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क्रिया किसे कहते है इसके प्रकार और उदाहरण

इस पेज पर हम हिंदी व्याकरण के महत्वपूर्ण अध्याय क्रिया की जानकारी को विस्तार से पढ़ेंगे।

पिछले पोस्ट में हम हिंदी व्याकरण के महत्वपूर्ण अध्याय अलंकार की परिभाषा और प्रकार की जानकारी शेयर कर चुके है उसे जरूर पढ़े।

चलिए अब क्रिया की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण को पढ़कर समझते है।

क्रिया की परिभाषा

जिन शब्दों से कार्य के होने का बोध होता है उन शब्दों को क्रिया कहा जाता हैं।

जैसे :- खाना, पीना, गाना, सोना, जागना, उठना, बैठना, जाना, आना आदि।

क्रिया के मूल रूप को मुख्य धातु कहाँ जाता हैं। धातु से ही क्रिया शब्द का निर्माण होता हैं।

उदाहरण :
राम खाना खाता है।
घोड़ा दौड़ता है।
तुम स्कूल जाते हो।

क्रिया के प्रकार

क्रिया को 2 भागों में बाँटा गया है।

  1. कर्म के आधार पर
  2. रचना के आधार पर

1. कर्म के आधार पर क्रिया

कर्म के आधार पर क्रिया के पांच भेद है।

(a). सकर्मक क्रिया

सरल शब्दों में जिस क्रिया का फल कर्म पर पड़े उसे सकर्मक क्रिया कहते है।

सकर्मक क्रिया की पहचान क्या और किसको जैसों प्रश्नों के जबाब मिलने से होती हैं।

उदाहरण :
राम फल खाता हैं।
सीता गाना गाती हैं।
सोहन पढ़ता हैं।
राम के द्वारा पत्र लिखा गया।
अध्यापिका पुस्तक पढ़ा रही हैं।
माली ने पानी से पौधों को सींचा।
श्याम फ़िल्म देख रहा है।
नौकरानी झाड़ू लगा रही है।

(b). अकर्मक क्रिया

अकर्मक क्रिया में क्रिया के साथ कर्म अनुपस्थित होता हैं और क्रिया का फल या प्रभाव कर्ता पर पड़ता हैं जबकि सकर्मक क्रिया में क्रिया का प्रभाव कर्म पर पड़ता हैं।

वाक्य में जब क्रिया के साथ कर्म नही होता तो उस क्रिया को अकर्मक क्रिया कहते है।

दूसरे शब्दों में, जिन क्रियाओं का व्यापार और फल कर्ता पर हो, वे ‘अकर्मक क्रिया’ कहलाती हैं।

अ + कर्मक अर्थात कर्म रहित/कर्म के बिना, जिन क्रियाओं के साथ कर्म न लगा हो तथा क्रिया का फल कर्ता पर ही पड़े, उन्हें अकर्मक क्रिया कहते हैं।

अकर्मक क्रियाओं का ‘कर्म’ नहीं होता, क्रिया का व्यापार और फल दूसरे पर न पड़कर कर्ता पर पड़ता है।

उदाहरण : श्याम सोता है।

इसमें ‘सोना’ क्रिया अकर्मक है, ‘श्याम’ कर्ता है, ‘सोने’ की क्रिया उसी के द्वारा पूरी होती है। अतः सोने का फल भी उसी पर पड़ता है। इसलिए ‘सोना’ क्रिया अकर्मक है।

उदाहरण : पक्षी उड़ रहे हैं।

उपर्युक्त वाक्यों में कोई कर्म नहीं है, क्योंकि यहाँ क्रिया के साथ क्या, किसे, किसको, कहाँ आदि प्रश्नों के कोई उत्तर नहीं मिल रहे हैं।

अतः जहाँ क्रिया के साथ इन प्रश्नों के उत्तर न मिलें, वहाँ अकर्मक क्रिया होती है।

अकर्मक क्रियाएँ : तैरना, कूदना, सोना, ठहरना, उछलना, मरना, जीना, बरसना, रोना, चमकना आदि।

उदाहरण :
मोहन हसंता हैं।
राधा रोती हैं।
मोहन उछलता हैं।
बिजली चमकती हैं।
राधा नाचती है।
बच्चे खेलते हैं।

जरुर पढ़े:

कर्म के आधार पर क्रिया के कुछ अन्य प्रकार निम्नलिखित है।

(c). सहायक क्रिया

सहायक क्रिया मुख्य क्रिया के साथ प्रयुक्त होकर वाक्य के अर्थ को स्पष्ट एवं पूर्ण करती हैं।

उदाहरण :

वे हँसते हैं।
हम घर जाते हैं।

(d). पूर्णकालिक क्रिया

जब कर्ता के द्वारा एक क्रिया को पूर्ण करने के बाद दूसरी क्रिया सम्पन्न की जाती हैं तो पहले वाली क्रिया को पूर्णकालिक क्रिया कहाँ जाता हैं।

उदाहरण : राम खाना खाने के बाद हँसता हैं।

(e). द्विकर्मक क्रिया

जिस क्रिया के साथ दो कर्म होते हैं। उसे द्विकर्मक क्रिया कहा जाता हैं।

द्विकर्मक अर्थात दो कर्मों से युक्त। जिन सकमर्क क्रियाओं में एक साथ दो-दो कर्म होते हैं, वे द्विकर्मक सकर्मक क्रिया कहलाते हैं।

जैसे :
मोदी ने राहुल को थप्पड़ मारा।
राम ने श्याम को खाना खिलाया।
शिक्षक ने छत्रों को हिंदी पढ़ाई।
श्याम अपने भाई के साथ फ़िल्म देख रहा है।
नौकरानी फिनाइल से पोछा लगा रही है।

2. रचना के आधार पर क्रिया के प्रकार

रचना के आधार पर क्रिया के पांच भेद है।

(a). सामान्य क्रिया

जब वाक्य में केवल एक क्रिया का प्रयोग होता है वहा सामान्य क्रिया होती है।

उदाहरण : तुम चलो, मोहन पढ़ा आदि!

(b). संयुक्त क्रिया

दो या दो से अधिक क्रियाओं के मेल से बनी क्रियाएँ संयुक्त क्रियाएँ होती है।

जो क्रिया दो या दो से अधिक धातुओं के मेल से बनती है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं।

दूसरे शब्दों में दो या दो से अधिक क्रियाएँ मिलकर जब किसी एक पूर्ण क्रिया का बोध कराती हैं तो उन्हें संयुक्त क्रिया कहते हैं।

  1. संयुक्त क्रिया में पहली क्रिया मुख्य क्रिया होती है तथा दूसरी क्रिया रंजक क्रिया।
  2. रंजक क्रिया मुख्य क्रिया के साथ जुड़कर अर्थ में विशेषता लाती है।
उदाहरण :
मैंने खाना खा लिया।
तुम घर चले जाओ।
बच्चा विद्यालय से लौट आया।
किशोर रोने लगा।
वह घर पहुँच गया।
माता जी बाजार से आ गई।

इस वाक्य में ‘आ’ मुख्य क्रिया है तथा ‘गई’ रंजक क्रिया। दोनों क्रियाएँ मिलकर संयुक्त क्रिया ‘आना’ का अर्थ दर्शा रही हैं।

विधि और आज्ञा को छोड़कर सभी क्रिया पद दो या अधिक क्रियाओं के योग से बनते हैं, किन्तु संयुक्त क्रियाएँ इनसे भिन्न है।

क्योंकि जहाँ एक ओर साधारण क्रिया पद ‘हो’, ‘रो’, ‘सो’, ‘लेना’, ‘पाना’, ‘पड़ना’, ‘डालना’, ‘सकना’, ‘चुकना’, ‘लगना’, ‘करना’, ‘भेजना’, ‘खा’ इत्यादि धातुओं से बनते है, वहाँ दूसरी ओर संयुक्त क्रियाएँ ‘होना’, ‘आना’, ‘जाना’, ‘रहना’, ‘रखना’, ‘उठाना’, ‘चाहना’ इत्यादि क्रियाओं के योग से बनती हैं।

इसके अतिरिक्त, सकर्मक तथा अकर्मक दोनों प्रकार की संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।

जैसे :

अकर्मक क्रिया से – लेट जाना, गिर पड़ना।
सकर्मक क्रिया से – बेच लेना, काम करना, बुला लेना, मार देना।

संयुक्त क्रिया की एक विशेषता यह है कि उसकी पहली क्रिया प्रायः प्रधान होती है और दूसरी उसके अर्थ में विशेषता उत्पन्न करती है।

जैसे : मैं पढ़ सकता हूँ।

इसमें ‘सकना’ क्रिया ‘पढ़ना’ क्रिया के अर्थ में विशेषता उत्पन्न करती है। हिन्दी में संयुक्त क्रियाओं का प्रयोग अधिक होता है।

संयुक्त क्रिया के भेद

अर्थ के अनुसार संयुक्त क्रिया के 11 भेद है।

(i). आरम्भ बोधक क्रिया

जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया के आरम्भ होने का बोध होता है, उसे आरम्भ बोधक संयुक्त क्रिया’ कहते हैं।

जैसे :

(ii). समाप्ति बोधक

जिस संयुक्त क्रिया से मुख्य क्रिया की पूर्णता, व्यापार की समाप्ति का बोध हो, वह ‘समाप्ति बोधक संयुक्त क्रिया’ है। धातु के आगे ‘चुकना’ जोड़ने से समाप्ति बोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।

जैसे :

(iii). अवकाश बोधक क्रिया

जिससे क्रिया को निष्पत्र करने के लिए अवकाश का बोध हो, वह ‘अवकाशबोधक संयुक्त क्रिया’ है।

जैसे : वह मुश्किल से सोने न पाया।

(iv). अनुमति बोधक क्रिया

जिससे कार्य करने की अनुमति दिए जाने का बोध हो, वह ‘अनुमति बोधक संयुक्त क्रिया’ है।

जैसे :

(v). नित्यता बोधक क्रिया

जिससे कार्य की नित्यता, उसके बन्द न होने का भाव प्रकट हो, वह ‘नित्यताबोधक संयुक्त क्रिया’ है।

जैसे :

मुख्य क्रिया के आगे ‘जाना’ या ‘रहना’ जोड़ने से नित्यताबोधक संयुक्त क्रिया बनती है।

(vi). आवश्यकता बोधक क्रिया

जिससे कार्य की आवश्यकता या कर्तव्य का बोध हो, वह ‘आवश्यकताबोधक संयुक्त क्रिया’ है।

जैसे :

साधारण क्रिया के साथ ‘पड़ना’ ‘होना’ या ‘चाहिए’ क्रियाओं को जोड़ने से आवश्यकताबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।

(vii). निश्चय बोधक क्रिया

जिस संयुक्त क्रिया से मुख्य क्रिया के व्यापार की निश्र्चयता का बोध हो, उसे ‘निश्र्चयबोधक संयुक्त क्रिया’ कहते हैं।

जैसे :

इस प्रकार की क्रियाओं में पूर्णता और नित्यता का भाव वर्तमान है।

(viii). इच्छा बोधक क्रिया

इससे क्रिया के करने की इच्छा प्रकट होती है।

जैसे :

वह घर आना चाहता है।
मैं खाना चाहता हूँ।

क्रिया के साधारण रूप में ‘चाहना’ क्रिया जोड़ने से इच्छा बोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।

(x). अभ्यास बोधक क्रिया

इससे क्रिया के करने के अभ्यास का बोध होता है। सामान्य भूतकाल की क्रिया में ‘करना’ क्रिया लगाने से अभ्यासबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।

जैसे :

(xi). शक्ति बोधक क्रिया

इससे कार्य करने की शक्ति का बोध होता है।

जैसे :

इसमें ‘सकना’ क्रिया जोड़ी जाती है।

(xii). पुनरुक्त संयुक्त क्रिया

जब दो समानार्थक अथवा समान ध्वनिवाली क्रियाओं का संयोग होता है, तब उन्हें ‘पुनरुक्त संयुक्त क्रिया’ कहते हैं।

जैसे :

(c). नाम धातु क्रियाएँ

क्रिया को छोड़कर दूसरे अन्य शब्दों (संज्ञा, सर्वनाम, एवं  विशेषण) से जो धातु बनते है उन्हें नामधातु क्रिया कहते है।  

संज्ञा अथवा विशेषण के साथ क्रिया जोड़ने से जो संयुक्त क्रिया बनती है, उसे ‘नामधातु क्रिया’ कहते हैं।

जैसे :

उपर्युक्त वाक्यों में हथियाना तथा अपनाना क्रियाएँ हैं और ये ‘हाथ’ संज्ञा तथा ‘अपना’ सर्वनाम से बनी हैं। अतः ये नामधातु क्रियाएँ हैं।

इस प्रकार, जो क्रियाएँ संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा अनुकरणवाची शब्दों से बनती हैं, वे नामधातु क्रिया कहलाती हैं।

संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा अनुकरणवाची शब्दों से निर्मित कुछ नामधातु क्रियाएँ इस प्रकार हैं :

जैसे : अपना, अपनान, गरम, गरमाना आदि।

(d). प्रेरणार्थक क्रिया

कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी अन्य से करवाता है उसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते है।

जिन क्रियाओ से इस बात का बोध हो कि कर्ता स्वयं कार्य न कर किसी दूसरे को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, वे प्रेरणार्थक क्रिया कहलाती है।

जैसे :

उपर्युक्त वाक्यों में मालिक तथा अध्यापिका प्रेरणा देने वाले कर्ता हैं। नौकर तथा छात्र को प्रेरित किया जा रहा है। अतः उपर्युक्त वाक्यों में करवाता तथा पढ़वाती प्रेरणार्थक क्रियाएँ हैं।

प्रेरणार्थक क्रिया में दो कर्ता होते हैं

प्रेरक कर्ता : प्रेरणा देने वाला।

जैसे : मालिक, अध्यापिका आदि।

प्रेरित कर्ता : प्रेरित होने वाला अर्थात जिसे प्रेरणा दी जा रही है।

जैसे : नौकर, छात्र आदि।

प्रेरणार्थक क्रिया के रूप

(i). प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया

इन वाक्यों में कर्ता प्रेरक बनकर प्रेरणा दे रहा है। अतः ये प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया के उदाहरण हैं। सभी प्रेरणार्थक क्रियाएँ सकर्मक होती हैं।

(ii). द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया

इन वाक्यों में कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी दूसरे को कार्य करने की प्रेरणा दे रहा है और दूसरे से कार्य करवा रहा है। अतः यहाँ द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया है।

याद रखने वाली बात यह है कि अकर्मक क्रिया प्रेरणार्थक होने पर सकर्मक (कर्म लेनेवाली) हो जाती है।

जैसे :

प्रेरणार्थक क्रियाएँ सकर्मक और अकर्मक दोनों क्रियाओं से बनती हैं। ऐसी क्रियाएँ हर स्थिति में सकर्मक ही रहती हैं।

जैसे :

पहले में कर्ता अन्य (कर्म) को हँसाता है और दूसरे में कर्ता दूसरे को किताब लिखने को प्रेरित करता है। इस प्रकार हिन्दी में प्रेरणार्थक क्रियाओं के दो रूप चलते हैं। प्रथम में ‘ना’ का और द्वितीय में ‘वाना’ का प्रयोग होता है- हँसाना- हँसवाना।

(e). पूर्व कालिक क्रिया

जब कोई कर्ता एक क्रिया समाप्त करके दूसरी क्रिया करता है तब पहली क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है।

जिस वाक्य में मुख्य क्रिया से पहले यदि कोई क्रिया हो जाए, तो वह पूर्वकालिक क्रिया कहलाती हैं।

दूसरे शब्दों में – जब कर्ता एक क्रिया समाप्त कर उसी क्षण दूसरी क्रिया में प्रवृत्त होता है तब पहली क्रिया ‘पूर्वकालिक’ कहलाती है।

जैसे :

उपर्युक्त वाक्यों में पूजा की तथा फोन किया मुख्य क्रियाएँ हैं। इनसे पहले नहाकर, पहुँचकर क्रियाएँ हुई हैं। अतः ये पूर्वकालिक क्रियाएँ हैं।

जैसे :
व्यक्ति ने भागकर बस पकड़ी।
छात्र ने पुस्तक से देखकर उत्तर दिया।
मैंने घर पहुँचकर चैन की साँस ली।
जैसे-चोर सामान चुराकर भाग गया।

सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं की पहचान

सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं की पहचान क्या, किसे या किसको आदि पश्र करने से होती है। यदि कुछ उत्तर मिले, तो समझना चाहिए कि क्रिया सकर्मक है और यदि न मिले तो अकर्मक होगी।

1. जैसे : राम फल खाता है।

प्रश्न : राम क्या खाता है?

उत्तर : फल

अतः ‘खाना’ क्रिया सकर्मक है।

2. सीमा रोती है।

प्रश्न : क्या सीमा रोती है?

उत्तर : नहीं

अतः इस वाक्य में ‘रोना’ क्रिया अकर्मक है।

उदाहरण : मारना, पढ़ना, खाना।

जरुर पढ़े :-

आशा है हिंदी व्याकरण के महत्वपूर्ण अध्याय क्रिया की समस्त जानकारी आपको पसंद आएगी।

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