प्रतिरोध की परिभाषा, मात्रक और प्रतिरोध के प्रकार

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चलिएकी परिभाषा, मात्रक और प्रतिरोध के प्रकार की समस्त जानकारी पढ़ते और समझते हैं।

प्रतिरोध की परिभाषा

जब किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो चालक विद्युत धारा के मार्ग में रुकावट पैदा करता हैं। इसे ही चालक का प्रतिरोध कहते है।

प्रतिरोध एक उपकरण या वस्तु होता है जिसे मुख्य रूप से विद्युत प्रवाह को बाधित करने के लिए डिज़ाइन किया गया हैं।

इसे पैसिव टू-टर्मिनल डिवाइस के रूप में जाना जाता है जो करंट-फ्लो को रेगुलेट करने में मदद करता है।

एक प्रतिरोधी में आम तौर पर प्रतिरोध की एक विशेष मात्रा होती है जिसके माध्यम से यह विद्युत प्रवाह का विरोध करता है।

कुछ पदार्थ अपने से होकर दूसरे पदार्थों की अपेक्षा कम धारा प्रवाहित होने देते हैं।

दूसरे शब्दों में कुछ पदार्थ धारा के प्रवाह में अन्य पदार्थों की तुलना में अधिक प्रतिरोध उत्पन्न करते हैं। 

इससे प्रतिरोध की परिभाषा निकलती है कि, किसी पदार्थ का वह गुण जो उससे होकर धारा के प्रवाह का विरोध करता है, उस पदार्थ का विद्युत प्रतिरोध या केवल प्रतिरोध कहलाता है।

निश्चित विभवान्तर पर किसी चालक से कम धारा प्रवाहित होती है तो चालक का प्रतिरोध अधिक होता है। इसके विपरीत यदि चालक से अधिक धारा प्रवाहित होती है तो चालक का प्रतिरोध कम होता है।

किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित करने के लिए उसके सिरों के बीच विभवांतर उत्पन्न करना आवश्यक है। किसी चालक का प्रतिरोध उसके सिरों के बीच विभवांतर और उस में प्रवाहित धारा का अनुपात होता है।

प्रतिरोध = विभवान्तर /धारा
R = V/I

जहां,

R – वस्तु का प्रतिरोध है, जो ओह्म में मापा गया हैं।
V – वस्तु के आर-पार का विभवांतर हैं। जो वोल्ट में मापा गया।
I – वस्तु से होकर जाने वाली विद्युत धारा हैं। जिसे एम्पीय़र में मापा गया हैं।

प्रतिरोध का SI मात्रक

प्रतिरोध का SI मात्रक ओम (ohm) होता है जिसे ग्रीक भाषा के बड़े अक्षर (Ω) के द्वारा दर्शाया जाता है।

ओम का नाम जर्मन भौतिक विज्ञानी जॉर्ज साइमन ओम (1784-1854) के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने वोल्टेज, करंट और प्रतिरोधक के बीच संबंधों का अध्ययन किया था। “जॉर्ज साइमन” को ओम का नियम बनाने का श्रेय दिया जाता है।

1 एम्पियर की परिभाषा

यदि किसी चालक के सिरों पर 1 वोल्ट का विभवांतर लगाने से चालक में 1 एंपियर की धारा प्रवाहित हो, तो चालक का प्रतिरोध 1 ओम कहा जाता है।

विभवांतर का SI मात्रक वोल्ट (V) होता है तथा धारा का SI मात्रक एंपियर (A) होता है, इसलिए 

1 ओम = 1 वोल्ट = 1 एम्पियर

प्रतिरोध के प्रकार

विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स में विभिन्न प्रकार के प्रतिरोधकों का उपयोग किया जाता है। प्रत्येक की अपनी विशेषताएं, अनुप्रयोग और लाभ हैं। 

विभिन्न प्रतिरोधक अपने निर्माण, आकार, बिजली रोकने की क्षमता के स्तर में भिन्न होते हैं। हालाँकि, सबसे सामान्य प्रकार के प्रतिरोधों को मोटे तौर पर निम्नलिखित दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है।

  • रैखिक प्रतिरोधी
  • अरैखिक प्रतिरोधी

1. रैखिक प्रतिरोधी

रैखिक प्रतिरोधक में तापमान और वोल्टेज में उतार-चढ़ाव होता है। अधिकांश प्रतिरोधक रैखिक होते हैं, और जब उनके बीच विद्युत प्रवाह होता है तो वह वोल्टेज ड्रॉप उत्पन्न करते हैं। 

रैखिक प्रतिरोधों को आगे निम्नलिखित दो प्रकारों में विभाजित किया गया है।

  • फिक्स्ड रेसिस्टर
  • परिवर्ती अवरोधक

(a). निश्चित प्रतिरोधी

फिक्स्ड रेसिस्टर्स सबसे सामान्य प्रकार के रेसिस्टर्स हैं। इन प्रतिरोधों का उपयोग मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में सर्किट के भीतर सही परिस्थितियों को कॉन्फ़िगर करने के लिए किया जाता है। 

निश्चित प्रतिरोधों की मुख्य विशेषताओं में से एक यह है कि उनका मान निश्चित (स्थिर प्रतिरोध मान) होता है और इसे बदला नहीं जा सकता है।

निश्चित प्रतिरोधों के निर्माण के लिए प्रतिरोधी सामग्रियों की एक विस्तृत श्रृंखला का उपयोग किया जाता है। 

(b). परिवर्तनीय प्रतिरोधी

परिवर्तनीय प्रतिरोधों में प्रतिरोध मान को बदला जा सकता है। परिवर्तनीय प्रतिरोध में निश्चित प्रतिरोध कंपोनेंट्स और एक स्लाइडिंग आर्म होता है जो आमतौर पर मुख्य रेसिस्टर कंपोनेंट पर टैप करता है। 

यह अंततः डिवाइस में तीन कनेक्शन जोड़ता है, जैसे स्लाइडर से जुड़ा एक कनेक्शन और निश्चित कंपोनेंट से जुड़े दो कनेक्शन। ऐसा करने से डिवाइस एक परिवर्तनीय प्रतिरोध के रूप में कार्य करता है।

2. गैर-रैखिक प्रतिरोधी

नो-लीनियर रेसिस्टर्स वैसे रेसिस्टर्स होते हैं जिनमें उनके माध्यम से बहने वाली धारा केवल वोल्टेज या तापमान में परिवर्तन के साथ बदलती है।

यह प्रतिरोधक आमतौर पर ओम के नियम का पालन नहीं करते हैं, और प्रतिरोधों के माध्यम से बहने वाली धारा इसके अनुसार नहीं बदलती है।

गैर-रैखिक प्रतिरोधों को आगे निम्न प्रकारों में विभाजित किया गया है।

(a). Thermistor

थर्मिस्टर्स उन प्रकार के प्रतिरोधक होते हैं जिनमें तापमान में परिवर्तन के साथ प्रतिरोध में महत्वपूर्ण परिवर्तन होता है। इन प्रतिरोधों का प्रतिरोध दिए गए तापमान के व्युत्क्रमानुपाती होता है। 

दो सबसे आम थर्मिस्टर्स हैं NTC और PTC थर्मिस्टर्स। NTC थर्मिस्टर्स में तापमान बढ़ने पर उनका प्रतिरोधक कम हो जाता है।

इसके अलावा, PTC थर्मिस्टर्स में तापमान बढ़ने पर उनका प्रतिरोधक बढ़ जाता है। थर्मिस्टर्स मुख्य रूप से थर्मल सुरक्षा या तापमान सेंसर के रूप में उपयोग किए जाते हैं।

(b). फोटो प्रतिरोधी / LDR

LDR का पूरा नाम Light Dependent Resistors होता है। इन्हें फोटोरेसिस्टर्स भी कहा जाता है। यह ऐसे प्रतिरोधक होते हैं जिनमें प्रतिरोध प्रकाश के स्तर के साथ बदलता है। 

इसके अलावा, जब प्रकाश की तीव्रता बढ़ जाती है तो प्रतिरोधक काफी कम हो जाता है। यह आमतौर पर प्रकाश या अंधेरे में अंतर करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। यह रात को ऑटोमैटिक रूप से स्ट्रीट लाइट चालू करने में मदद करते हैं। 

(c). Varistor Resistor

varistor Resistor वोल्टेज के अनुसार उनके प्रतिरोध को बदल सकते हैं। कई प्रकार के varistor हैं। हालांकि, MOV (मेटल ऑक्साइड वेरिस्टर) वैरिस्टर का सबसे आम और बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाने वाला रूप है।

(d). Surface Mount Resistor

सरफेस-माउंट रेसिस्टर्स, जिन्हें संक्षेप में SMD भी कहा जाता है। यह प्रतिरोधक छोटे होते हैं। SMD रेसिस्टर्स को मुख्य रूप से सरफेस माउंट टेक्नोलॉजी (SMT) के साथ उपयोग करने के लिए विकसित किया गया है।

चालक और प्रतिरोध

बहुत कम प्रतिरोध वाले पदार्थों को जिनमें से आवेश आसानी से प्रवाहित होता है चालक कहा जाता है। जैसे चांदी तांबा लोहा इत्यादि।

उच्च प्रतिरोध वाले पदार्थों को प्रतिरोधक कहा जाता है। बहुत ही अधिक प्रतिरोध वाले पदार्थों को जिनसे आवेश प्रवाहित नहीं हो पाता विद्युत रोधी कहते हैं। रबड़, प्लास्टिक, एबोनाइट, लकड़ी इत्यादि विद्युत रोधी पदार्थ है।

चालक तार का प्रतिरोध

किसी चालक तार का प्रतिरोध निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता हैं।

1. तार की लंबाई पर :- किसी तार का प्रतिरोध उसकी लंबाई के समानुपाती होता है। अर्थात तार की लंबाई जितनी अधिक होगी उसका प्रतिरोध उतना ही अधिक होगा।

2. तार की मोटाई पर :- किसी तार का प्रतिरोध उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है। अर्थात तार जितना ही मोटा होगा उसका प्रतिरोध उतना ही कम होगा और तार जितना ही पतला होगा उसका प्रतिरोध उतना ही अधिक होगा।

3. चालक के पदार्थ पर :- यदि विभिन्न पदार्थों के तार समान लंबाई और समान मोटाई के हो तो, उनके प्रतिरोध अलग अलग होंगे।

4. चालक के ताप पर :- ताप बढ़ने से चालक का प्रतिरोध बढ़ता है।

प्रतिरोधकता क्या हैं

प्रतिरोधकता पदार्थों का एक महत्वपूर्ण गुण है। धातु और मिश्र धातु की प्रतिरोधकता बहुत कम होती है जबकि विद्युत रोधी पदार्थों की प्रतिरोधकता का मान अत्यधिक होता है। 

उदाहरण के लिए चांदी की प्रतिरोधकता अन्य सभी पदार्थों की तुलना में सबसे कम है। अतः इन सभी में चांदी सबसे अच्छा चालक है।

और लोहा से पारे की प्रतिरोधकता अधिक होती है। अतः पारे की अपेक्षा लोहा अधिक अच्छा विद्युत चालक है।

प्रतिरोधकता का SI मात्रक 

प्रतिरोधकता का SI मात्रक = (प्रतिरोध का SI मात्रक) (क्षेत्रफल का SI मात्रक)/(लंबाई का SI मात्रक)

= Ω m²/m
= Ωm

धातु, मिश्र धातु और विद्युत रोधी पदार्थों की प्रतिरोधकता 

धातु (Metals)

एल्यूमीनियम2.45 × 10⁻⁸ 
लोहा10 × 10⁻⁸
तांबा1.56 × 10⁻⁸
चांदी1.51 × 10⁻⁸
निकेल6.1 × 10⁻⁸
पारा94.1 × 10⁻⁸
क्रोमियम12.7 × 10⁻⁸
टंगस्टन4.9 × 10⁻⁸
मैंगनीज1.84 × 10⁻⁶

मिश्रधातु  (Alloys)

कांसटैंन्टन49 × 10
मैंगनीन41.5 × 10
नाइक्रोम111 × 10

विद्युत रोधी  (Insulators)

कांच 2 × 10¹¹
एबोनाइट2 × 10¹⁴
अबरक (Mica)2 × 10¹⁵
हीरा5 × 10¹²
रबर1 × 10¹⁶

प्रतिरोधको का समूहन

दो या दो से अधिक प्रतिरोध को एक दूसरे से मिलाने की क्रिया को प्रतिरोधको का समुहन कहते हैं। इसे कई विधियों द्वारा जोड़ा जा सकता है। इनमें दो विधियां मुख्य है।

1. श्रेणी क्रम समूहन

श्रेणी क्रम में जुड़े हुए प्रतिरोधको का समतुल्य प्रतिरोध (Equivalent Resistance) उन प्रतिरोधको के अलग-अलग प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है।

श्रेणी क्रम समूह में सभी प्रतिरोधको में एक ही धारा प्रवाहित होती है, लेकिन उनके सिरों के बीच विभवांतर उनके प्रतिरोधों के अनुसार अलग-अलग होता है।

किसी एक प्रतिरोधोंको को परीपथ से हटा दिए जाने पर बचे हुए प्रतिरोधको से प्रवाहित होने वाली धारा शुन्य हो जाती है।

2. पार्श्वक्रम या समांतर क्रम समूहन

पार्श्वक्रम या समांतर क्रम में जुड़े प्रतिरोधको के समतुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम उन प्रतिरोधको के अलग-अलग प्रतिरोधों के व्युत्क्रमाें के योग के बराबर होता है।

समांतर क्रम समूहन में सभी प्रतिरोधको के सिरो के बीच एक ही विभवांतर होता है, लेकिन उनके प्रतिरोधों के मान के अनुसार उनमें अलग-अलग धारा प्रवाहित होती है।

इसमें किसी एक प्रतिरोधक को परिपथ से हटा दिए जाने पर भी बचे हुए अन्य प्रतिरोधको से धारा प्रवाहित होती रहती है।

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