भारत के महान अमर शहीदों की जानकारी

इस पेज पर आप भारत के महान अमर शहीद के बारे में समस्त जानकारी विस्तार पूर्वक पढेंगे जो समस्त भारतीयों को ज्ञात होना चाहिए और यह जानकारी परीक्षाओ की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

पिछले पेज पर हम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की जानकारी शेयर की है उसे जरूर पढ़े।

चलिए अब भारत के अमर शहीदों की जानकारी को विस्तार से पढ़कर समझते है।

भारत के महान अमर शहीद

भारत की स्वतंत्रता आन्दोलन को सफल बनाने के लिए भारत देश के कई लोगों ने कुर्बानीयाँ दी और आंदोलनों को सुचारु रुप से गतिमान रखा। जिसमें मुख्य शहीदो के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं।

1. चन्द्रशेखर आजाद की जीवनी

चन्द्रशेखर आजाद का जन्म :

चन्द्रशेखर का जन्म 23 जुलाई, सन् 1906 को मध्यप्रदेश राज्य के अलीराजपुर जिला के बदर गाँव (चन्द्रशेखर आजादनगर) में हुआ था इनका पूरा नाम पंडित चंद्रशेखर तिवारी था इनके पिताजी का नाम पंडित सीताराम तिवारी और माता जी का नाम जगरानी था।

चन्द्रशेखर आजाद ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे और शहीद राम प्रसाद बिस्मिल एवं शहीद भगत सिंह सरीखे क्रांतिकारियों के साथियों में से एक थे।

पंडित सीताराम तिवारी तत्कालीन अलीराजपुर की रियासत में सेवारत थे चंद्रशेखर आज़ाद का बचपन भावरा गाँव में बीता।

चन्द्रशेखर जी के पिता ईमानदार, स्वाभिमानी, साहसी और वचन के एकदम पक्के थे अपने पिता के गुण चंद्रशेखर को विरासत में मिले थे।

शिक्षा :

चंद्रशेखर आजाद की माता जगरानी देवी की जिद के कारण चंद्रशेखर आज़ाद को 14 वर्ष की आयु में काशी विद्यापीठ में संस्कृत अध्यन हेतु बनारस जाना पड़ा और उन्होंने एक संस्कृत पाठशाला में पढ़ाई की।

बनारस में उन्होंने कानून भंग आंदोलन में योगदान दिया था। वर्ष 1920-21 में उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े और गिरफ्तार हुए।

जिससे उन्हें जज के सामने उपस्थित किया गया अदालत मैसेज उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’, पिता का नाम ‘स्वतंत्रता’ और निवास ‘जेल’ को बताया।

जिससे उन्हें 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई गई हर कोड़े के वार के साथ उन्होंने, ‘वन्दे मातरम्‌’ और ‘महात्मा गांधी की जय’ का स्वर लगाया इसके बाद वे सार्वजनिक रूप से आजाद कहलाए।

निधन :

चंद्रशेखर आजाद काकोरी काण्ड के मुख्य आरोपी थे इनको पकड़ने के लिये अंग्रेज सरकार ने काफी कोशिश की थी उसके पश्चात भी आजाद उनके हाथ में आसानी से नहीं आये तब अंग्रेज सरकार ने इनको जिन्दा या मुर्दा पकड़ने पर तीस हजार रुपये के इनाम की घोषणा की।

चन्द्रशेखर आजाद का निधन 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में हुआ था चन्द्रशेखर आजाद गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलने सीतापुर जेल गए तो विद्यार्थी ने उन्हें इलाहाबाद जाकर जवाहर लाल नेहरू से मिलने को कहा उन्होंने स्वीकार कर लिया।

चंद्रशेखर आजाद जब नेहरू से मिलने आनंद भवन गए तो उन्होंने चंद्रशेखर की बात सुनने से साफ इंकार कर दिया गुस्से में वहां से निकलकर चंद्रशेखर आजाद अपने साथी सुखदेव राज के साथ एल्फ्रेड पार्क चले गए।

चन्द्रशेखर आजाद सुखदेव के साथ आगामी योजनाओं के विषय में बात ही कर रहे थे कि पुलिसवालों ने चन्द्रशेखर आजाद और उनके सहकर्मियों को चारों तरफ से घेर लिया उन्होंने बिना सोचे अपने जेब से पिस्तौल निकालकर गोलियां दागनी शुरू कर दी।

दोनों ओर से गोलीबारी हुई खुद का बचाव करते हुए उन्होंने बहुत से पुलिसकर्मियों को मार डाला और साथ ही काफी घायल भी हो गए।

जब चन्द्रशेखर की पिस्तौल में सिर्फ एक गोली शेष बचीं तो उन्हें पुलिस का सामना करना मुश्किल लगा चंद्रशेखर आजाद ने पहले ही यह प्रण किया था कि वह अपने आप को अंग्रेजों के हाथ नहीं लगने देंगे इसी प्रण को निभाते हुए उन्होंने वह बची हुई गोली खुद को मार ली और आत्महत्या कर ली।

पुलिस के अंदर चंद्रशेखर आजाद का डर इतना था कि किसी को भी उनके मृत शरीर के पास जाने तक की हिम्मत नहीं हो रही थी पुलिस वालों ने उनके मृत शरीर पर गोली चलाई और पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही चंद्रशेखर की मृत्यु की पुष्टि हुई।

निधन के बाद स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जिस पार्क में उनका निधन हुआ था उसका नाम बदलकर कर चंद्रशेखर आजाद पार्क रखा गया और साथ ही मध्य प्रदेश के जिस गांव में वह रहते थे जिसका नाम धिमारपुरा था उसे भी बदलकर आजादपुरा रखा गया।

2. सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी

सुभाष चन्द्र बोस का जन्म :

सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी सन् 1897 को ओड़िशा राज्य के कटक शहर में बंगाली परिवार में हुआ था सुभाष चन्द्र बोस के पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माताजी का नाम प्रभावती था।

प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 सन्तानें थी जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष उनकी नौवीं सन्तान एवं पाँचवें नंबर के बेटे थे।

सुभाष चन्द्र बोस के पिता जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे पहले वे सरकारी वकील थे लेकिन बाद में उन्होंने निजी प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। उन्होंने कटक की महापालिका में लम्बे समय तक काम किया था और वे बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रहे थे।

अंग्रेज़ सरकार ने सुभाष चन्द्र बोस को रायबहादुर का खिताब दिया था उनकी माता प्रभावती देवी के पिता का नाम गंगानारायण दत्त था। दत्त परिवार को कोलकाता का एक कुलीन परिवार माना जाता था।

शिक्षा :

सुभाष चंद बोस ने अपनी प्राइमरी की शिक्षा कटक के प्रोटेस्टेण्ड स्कूल से सम्पन्न की उसके बाद सन् 1909 में उन्होंने रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला लिया। सिर्फ 15 वर्ष की आयु में सुभाष चंद ने विवेकानंद साहित्य का पूर्ण अध्ययन कर लिया।

वर्ष 1915 में इण्टरमीडियेट की परीक्षा द्वतीय श्रेणी में उत्तीण की। उसके बाद उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रेजिडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई।

बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने नेताजी को इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया। उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया।

21 अक्टूबर 1943ई0 को सिंगापुर में आजाद भारत के अस्थायी सरकार की स्थापना की घोषणा की तथा आजाद हिन्द फौज की स्थापना की। सुभाषचंद्र बोस को कैप्टन मोहन सिंह का साथ मिला तथा इनको आजाद हिन्द फौज का सर्वोच्च सेनापति बनाया गया।

इन्होने फारवर्ड ब्लाक की भी स्थापना की व जापानी सेना की सहायता से अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह पर अधिकार करते हुए 1944ई0 में भारतीय सीमा के इम्फाल क्षेत्र में प्रवेश किया सुभाषचंद्र बोस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बहुत अच्छी भूमिका निभाई।

सुभाष चन्द्र बोस के द्वारा लगाए गए नारे

  • दिल्ली चलो
  • तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा 

निधन :

द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद, नेताजी को नया रास्ता ढूँढना जरूरी था, उन्होने रूस से सहायता माँगने का निश्चय किया था।

18 अगस्त 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचूरिया की तरफ जा रहे थे। इस सफर के दौरान वे लापता हो गये। इस दिन के बाद वे कभी किसी को दिखायी नहीं दिये।

3. भगत सिंह की जीवनी

भगतसिंह का जन्म :

भगतसिंह का जन्म पंजाब राज्य में लायलपुर जिले के बंगा गाँव में 28 सितम्बर 1907 ई. को जाट परिवार में हुआ था उनके पिताजी का नाम सरदार किशन सिंह सिंधु और माताजी का नाम विद्यावती कौर था

भगत सिंह भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी थे, भगत सिंह का नाम देश भर में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है और इन्हे शहीद भगत सिंह के नाम से जाना जाता है।

शिक्षा :

भगतसिंह ने लाहौर के नेशनल कॉलेज से पढ़ाई की लेकिन उनको अपनी शिक्षा बीच में ही छोड़नी पढ़ी क्योंकि अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को जालियाँवाला भाग हत्याकांड हुआ था जिसके कारण भगतसिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला।

जिससे प्रभावित होकर उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़ कर भगत सिंह ने भारत को आजादी दिलाने के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी।

काकोरी काण्ड :

काकोरी काण्ड में राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ सहित 4 क्रान्तिकारियों को फाँसी दी गई और अन्य को कारावास की सजा सुना दी गई जिससे भगत सिंह इतने अधिक दुःखी हुए कि पण्डित चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन से जुड गए और उसे एक नया नाम दिया हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन।

इस संगठन का मुख्य उद्देश्य सेवा, त्याग और पीड़ा को झेल सकने वाले नवयुवक को तैयार करना था, भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसम्बर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अधिकारी जे० पी० सांडर्स को मारा था। इस कार्रवाई में क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी।

क्रान्तिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने वर्तमान नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेण्ट्रल एसेम्बली के सभागार संसद भवन में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके थे। बम फेंकने के बाद वहीं पर दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी।

जेल के दिन : भगतसिंह करीब 2 साल जेल में रहे इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रान्तिकारी विचार व्यक्त करते रहते थे। जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हडताल की। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिये थे, जेल में उन्होंने अंग्रेजी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था “मैं नास्तिक क्यों हूँ”!!

निधन :

26 अगस्त, 1930 को अदालत ने भगत सिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6एफ तथा आईपीसी की धारा 120 के अंतर्गत अपराधी घोषित किया।

7 अक्तूबर, 1930 को अदालत के द्वारा 68 पृष्ठों का निर्णय दिया, जिसमें भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई। फांसी की सजा सुनाए जाने के साथ ही लाहौर में धारा 144 लगा दी गई।

भगत सिंह की फांसी की सज़ा माफ़ करवाने हेतु महात्मा गांधी ने 17 फरवरी 1931 को वायसराय से बात की फिर 18 फरवरी, 1931 को आम जनता की ओर से भी वायसराय के सामने विभिन्न तर्को के साथ सजा माफी के लिए अपील दायर की, यह सब कुछ भगत सिंह की इच्छा के खिलाफ हो रहा था क्योंकि भगत सिंह नहीं चाहते थे कि उनकी सजा माफ की जाए।

23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई।

फाँसी पर जाते समय वे तीनों मस्ती से “मेरा रँग दे बसन्ती चोला” गीत गा रहे थे –

4. लाला लाजपत राय की जीवनी

लाला लाजपत राय का जन्म :

लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 को पंजाब के मोगा जिले में एक कायस्थ परिवार में हुआ इन्हें पंजाब केसरी के उपनाम से भी जाना जाता है, ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के प्रमुख नेता थे।

लाला लाजपत राय ने कुछ समय हरियाणा के रोहतक और हिसार शहरों में वकालत की, बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल के साथ इन्हें लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाता था। इन्हीं तीनों नेताओं ने सबसे पहले भारत में पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग की थी बाद में समूचा देश इनके साथ हो गया।

30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपत राय ने लाहौर में साइमन कमीशन के विरुद्ध आयोजित एक विशाल प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जिसके कारण हुए लाठी-चार्ज में ये बुरी तरह से घायल हो गये।

उस समय इन्होंने कहा था “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी “ और वही हुआ, लालाजी के बलिदान के 20 साल के अंदर ही ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त हो गया।

निधन :

17 नवम्बर 1928 ई0 को साइमन कमीशन का विरोध करते वक्त इनके सर पर पुलिस की लाठी लगने से इनका देहान्त हो गया।

उस समय पुलिस महत्वपूर्ण अधिकारी साण्डर्स था, जिसने लाठी चलाने के आदेश दिये थे, तब लाला लाजपत राय की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिये तीन युवा कार्यकत्ता सरदार भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव ने साण्डर्स की हत्या कालान्तर में की। तथा इसी आरोप में आगे चल कर शहीद भी हुये।

5. राम प्रसाद बिस्मिल की जीवनी

राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म :

राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर शहर के खिरनीबाग मुहल्ले में हुआ रामप्रसाद के पिता का नाम मुरलीधर और माताजी का नाम मूलमती था

राम प्रसाद बिस्मिल की जन्म-कुण्डली व दोनों हाथ की दसो उँगलियों में चक्र के निशान देखकर एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी – “यदि इस बालक का जीवन किसी प्रकार बचा रहा, यद्यपि सम्भावना बहुत कम है, तो इसे चक्रवर्ती सम्राट बनने से दुनिया की कोई भी ताकत रोक नहीं पायेगी।

शिक्षा :

बचपन से ही रामप्रसाद जी की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया प्रारंभ में उन्हें उर्दू के स्कूल में भर्ती कराया गया लेकिन रामप्रसाद उर्दू मीडियम की परीक्षा उत्तीण न कर सकें जिसके बाद उन्होंने अंग्रेजी पढ़ना शुरू किया।

पड़ोस में रहने वाले एक पड़ोसी ने रामप्रसाद को पूजा-पाठ की विधि का ज्ञान करवाया पुजारी एक सुलझे हुए इंसान थे इसका प्रभाव रामप्रसाद के जीवन पर पड़ा पुजारी जी के उपदेशों के कारण रामप्रसाद पूजा-पाठ के साथ ब्रह्मचर्य का पालन करने लगे।

प्रतिदिन पूजा-पाठ में रामप्रसाद जी का समय व्यतीत होने लगा इसी दौरान मन्दिर में आने वाले मुंशी इन्द्रजीत से उसका सम्पर्क हुआ।

मुंशी इन्द्रजीत ने रामप्रसाद को आर्य समाज के सम्बन्ध में बताया और स्वामी दयानन्द सरस्वती की लिखी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने को दी। सत्यार्थ प्रकाश के गम्भीर अध्ययन से रामप्रसाद के जीवन पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा।

शचीन्द्र सान्याल, जोगेशचन्द्र चटर्जी, रामप्रसाद बिस्मिल और चद्रशेखर आजाद ने अक्टूबर 1924 ई0 में कानपुर में क्रान्तिकारी संस्था हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एच आर ए) का गठन किया गया।

इस संस्था द्ववारा 9 अगस्त 1925 ई0 को लखनऊ सहारनपुर सम्भाग के काकोरी स्थान पर ट्रेन में डकैती कर सरकारी खजाना लूटा गया। यह घटना काकोरी काण्ड के नाम से चर्चिल है।

कविताएँ एवं ग़ज़लें

  • सरफरोशी की तमन्ना
  • जज्वये-शहीद
  • जिन्दगी का राज
  • बिस्मिल की तड़प

राम प्रसाद बिस्मिल के द्वारा लिखी गई पुस्तकें

  • मैनपुरी षड्यन्त्र,
  • स्वदेशी रंग,
  • चीनी-षड्यन्त्र (चीन की राजक्रान्ति),
  • तपोनिष्ठ अरविन्द घोष की कारावास कहानी
  • अशफ़ाक की याद में,
  • सोनाखान के अमर शहीद-‘वीरनारायण सिंह
  • जनरल जार्ज वाशिंगटन
  • अमरीका कैसे स्वाधीन हुआ?

निधन :

काकोरी षड्यन्त्र में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला, रोशन सिंह और राजेन्द्र लाहिड़ी को फाँसी दी गई।  

6. खुदीराम बोस की जीवनी

खुदीराम बोस का जन्म :

खुदीराम का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गाँव में कायस्थ परिवार में बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस के यहाँ हुआ उनकी माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था।

बालक खुदीराम के मन में देश को आजाद कराने की बहुत लगन थी इसलिए उन्होंने नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और स्वदेशी आन्दोलन में कूद पड़े।

छात्र जीवन से ही ऐसी लगन मन में लिये इस नौजवान ने हिन्दुस्तान पर अत्याचारी सत्ता चलाने वाले ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने के संकल्प में अलौकिक धैर्य का परिचय देते हुए पहला बम फेंका और

निधन :

इन्होने 1908 ई0 में एक अंग्रेज सेशन जज किंग्सफोर्ड की गाड़ी पर बम फेंका था जिसके बाद इनको बेणी रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया तथा सिर्फ 19 वर्ष की आयु में 11 अगस्त 1908 ई0 को हाथ में भगवद गीता लेकर हँसते-हँसते फाँसी के फन्दे पर चढकर इतिहास रच दिया।

खुदी राम बोस को भारत के अमर शहीदो में गिना जाता है।

7. ऊधम सिंह की जीवनी

ऊधम सिंह का जन्म :

उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में हुआ था। सन 1901 में उधमसिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी।

उधमसिंह का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्तासिंह था जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधमसिंह और साधुसिंह के रूप में नए नाम मिले।

इतिहासकार मालती मलिक के अनुसार उधमसिंह देश में सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है।

वर्ष 1917 में अनाथालय में उधमसिंह के बड़े भाई का भी निधन हो गया। वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए और अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहे।

निधन :

ऊधम सिंह ने जलियाँवाला बाग हत्या काँड के सबसे बड़े आरोपी जनरल डायर (जिसने जलियाँबाला बाग में एक सभा के दौरान गोलीयाँ चलाने का आदेश देकर करीब 800 लोगों को मरवा दिया ) को 13 मार्च 1940ई0 को लंदन के कैंक्सटन हाँल में गोली मार दी।

जिस कारण इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 31 जुलाई 1940ई0 को फाँसी दे दी। लेकिन भारत माता के इस पूत को हम आज भी उनकी बहादुरी के लिये याद करते हैं।

8. सुखदेव की जीवनी

सुखदेव का जन्म :

सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को पंजाब के शहर लुधियाना में हिन्दू परिवार में हुआ था इनका पूरा नाम सुखदेव थापर इनके पिताजी का नाम श्रीयुत रामलाल थापर एवं माताजी का नाम रल्ली देवी था जन्म के तीन माह पूर्व ही पिता का स्वर्गवास हो गया जिनके कारण ताऊ अचिन्तराम ने इसका पालन पोषण किया।

सुखदेव थापर ने लाला लाजपत राय का बदला लिया था इन्होने भगत सिंह को मार्ग दर्शन दिखाया इन्होने ही लाला लाजपत राय जी से मिलकर चंद्रशेखर आजाद जी को मिलने कि इच्छा प्रकट कि थी।

निधन :

यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। इनको साण्डर्स हत्या काण्ड के केस में मौत की सजा हुई यह 15 अप्रैल 1929 ई0 को गिरफ्तार हुए और भगत सिंह और राजगुरु के साथ 23 मार्च 1931 को फाँसी पर लटका दिया गया था। उस समय इनकी उम्र करीब 23 वर्ष की थी।

इनकी शहादत को आज भी सम्पूर्ण भारत में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। सुखदेव भगत सिंह की तरह बचपन से ही आज़ादी का सपना पाले हुए थे।

ये दोनों ‘लाहौर नेशनल कॉलेज’ के छात्र थे। दोनों एक ही वर्ष पंजाब में पैदा हुए और एक ही साथ शहीद हो गए। 

9. राजगुरु की जीवनी

राजगुरु का जन्म :

राजगुरु का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी सम्वत् 1965 (विक्रमी) तदनुसार सन् 24 अगस्त 1908 में पुणे जिला के खेडा गाँव में हुआ था इनका पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु था। राजगुरू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे।

शिक्षा :

6 वर्ष की आयु में राजगुरु के पिता का निधन हो गया उसके बाद बहुत छोटी सी उम्र में ही ये वाराणसी विद्या अध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने आ गये थे।

इन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रंन्थों तथा वेदो का अध्ययन तो किया ही लघु सिद्धान्त कौमुदी जैसा क्लिष्ट ग्रन्थ बहुत कम आयु में कण्ठस्थ कर लिया था। इन्हें व्यायाम का बहुत शौक था और छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के बड़े प्रशंसक थे।

वाराणसी में विद्याध्ययन करते हुए राजगुरु का सम्पर्क अनेक क्रान्तिकारियों से हुआ। चन्द्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गये। आजाद की पार्टी के अन्दर इन्हें रघुनाथ के छद्म-नाम से जाना जाता था राजगुरु के नाम से नहीं।

पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद, सरदार भगत सिंह और यतीन्द्रनाथ दास आदि क्रान्तिकारी इनके मित्र थे। राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज भी थे। साण्डर्स का वध करने में इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव का पूरा साथ दिया था जबकि चन्द्रशेखर आज़ाद ने छाया की भाँति इन तीनों को सामरिक सुरक्षा प्रदान की थी।

निधन :

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में राजगुरु की शहादत एक महत्वपूर्ण घटना थी। इनको भी साण्डर्स की हत्या में भाग लेने के कारण 30 दिसम्बर 1929 ई0 को पूना में एक मोटर गैराज में गिफ्तार हुये।

23 मार्च 1931 को इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ लाहौर सेण्ट्रल जेल में फाँसी के तख्ते पर झूल कर अपने नाम को हिन्दुस्तान के अमर शहीदों की सूची में अहमियत के साथ दर्ज करा दिया।

10. अशफाकउल्ला खाँ की जीवनी

अशफाकउल्ला खाँ का जन्म :

अशफाकउल्ला खाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। अशफाकउल्ला खाँ भारतीय सवतन्त्रता संग्राम के प्रमुख क्रान्तिकारी थे।

उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ था एवं उनकी माताजी का नाम मजहूरुन्निशाँ बेगम था मजहूरुन्निशाँ बेगम बला की खूबसूरत खबातीनों स्त्रियों में गिनी जाती थीं।

अशफाकउल्ला खाँ ने स्वयं अपनी डायरी में लिखा है कि जहाँ एक ओर उनके बाप-दादों के खानदान में एक भी ग्रेजुएट होने तक की तालीम न पा सका वहीं दूसरी ओर उनकी ननिहाल में सभी लोग उच्च शिक्षित थे। उनमें से कई तो डिप्टी कलेक्टर व एस० जे० एम० के ओहदों पर मुलाजिम भी रह चुके थे।

1857 के गदर में उनके ननिहाल वालो ने जब हिन्दुस्तान का साथ नहीं दिया तो जनता ने गुस्से में आकर उनकी आलीशान कोठी को आग के हवाले कर दिया था वह कोठी आज भी पूरे शहर में जली कोठी के नाम से मशहूर है।

निधन :

अशफाकउल्ला खाँ को 19 अगस्त 1925 ई. को काकोरी डाकगाड़ी डकैती केस के अभियोग में बंदी बनाया गया और 18 दिसम्बर 1927ई0 को फाँसी दी गई।

जिस दिन इनको फाँसी मिलनी थी उस दिन सोमवार था रोज की तरह अशफाकउल्ला खाँ सुबह उठे स्नान किया। और कुछ देर वज्रासन में बैठ कुरान की आयतों को फोहराया और किताब बन्द करके उसे आँखों से चूमा।

फिर अपने आप जाकर फाँसी के तख्ते पर खडे हो गये और कहा- “मेरे ये हाथ इन्सानी खून से नहीं रँगे। खुदा के यहाँ मेरा इन्साफ होगा।” फिर अपने आप ही फन्दा गले में डाल लिया और शहीद हो गए।

11. बटुकेश्वर दत्त की जीवनी

बटुकेश्वर दत्त का जन्म :

बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर 1910 को बंगाली कायस्थ परिवार में ग्राम-ओँयाड़ि, जिला नानी बेदवान बंगाल में हुआ था।

इनका बचपन अपने जन्म स्थान के अतिरिक्त बंगाल प्रांत के वर्धमान जिला अंतर्गत खण्डा और मौसु में बीता।

आजादी के बाद नवम्बर, 1947 में अंजली दत्त से विवाह करने के बाद वे पटना में रहने लगे। बिहार विधान परिषद ने बटुकेश्वर दत्त को अपना सदस्य बनाने का गौरव 1963 में प्राप्त किया

शिक्षा :

बटुकेश्वर दत्त की स्नातक स्तरीय शिक्षा पी॰पी॰एन॰ कॉलेज कानपुर में सम्पन्न हुई।

1924 में कानपुर में इनकी भगत सिंह से भेंट हुई। इसके बाद इन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए कानपुर में कार्य करना प्रारंभ किया। इसी क्रम में बम बनाना भी सीखा।

8 अप्रैल 1929 को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा में भगत सिंह के साथ बम विस्फोट कर ब्रिटिश राज्य की तानाशाही का विरोध किया।

निधन :

बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। 12 जून 1929 को इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सजा सुनाने के बाद इन लोगों को लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया। यहाँ पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर लाहौर षडयंत्र केस चलाया गया।

यह केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंकने के आरोप में शहीद भगत सिंह के साथ थे तथा इनको भी इसी केस में गिरफ्तार कर लिया गया। इनको उम्रकैद की सजा सुनाई गई। 54 वर्ष कि उम्र में 20 जुलाई 1965 को नई दिल्ली, स्थित अखिल भारतीत आयुविज्ञान संस्था में इनका निधन हो गया।

12. मास्टर रामचंद्र की जीवनी

मास्टर रामचन्द्र का जन्म :

मास्टर रामचन्द्र का जन्म 1821 में दिल्ली के कायस्थ परिवार में हुआ इनके पिता करनाल में नायब तहसीलदार थे

शिक्षा :

मास्टर रामचन्द्र ने गणित, विज्ञान, अरबी, फारसी और अंग्रेजी जैसे सभी विषय में रुचि रखते थे। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें दिल्ली कॉलेज में अध्यापक की नौकरी मिल गई।

शादी :

मास्टर रामचन्द्र की शादी कम उम्र में मोटे दहेज के साथ हुई, कुछ दिन बाद पत्नी के मूक-बधिर होने की जानकारी मिली।

वर्ष 1880 तक मतलब कुल 22 वर्ष का उनका शेष जीवन रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज के देसी प्राचार्य के रूप में आराम से गुजरा उसके बाद उनका निधन हो गया।

13. अवध बिहारी बोस की जीवनी

अवध बिहारी बोस का जन्म :

अवध बिहारी बोस का जन्म 1869 में हुआ यह प्रसिद्ध क्रांतिकारी और रास बिहारी बोस के सहयोगी थे। इनका जन्म दिल्ली में हुआ था। बोस की क्रांतिकारी गतिविधियों के चलते अंग्रेजी शासकों की नींद हराम हो गई थी। उन्होंने वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर बम प्रहार किया तथा लारेंस गार्डस बम कांड में भी मुख्य भूमिका निभाई।

शहीद अवध बिहारी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। बोस की क्रांतिकारी गतिविधियों के चलते अंग्रेजी शासकों की नींद हराम हो गई थी। उन्होंने वायसराय लार्ड हार्डिंग्ज पर बम प्रहार किया तथा लारेंस गार्डस बम कांड में भी मुख्य भूमिका निभाई।

अवध बिहारी ने आजीविका के लिए अध्यापन कार्य करते हुए पंजाब और उत्तर प्रदेश में क्रान्तिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। दिल्ली में सन 1912 में वायसराय के जुलूस पर बम फेंकने की योजना बनाने में भी अवध बिहारी सम्मिलित थे।

निधन :

रास बिहारी बोस इस घटना के बाद पहले देहरादून और उसके बाद जापान चले गए थे। फ़रवरी, 1914 में अवध बिहारी को गिरफ़्तार कर लिया गया और दिल्ली षड़यंत्र केस के अंतर्गत अभियोग चलाया गया।

वायसराय की हत्या की कोशिश का अभियोग लगाकर मास्टर अमीरचंद, बालमुकुंद और बंसत कुमार विश्वास के साथ अवध बिहारी को भी मौत की सजा दी गई स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने के कारण 11 मई 1915 को अंबाला जेल में अवध बिहारी बोस को फांसी दी गई थी।

14. मदन लाल धींगरा की जीवनी

मदनलाल धींगड़ा का जन्म :

मदनलाल धींगड़ा का जन्म 18 सितम्बर सन् 1863 को पंजाब प्रान्त के एक सम्पन्न हिन्दू परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम दित्तामल जी था यह एक`सिविल सर्जन थे और अंग्रेजी रंग में पूरी तरह रंगे हुए थे एवं माताजी अत्यन्त धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों से पूर्ण महिला थीं।

मदनलाल धींगड़ा का परिवार अंग्रेजों का विश्वासपात्र था और जब मदनलाल को भारतीय स्वतंत्रता सम्बन्धी क्रान्ति के आरोप में लाहौर के एक कालेज से निकाल दिया गया तो परिवार ने मदनलाल से नाता तोड़ लिया।

मदनलाल को जीवन यापन के लिये पहले एक क्लर्क के रूप में, फिर एक तांगा-चालक के रूप में और अन्त में एक कारखाने में श्रमिक के रूप में काम करना पड़ा।

कारखाने में श्रमिकों की दशा सुधारने हेतु उन्होने यूनियन (संघ) बनाने की कोशिश की किन्तु वहाँ से भी उन्हें निकाल दिया गया। कुछ दिन उन्होंने मुम्बई में काम किया

शिक्षा :

मदनलाल धींगड़ा अपने बड़े भाई की सलाह पर सन् 1906 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने इंग्लैण्ड चले गये जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी कालेज लन्दन में यांत्रिकी अभियांत्रिकी में प्रवेश ले लिया विदेश में रहकर अध्ययन करने के लिये उन्हें उनके बड़े भाई ने तो सहायता दी साथ ही इंग्लैण्ड में रह रहे कुछ राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं से भी आर्थिक मदद मिली थी।

यह ऐसे परिवार से थे जिनमें राष्ट्रभक्ति को लेकर कोई भी जूनून आदि नहीं था। इन्हे भारतीय स्वतंत्रता की चिनगारी को अग्नि में बदलने का श्रेय इस वीर महान शहीद को जाता है।

निधन :

मदनलाल धींगड़ा की गिरफ्तारी कर्नल विलियम कर्जन वाइली की हत्या करने के कारण हुई। तथा इसी वजह से इन्हे 16 अगस्त 1909 ई0 को फाँसी के फन्दे पर चढा दिया गया।

15. दामोदर चापेकर की जीवनी

दामोदर चापेकर का जन्म :

दामोदर पंत चाफेकर का जन्म 24 जून 1869 को पुणे के ग्राम चिंचवड़ में प्रसिद्ध कीर्तनकार हरिपंत चाफेकर के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में हुआ था।

उनके दो छोटे भाई बालकृष्ण चाफेकर एवं वसुदेव चाफेकर थे। चाफेकर बंधु महाराष्ट्र के पुणे के पास चिंचवड़ नामक गाँव के निवासी थे। बचपन से ही सैनिक बनने की इच्छा दामोदर पंत के मन में थी, विरासत में कीर्तनकार का यश-ज्ञान मिला ही था।

महर्षि पटवर्धन एवं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक उनके आदर्श थे। तिलक जी की प्रेरणा से उन्होंने युवकों का एक संगठन व्यायाम मंडल तैयार किया। ब्रितानिया हुकूमत के प्रति उनके मन में बाल्यकाल से ही तिरस्कार का भाव था।

दामोदर पंत ने ही बंबई में रानी विक्टोरिया के पुतले पर तारकोल पोत कर, गले में जूतों की माला पहना कर अपना रोष प्रकट किया था।

वर्ष 1894 से चाफेकर बंधुओं ने पूना में प्रति वर्ष शिवाजी एवं गणपति समारोह का आयोजन प्रारंभ कर दिया था इन समारोहों में चाफेकर बंधु शिवा जी श्लोक एवं गणपति श्लोक का पाठ करते थे।

निधन :

22 जून 1897 ई0 को प्लेग कमिश्नर रैण्ड और लेफ्टिनेंट एयर्स्ट की हत्या के सिलसिले में अपने भाइयों के साथ गिरफ्तार हुए। 18 अप्रैल 1898ई0 को फाँसी की सूली पर चढ़ा दिया गया।

साथ ही इनके भाई बालकृष्ण चापेकर को भी 12 मई 1899 ई0 को फाँसी के तख्ते पर लटका दिया गया। यह भाईयों की जोड़ी देश के लिये आजादी की लड़ाई में कुर्बान हो गई।

16. वासुदेव बलवंत फड़के की जीवनी

वासुदेव बलवंत फड़के का जन्म :

वासुदेव बलवंत फड़के का जन्म 4 नवम्बर 1845 को हुआ था वासुदेव बलवंत फड़के भारत के स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी थे जिन्हें “आदि क्रांतिकारी” कहा जाता है।

वे ब्रिटिश काल में किसानों की दयनीय दशा को देखकर विचलित हो उठे थे। उनका दृढ विश्वास था कि ‘स्वराज’ ही इस रोग की दवा है।

वासुदेव बलवंत फड़के का केवल नाम लेने से युवकों में राष्ट्रभक्ति जागृत हो जाती थी वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आद्य क्रांतिकारी थे। उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए सशस्त्र मार्ग का अनुसरण किया।

अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए लोगों को जागृत करने का कार्य वासुदेव बलवंत फडके ने किया। महाराष्ट्र की कोळी, भील तथा धांगड जातियों को एकत्र कर उन्होने ‘रामोशी’ नाम का क्रान्तिकारी संगठन खड़ा किया। अपने इस मुक्ति संग्राम के लिए धन एकत्र करने के लिए उन्होने धनी अंग्रेज साहुकारों को लूटा।

वासुदेव बलवंत फड़के को तब विशेष प्रसिद्धि मिली जब उन्होने पुणे नगर को कुछ दिनों के लिए अपने नियंत्रण में ले लिया था।

निधन :

यह एक सशस्त्र सेना बनाकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध करने के कारण 20 जुलाई 1879 को वे बीजापुर में पकड़ में आ गए। अभियोग चला कर उन्हें काले पानी का दंड दिया गया अदन में आमरण अनशन करके 17 फरवरी 1883 ई0 को प्राण त्याग दिये।

17. करतार सिंह सराबा की जीवनी

कर्तार सिंह का जन्म :

कर्तार सिंह का जन्म 24 मई 1896 को हुआ इनके पिताजी का नाम मंगल सिंह एवं इनकी माता जी का नाम साहिब कौर था उनके पिता मंगल सिंह का निधन कर्तार सिंह के बचपन में ही हो गया था।

कर्तार सिंह की एक छोटी बहन धन्न कौर भी थी। दोनों बहन-भाइयों का पालन-पोषण दादा बदन सिंह ने किया। कर्तार सिंह के तीन चाचा-बिशन सिंह, वीर सिंह व बख्शीश सिंह ऊंची सरकारी पदवियों पर काम कर रहे थे।

शिक्षा :

कर्तार सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लुधियाना के स्कूलों से की। उसके बाद उन्होंने उड़ीसा राज्य में अपने चाचा के पास जाकर आगे की पढ़ाई की उड़ीसा उन दिनों बंगाल प्रांत का हिस्सा था, जो राजनीतिक रूप से अधिक सचेत था।

कर्तार सिंह सराबा ने स्कूली शिक्षा के साथ अन्य ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़ना भी शुरू किया। दसवीं कक्षा पास करने के उपरांत उसके परिवार ने उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए उसे अमेरिका भेजने का निर्णय लिया

1 जनवरी 1912 को कर्तार सिंह सराबा अमेरिका पहुँच गए उस समय उसकी लगभग उम्र 15-16 वर्ष थी। इस उम्र में सराभा ने उड़ीसा के रेवनशा कॉलेज से ग्यारहवीं की परीक्षा पास कर ली थी।

निधन :

16 नवम्बर 1915 को कर्तार सिंह सराभा को उनके 6 अन्य साथियों – बख्शीश सिंह, (ज़िला अमृतसर), हरनाम सिंह, (ज़िला स्यालकोट), जगत सिंह, (ज़िला लाहौर), सुरैण सिंह व सुरैण, दोनों (ज़िला अमृतसर), व विष्णु गणेश पिंगले, (ज़िला पूना महाराष्ट्र) के साथ लाहौर जेल में फांसी पर चढ़ा कर शहीद कर दिया गया।

इनमें से ज़िला अमृतसर के तीनों शहीद एक ही गांव गिलवाली से संबंधित थे। इन शहीदों व इनके अन्य साथियों ने भारत पर काबिज़ ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ 19 फ़रवरी 1915 को ‘गदर’ की शुरुआत की थी।

इस ‘गदर’ यानी स्वतंत्रता संग्राम की योजना अमेरिका में 1913 में अस्तित्व में आई यह योजना ‘गदर पार्टी’ ने बनाई थी और इसके लिए लगभग आठ हज़ार भारतीय अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में अपनी सुख-सुविधाओं भरी ज़िंदगी छोड़ कर भारत को अंग्रेज़ों से आज़ाद करवाने के लिए समुद्री जहाज़ों पर भारत पहुंचे थे। ‘गदर’ आंदोलन शांतिपूर्ण आंदोलन नहीं था, यह सशस्त्र विद्रोह था।

18. अनन्त कान्हरे की जीवनी

अनन्त कान्हरे का जन्म :

अनन्त कान्हरे का जन्म 1891 में ग्राम आयटीमेटे खेड़ (औरंगाबाद) में हुआ था। वह ‘अभिनव भारत’ नामक संस्था का सदस्य था।

अनन्त कान्हरे एक दिलेर युवक था एक बार उसने यह दिखाने के लिए कि वह किसी भी शारीरिक यातना से विचलित नहीं होगा, जलती हुई चिमनी पर अपनी हथेली रख दी और फिर 2 मिनट तक जलती हुई चिमनी पर अपनी हथेली रखे रहे इसी बीच जैक्सन का स्थानांतरण पुणे हो गया।

उसके कार्यालय के साथियों ने 21 दिसम्बर, 1909 को नासिक के ‘विजयानंद सभा भवन’ में रात के समय ‘शारदा’ नामक नाटक का कार्यक्रम रखा।

इसी में उसे विदाई दी जाने वाली थी। क्रांतिकारियों ने इसी सभा में सार्वजनिक रूप से उसे पुरस्कार देने का निर्णय लिया। इसके लिए अनंत कान्हरे, विनायक नारायण देशपांडे तथा कृष्ण गोपाल कर्वे ने जिम्मेदारी ली।

निधन :

21 दिसम्बर की शाम को जब देशपांडे के घर सब योजना बनाने के लिए सभी मिले और तीनों को लंदन से वीर सावरकर द्वारा भेजी तथा चतुर्भुज अमीन द्वारा लाई गयी ब्राउनिंग पिस्तौलें सौंप दी गयीं।

पहला वार अनंत कान्हरे को करना था, अतः उसे एक निकेल प्लेटेड रिवाल्वर और दिया गया। योजना यह थी कि यदि अनंत का वार खाली गया, तो देशपांडे हमला करेगा।

यदि वह भी असफल हुआ तो कर्वे गोली चलाएगा। समय से पूर्व वहां पहुंचकर तीनों ने अपनी स्थिति ले ली। जिस मार्ग से जैक्सन सभागार में आने वाला था, अनंत वहीं एक कुर्सी पर बैठ गया।

निश्चित समय पर जैक्सन आया। उसके साथ कई लोग थे। आयोजकों ने आगे बढ़कर उसका स्वागत किया। इससे उसके आसपास कुछ भीड़ एकत्र हो गयी पर जैसे ही वह कुछ आगे बढ़ा, अनंत ने एक गोली चला दी। वह गोली खाली गई। दूसरी गोली जैक्सन की बांह पर लगी और वह धरती पर गिर गया। उसके गिरते ही अनंत ने पूरी पिस्तौल उस पर खाली कर दी।

जैक्सन की मृत्यु वहीं घटनास्थल पर हो गयी। नासिक से विदाई समारोह में उसे दुनिया से ही विदाई दे दी गयी। लोग कान्हरे पर टूट पड़े और उसे बहुत मारा।

कुछ देर बाद पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर लिया। इन पर जैक्सन की हत्या का मुकदमा चला तथा 19 अप्रैल 1910 को ठाणे की जेल में तीनों को फांसी दे दी गयी। फांसी के समय अनंत कान्हरे की आयु केवल 18 वर्ष ही थी।

19. विष्णु गणेश पिंगल की जीवनी

विष्णु गणेश पिंगल का जन्म :

विष्णु गणेश पिंगल का जन्म 2 जनवरी 1888 को पूना के तलेगांव में हुआ था। यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक क्रान्तिकारी थे। वे गदर पार्टि के सदस्य थे।

शिक्षा :

सन 1911 में वह इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करने अमेरिका पहुंचे जहां उन्होंने सिटेल विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग कालेज में प्रवेश लिया। वहां लाला हरदयाल जैसे नेताओं का उन्हें मार्गदर्शन मिला और महान क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा से उनकी मित्रता थी।

देश में गदर पैदा करके देश को स्वतंत्र करवाने का सुनहरी मौका देखकर विष्णु गणेश बाकी साथियों के साथ भारत लौटे और ब्रिटिश इंडिया की फौजों में क्रांति लाने की तैयारी में जुट गये।

विष्णु गणेश पिंगल ने कलकत्ता में श्री रास बिहारी बोस से मुलाकात की। वह शचीन्द्रनाथ सांयाल को लेकर पंजाब चले आए। उस समय पंजाब, बंगाल और उत्तरप्रदेश में सैनिक क्रांति का पूरा प्रबंध हो गया था किन्तु एक गद्दार की गद्दारी के कारण सारी योजना विफल हो गई।

निधन :

विष्णु पिंगले को नादिर खान नामक एक व्यक्ति ने गिरफ्तार करवा दिया। लाहौर षडयंत्र केस और हिन्दु – जर्मन षडयंत्र में वह फंस गये। तथा 23 मार्च, 1915 ई0 को विस्फोटक 10 बमों के साथ गिरफ्तार कर लिए गए। 17 नवम्बर 1915ई0 को इन्हें फाँसी दे दी गई।

20. गुरु हरकिशन की जीवनी

गुरु हरकिशन का जन्म :

गुरु हरकिशन सिखों के 8वें गुरु थे, उनका जन्म 17 जुलाई 1656 को कीरतपुर साहिब में हुआ था।

गुरु हर किशन जी के पिता का नाम “गुरु हर राय साहिब जी” एवं माता जी का नाम “किशन कौर” था गुरु हर किशन उनके दूसरे पुत्र थे। राम राय जी गुरु हरकिशन के बड़े भाई थे।

8 साल की छोटी सी आयु में गुरु हरकिशन साहिब को गुरुपद प्रदान किया गया था, इस बात से ही नाराज होकर राम राय ने औरंगजेब से इस बात की शिकायत की, राम राय का व्यवहार अच्छा नहीं था, जिसके कारण उन्हें घर से बाहर निकाल दिया था इसी बात से वो अपने छोटे भाई गुरु हरकिशन से गुस्सा रहते थे।

औरंगजेब से श्री राम राय ने कहा कि गुरु हरकिशन को दिल्ली बुलाया जाए तब औरंगजेब ने राजा जयसिंह को कहा कि अपना विशेष आदमी भेजकर गुरु हरकिशन को दिल्ली बुलाओ।

जयसिंह ने ऐसा ही किया और हरकिशन को चिट्ठी भेजी तब राजा जयसिंह की चिट्ठी पढ़ने के बाद गुरु हरकिशन दिल्ली आ गए। लेकिन हरकिशन साहब की उदारता को उनके बड़े भाई कम नहीं कर पाए।

जब गुरु हरकिशन सिंह दिल्ली पहुंचे तो वहां कुछ समय बाद हैजा जैसी महामारी फैली हुई थी, मुगल राज जनता के प्रति असंवेदनशील था गुरु साहिब ने सभी पीड़ित जनों की सेवा का अभियान चलाया। खासकर दिल्ली में रहने वाले मुस्लिम उनकी इस मानवता की सेवा से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें ‘बाला पीर’ के नाम से सम्बोधित किया और ‘बाला पीर’ कहकर पुकारने लगे।

निधन :

दिन रात हैजा महामारी से ग्रस्त लोगों की सेवा करते-करते गुरु साहब खुद भी बीमारी की चपेट में आ गए लेकिन जब उनकी हालत कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गयी तो उन्होंने अपनी माता को अपने पास बुलाया और कहा कि उनका अंत अब निकट है।

जब लोगों ने कहा कि अब गुरु गद्दी पर कौन बैठेगा तो उन्हें अपने उत्तराधिकारी के लिए केवल ‘बाबा- बकाला’ का नाम लिया, जिसका अर्थ था कि उनका उत्तराधिकारी बकाला गांव में ढूंढा जाए। जो आगे चलकर गुरू तेजबहादुर सिंह के रूप में सही साबित हुआ, जिनका जन्म बकाला में हुआ था।

हरकिशन सिंह साहब ने दुनिया को अलविदा कह दियाअपने अंत समय में गुरु हरकिशन साहिब ने सभी लोगों को निर्देश दिया कि कोई भी उनकी मृत्यु पर रोयेगा नहीं और इसके बाद बाला पीर ने 30 मार्च, 1664 को दुनिया को अलविदा कह दिया।

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