दीपावली क्यों मनाई जाती है | दिवाली से जुड़ी 5 कहानियां

दीपावली का त्यौहार तो हर व्यक्ति बनाता हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि दीपावली का त्यौहार क्यों बनाया जाता हैं तो इस पेज पर आप दिवाली के त्यौहार से संबंधित समस्त जानकारी पढ़िए।

पिछले पेज पर हमने दशहरा का त्यौहार क्यों मनाया जाता हैं कि समस्त जानकारी दी हैं यदि आप दशहरा के त्यौहार के बारे में पढ़ना चाहते हैं तो पढ़ सकते हैं।

चलिए इस पेज पर दीपावली का त्यौहार क्यों बनाया जाता हैं कि समस्त जानकारी पढ़ते और समझते हैं।

दीपावली का त्यौहार कब बनाया जाता हैं

दीपावली का त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता हैं जो ग्रेगोरी कैलेंडर के अनुसार अक्टूबर या नवम्बर महीने में पड़ता हैं।

दीपावली का त्यौहार भारत के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक हैं जिसे हिन्दू धर्म के लोग बड़ी ही धूमधाम से इस पावन पर्व को मनाते हैं।

2023 में दीपावली कब हैं

2023 में दीपावली का त्यौहार शरद ऋतु में कार्तिक मास की अमावस्या को 10 नवम्बर दिन बुधवार को मनाया जाएगा।

दीपावली का महत्व

दीपावली का त्यौहार नेपाल और भारत में धूमधाम से सेलिब्रेट किया जाता हैं। नेपाल और भारत में दिवाली का त्यौहार सबसे बड़े शॉपिंग सीजन में से एक हैं।

दीपावली के दिन लोग कारें और बाइक खरीदते हैं एवं महिलाएँ सोने चाँदी के गहने खरीदकर सबसे पहले माता रानी को चढ़ाती हैं उसके बाद स्वंम धारण करती हैं।

सभी परिवार वाले इस दिन नए कपड़े खरीदकर पहनते हैं एवं अपने से छोटों एवं बड़ों को उपहार दिए जाते हैं। पड़ोस के लोग एक एक दूसरे के घर मिठाइयां और सूखे मेवे के साथ उपहार देते हैं।

धनतेरस के दिन महिलाएँ घर गृहस्थी के लिए फ्रिज, टीवी, कूलर, अलमारी या कोई भी उपकरण एवं रसोई के बर्तन खरीदती हैं।

पौराणिक मान्यता के अनुसार माना जाता हैं कि धनतेरस के दिन कोई वस्तु लेने का महत्व हैं।

दिवाली के दिन बुजुर्ग लोग अपने घर के बच्चों को अच्छाई पर बुराई के बीच या प्रकाश और अंधेरे के बीच रोचक कहानियां सुनाते हैं और धूमधाम से दीपावली का उत्सव मनाते हैं।

दीपावली क्यों मनाई जाती है

हिन्दू मान्यता के अनुसार भारत में कुल 33 करोड़ देवी-देवता हैं। हमारे भारत देश को त्योहारों की भूमि कहाँ जाता हैं इसलिए भारत में हमेशा किसी ना किसी त्यौहार का उत्सव बना ही रहता हैं।

इन्हीं त्यौहार में से एक दीपावली का त्यौहार हैं जो हर साल अक्टूबर से नवम्बर के बीच बनाया जाता हैं।

दिवाली का पर्व भारत देश ही नहीं बल्कि विदेश के लोग भी धूमधाम से बनाते हैं और इस दिन को धूमधाम से सेलिब्रेट करते हैं।

दीपावली का त्यौहार देश विदेश के लोग मनाते तो हैं लेकिन क्या आपने सोचा कि इस त्यौहार को मानने के पीछे क्या मान्यता हैं।

तो चलिए आज इस पेज पर जान लेते हैं की आखिर दीपावली का त्यौहार मनाने के पीछे क्या कारण हैं।

दीपावली का त्यौहार मनाने से जुड़ी 5 कहानियाँ

दीपावली मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं इसलिए देश के अलग-अलग हिस्सों में दीपावली का पर्व अनेक तरीकों से मनाया जाता हैं।

तो चलिए नीचे दी गई कहानियों को पढ़कर समझते हैं कि दीपावली का पावन पर्व क्यों मनाया जाता हैं।

  1. भगवान राम के अयोध्या लौटने की खुशी में।
  2. हिरण्यकश्यप का वध।
  3. भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया।
  4. शक्ति ने महाकाली का रूप धारण किया।
  5. दीपावली के दिन माँ लक्ष्मी, धन्वंतरि व कुबेर प्रकट हुए।

1. भगवान राम के अयोध्या लौटने की खुशी में

दीपावली का संबंध त्रेतायुग से है। त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रूप में अवतार लिया था। चलिए इसकी पूरी कहानी विस्तार से पढ़ते और समझते हैं।

अयोध्या के राजा दशरथ थे जिनकी तीन रानियां थी कौशल्या, कैकई एवं सुमित्रा थी। इनके यहाँ कोई सन्तान नहीं थीं इसलिए राजा दशरथ ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया जिसका प्रसाद ग्रहण करके तीनों रानियाँ गर्ववती हुईं।

महारानी कौशल्या के यहां श्री राम ने जन्म लिया जो भगवान विष्णु के अवतार थे, कैकई के यहां भारत हुए एवं सुमित्रा के यहाँ लक्ष्मण और सत्रुघ्न ने जन्म लिया लक्ष्मण शेषनाग के अवतार थे।

दसरथ ने अपनी पत्नी कैकई को एक युद्ध के दौरान 2 वरदान दिए और बोला बताओ महारानी आपकी क्या इक्छा हैं तब महारानी ने कहाँ समय आने पर मांग लूँगी।

जब चारों राजकुमार बड़े हुए तो महराज दशरथ ने श्री राम को राजा बनाने की घोषणा की तभी मंथरा ने कैकई के कान भरने शुरू कर दिए जिससे कैकई ने महराज द्वारा दिए हुए वरदान का फायदा उठाते हुए महराज से अपने 2 वरदान मांग लिए।

पहले वरदान में कैकई ने अपने पुत्र भरत का राज्याभिषेक मागा और दूसरे वरदान में श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास मांग लिया।

पिता के दिए हुए वचन के कारण मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम 14 वर्षो के वनवास जाने को तैयार हो गए श्रीराम के साथ उनकी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण भी उनके साथ वनवास गए।

वन में एक कुटिया बना कर श्रीराम अपनी पत्नि सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वन में निवास करने लगें तभी वहां से रावण की बहन सूर्पनखा श्रीराम को देखकर मोहित हो गई और श्रीराम के सामने आकर विवाह का प्रस्ताव रखा।

श्रीराम ने सूर्पनखा को आदरपूर्वक बताया कि मैं अपनी पत्नी सीता को वचन दे चुका हूँ कि उनके अतिरिक्त किसी और से विवाह नहीं करूंगा इसलिए मैं तुमसे विवाह नहीं कर सकता।

सूर्पनखा को लक्ष्मण जी दिखे तो वो लक्ष्मण जी के पास गई और विवाह करने की हठ करने लगी जब लक्ष्मण जी नहीं माने तो माता सीता को उठा कर खाने लगीं तो गुस्से में आकर लक्ष्मण जी ने सूर्पनखा की नाक काट दी।

सूर्पनखा अपनी कटी नाक के साथ लंका के महाराज और उसके भाई रावण के पास गई और रावण से रोते मैं एक सुंदर स्त्री को देखकर आपके लिए लाने वाली थी लेकिन उसके देवर ने मेरी नाक काट दी तब रावण क्रोधित गया और ब्राम्हण का रूप रखकर छल से माता सीता का हरण करके श्रीलंका ले गया।

राम भक्त हनुमानजी ने माता सीता की खोज की और सीता माता का पता लगाया इसके बाद श्रीराम और रावण का युद्ध हुआ और अंत में मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम ने दुष्ट रावण का वध कर दिया।

माना जाता हैं कि जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम रावण का वध करके चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या लौटे तो नगरवासियों ने पूरी अयोध्या को दीपों से रोशन कर दिया।

श्रीराम के आने की खुशी में अयोध्या वासियों ने नगर को सजाया, पटाखे फोड़े और मंगलगीत खाए एवं धूमधाम से खुशियां बनाई तभी से भारतवर्ष में दीपावली का त्यौहार मानना शुरू हो गया और आजतक हम दीपावली के पावन पर्व को बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं।

2. हिरण्यकश्यप का वध

एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप नामक दुष्ट राक्षस को मारने के लिए नरसिंह का रूप धारण किया था और हिरण्यकश्यप का वध किया।

दैत्यराज की मृत्यु पर प्रजा ने नगर में घी के दिए जलाए और दीपावली का पावन पर्व धूमधाम से मनाया।

3. भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया

भगवान विष्णु ने जब धरती पर श्री कृष्ण का अवतार लिया तब उन्होंने कंश के साथ नरकासुर का वध भी किया था।

मान्यता हैं कि दीपावली के एक दिन पहले चतुर्दशी को भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था।

इसी खुशी में दूसरे दिन अमावस्या के दिन गोकुलवासियों ने नगर में दिप जला कर खुशियाँ बनाई थीं एवं पूरे नगर को सजाया था इसलिए दीपावली का पर्व धूमधाम से मनाते हैं।

4. शक्ति ने महाकाली का रूप धारण किया

तीनों लोकों में राक्षस का हाहाकार बढ़ गया तब राक्षसों का वध करने के लिए शक्ति ने महाकाली का रूप धारण किया।

महाकाली ने समस्त राक्षसों का वध कर दिया लेकिन फिर भी उनकी गुस्सा शांत नहीं हुई तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए।

जब महाकाली का पैर भगवान शिव के शरीर से स्पर्श मात्र से देवी महाकाली का क्रोध शांत हो गया।

इसलिए दीपावली के दिन महाकाली के शांत स्वरूप के रूप में माता लक्ष्मी की पूजा की जाती हैं।

5. दीपावली के दिन माँ लक्ष्मी, धन्वंतरि व कुबेर प्रकट हुए

पौराणिक मान्यता के अनुसार, दीपावली के दिन समुद्र हुआ तब माता लक्ष्मी दूध सागर, जिसे केसर सागर के नाम से जाना जाता हैं से उत्पन्न हुई थीं।

माता लक्ष्मी के साथ समुद्र मंथन से आरोग्य देव धन्वंतरि और भगवान कुबेर प्रकट हुए थे इसलिए दीपावली के दिन लक्ष्मी, धन्वंतरि और कुबेर की पूजा की जाती हैं।

दीपावली का त्यौहार कैसे मनाया जाता हैं

दीवाली आने के 8 दिन पहले से लोग अपने घरों की साफ सफाई में लग जाते हैं सभी अपने घरों की पुताई करके घर को साफ करके उत्सव के लिए तैयार करते हैं।

“दीपावली के दो दिन पहले धनतेरस का पर्व मनाया जाता हैं।”

धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी, धन्वंतरि एवं महाराज कुबेर की पूजा की जाती हैं एवं इस दिन 13 दिए को जलाकर धन की पूजा की जाती हैं।

माना जाता हैं कि इस दिन माता लक्ष्मी, धन्वंतरि एवं महाराज कुबेर की पूजा करने से धन की प्राप्ति होती हैं एवं घर में सुख शांति एवं समृद्धि बनी रहती हैं।

धनतेरस के अगले दिन छोटी दिवाली मनाई जाती हैं इस दिन भी दीप जलाकर खुशियाँ बनायी जाती हैं।

अनंत चौदस के दिन दीपावली का त्यौहार मनाया जाता हैं इस दिन सुबह से घर की साफ-सफाई की जाती हैं।

सभी लोग इस दिन नए कपड़े पहनते हैं घरों मंदिरों में रंग गोली बनाई जाती हैं एवं घरों को लाइट से सजाया जाता हैं दिवाली के दिन चारों तरफ सिर्फ प्रकाश ही प्रकाश दिखाई देता हैं।

रात को माता लक्ष्मी, धन्वंतरि एवं महाराज कुबेर की पूजा की जाती हैं और दीपक जलाएं जाते हैं। माता लक्ष्मी से घर की सुख शान्ति बनाए रखने का आशीर्वाद लीजिए एवं मिठाई, राई, नारियल से माता को भोग लगाया जाता हैं इसके बाद समस्त परिवार मिलकर पूजा का प्रसाद ग्रहण करते हैं।

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