मुक्ति चाहता है, उसे उन सभी आसक्तियों से हट जाना चाहिए जो पांचों इंद्रियों में से किसी को भी प्रसन्न करती हैं।
महावीर ने कहा है कि “इच्छाओं का कोई अंत नहीं है, और केवल आकाश ही उनके लिए सीमा है”। एक आम आदमी जिस धन को प्राप्त करना चाहता है वह आसक्ति पैदा करता है जिसके परिणामस्वरूप लगातार लालच, ईर्ष्या, स्वार्थ, अहंकार, घृणा, हिंसा आदि का परिणाम होगा।
अनेकांतवाद का सिद्धांत
अनेकांतवाद का शाब्दिक अर्थ है “एकतरफा” या “अनेकता” का सिद्धांत। इस सिद्धांत के अनुसार, वस्तुओं के अस्तित्व और गुण के अनंत तरीके हैं, इसलिए उन्हें सीमित मानवीय धारणा द्वारा सभी पहलुओं से पूरी तरह से समझा नहीं जा सकता है। केवल सर्वज्ञ (जो सबकुछ जानता हो) प्राणी ही सभी पहलुओं से वस्तुओं को समझ सकते हैं।
जैसे कोई व्यक्ति किसी का पिता है तो वह सिर्फ पिता ही नहीं है। बल्कि किसी और के लिए वह पुत्र, पौत्र, चाचा, भतीजा, मामा, भाँजा, भाई आदि भी हो सकता है।
स्यादवाद का सिद्धांत
स्यादवाद ‘स्यात्’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है हो सकता है।
इस सिद्धांत का अर्थ यह है कि हमारा ज्ञान सीमित और होता है। इसलिए हमें ईमानदारी से यह बात स्वीकार कर लेनी चाहिये। हमें ऐसे दावे नहीं करने चाहिए कि हमारा ज्ञान असीमित है।
जैन धर्म के अन्य तथ्य
जैन धर्म के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं।
- जैन धर्म का सिद्धांत बौद्ध सिद्धांत से भी पुराना है।
- बुद्ध और महावीर एक ही काल के थे।
- समय की एक जैन अवधारणा है जिसे कलास नामक छह चरणों में विभाजित किया गया है।
- बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों नास्तिक हैं। हालांकि जैन धर्म देवताओं के अस्तित्व में विश्वास करता है, लेकिन उन्हें जिन (विजेता) से नीचे रखता है।
- जैन धर्म ने अपने आध्यात्मिक विचारों को सांख्य दर्शन से ग्रहण किया है।
- जैन धर्म मानने वाले कुछ राजा चंद्रगुप्त मौर्य, उदयिन, चंदेल शासक, राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष थे।
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