रुधिर किसे कहते हैं रुधिर के कार्य, संरचना, प्रकार एवं खोजकर्ता

नमस्कार दोस्तों, आज के इस आर्टिकल में हम रुधिर की जानकारी पढ़ने वाले हैं यदि आप रुधिर की जानकारी जानना चाहते हैं तो इस आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़िए।

पिछले पेज पर हमने चुंबक की जानकारी शेयर की हैं तो उस आर्टिकल को भी पढ़े। चलिए आज हम रुधिर की जानकारी को पढ़ते और समझते हैं।

रक्त या रुधिर किसे कहते हैं

रक्त या रुधिर एक प्रकार का तरल संयोजी उत्तक है। इनका अंतर कोशिकीय पदार्थ तरल होता है जिसमें कोशिकाएं बिखरी रहती है, इसलिए इन्हें तरल उत्तक कहते हैं।

रक्त या रुधिर के तरल भाग को प्लाज्मा कहते हैं। इसमें रुधिर कणिकाएं तैरती रहती हैं। प्लाज्मा हल्के पीले रंग का चिपचिपा और थोड़ा क्षारीय द्रव्य है। प्लाज्मा रुधिर के आयतन का 55% भाग होता है शेष 45% भाग में रुधिर कणिकाएं होती है।

मानव रक्त का PH मान

मानव रक्त का PH Value या मान 7.4 होता है। pH पूरा नाम ‘पोटेंशियल हाइड्रोजन कहते है।

रुधिर के कार्य

  1. रुधिर द्वारा पचे हुए भोजन, अंत स्त्रावी एवं उत्सर्जी पदार्थ, गैस आदि का परिवहन विभिन्न अंगों में होता है।
  2. यकृत और पेशियों में जो तापमान उत्पन्न होता है वह रुधिर द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में पहुंचाया जाता है, जिससे शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है।
  3. श्वेत रुधिर कणिकाएं जीवाणु, वायरस तथा अन्य हानिकारक पदार्थों को नष्ट करने का कार्य करते हैं।
  4. प्लेटलेट्स रक्त का थक्का बनाने में मदद करता है।
  5. श्वसनांगों से ऑक्सीजन को लेकर शरीर की विभिन्न कोशिकाओं में पहुँचाना।
  6. कोशिकीय श्वसन (Cellular respiration) क्रिया में उत्पन्न कार्बन–डाइऑक्साइड को स्वाशांग में छोड़ना l
  7. अमोनिया, यूरिया, अन्ल आदि हानिकारक पदार्थों को उत्स्जी अंगों (वृक्कों) तक पहुँचाना।
  8. हॉरमोन्स, एन्जाइम्स एवं एन्टीबॉडीज (Amtibodics) का स्थानान्तरण करना।
  9. हानिकारक जीवाणुओं, विषाणुओं (Viruses) व रोगांणुओं आदि का भक्षण करके शरीर की रोगों से सुरक्षा प्रदान करना।
  10. शरीर के सभी भागों में तापमान का नियंत्रण करना और उसे एकसमान बनाए रखना।
  11. चोट लगने पर रुधिर बहकर बाहर जाने से रोकने के लिए थक्का जमाने का कार्य करना।
  12. आवश्यक पदार्थ पहुँचाकर आहुत भागों में घावों (Wounds) को भरने में मदद करना।
  13. मृत व टूटी-फूटी कोशिकाओं को यकृत एवं प्लीहा में ले जाकर नष्ट करना।
  14. शरीर के विभिन्न अगों के बीच समन्वय स्थापित करना और शरीर के अन्तःवातावरण का नियंत्रण करना

रुधिर वर्ग की खोज किसने की

ऑस्ट्रिया के कार्ल लैंडस्टेनर ने मानव रक्त समूहों की खोज की, जिससे कि रक्ताधान सुरक्षित हो गया। कार्ल लैंडस्टेनर ने देखा कि रक्त का एकत्रीकरण एक रोग क्षमता संबंधी प्रक्रिया है जो उस समय उत्पन्न होता है।

जब रक्ताधान के प्राप्तकर्ता में दाता रक्त कोशिकाओं के विरुद्ध रोग-प्रतिकारक (ए, बी, ए एवं बी दोनों, या कोई भी नहीं) होते हैं। कार्ल लैंडस्टेनर के कार्य ने रक्त समूहों (ए, बी, एबी, ओ) के निर्धारण को संभव बना दिया एवं इस प्रकार सुरक्षित रूप में रक्ताधान क्रियान्वित करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

रुधिर की संरचना

रुधिर वह तरल पदार्थ या द्रव है, जो रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होता है। यह शरीर की विभिन्न कोशिकाओं को भोजन और ऑक्सीजन का वितरण करता है।

यह शरीर में से अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने के लिए उनका परिवहन भी करता है। इसमें विभिन्न प्रकार की कोशिकाएं निलंबित रहती हैं, जो निम्न प्रकार से हैं।

(i). प्लैज्मा-यह रक्त का तरल भाग होता है। यह कोशिकाओं से 𝐶𝑂₂CO₂ को फेफड़ों तक पहुँचाने में सहायता करता है।

(ii). लाल रक्त कोशिकाएँ ( RBC) इनमें एक लाल वर्णक हीमोग्लोबिन पाया जाता है जिसके कारण रुधिर लाल रंग का दिखाई देता है।

हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन को अपने साथ संयुक्त करके शरीर के सभी अंगों में और अंतत: सभी कोशिकाओं तक परिवहन करता है।

(iii). श्वेत रक्त कोशिकाएँ (WBC)-ये कोशिकाएँ उन रोगाणुओं को नष्ट करती हैं, जो हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इस प्रकार ये शरीर को स्वस्थ रखती हैं।

(iv). पट्टिकाणु (प्लैटलेट्स) – ये कोशिकाएँ चोट लगे स्थान पर रुधिर का थक्का (जमने) बनाने में मदद करती हैं, जिससे रुधिर का बहना रुक जाता है।

रुधिर कणिकाओं के प्रकार

रुधिर कणिकाएं मुख्यतः तीन प्रकार की होती है।

  1. लाल रुधिर कणिकाएं (Red Blood Cells या RBC या Erythrocytes)
  2. श्वेत रुधिर कणिकाएं (White Blood Cells या WBC या Leukocyte)
  3. प्लेटलेट्स (Platelets)

1. लाल रुधिर कणिकाएं

यह रुधिर कणिकाओं का 99% होती हैं। लाल रुधिर कणिकाएं में एक प्रोटीन रंजक हीमोग्लोबिन होता है, जिसके कारण इन कणों का रंग लाल होता है।

हीमोग्लोबिन, एक प्रोटीन ग्लोबिन (96%) और एक रंजक हीम (4-5%) से बना होता है। हीम अणु के केंद्र में लोहा (Fe) होता है, जिसमें ऑक्सीजन को बांधने और मुक्त करने की क्षमता होती है।

2. श्वेत रुधिर कणिकाएं

श्वेत रुधिर कणिकाएं निश्चित आकृति की, केंद्रकयुक्त और हीमोग्लोबिन रहित होती है। इनकी संख्या लाल रुधिर कणिकाओं की अपेक्षा बहुत कम होती है। मनुष्य के शरीर में इनकी संख्या 5 से 9 हजार तक होती है।

कुछ सूक्ष्म कणों के उपस्थिति के आधार पर इन्हें दो प्रकार में बांटा गया है।

(क). जिन श्वेत रुधिर कणिकाओं में कण मौजूद होते हैं, उन्हें ग्रेनुलोसाइट कहते हैं। जैसे न्यूट्रोफिल, इयोसिनोफिल और बेसोफिल।

(ख). एग्रेनुलोसाइट :- कुछ श्वेत रुधिर कणिकाओं के कोशिका द्रव्य में कण नहीं पाए जाते हैं, इन्हें एग्रेनुलोसाइट कहते हैं। 

यह दो प्रकार के होते हैं – लिंफोसाइट एवं मोनोसाइट। लिंफोसाइट एंटीबॉडी के निर्माण में भाग लेती हैं और यह श्वेत रुधिर कणिकाएं जीवाणुओं को नष्ट करने का कार्य करती है।

3. प्लेटलेट्स 

रुधिर प्लेटलेट्स को थ्रोंबोसाइट कहते हैं। यह केवल स्तनधारी वर्ग के जीवो में पाई जाती हैं। इनकी संख्या 2 से 5 लाख प्रति घन मिमी रक्त में होती है।

यह सूक्ष्म, रंगहीन, केंद्रकहीन, गोलाकार, टिकिए के समान होते हैं। रक्त का थक्का बनाने में मदद करना इनका मुख्य कार्य होता है। यह शरीर के कट जाने पर रक्त के बहाव को रूकती है जिससे कि शरीर में रक्त की मात्रा कम ना होने पाए।

मनुष्य के ब्लड ग्रुप

ब्लड ग्रुप की खोज कार्ल लैंडस्टीनर ने सन् 1900 में किया था। इसके लिए उन्हें सन 1930 ई० में नोबेल पुरस्कार मिला।

मनुष्य के रक्तों की भिन्नता का मुख्य कारण लाल रक्त कण में पाए जाने वाले ग्लाइकोप्रोटीन है, जिसे एंटीजन कहते हैं।

एंटीजन दो प्रकार के होते हैं।

एंटीजन A और एंटीजन B

एंटीजन या ग्लाइकोप्रोटीन की उपस्थिति के आधार पर मनुष्य में चार प्रकार के ब्लड ग्रुप होते हैं।

  1. जिनमें एंटीजन A होता हैं – Blood Group A
  1. जिनमें एंटीजन B होता हैं – Blood Group B
  1. जिनमें एंटीजन A और B दोनों होता हैं – Blood Group AB
  1. जिनमें दोनों में से कोई एंटीजन नहीं होता हैं – Blood Group O

किसी एंटीजन की अनुपस्थिति में एक विपरीत प्रकार का प्रोटीन रुधिर प्लाज्मा में पाई जाती हैं। इसको एंटीबॉडी कहते हैं। यह भी दो प्रकार के होते हैं।

एंटीबॉडी a और एंटीबॉडी b

रक्त का आधान (Transfusion)

एंटीजन A और एंटीबॉडी a, एंटीजन B और एंटीबॉडी b एक साथ नहीं रह सकते हैं। ऐसा होने पर यह आपस में मिलकर अत्यधिक चिपचिपे हो जाते हैं, जिससे रक्त नष्ट हो जाता है। इसे रक्त का अभिश्लेषण कहते हैं।

इसलिए रक्त ट्रांसफ्यूजन में एंटीजन तथा एंटीबॉडी का ऐसा तालमेल होना चाहिए, जिससे रक्त का अभिश्लेषण ना हो सके।

Rh-तत्व :- सन 1940 में लैंडस्टीनर और वीनर ने रुधिर में एक अन्य प्रकार के एंटीजन का पता लगाया। उन्होंने रीसस बंदर में इस तत्व का पता लगाया।

इसलिए इसे Rh-Factor कहते हैं। जिन व्यक्तियों के रक्त में यह तत्व पाया जाता है उनका रक्त Rh-सहित कहलाता है तथा जिनमें नहीं पाया जाता है उनका रक्त Rh-रहित कहलाता है।

ब्लड ट्रांसफ्यूजन के समय Rh-Factor की भी जांच की जाती है। Rh+ को Rh+ का रक्त और Rh- को Rh- का रक्त ही दिया जाता है।

यदि Rh+ रक्त Rh- रक्त वाले किसी व्यक्ति को दिया जाता तो, पहली बार कम मात्रा होने के कारण कोई प्रभाव नहीं पड़ता है लेकिन दूसरी बार ऐसा किया गया तो अभिश्लेषण के कारण Rh- वाले व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है।

FAQ

Q.1 रुधिर से आप क्या समझते हैं?


Ans. लहू या रुधिर या ख़ून एक शारीरिक तरल (द्रव) है जो लहू वाहिनियों के अन्दर विभिन्न अंगों में लगातार बहता रहता है।

रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होने वाला यह गाढ़ा, कुछ चिपचिपा, लाल रंग का द्रव्य, एक जीवित ऊतक है।

यह प्लाज़मा और रक्त कणों से मिलकर बनता है। प्लाज़मा वह निर्जीव तरल माध्यम है जिसमें रक्त कण तैरते रहते हैं।

Q.2 रुधिर किसे कहते हैं यह कितने प्रकार का होता है?


Ans. Blood एक तरल पदार्थ है, जिसके दो भाग है।

1. द्रव भाग, जिसे प्लाज़्मा कहते हैं।
2. ठोस भाग, जो कोशिकाओं का बना होता है। 

Q.3 रुधिर में कौन कौन से घटक होते हैं?

Ans. रक्त का तरल घटक निम्न है।
प्लाज्मा
श्वेत रक्त कोशिकाएं
लाल रक्त कोशिकाएँ
प्लेटलेट्स

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