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अब चलिए भारत के राजवंश, संस्थापक व राजधानी की जानकारी को पढ़ते है।
भारत के राजवंश, संस्थापक तथा राजधानी
भारतीय का इतिहास बहुत व्यापक हैं, प्राचीन काल में भारत पर कई राजवंशों ने शासन किया था जिसमें प्रमुख राजवंश हर्यक वंश, शिशुनाग वंश, नन्द वंश, मौर्य वंश, शुंग वंश, कण्व वंश, सातवाहन वंश, गुप्त वंश, पुष्यभूति वंश, पल्लव वंश, राष्ट्रकूट, चालुक्य वंश, चालुक्य वंश, चोल वंश, यादव वंश, होयसल वंश, गंगवंश, काकतीय वंश, पाल वंश, सेन वंश, गुर्जर प्रितिहार वंश, गहड़वाल वंश, चौहान वंश, परमार वंश, चंदेल वंश, सोंलकी वंश, कलचुरी राजवंश, सिसोदिया वंश आदि थे।
प्रमुख राजवंश | संस्थापक | राजधानी | विवरण विशेष |
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हर्यंक वंश | बृहद्रथ | गिरिब्रज (राजगृह) | यह भारतीय इतिहास का सबसे प्राचीन वंश है। इसका स्थापना 544ई0 पू0 हुई थी। इसे पितृ हत्ता वंश भी कहा गया।क्योंकि इसके शासक अजातशत्रु व उसके पुत्र उदायिन ने अपने अपने पिता की हत्या कर सत्ता को हथिआया था। |
शिशुनाग वंश | शिशुनाग | वैशाली | इस वंश की स्थापना शिशुनाग ने हर्यंक वंश के अन्तिम शासक नागदशक को गद्दी से हटाकर इस वंश की नींव डाली |
नन्द वंश | महापदम नन्दं | पाटलिपुत्र | इस वंश का अन्तिंम व महान शासक घनान्द था। |
मौर्य वंश | चन्द्रगुप्त मौर्य | पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) | यह भारत का बहुत गौरवशाली वंश था। इसकी स्थापना सन् 345 ई0पू0 हुई। इसके बारे में मैग्स्थनीज की इण्डिकां में काफी रोचक जानकारीयाँ मिलती है। इसी वंश के राजा अशोक महान नें बौध्द धर्म को अपना कर विश्व भर को शान्ति का संदेश दिय़ा। |
शुंग वंश | पुष्यमित्र शुंग | विदिशा | इसके बारे में यह महत्वपूर्ण है। कि पुष्यमित्र द्वारा दो बार अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन कराया गया। तथा जिसमें पंतजलि ने इन यज्ञों कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। |
कण्व वंश | वासुदेव | विदिशा | इसकी स्थापना वासुदेव ने शुंग वंश के अन्तिम शासक देवभूति की हत्या करके 73 ई0पू0 में की तथा इस वंश का अंन्तिम शासक सुशर्मा था। |
सातवाहन वंश या आन्ध्र वंश | शिमुक | प्रतिष्ठान (औरंगाबाद महाराष्ट्र) | इस वंश की नींव शिमुक ने कण्व वंश के अन्तिम शासक सुशर्मा की हत्या करके 60 ई0पू0 के आस पास डाली। यह वंश काफी प्रतिभाशाली वंश रहा तथा इसमें कई महान व प्रतापी शासक रहे जिनमें शिमुक, शातकर्णी, गौतमीपुत्र शातकर्णी, वशिष्ठीपुत्र, पुलुमावी महत्वपूर्ण हैं। इनके यहाँ हाल प्रमुख साहित्यकार था उसके द्वारा रचित पुस्तक का नाम गाथासप्तशती है। इन्होने सीसे के सिक्के का काफी प्रचलन किया। |
गुप्त वंश | श्री गुप्त | कौशाम्बी के निकट | इस वंश की नींव श्री गुप्त ने 260ई0 के आस- पास हुई। इस वंश में कई प्रतापी शासक हुये जिनमें चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय, कुमारगुप्त, स्कन्धगुप्त, भानूगुप्त प्रमुख है। इस काल में मूर्ति पुजा होने लगी तथा विष्णु मन्दिरों का काफी तेज विकास हुआ। इस काल को भारत का क्लासिक युग कहा गया है। क्योंकि इस समय भारत का हर वर्ग तथा हर किसी को समान अधिकार मिले हुये थे। समाज में महिलओं का भी स्थान अच्छा था। कालिदास, आर्यभट्ट, भास्कराचार्य जैसे नगमें चन्द्रगुप्त द्वीतीय के अनमोल रत्न थे। |
पुष्यभूति या वर्ध्दन वंश | पुष्यभूति | थानेश्वर | गुप्तकाल के पतन के बाद उत्तर भारत में कई नये राज्य वंशो की स्थापना हुई जिनमें पुष्यभूति वंश एक अलग पहचान रखता है। पुष्यभूति वंश के प्रमुख शासक प्रभाकरवर्ध्दन थे। यह भगवान सूर्य को बहुत मानते थे। तथा जय आदित्य का अद्घोष किया करते थे। हर्षवर्ध्दन इस वंश का सबसे प्रतापी व बुध्दिमान राजा था। उसने बौध्द धर्म अपना कर काफी कल्याकारी कार्य अपनी प्रजा के लिये किये तथा तत्कालीन परस्थितियों को देखकर उनको अपनी राजाधानी थानेश्वर से कन्नौज ले जानी पड़ी। |
पल्लव वंश | सिंहविष्णु | काँची | इस वंश की स्थापना सिंहविष्णु (575-600ई0 ) द्वारा की गई थी। पल्लव वंश के प्रमुख शासक थे महेन्द्र वर्मन प्रथम, नरसिंह राव प्रथम, महेन्द्र वर्मन द्वीतीय, परमेश्वर वर्मन प्रथम, नरसिंहवर्मन द्वीतीय आदि पल्लवों द्वारा स्थापित कला व संस्कृति धरोहर महाबलीपुरम् का एकश्म मंन्दिर व काँची का कैलाशनाथ मन्दिंर हैं। |
राष्ट्रकूट | दन्तिदुर्ग | मान्यखेत (वर्तमान में मालखेड़, शोलापुर के निकट है) | इस वंश की स्थापना का श्रेय दन्तिदुर्ग को जाता है। दन्तिदुर्ग ने इस की स्थापना 752ई0 में की थी। इस वंश के प्रमुख शासक कृष्ण प्रथम, ध्रुव, गोविन्द तृतीय, अमोघवर्ष, कृष्ण द्वीतीय हुये। |
चालुक्य वंश (कल्याणी) | तैलप द्वतीय | मान्यखेत | चालुक्यं वंश के प्रमुख शासक थे। तैलप प्रथम, तैलप द्वतीय, विक्रमादित्य, जयसिंह, सोमेश्वर, सोमेश्वर द्वतीय आदि |
चालुक्य वंश (वातापी) | पुलकेशिन प्रथम | वातापी | इस वंश का सबसे महान शासक पुलिकेशन द्वतीय था। जिसने उत्तर भारत के शासकों के कड़ी टक्कर ली। इसने 642ई0 में हर्षवर्धन को हराया था। ऐहोल अभिलेख में इसके सबंध में जानकारी मिलती है। |
चालुक्य वंश (वेंगी) | विष्णुवर्धन | बेंगी (आन्ध्र प्रदेश) | इस वंश के प्रमुख शासक थे जयसिंह प्रथम, इन्द्रवर्धन, विष्णुवर्धन द्वतीय, जयसिंह द्वतीय एवं विष्णुवर्धन तृतीय |
चोल वंश | विजयालय | तंजौर या तंजावुर | इसमें राजराज प्रथम व राजेन्द्र प्रथम जैसे प्रतभाशाली शासक हुये। तंजौर का राजराजेश्वर शिव मंन्दिर इसी राजराज प्रथम द्वारा बनाया गई धरोहर है। वही राजेन्द्र प्रथम ने अपने बंगाल पर आक्रमण कर उसके शासक महीपाल को हरा कर गंगैकोण्डचोल की उपाधि धारण की। इसके अलावा उसने कई सफल सैन्य अभियान किये। |
यादव वंश | भिल्लम पंचम | देवगिरि | इस वंश की स्थापना 1200ई0 के आस पास भिल्लम पंचम ने की। इस वंश का सबसे महान व प्रतापी शासक सिंघण था। जिसने भिल्लम पंचम की मृत्यु उपरान्त इस राजवंश को मजबूत तथा विस्तारित किया। इस वंश का सबसे अंतिम शासक रामचन्द्र था। जिसे अलाउद्दीन खिलजी द्वारा लूट लिया गया। तथा आत्मसर्मपण करना पड़ा। |
होयसल वंश | विष्णुवर्धन | दार समुद्र (हलेविड) | यह वंश भी यादव वंश से निकल कर ही बना होयसल वंश का अंन्तिम शासक वीर बल्लाल तृतीय था। जिसे अलाउद्दीन खिलजी द्वारा हराया गया। |
गंगवंश | बज्रहस्त पंचम | कुवलाल (कोलर) | गंगवंश की स्थापना बज्रहस्त पंचम ने की थी |
काकतीय वंश | बीटा प्रथम | अमकोण्ड तथा बाद में इस वंश की राजधानी वांरगल को बनाया गया। | इस वंश का सबसे प्रतापी शासक गणपति हुआ। जिसने इस वंश को मजबूती प्रदान की तथा अपनी राजधानी को वांरगल स्थापित किया । इसके बाद इसकी पुत्री रुद्रमादेवी नें महाराज रुददेव के नाम से 35 वर्ष तक शासन किया तथा इस वंश का अन्तिम शासक प्रताप रुद्र (1295-1323ई0 ) था। |
पाल वंश | गोपाल | मुंगेर | पांल वश के प्रमुख शासक थे- धर्मपाल, देवपाल, नारायणपाल, महिपाल, नयपाल आदि। |
सेन वंश | सामन्त सेन | नदिया (लखनौती) | इस वंश के प्रमुख शासक थे विजयसेन, बल्लाल सेन, लक्ष्मण सेन इनमें लक्ष्मण सेन इस वंश का सबसे अन्तिम शासक था। |
गुर्जर प्रतिहार वंश | हरिश्चन्द्र | कन्नौज | इस वंश का सबसे पहला शासक नागभट्ट था। इस वंश का सबसे प्रतापी राजा मिहिरभोज था। इस वंश का सबसे अन्तिंम शासक यशपाल था। |
गहड़वाल वंश | चन्द्रदेव | वाराणसी या काशी | इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा गोविन्दचन्द्र था। पृथ्वीराज चौहान तृतीय ने इस वंश के शासक जयचन्द की पुत्री संयोगिता का अपहरण कर लिया था। इस वंश का सबसे शासक जयचन्द्र था। जिसे मौ0 गौरी ने 1194ई0 में चन्दावर के युध्द में मार दिया। |
चौहान या चाहमान वंश | वासुदेव | अहिच्छत्र पारम्भिक राजधानी बाद में अजमेर को राजधानी बनाया | अजमेर नगर की स्थापना इस वंश के शासक अजयराय द्वतीय द्वारा की गई। पृथ्वीराज चौहन तृतीय इस वंश का सबसे शक्तिशाली तथा अंतिम शासक था। पृथ्वीराज के दरबारी कवि चन्दबरदाई ने पृथ्वीराज रासो नामक ग्रन्थ को लिपिबृद किया। जसमें इसके बारे में जानकारी मिली है। पृथ्वीराज ने तराइन के प्रथम युध्द 1191ई0 में मौहम्मद गौरी को मात दी। लेकिन तराइन के द्वतीय युध्द 1192ई0 में मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज तृतीय को हराया। |
परमार वंश | उपेन्द्रराज | धारा (उज्जैन) | इस वंश का सबसे प्रतापी शासक राजाभोज था जिसने भोपाल में भोजपुर नामक तालाब का निर्माण करवाया था। जिसके उपरान्त उसने इस शहर नाम भोपाल रखा। राजा भोज ने विद्वानो को भी अपनी राजधानी धारा में उच्च स्थान दिया था। |
चन्देल वंश | नन्नुक | महोबा बाद में खजुराहो | इस वंश का दूसरा नाम जेजाकभुक्ति भी है। चंदेल वंश का प्रथम सबसे शक्तिशाली राजा यशोवर्मन था। धंग ने जिन्ननाथ, विश्वनाथ एंव वैधनाथ मन्दिंरो का निर्माण कराया था। तथा इसने गंगा यमुना नदी के तट पर आराधना करते हुये अपना शरीर त्याग दिया था। चंदेल शासक विधाधर ने कन्नौज के शासक राज्यपाल की हत्या कर दी क्योकि उसने एक मुस्लिम शासक के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। आल्हा– उदल नामक के महान सेनानायक इसी वंश की के राजा परमर्दिदेव के दरबार में रहते थे। |
सोंलकी वंश | मूलराज प्रथम | अन्हिलवाड़ | प्रसिध्द दिलवाड़ा का जैन मन्दिर सोलकी शासको द्वारा बनवाया गया था। साथ ही मोढ़ेरा का सूर्य मंन्दिर का निर्माण भी सोंलकी शासको की ही देन है। |
कलचुरी – चेदि राजवंश | कोक्कल | त्रिपुरी | कलचुरी वंश का सबसे प्रतापी शासक गांगेयदेव था। जिसने विक्रमादित्य की उपाधइ धारण की। कलचुरी वंश का सबसे शक्तिशाली महान शासक कर्णदेव था, जिसने कलिंग पर विजय प्राप्त की और त्रिकलिंगाधिपति की उपाधि धारण की |
सिसोदिया वंश | राणा कुम्भा | चित्तौड़गढ | इस वंश के शासकों को सुर्यवंशी कहा जाता है। एक मान्याता के अनुसार यह भगवान राम के पुत्र लव के वंशज हैं। इस वंश के प्रमुख शासक – राणा कुम्भा, राणा सांगा, राणा रतनसिहं, राजा उदयसिंह, राणा प्रताप सिंह थे। मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़गढ़ का विजय स्तम्भ का निर्माण राणा कुम्मा ने कराया था। राणा सांगा भी एक शक्तिशाली शासक था जिसने खानवा के युध्द में बाबर को काफी मुशकिल से जीतने दिया था। राणा सांगा के शरीर पर काफी निशान व उसके हाथ की भुजा नहीं थी। महाराण प्रताप (15721597ई0) के शौर्य की गाथा से तो अभी अवगत हैं हि उन्होने तत्कालीन मुगल स्रमाट अकरबर से काफी लौहा लिया था। वह एक मात्र ऐसा राजपूत शासक था। जिसने अकबर की स्वाधीनता कभी स्वीकार नहीं की। तथा जंगलो में रह कर अपना बाकी का जीवन गुजारा |
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kafi achha post hai ji
Feedback ke liye sukriya.
aapka post bhut hi achcha hai