नवरात्रि क्या हैं एवं नवरात्रि का पर्व क्यों मनाया जाता हैं

हम बचपन से नवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाते आ रहे हैं नवरात्रि शुरू होते ही हमारा दिमाक देवी-दुर्गा की पुर्जा, अर्चना, भक्ति और व्रत में लग जाता हैं।

लेकिन सभी के मन में यह ख्याल आता है कि नवरात्रि का त्यौहार क्यों मनाया जाता हैं इस त्यौहार को मनाने के पीछे क्या मान्यता हैं? तो चलिए आज इस आर्टिकल के माध्यम नवरात्रि पर्व की समस्त जानकारी को समझ लेते है।

पिछले पेज पर हमने होली के त्यौहार की जानकारी शेयर की हैं यदि आप जानना चाहते हैं कि होली क्यों मनाते हैं तो होली की पोस्ट को जरूर पढ़िए।

नवरात्रि

नवरात्रि हिंदुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। नवरात्रि शब्द एक “संस्कृत” शब्द है, जिसका अर्थ ‘नौ रातें’ होता हैं। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान देवी शक्ति के नौ रूपों की पूजा की जाती है।

नवरात्रि का दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि प्रत्येक वर्ष में चार बार आता है। पौष, चैत्र, आषाढ,अश्विन मास में प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है।

नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियाँ – महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और महाकाली के नौ स्वरुपों की पूजा होती है। जिनके नाम और स्थान क्रमशः इस प्रकार है।

  • नंदा देवी योगमाया (विंध्यवासिनी शक्तिपीठ),
  • रक्तदंतिका (सथूर),
  • शाकम्भरी (सहारनपुर शक्तिपीठ),
  • दुर्गा (काशी),
  • भीमा (पिंजौर)
  • भ्रामरी (भ्रमराम्बा शक्तिपीठ)

इन्हें नवदुर्गा कहते हैं। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण हिन्दू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है जिसे पूरे भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है।

नौ देवियों के नाम

  • शैलपुत्री का अर्थ – पहाड़ों की पुत्री
  • ब्रह्मचारिणी का अर्थ – ब्रह्मचारीणी
  • चंद्रघंटा का अर्थ – चाँद की तरह चमकने वाली
  • कूष्माण्डा का अर्थ – पूरा जगत उनके पैर में है
  • स्कंदमाता का अर्थ – कार्तिक स्वामी की माता
  • कात्यायनी का अर्थ – कात्यायन आश्रम में जन्मि
  • कालरात्रि का अर्थ – काल का नाश करने वाली
  • महागौरी का अर्थ – सफेद रंग वाली मां
  • सिद्धिदात्री का अर्थ – सर्व सिद्धि देने वाली

नौ देवियों की यात्रा भी की जाती है जो माँ दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों व अवतारों का प्रतिनिधित्व करती है। चलिए उसे भी जान लेते हैं माँ दुर्गा के दर्शन आप किस रूप में कर सकते हैं।

दुर्गा देवी का स्वरूपराज्य
माता वैष्णो देवीजम्मू कटरा
माता चामुण्डा देवीहिमाचल प्रदेश
माँ वज्रेश्वरी कांगड़ा वालीहिमाचल प्रदेश
माँ ज्वालामुखी देवीहिमाचल प्रदेश
माँ चिंतापुरनी उनाहिमाचल प्रदेश
माँ नयना देवीबिलासपुर
माँ मनसा देवीपंचकुला
माँ कालिका देवीकालका
माँ शाकम्भरी देवीसहारनपुर

नवरात्रि का पर्व भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है।

गुजरात में नवरात्रि के पर्व को बड़े स्तर पर मनाया जाता है। गुजरात में नवरात्रि समारोह डांडिया और गरबा के रूप में जाना जाता है। गुजरात मे गरबा और डांडिया पूरी रात चलता है।

डांडिया का अनुभव बड़ा ही असाधारण है। देवी के सम्मान में भक्ति प्रदर्शन के रूप में गरबा, ‘आरती’ से पहले किया जाता है और डांडिया समारोह आरती के बाद किया जाता हैं।

पश्चिम बंगाल के राज्य में बंगालियों के मुख्य त्यौहारो में दुर्गा पूजा का उल्लेख बंगाली कैलेंडर में मिलता हैं।

इस अदभुत उत्सव का जश्न नीचे दक्षिण, मैसूर के राजसी क्वार्टर को पूरे महीने प्रकाशित करके मनाया जाता है।

2024 में नवरात्रि कब है

एक साल में दो नवरात्रि पढ़ती हैं पहली को चैत्र मास की नवरात्रि और दूसरी को शरद मास की नवरात्रि के नाम से जाना जाता हैं।

नवरात्रि का त्यौहार एक साल में दो बार मनाने के पीछे कथाओं का उल्लेख पुराणों में मिलता हैं।

ऐसा माना जाता हैं कि राम भगवान के जन्म से पहले सिर्फ चैत्र नवरात्र ही मनाए जाते थे जो ग्रीष्मकाल प्रारम्भ होने से पहले मनाए जाते थे।

लेकिन जब श्रीराम ने रावण का वध किया और लंका पर विजय प्राप्त की इसी विजय की उपलब्धि में श्रीराम नवरात्रि में एक विशाल दुर्गा पूजा का आयोजन करना चाहते थे। और माँ का आशीर्वाद लेना चाहते थे लेकिन चैत्र की नवरात्रि आने में काफी समय था।

इसलिए श्रीराम ने शरद ऋतु में ही एक विशाल दुर्गा पूजन का आयोजन किया और विधि विधान से दुर्गा पूजा की इसलिए तभी से साल में दो बार नवरात्रि का पावन पर्व मनाया जाता हैं।

2024 में चैत्र की नवरात्रि – 09 अप्रैल 2024 दिन मंगलवार से प्रारम्भ होगी एवं 17 अप्रैल दिन बुधवार को समाप्त होगी।

2024 में शरद नवरात्रि – 3 अक्टूबर दिन गुरुवार से प्रारम्भ होगी एवं 12 अक्टूबर दिन शनिवार को समाप्त होगी।

नवरात्रि की पूजन विधि

नवरात्रि में 9 दिनों तक माता के विभिन्न स्वरूपों की उपासना की जाती हैं माता रानी की सच्चे मन से आराधना करने से व्यक्ति के सारे दुःख दूर हो जाते हैं।

जो भक्त माता रानी के 9 दिन के व्रत रखते हैं वो लोग अपने घर की साफ-सफाई कर पूरे घर में गौ मूत्र और गंगाजल का छिड़काव करते हैं। प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनते हैं।

वेदी पर या पूजा स्थान पर पृथ्वी का पूजन कर सोने, चाँदी, तांबे या मिट्टी का कलश स्थापित करें। कलश में आम के हरे पत्ते, दूर्वा, पंचामृत डालकर कलश के मुख पर सूत्र बांधे।

कलश स्थापना के बाद गणेश भगवान की पूजा करना चाहिए क्योंकि गणेश भगवान का सबसे पहले पूजन होता हैं।

गणेश भगवान की पूजा के बाद वेदी पर देवी की किसी धातु, पाषण, मिट्टी या चित्रमूर्ति को विधि-विधान से विराजमान करें।

माता रानी की मूर्ति का आसन, पाद्य, अर्द्ध, आचमय, स्नान, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, पुष्पांजलि, चुंदड़ी चढ़ाते हैं एवं 9 दिनों तक अखंड जोत जलाए।

इसके बाद दुर्गा चालीसा का पाठ एवं माता रानी की आरती गाए और माँ दुर्गा को भोग लगा कर परिजनों को प्रसाद वितरित करें। नवरात्रि में 9 दिन माता रानी के भजन गाना चाहिए जिससे मन प्रसश्न रहता हैं।

नवरात्रि में कन्या भोजन जरूर करवाना चाहिए तभी नवरात्रि में व्रत रखने का पूरा फल मिलता हैं। कन्या भोजन करवा कर ही 9वें दिन भोजन ग्रहण करना चाहिए।

माता रानी के भक्त श्रद्धा भक्ति से मातारानी की पूजा हैं। माता रानी अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं।

नवरात्रि की आरती

नवरात्रि में देवी दुर्गा की पूजा अर्चना के समय माता रानी की आरती गायी जाती हैं यदि आपको मातारानी की आरती नहीं आती तो नीचे देवीयों की आरती का संग्रह दिया गया हैं जिसे पढ़कर आप पूजा के समय आरती गाकर मातारानी को प्रसश्न कर सकती/सकते हैं।

लक्ष्मी माता की आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निस दिन सेवत हर-विष्णु-धाता॥ ॐ जय…

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ॐ जय…

तुम पाताल-निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता॥ ॐ जय…

तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता॥ ॐ जय…

जिस घर में तुम रहती, तहं सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता॥ ॐ जय…

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।
खान-पान का वैभव सब तुमसे आता॥ ॐ जय…

शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता॥ ॐ जय…

महालक्ष्मीजी की आरती, जो कई नर गाता।
उर आनन्द समाता, पाप शमन हो जाता॥ ॐ जय…

अम्बे माता की आरती

अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली।।
तेरे ही गुण गाये भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।।

तेरे भक्त जनो पर माता, भीर पड़ी है भारी मां।।
दानव दल पर टूट पड़ों, मां करके सिंह सवारी।।

सौ-सौ सिंहो से हैं बलशाली, अष्ट भुजाओ वाली।।
दुष्टो को पलमे संहारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।।

अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली।।
तेरे ही गुण गाये भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।।

मां बेटे का है इस जग में, बड़ा ही निर्मल नाताद्ध माँ।।
पूत कपूत सुने है पर न, माता सुनी कुमाता।।
सब पे करूणा दरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली।।
दुखियो के दुखडे निवारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।।

अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली।।
तेरे ही गुण गाये भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।।

नहीं मांगते धन और दौलत, न चांदी न सोना मां।।
हम तो मांगे मां तेरे मन में, इक छोटा सा कोना।।
सबकी बिगड़ी बनाने वाली, लाज बचाने वाली।।
सतियों के सत को सवांरती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।।

अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली।।
तेरे ही गुण गाये भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।।

एक छोटा सा परिवार हमारा, उसे बनाए रखना माँ।।
इस बगिया मैं फूल खिले सदा खिलाए रखना माँ।।

अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली।।
तेरे ही गुण गाये भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।।

अम्बे गौरी की आरती

जय अम्बे गौरी मैया जय श्याम गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥

मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै॥जय॥

केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥

कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥

शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥

चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥

भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥

श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥

दुर्गा चालीसा

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी।।

निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी।।

शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला।।

रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे।।

तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना।।

अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला।।

प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी।।

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें।।

रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।।

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा।।

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो।।

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं।।

क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा।।

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी।।

मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता।।

श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी।।

केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी।।

कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै।।

सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला।।

नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुंलोक में डंका बाजत।।

शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे।।

महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी।।

रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा।।

परी गाढ़ संतन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब।।

अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका।।

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी।।

प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें।।

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई।।

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी।।

शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो।।

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको।।

शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो।।

शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी।।

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा।।

मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो।।

आशा तृष्णा निपट सतावें। रिपू मुरख मौही डरपावे।।

शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी।।

करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।।

जब लगि जिऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं।।

दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै।।

देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी।।

नवरात्रि की कथा

जब लंका में रावण और श्रीराम का युद्ध होने वाला था तब ब्रह्माजी ने श्रीराम से चण्डी देवी का पूजन कर देवी को प्रसश्न करने को कहा।

ब्रह्माजी के बताए अनुसार श्रीराम ने चण्डी पूजन और हवन करने के लिए दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गई।

दूसरी तरफ रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय प्राप्त करने के लिए चण्डी पाठ प्रारम्भ किया।

जब यह बात इंद्र देव को पता चली तो उन्होंने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास यह बात पहुँचाई और श्रीराम को परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासभंव पूर्ण होने दिया जाए।

जिस जगह श्रीराम पूजा और हवन कर रहे थे वहीं हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा।

श्रीराम को इस बात का डर था कि कहीं देवी माँ रुष्ट न हो जाएँ। दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल होना असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग ‘कमलनयन नवकंच लोचन’ कहते हैं।

तो क्यों न संकल्प पूर्ति के लिए मेरा एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तभी देवी माँ प्रकट हो गयी।

भगवान श्रीराम का हाथ पकड़कर माँ देवी ने कहा – राम मैं तुम से प्रसन्न हूँ और तुम्हें विजयश्री का आशीर्वाद देती हूँ इतना बोलकर माँ चण्डी गायब हो गयी।

रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धारण कर हनुमानजी सेवा में जुट गए। निःस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमानजी से वर माँगने को कहा।

इस पर हनुमानजी ने विनम्रतापूर्वक कहा – प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए। ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया।

ब्राम्हण मंत्र में जयादेवी भूर्तिहरिणी मंत्र का जाप कर रहे थे हनुमानजी ने भूर्तिहरिणी में ‘ह’ के स्थान पर ‘क’ उच्चारित करने को कहाँ और बोला यही मेरी इच्छा है।

भूर्तिहरिणी का मतलब प्राणियों की पीड़ा हरने वाली होता हैं और ‘करिणी’ का अर्थ प्राणियों को पीड़ित करने वाली होता हैं इस जाप से देवी माँ रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया।

हनुमानजी महाराज ने श्लोक में ‘ह’ की जगह ‘क’ करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी और रावण का सर्वनाश करवा दिया।

नवरात्रि से जुड़ी एक पौराणिक कथा

महिषासुर नाम का एक बहुत ही बड़ा शक्तिशाली राक्षस था वो अमर होना चाहता था इसी इच्छा से महिषासुर ने ब्रह्माजी की कठोर तपस्या की।

महिषासुर की कठोर तपस्या से ब्रह्माजी प्रश्न हो गए और महिषासुर के समक्ष प्रकट हो कर कहा की मांगों तुम्हें क्या वरदान चाहिए तब महिषासुर ने अपने लिए अमर होने का वरदान मांगा।

महिषासुर की ऐसी बात सुनकर ब्रह्माजी बोले कि जो इस सृष्टि में जन्म लेता हैं उसकी मौत निश्चित हैं इसलिए जीवन और मृत्यु को छोड़कर जो वरदान चाहो मांग सकते हो।

ब्रह्माजी की यह बात सुनकर महिषासुर ने कहा ठीक हैं प्रभु आप मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि मेरी मृत्यु ना तो किस देवता के हाथ से हो ना किसी असुर के हाथों से हो ना किसी मानव के हाथ से हो ना किसी दानव के हाथ से हो अगर मेरी मृत्यु हो तो किसी स्त्री के हाथ से हो।

महिषासुर की यह बात सुनकर ब्रह्माजी ने उसे तथास्तु बोला और चले गए ब्रह्माजी के इस वरदान के बाद महिषासुर राक्षसों का राजा बन गया और अत्याचार करने लगा।

महिषासुर ने देवता पर आक्रमण कर दिया जिससे देवता घबरा गए। सभी देवताओ ने एकजुट होकर महिषासुर का सामना किया लेकिन महिषासुर के सामने सभी देवता पराजित हो गए। और देवलोक पर महिषासुर का राज हो गया।

महिषासुर से देवलोक वापिस लेने के लिए और अपनी रक्षा करने के लिए सभी देवता और भगवान विष्णु ने आदि शक्ति की आराधना की।

भगवान विष्णु, भगवान शिव और ब्रह्माजी के शरीर से एक दिव्य रोशनी निकली जिसने बहुत ही सुंदर देवी का रूप धारण कर लिया जिन्हें देवी दुर्गा और वैष्णो देवी नाम दिया गया।

देवी दुर्गा को देखकर महिषासुर देवी दुर्गा पर मोहित हो गया और देवी दुर्गा से शादी करने का प्रस्ताव देवताओं के सामने रखा।

देवी दुर्गा महिषासुर से शादी करने को मान गई लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी। देवी दुर्गा ने कहाँ की महिषासुर तुम्हें मेरे साथ युद्ध करना पड़ेगा और मुझ से जीतना पड़ेगा महिषासुर ने देवी दुर्गा की शर्त मान ली और लड़ाई शुरू हुई जो पूरे 9 दिन तक चलीं।

दसवें दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर का अंत कर दिया इसलिए तब से आज तक हम सभी नवरात्रि का त्यौहार मानते हैं और 9 दिन माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा अर्जना और 9 दिन का व्रत रखते हैं।

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