रक्षाबंधन का त्यौहार क्यों मनाया जाता हैं

रक्षाबंधन का त्यौहार हिन्दू और जैन धर्म के लोग प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मानते हैं।

रक्षाबंधन का त्यौहार मानते तो सभी लोग हैं लेकिन क्या आपके दिमाक में यह विचार आया की रक्षाबंधन मनाने के पीछे क्या मान्यता हैं।

तो आज के इस आर्टिकल में जान लेते हैं कि क्यों मनाया जाता हैं रक्षाबंधन का पावन त्यौहार चलिए पढ़ना शुरू करते हैं।

रक्षाबंधन

रक्षाबंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता हैं। यह त्यौहार श्रावण मास में मनाया जाता हैं इसलिए इसे श्रावणी, सावनी या सलूनो आदि नामों से जाना जाता हैं।

रक्षाबंधन के त्यौहार में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व हैं। फिर चाहे राखी कच्चे सूत्र जैसे सस्ती वस्तु की हो या फिर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा चाँदी या सोने जैसी मंहगी धातु की हो।

रक्षाबंधन भाई बहन के पवित्र रिश्ते का त्यौहार होता हैं। “रक्षा” का मतलब “सुरक्षा” और “बंधन” का मतलब “बाध्य” होता हैं।

2024 में रक्षाबंधन कब है

2024 में रक्षाबंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को 19 अगस्त दिन सोमवार को मनाया जाएगा।

रक्षाबंधन का महत्व

रक्षाबंधन के दिन लड़कियाँ एवं महिलाएँ प्रातः स्नान करके नए कपड़े पहनती हैं उसके बाद पूजा की थाली सजाती हैं।

थाली में राखी के साथ रोली या हल्दी, चावल, दीपक, मिठाई, नारियल और कुछ पैसे रखती हैं।

लड़के और पुरुष तैयार होकर टीका करवाने के लिये पूजा या किसी अन्य स्थान पर बैठते हैं।

सबसे पहले अभीष्ट देवता की पूजा की जाती है उसके बाद रोली या हल्दी से भाई का टीका करके चावल का टीका लगाया जाता है।

भाइयों के सिर पर रुमाल उड़ाया है बहिनें अपने भाइयों की आरती उतारी है और दाहिनी कलाई पर राखी बाँधी जाती है और पैसों से न्यौछावर करके उन्हें गरीबों में बाँट दिया जाता है।

भारत के अनेक प्रान्तों में भाई के कान के ऊपर भोजली या भुजरियाँ लगाने की प्रथा भी है।

भाई अपनी बहन को नेग के तौर पर उपहार या पैसे देता है। इस प्रकार रक्षाबन्धन के अनुष्ठान को पूरा करने के बाद ही भोजन किया जाता है।

प्रत्येक त्यौहार की तरह उपहारों और खाने-पीने के विशेष पकवानों का महत्त्व रक्षाबन्धन में भी होता है।

पुरोहित तथा आचार्य सुबह-सुबह यजमानों के घर पहुँचकर उन्हें राखी बाँधते हैं और बदले में धन, वस्त्र और भोजन आदि प्राप्त करते हैं।

यह पर्व भारतीय समाज में इतनी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है कि इसका सामाजिक महत्त्व तो है। साथ ही इस त्यौहार का महत्व धर्म, पुराण, इतिहास, साहित्य और फिल्मों में भी दिखाई देता हैं।

रक्षा बंधन का त्यौहार क्यों मानते हैं

रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को दर्शाता हैं बहिन अपने भाई के दाएं हाथ पर राखी बांधकर एवं माथे पर तिलक करके उनकी दीर्घ आयु की कामना करती हैं और भाई अपनी बहिन से जिंदगी भर उनकी रक्षा करने का वादा करता हैं।

माना जाता हैं कि राखी के रंगबिरंगे धागे भाई बहन के प्यार के बंधन को मजबूत करते हैं। रक्षाबंधन का यह पावन त्यौहार भाई-बहन के प्यार को आदर सम्मान देता हैं।

रक्षाबंधन का त्यौहार सगे भाई-बहन ही नहीं बल्कि लड़कियां अपने ब्राह्मणों, गुरुओं, पड़ोसियों, सगे संबंधी भाइयों एवं परिवार की लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बन्धियो जैसे पुत्री अपने पिता या दादा को बाधती हैं।

सार्वजनिक रूप से कभी कभी अपने स्कूल के टीचर्स, क्लासमेट, किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बांधी जाती हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, राखी का त्यौहार कब से आरम्भ हुआ यह कोई नहीं जानता लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन मिलता हैं कि जब देवता और दानव का युद्ध शुरू हुआ तो दानव देवता पर हावी होने लगें।

देवता इन्द्र घबरा गए और बृहस्पति के पास गए और अपनी समस्या बृहस्पति को बताई वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया।

संयोग से उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे।

उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है।

वामनावतार नामक कथा के अनुसार, स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है।

कथा इस प्रकार है कि एक दानवेन्द्र नामक राजा बलि थे उन्होंने 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की।

तब भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे। राजा बलि को गुरुदेव ने मना किया लेकिन राजा बलि नहीं माने और राजा बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी।

भगवान वामन ने एक पग में सारा आकाश दूसरे पग में पाताल और तीसरे पग में धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया।

इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्यौहार बलेव नाम से भी प्रसिद्ध है।

मान्यता हैं कि एक बार बलि रसातल में चला गया तब बलि ने रात दिन भगवान विष्णु की तपस्या की और अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। और भगवान रात दिन बलि के साथ रहने लगे।

भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षा सूत्र बांधकर अपना भाई बनाया। अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा कि तिथि थी।

जरुर पढ़िए : रक्षाबंधन पर निबंध

रक्षाबंधन का इतिहास

रक्षाबंधन का त्यौहार भारत में धूमधाम से बनाया जाता हैं यह त्यौहार हर एक व्यक्ति चाहे हो गरीब हो या अमीर सभी सेलिब्रेट करते हैं।

सभी त्यौहारों के पीछे एक इतिहास होता हैं रक्षाबंधन पर्व के पीछे भी इतिहास की कुछ कथाएं और कहानियां हैं जो काफी लोकप्रिय हैं।

चलिए रक्षाबंधन से संबंधित ऐतिहासिक कहानियों को पढ़ते हैं।

1. कृष्ण और द्रौपदी की कहानी

इतिहास मे कृष्ण और द्रौपदी की कहानी प्रसिद्ध है, जिसमे युद्ध के समय श्री कृष्ण की उंगली घायल हो गई जिससे श्री कृष्ण की घायल उंगली पर द्रौपदी ने अपनी साड़ी मे से एक टुकड़ा फाड़ कर श्रीकृष्ण के हाथ पर बाँध दिया था।

इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट मे द्रौपदी की सहायता करने का वचन दिया था।

2. संतोषी माँ की कहानी

भगवान गणेश के दो पुत्र शुभ और लाभ इस बात पर परेशान थे कि उनकी कोई बहन नहीं थी इसलिए उन्होंने अपने पिता गणेश जी से बहन लाने की जिद की।

महार्षि नारद जी के कहने पर गणेश जी ने अपनी शक्ति से संतोषी माता को उत्पन्न किया तब संतोषी ने अपने दोनों भाई शुभ लाभ को राखी बांधी थी संयोगवश उस समय श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था।

3. यम और यमुना की कहानी

पौराणिक कथा के अनुसार मृत्यु के देवता यम लगभग 12 वर्षों तक अपनी बहन यमुना के पास नहीं गए इसलिए यमुना कॉफी दुःखी थीं।

गंगा जी ने यम को परामर्श दिया कि यमुना काफी दुःखी हैं आपको अपनी बहन से मिलने जाना चाहिए तब यम ने बहन से मिलने का निश्चय किया।

यम अपनी बहन के पास गए तो यमुना अपने भाई को देखकर बहुत खुश हुई यमुना ने अपने भाई का बहुत ख्याल रखा जिससे प्रश्नन होंगे यम ने अपनी बहन यमुना से कहाँ बताओ तुम्हें क्या चाहिए।

यमुना ने कहाँ भैया मुझे आप से बार बार मिलना हैं कम से कम साल में एक बार तो हम मिल ही सकते हैं यह सुनकर यम ने उनकी इच्छा पूर्ण की और यमुना हमेशा के लिए अमर हो गई।

4. रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूँ की कहानी

रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूँ की कहानी उस समय की हैं जब राजपूतों को मुसलमान राजाओं के साथ अपना राज्य बचाने के लिए युद्ध करना पड़ रहा था।

चितोर की रानी कर्मावती थी जो एक विधवा रानी थी कर्मावती के राज्य पर गुजरात के सुल्तान बहादुर साह ने हमला कर दिया।

रानी कर्मावती अपने राज्य को बचा सकने में असमर्थ होने लगी जिसपर उन्होंने अपनी रक्षा करने के लिए एक राखी सम्राट हुमायूँ को भेजी।

हुमायूँ ने अपनी बहन की रक्षा करने करने के लिए अपनी एक सेना की टुकड़ी चित्तोर भेज दी जिससे बहादुर साह को पीछे हटना पड़ा और रानी कर्णावती युद्ध जीत गई।

5. सम्राट एलेग्जेंडर और सम्राट पुरु

यह इतिहास की सबसे पुरानी 300 BC की कहानी हैं उस समय एलेग्जेंडर भारत जीतने के लिए अपनी पूरी सेना के साथ भारत आया था।

उस समय भारत में सम्राट पुरु का राज्य था और सम्राट पुरु काफी प्रसिद्ध था एलेग्जेंडर कभी किसी से नहीं हारा लेकिन सम्राट पुरु की सेना ने उसे पीछे कर दिया।

जब एलेग्जेंडर की पत्नि को रक्षाबंधन के त्यौहार के बारे में पता चला तो उन्होंने पुरु के लिए रखी भेजी जिससे वो एलेग्जेंडर को जान से ना मारे इसलिए सम्राट पुरु ने बहन का कहना मानते हुए एलेग्जेंडर पर हमला नहीं किया।

जरूर पढ़िए :

इस पेज पर आपने रक्षाबंधन के त्यौहार की समस्त जानकारी पढ़ी, उम्मीद हैं आपको यह जानकारी पसंद आयी होगीं।

यदि आपको रक्षाबंधन की यह पोस्ट पसंद आयी हो तो इसे अपने परिजनों के साथ शेयर कीजिए।

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.