भारत में अनेक त्यौहार मनाये जाते है उनमें से एक राम नवमी है। राम नवमी का त्यौहार हिन्दुओं के महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है, इस दिन श्री हरी विष्णु ने अपने सातवें अवतार श्री रामचंद्र जी के रूप में शुक्ल पक्ष के चैत्र महीने की नवमी को जन्म लिया था।
श्री राम जी ने धरती पर बुराई और अधर्म का नाश कर धर्म और सत्य की स्थापना की थी इसलिए प्रत्येक वर्ष चैत्र महीने की नवमी को रामनवमी का त्यौहार पूरे हर्ष और उल्लास के साथ संपूर्ण भारत में मनाया जाता है।
रामनवमी को सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु भारत से बाहर रहने वाले हिन्दू समुदाय के लोगों द्वारा भी पूरे उत्साह से मनाया जाता है इस दिन हिन्दू सम्प्रदाय के लोग भगवान श्री रामचंद्र जी की पूजा अर्चना करते है और उपवास भी रखते है।
इसके साथ मंदिरों में धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है लोगों का विश्वास है कि इस उपवास को रखने से सभी कष्टों का निवारण होता है और जीवन में सुख और शांति बनी रहती है।
2024 में राम नवमी कब है
भारत में इस बार राम नवमी का पर्व 17 अप्रैल 2024 को दिन रविवार को मनाया जाएगा और प्रातः काल से ही मंदिरों की साफ़ सफाई की जाएगी और फूल मालाओं से सजाया जायेगा।
इसके पश्चात राम चरित मानस का अखंड पाठ किया जायेगा और पूरे दिन भजन कीर्तन और आरती की जाएगी आरती के बाद सभी भक्तों में प्रसाद का वितरण किया जायेगा, साथ ही सभी भक्तगण अपनी अपनी इच्छा ले कर भगवान श्री राम के चरणों में हाज़िर होते है और उन्हें फल फूल अर्पित करते है।
वैसे तो सम्पूर्ण भारत में राम नवमी का त्यौहार पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है लेकिन श्री राम जी की जन्म भूमि अयोध्या में इस दिन भव्य आयोजन होते है।
यहाँ मंदिरों की शोभा देखते ही बनती है पूरी अयोध्या को दुल्हन की तरह सजाया जाता है और हर तरफ रोशनी ही रोशनी होती है साथ ही भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता है।
इस दिन अयोध्या में साधु संतों की टोलियां दूर-दूर से आती है, मंदिर में प्रवेश से पहले साधु संत और भक्त गण पवित्र सरयू नदी में स्नान करते है और श्री राम जी की शोभायात्रा निकाली जाती है।
राम नवमी के दिन जगह जगह पंडाल लगाये जाते है और प्रसाद का वितरण किया जाता है और इस दिन हनुमान जी के मंदिर में ध्वजा को चढ़ाना शुभ माना जाता है साथ ही इस दिन लोग भण्डारों का भी आयोजन करते है और प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह अमीर हो या गरीब एक समान उन्हें आदरपूर्वक प्रसाद प्रदान किया जाता है।
राम नवमी क्यों मनाई जाती है
शुक्ल पक्ष के चैत्र महीने में राम नवमी का त्यौहार ख़ुशी-ख़ुशी मनाया जाता है इस दिन अयोध्या पति दशरथ की प्रार्थना स्वीकार हुई थी और श्री हरी विष्णु ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम स्व रुप में उनके यहाँ जन्म लिया था।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी ने समाज में न्याय स्थापित करने और अन्याय का नाश करने के लिए धरती पर जन्म लिया था, उन्होंने सत्य की स्थापना की थी और अच्छाई पर बुराई की जीत को भी स्थापित किया था।
राम नवमी के दिन लोग अपने पूरे परिवार के लिए सुख-शांति और मंगल-कल्याण और उनके जीवन से सभी बुराइयों को खत्म करने की कामना करते है राम नवमी का व्रत रखने वाले व्यक्तियों के जीवन में धैर्य और ज्ञान में भी वृद्धि होती है और वे सदा सुखी जीवन व्यतीत करते है।
सनातन धर्म में प्रायः यह देखा गया है कि केवल भगवान और उनके संतों का जन्मदिन मनाया जाता है, परन्तु ऐसा क्यों?
ऐसा इसलिए क्योंकि जब हम संसार में किसी के जन्मोत्सव पर जाते है तो उससे पहले यह सोचते है कि किसके जन्म उत्सव पर जा रहे है, वो हमारे क्या लगते है, वो कौन है, उनका हमारे जीवन में कुछ महत्व है या नहीं? यह सोचते है फिर जाते है और उनका जन्मदिन मनाते है।
इसी प्रकार भगवान का जन्म दिवस हम क्यों मनाये वो हमारे क्या लगते है, वो कौन है, उनका हमारे जीवन में क्या महत्व है ?
ये सब कुछ हम लोगो को सदा ज्ञात हो और हमारी पीढ़ियों को भी यह ज्ञात रहे इसलिए भगवान का जन्मोत्सव मनाने की परंपरा हमारे यहाँ है अतः हमें श्री रामचन्द्र जी का जन्म दिन मनाना चाहिये।
राम नवमी कैसे मनाए
राम नवमी का त्योहार चैत्र महीने के प्रथम दिन से नौवें दिन तक चलता है, प्रथम दिन से व्रत रखा जाता है और अंतिम दिन तक यह व्रत चलता है।
राम नवमी के दिन महिलाओं को सुबह उठकर दैनिक कार्यों को समाप्त कर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनने चाहिये और घर को शुद्ध करने के लिए गंगा जल को प्रत्येक कोने में छिड़कना चाहिये, ताकि घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश हो।
अपने घर के मुख्य द्वार पर आम या अशोक के पत्ते का तोरण जरूर लगाना चाहिये, इसके बाद सूर्य देव को जल अर्पण करना चाहिये क्योंकि श्री राम प्रभु को सूर्य वंश का माना जाता है।
इसके बाद पूजा स्थल की साफ़ सफाई कर के सभी सामग्री एकत्रित करके एक लकड़ी की चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछा कर उस पर कलश की स्थापना कर के वहां पर भगवान श्री राम जी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिये या फिर राम दरबार की प्रतिमा भगवान श्री रामचंद्र सहित लक्ष्मण, माता सीता और हनुमान जी की पूजा कर सकते है।
जब प्रतिमा स्थापित हो जाये, उसके बाद जल, अक्षत, रोली, फूल माला अर्पित करना चाहिये साथ ही पूजा करते समय तुलसी के पत्ते और कमल का फूल अवश्य रखना चाहिए I
इसके पश्चात प्रसाद में खीर, पंचामृत, हलवा, दूध और पंजिरी का भोग लगाना चाहिए और धूप-दीप जला कर भगवान श्री राम जी की आरती करनी चाहिये आरती करने के पश्चात रामायण का पाठ अवश्य करना चाहिये।
इस दिन श्री राम प्रभु के बाल रूप को स्नान करवा कर उन्हें सुंदर वस्त्र और आभूषणों से सजाया जाता है और उन्हें पालने में रखकर झूला झुलाया जाता है।
पुराणों के अनुसार यह मान्यता है कि अगर कोई भी व्यक्ति इस व्रत को सच्चे मन से बिना किसी स्वार्थ भावना से करता है तो उसके सभी पापों का निवारण होता है और उसके जीवन में सदैव सुख शांति बनी रहती है।
छोटी कन्याओं को देवी का स्वरूप माना जाता है, इसलिए इस दिन कन्याओं को जिमाना चाहिये इनके साथ एक बालक को जिमाने की भी परंपरा है क्योंकि बालक को लंगूर का रूप माना जाता है जो कि हनुमान जी का ही दूसरा रूप है।
उनके पैरो को अच्छे से धो कर साफ़ करके उन्हें आसान प्रदान करते है और उनके सिर पर लाल रंग की चुनरी ओढाई जाती है फिर उनकी पूजा की जाती है उसके बाद उन्हें भोग चढ़ाया जाता है और उन्हें उपहार में चूड़ियाँ, बिंदी या श्रृंगार का सामान प्रदान करना चाहिये I इस प्रकार सभी विधि विधान के साथ राम नवमी की पूजा संपन्न की जाती है।
राम नवमी का इतिहास
रामायण हिन्दू धर्म का महान महाकाव्य है, इस महाकाव्य में श्री रामचन्द्र जी के सम्पूर्ण जीवन का वर्णन किया गया है हिन्दू धर्मग्रंथ के अनुसार त्रेता युग में अयोध्या के राजा दशरथ राज किया करते थे उनकी तीन पत्नियाँ – कौशल्या, कैकयी और सुमित्रा थी और राजा निःसंतान थे I
वह अपने राजवंश को आगे बढ़ने के लिए संतान के इच्छुक थे, इस चिंता से ग्रसित राजा एक दिन महान ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में पहुँचे और उनके सामने अपनी इच्छा प्रकट की उनकी इच्छा जानने के पश्चात ऋषि वशिष्ठ ने उन्हें संतान प्राप्ति हेतु पुत्र कामेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी।
इसके पश्चात राजा दशरथ ने यज्ञ करने के लिए ऋषि श्रृंग को आमंत्रित किया और पूरे विधि विधान से यज्ञ को संपन्न किया गया तब राजा दशरथ के भक्ति भाव से अग्नि देवता प्रसन्न हुए और उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्होंने राजा दशरथ को आशीर्वाद स्व रुप खीर से भरा कटोरा दिया और कहा कि यह खीर तीनों पत्नियों को खिला देना।
खीर का सेवन करने के कुछ दिन पश्चात तीनों रानियों ने गर्भ धारण किया और जब छः ऋतुएँ बीत गयी तब शुक्ल पक्ष के चैत्र महीने की नवमी तिथि में रानी कौशल्या ने दिव्य लक्षणों से युक्त, सर्व लोक वन्दनीय जगदीश्वर श्री रामचंद्र जी को जन्म दिया उनके साथ रानी कैकयी ने भरत और रानी सुमित्रा ने जुड़वाँ पुत्रों लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया।
एक समय पर जब माता कैकेयी ने मंथरा के बहकावे में आकर राजा दशरथ से वरदान माँगा था जिसमें उन्होंने राम के लिए 14 वर्षों का वनवास और भरत के लिए राज सिंहासन की मांग की थी।
तब अपने पिता द्वारा दिए वचन का पालन करने के लिए उन्होंने 14 वर्ष का वनवास स्वीकार किया और माता सीता सहित लक्ष्मण के साथ वनवास को चले गए।
यहाँ उन्होंने एक ऐसे पुत्र के चरित्र को दर्शाया जो पिता भक्त था और पिता की आज्ञा का पालन ही उनके जीवन का उद्देश्य था और उन्होंने वनवास के समय कई असुरों का नाश किया।
भगवान श्री राम को आदर्श व्यक्तित्व के प्रतीक के रूप में जाना जाता है, क्योंकि धरती पर से असुरों का संहार करने के लिए प्रभु श्री रामचंद्र जी ने जन्म लिया था।
इन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अनेक कष्टों का सामना किया था उसके बाद भी मर्यादित जीवन का उदाहरण स्थापित किया उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी अपने जीवन के आदर्शों और मूल्यों का त्याग नहीं किया और मर्यादा में रहते हुए संपूर्ण जीवन व्यतीत किया।
श्री राम के चरित्र में पग पग पर मर्यादा, त्याग, प्रेम और लोक व्यवहार के दर्शन होते है राम ने साक्षात परमात्मा हो कर भी मानव जाति को मानवता का संदेश दिया I मनुष्य के जीवन में आने वाले सभी समस्याओं का हल कैसे किया जाये ये प्रभु श्री राम ने अपने चरित्र द्वारा दिखाया है।
प्रभु राम का चरित्र मनुष्यों के लिए प्रकाश व दीप स्तम्भ है I श्री राम सदा कर्तव्य निष्ठा के प्रति आस्थावान रहे उन्होंने कभी भी अपनी दुर्बलता को प्रकट नहीं होने दिया, लेकिन आज हर इन्सान जल्द से जल्द कामयाबी पाना कहता है जिसकी वजह से उसे अनेक समस्याओं और परेशानियों का सामना करना पढ़ रहा है।
ये समस्याएँ लोगो के चरित्र को प्रभावित करती है, उस समय पर हम सभी को प्रभु राम के चरित्र को याद कर उनके दिखाए पथ पर चलना चाहिये I वह अपनी बुद्धिमता के लिए प्रसिद्ध थे और सभी कार्यों को समझदारी के साथ पूर्ण करते थे।
श्री रामचंद्र अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध थे उन्होंने अपनी किशोरावस्था से ही राक्षसों का वध कर साधू संतो की रक्षा की और गुरु को सर्वोपरि माना।
वह उन सभी के प्रति दया का भाव रखते थे जो उनसे मिलते थे और अपनी पीड़ा उन्हें बताते थे राजा सुग्रीव की व्यथा सुन कर भी उन्होंने मित्रता की खातिर बलि से युद्ध किया और सुग्रीव को राज्य भार प्रदान किया उन्होंने एक सच्चे मित्र का चरित्र भी दुनिया को दिखाया।
जब राम और रावण का युद्ध हुआ था तो एक बार उस समय रावण ने अपने सभी हथियार खो दिए थे तब प्रभु राम ने उन्हें घर जाने और अगले दिन हथियारों के साथ वापस आने के लिए कहा था यहां पर उन्होंने एक असहाय व्यक्ति पर शस्त्र न उठा कर धर्म पर मार्ग पर चलने का रास्ता दिखाया।
श्री राम जी ने अपने जीवन में कभी असत्य नहीं कहा और अन्य राजाओं की तरह उन्होंने अनेक विवाह नहीं किये सिर्फ एक ही विवाह किया था
उन्होंने मर्यादा में ही रह कर सभी कार्य किया और सदा गुरु व माता पिता के वचनों का पालन किया और उनके राज्य में प्रजा सुखी व संपन्न थी राजा बनने पर न उन्हें कोई प्रसन्नता और न वनवास जाते समय कोई कष्ट हुआ कल युग में भगवान राम के आदर्शों पर चल कर प्रत्येक व्यक्ति सुखी व सफल जीवन की प्राप्ति कर सकता है।
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