आँख के महत्वपूर्ण अंग, रोग, कोशिकाएँ और अन्य जानकारी

नमस्कार दोस्तों इस पेज पर आप जीव विज्ञान के महत्वपूर्ण अध्याय मनुष्य की आँख के बारे में समस्त जानकारी विस्तार में पढेंगे।

पिछले पेज पर हमने धमनी और शिराओं की जानकारी विस्तार में शेयर कर चुके है यदि अपने वह पोस्ट नही पड़ी है तो जरूर पढ़ें।

चलिए मनुष्य की आंख की जानकारी को विस्तार से पढ़ते है।

आँख क्या हैं

आंख मनुष्य का ऐसा अंग है जो प्रकाश के लिए सबसे संवेदनशील हैं। मनुष्य की आँख प्रकाश को संसूचित करके तंत्रिका कोशिकाओं द्वारा विद्युत रासायनिक संवेदों में बदलने का कार्य करती है जिनकी न्यूनतम देखने की क्षमता 25 सेंटीमीटर एवं अधिकतम देखने की क्षमता अनन्त होती हैं।

आँख के महत्वपूर्ण अंग

आंख देखने मे बहुत छोटी है लेकिन इसके काम की तरह इसके अंदर अनेकों अंग भी छुपे हुए है जिन्हें हम नीचे एक-एक करके विस्तार से पढ़ने वाले है।

1. दृढ़ पटल

दृढ़ पटल आंख का सबसे ऊपरी भाग होता हैं। जो कि सामने की ओर पारदर्शी और शेष भाग अपारदर्शी होता हैं। सामने की ओर उभरा हुआ भाग ही (पारदर्शी भाग) कॉर्निया कहलाता हैं।

नेत्र दान के समय इसी कॉर्निया को अंग प्रत्यारोपित (नेत्र दान के समय) किया जाता हैं।

2. रक्त पटल

यह आँख का दूसरा स्थर या मध्य वाला भाग होता हैं जो कि आँख को रक्त प्रदान करने पहुँचाने में सहायक हैं। इसी का अगला हिस्सा आयरिस का निर्माण करते हैं यही आयरिस आंख के अंदर जाने वाले प्रकाश की मात्रा का निर्धारण करते हैं।

आयरिस और लेस (उत्तर लेंस) के बीच में नामक एक द्रव पदार्थ उपस्थित होता हैं जो कि आँख की सुंदरता को बनाए रखने में सहायक हैं।

3. रेटिना

यह आंख का सबसे अंदर वाला भाग होता हैं। वस्तु का प्रतिबिंब आंख के अंदर रेटिना पर ही बनता हैं। जो कि वास्तविक, वस्तु से छोटा, और वस्तु का उल्टा होता हैं।

4. कॉर्निया

कार्निया के अंदर उपस्थित द्रव पदार्थ आंख को पोषण प्रदान करता हैं। आमतौर पर कॉर्निया की तुलना लेंस से की जाती है लेकिन इनमें काफी अंतर होता है।

एक लेंस केवल प्रकाश को अपने पर गिरने के बाद फैलाने या सिकोड़ने का काम करता है जबकि कॉर्निया का कार्य इससे व्यापक है।

कॉर्निया वास्तव में प्रकाश को आँख की पुतली (नेत्र गोलक) में आने देता है इसका उभरा हुआ (उत्तल) हिस्सा इस प्रकाश को आगे यानी पुतली और लेंस में भेजता है।

इस तरह यह वजन का काम करता है। कॉर्निया का गुंबदाकार ही यह तय करता है कि किसी व्यक्ति की आँख में दूरदृष्टि दोष है या निकट दृष्टि दोष।

देखने के दौरान बाहरी लेंसों का प्रयोग बिंब को आँख के लेंस पर फोकस करना होता है इससे कॉर्निया मॉडीफाइड हो सकता है। ऐसे में कॉर्निया के पास स्थित कांटेक्ट लेंस इसकी मोटाई को बढ़ाकर एक नया केंद्र बिंदु बनता हैं।

5. पीत बिंदु

आंख को सबसे सरल तरीके से पहचाने वाला रंग पीला होता हैं। क्योंकि आंख के अंदर उपस्थित पीत बिंदु इस रंग को पहचाने में सहायक हैं।

आंख के अंदर उपस्थित कोशिकाएँ

आंख के अंदर भी अनेकों कोशिकाएँ होती है जिनकी जानकारी नीचे निम्नानुसार दी गयी है।

(i). शंकु कोशा :- यह कोशिकाएँ आँख के अंदर जाने वाले प्रकाश में उपस्थित रंगों को पहचान के लिए संवेदनशील होती हैं इन्हीं की सहायता से विभिन्न रंगों को पहचाना जाता हैं।

(ii). बेलनाकोशा :- यह कोशिकाएं आंख के अंदर जाने वाले प्रकाश को पहचानें में सहायक हैं अर्थात यह प्रकाश के प्रति संवेदनशील होती हैं।

नेत्र दोष

आंख में उपस्थित पारदर्शी उत्तर लेंस की क्षमता में परिवर्तन को जानने से नेत्र दोष उत्पन्न हो जाने से नेत्र दोष उत्पन्न हो जाते हैं।

(i). निकट दृष्टि दोष :- दूर स्थित किसी वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना पर ना बन कर उससे पहले बनने लगता हैं जिस कारण से निकट की वस्तु तो स्पष्ट दिखाई देती हैं किंतु दूर की वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती इस दोष को दूर करने के लिए अवतल लेंस का उपयोग किया जाता हैं।

(ii). दूर दृष्टि दोष :- जब पास स्थित किसी वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना पर ना बन कर इससे पीछे बनता हैं तब पास स्थित वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती इस दोष को दूर करने के लिए उत्तर कॉन्वेक्स लेंस का उपयोग किया जाता हैं।

(iii). जरान्धता/जरा दृष्टि दोष :- जब किसी व्यक्ति को न तो पास की वस्तु स्पष्ट दिखाई देती हैं और न ही दूर की वस्तु स्पष्ट दिखाई देती हैं। इस दोष को जरा दृष्टि दोष कहाँ जाता हैं।

इसे दूर करने के लिए द्विफोकशीय लेंस (ऊपर अवतल नीचे उत्तल लेंस) लेंस का उपयोग किया जाता हैं।

(iv). दृष्टि बिषम्य :- इस दोष से पीड़ित व्यक्ति को वस्तु गोलाकार दिखाई देती हैं क्योंकि वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना पर वृत्ताकार रूप में बनता हैं।

इसे दूर करने के लिए बेलनाकार लेंस का उपयोग किया जाता हैं यह रोग अत्यधिक वृद्ध अवस्था में और कम संख्या में होने वाला दोष हैं।

आंख के रोग

नेत्र दोषों के अतिरिक्त भी आँखों में कुछ समस्या हो जाती है जिन्हें हम आँख के रोग कहते है।

आँखों  रोग निम्न प्रकार के होते है।

  1. आँख का आना
  2. मोतिया बिंद
  3. रतौंधी
  4. वर्णान्धता
  5. फूली आँखे

1. आँख का आना

मनुष्य की आँख के ऊपर झिल्ली पाई जाती हैं जो कि बाहरी रासायनिक प्रभावों से आंख की रक्षा करती हैं कभी-कभी इसमें सकर्मक उत्पन्न हो जाता हैं जिसे आंख का आना कहाँ जाता हैं।

आँख आने के लक्षण

  • आँख आ जाने पर आँख का सफेद हिस्सा लाल हो जाता है।
  • आँखों में जल या कीचड़ का निकलना।
  • आँखों की पलकों का जुट आना।
  • शोथ, दर्द होना भी आँख आने का लक्षण हैं।
  • बालू गिरने या काँटा चुभने जैसा असहध होना आदि लक्षण हैं।
  • आँखों के रोग खाज-खुजली का सर्वोत्तम इलाज कैसे करें।

आँख आने पर उपाय

  • आंख आने पर उसको सावधानीपूर्वक साफ रखे।
  • जल में जरा-सा बोरिक एसिड मिलाकर दो बार धोएं या त्रिफला के काढ़े से आँखों को साफ करें।
  • नीम के पत्तो का उपरी भाग सिर पर इस तरह बांधे जिससे आई हुई आँख ढक जाय उन्हीं पत्तो के अन्दर से देंखे।
  • बीच-बीच में ठण्डे पानी से पत्तों को तर करते रहें इससे पीड़ा शांत होगी और रोग उग्र रूप धारण न करेगा।
  • वर्तमान समय में आंखें आने पर धूप से बचने वाले हरे रंग के मामूली चश्मे लोग लगा लेते हैं।
  • परन्तु उनकी जगह नीम के पत्तों का व्यवहार अत्यंत लाभदायक हैं।

नोट :- जानवरों (कुत्ता, बिल्ली, गाय, भैंस) की आँखें चमकदार दिखाई देती हैं क्योंकि उनकी आंख की ऊपरी ल्युसिडम नामक झिल्ली पाई जाती हैं जो कि हमेशा अतिरिक्त प्रकाश का परावर्तन करती हैं।

2. मोतिया बिंद

पारदर्शी लेंस की बाहरी सतह पर वसा जमा हो जाने के कारण किसी वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना पर स्पष्ट ना बनकर धुंधला बनता हैं जिस कारण से उसे धुंधला दिखाई देता हैं।

मोतिया बिंब होने पर धीरे-धीरे अंधापन हो जाता हैं । इसमें कोई दवा न डालें, पकने पर डॉक्टर से निकलवा दें। जो व्यक्ति जीवन पर्यंत दृष्टि चाहता हैं वह प्रतिदिन ताजा निम्बू ½ जल के साथ लें। रात में कम से कम पढ़े सिर में सुगन्धित बाजारू तेल न लगायें।

मोतिया बिंद के लक्षण

  • समय के साथ दृष्टि में क्रमिक गिरावट वस्‍तुए धुंधली, विकृत, पीली या अस्‍पष्‍ट दिखाई देती हैं।
  • रात में अथवा कम रोशनी में दृष्टि में कमी होना।
  • रात में रंग मलिन दिखाई दे सकते हैं या रात की दृष्टि कमजोर हो सकती है।
  • चमकदार रोशनी के चारों ओर कुण्‍डल दिखाई देते हैं।
  • मोतियाबिंद से खुजली, आंसू आना या सिर दर्द नहीं होता है।

3. रतौंधी

इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को कम प्रकाश में दिखाई देना बंद हो जाता हैं क्योंकि इनकी आंख में बेलनाकार कोशिकाओं की संख्या कम होती हैं।

जो कि प्रकाश के प्रति संवेदनशील होती हैं बेलनाकार कोशिकाओं नामक रसायन से बनती हैं इस रसायन के निर्माण में विटामिन a मुख्य होता हैं।

रतौंधी के लक्षण

  • रोगी बिना चश्में के कुछ नहीं देख पाता।
  • चश्में से भी रोगी को बहुत धुंधला दिखाई देता है।
  • बल्ब के चारों और रोगी को किरणें फूटती दिखाई देती हैं।
  • धूल-मिट्टी व धुएं के वातावरण से गुजरने पर धुंधलापन अधिक बढ़ जाता है।
  • रतौंधी के रोगी को दिन में तो साफ-साफ दिखाई देता है लेकिन रात में पास की चीजों को भी देखना मुश्किल हो जाता है।
  • अगर समय पर इस बीमारी का उपचार नहीं किया जाए तो धीरे-धीरे रात में पूरी तरह से दिखाई देना बंद हो सकता है।
  • इस रोग से ग्रस्त लोगों की आंखों की पलकों में कठोरता आ जाती है। पलकों में फुंसियां भी होने लगती हैं।
  • रतौंधी से आंखों की पुतली की पारदर्शिता कम हो जाती है और कभी-कभी इसे ज्यादा नुकसान भी पहुंचता है।
  • रतौंधी के शिकार अधिकतर छोटे बच्चे होते हैं इसलिए बच्चों में पोषण का ध्यान रखना बहुत ही आवश्यक होता है।
  • रतौंधी होने पर सूरज ढलते ही रोगी को दूर की चीजें धुंधली दिखाई देने लगती हैं।
  • रात होने पर रोगी को पास की चीजें भी दिखाई देती है।
  • इस रोग की चिकित्सा से अधिक विलम्ब किया जाए तो रोगी को पास की चीजें बिल्कुल दिखाई नहीं देतीं। रोगी तेज रोशनी में ही थोडा़-बहुत देख पाता है।

रतौंधी का कारण

नेत्रों के भीतरी भाग में स्थित रेटिना दो प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। कुछ कोशिकाएँ छड़ के आकार की और कुछ शंकु के आकार की होती हैं। इन कोशिकाओं में जो रंग कण होते हैं, वे प्रकाश के प्रति संवेदनशील होते हैं।

इन छड़ कोशिकाओं में रोडोप्सीन नामक एक पदार्थ पाए जाते है जो कि एक संयुग्मी प्रोटीन होता है, यह पदार्थ आप्सीन नामक प्रोटीन और रेटीनल नामक अप्रोटीन तत्वों से मिलकर बना होता है।

अधिक समय तक प्रकाश रहने पर रोडोप्सीन का विघटन रंगहीन पदार्थ रेटीनल और आप्सीन के रूप में हो जाता है, लेकिन प्रकाश से अंधेरे में आने पर रोडोप्सीन का तुरंत निर्माण हो जाता है और एक क्षण से भी कम समय में सृष्टि सामान्य हो जाती है।

उक्त प्रक्रिया में शामिल रेटीनल विटामिन ए का ही एक प्रकार है अतः विटामिन ए की कमी हो तो उजाले से अँधेरे में आने पर या कम प्रकाश मे रोडोप्सीन का निर्माण नहीं हो पाता और दिखाई नहीं देता इस स्थिति को रतौंधी कहते हैं।

4. वर्णान्धता

इस रोग से पीड़ित व्यक्ति लाल और पीले रंग में स्पष्ट अंतर नहीं कर पाता क्योंकि रंगों के प्रति संवेदनशील शंकु कोशिकाओं की संख्या उसकी आंख में कम होती हैं यह एक वंशानुगत रोग होता हैं।

दृष्टि शक्ति की कमी

  • अति सूक्ष्म या अति तेज पदार्थ को अधिक समय तक देखने।
  • बिजली की रौशनी में अधिक काम करने, अति मात्रा में मादक पदार्थों का सेवन करने तथा अधिक निद्रा या रजोरोध से देखने में कमी आ जाती हैं।

दृष्टि शक्ति के उपाय

  • दृष्टि शक्ति लिए मकरध्वज आदि पौष्टिक दवा खाना महानारायण तेल आदि।
  • शीतल तेल शिर में लगाना तथा चंद्रोद्यावर्ति का लगाना लाभदायक हैं।
  • मालकांगनी का पटल यन्त्र से तेल निकालकर 1 से 5 बूंद तेल को मक्खन में मिलाकर चाटने से आँख की ज्योति अवश्य बढ़ती हैं ।
  • ताजा आवला का रस, निम्बू का रस भी नेत्र ज्योति बढ़ाने में सहायक सिद्ध होता हैं ।
  • आँखों के रोग हरड, बहेड़ा, आमला, मुलैठी, लोहभस्म आदि को समभाग में मिलाकर जल से पिस कर सुखा कर रख लें।
  • इसका 1 ग्राम प्रमाण विषम भाग घृत और मधु के साथ सेवन करने से नेत्र रोगों में अच्छा फायदा होता हैं।

5. फूली आँखे

आँख आने पर ठीक चिकित्सा न होने से आँख में फूली हो जाती हैं ।

फूली आँखों का इलाज:- शंख को शहद के साथ घिसकर लगाना इसकी उत्तम दवा हैं। केलोमल या योग्य चिकित्सा से कास्टिक लगवाना भी उत्तम हैं।

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