इस पेज पर आप भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन एवं घटनाएं को विस्तार पूर्वक पढ़े जिससे परीक्षा में आने वाले प्रश्नों का उत्तर आसानी से दे पाए।
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तो चलिए इस पेज हम भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से संबंधित महत्वपूर्ण घटनाओं को विस्तार पूर्वक पढ़ते और समझते हैं।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन
इस पेज पर आप भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से संबंधित समस्त जानकारी नीचे दी हुई हैं जिसे आप विस्तार से पड़ेंगे इसमें भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के तीन चरणों को विस्तार से बताया गया हैं।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन – 1885 ई0
भारतीय राष्ट्रपति काँग्रेस की स्थापना “एलन ऑक्टोवियन ह्युम” नामक एक अवकाश प्राप्त ब्रिटिश अधिकारी (रिटायर्ड कांग्रेज ए0ओ0 ह्यूम) ने भारतीय नेताओं के सहयोग से 28 दिसंबर, 1885 को मुंबई की।
मुंबई में आयोजित कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता व्योमेश चंद्र बनर्जी ने की। इस अधिवेशन में मात्र 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। प्रारंभ में ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस को अपना सुरक्षा कवच समझकर सहयोग दिया, किन्तु बाद में जब कांग्रेस ने वैधानिक सुधारों की मांग रखी तो अंग्रेजों का कांग्रेस से मोह भंग हो गया।
1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के साथ ही एक अखिल भारतीय राजनीतिक मंच का जन्म का हुआ। इसी के साथ विदेशी शासन से भारत की स्वतंत्रता का संघर्ष एक संगठित के रुप से प्रारंभ हुआ।
कांग्रेस के जन्म के साथ ही भारतीय इतिहास में एक नया युग आरंभ हुआ। छोटे-छोटे विद्रोही दलों तथा स्थानीय दलों आदि सभी ने अपने को कांग्रेस में विलीन कर लिया। कांग्रेस ने शुरूआत से ही एक पार्टी नहीं बल्कि एक आंदोलन का काम किया। यह आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के नाम से जाना जाता है।
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के तीन चरण
इस बीच भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में तीन चरण देखने को मिले जो नीचे दिए हैं।
- उदारवादी चरण – 1885 – 1905 ई0 तक
- उग्रवादी चरण – 1905 – 1919 ई0 तक
- गाँधी वादी चरण – 1919 – 1947 ई0 तक
बंगाल विभाजन – 1905 ई0
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के साथ ही संपूर्ण भारत के लोग ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक राष्ट्रीय मुख्यधारा मे शामिल हो रहे थे तब बंगाल भारतीय राष्ट्रवाद का प्रधान केंद्र था।
- बंगाल मे आधुनिक बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल तथा बांग्लादेश आते थे।
- लार्ड कर्जन ने प्रशासनिक सुविधा का बहाना बनाकर बंगाल को दो भागो मे बांट दिया।
- बंगाल विभाजन की सर्वप्रथम घोषणा 3 दिसंबर 1903 को की गई।
- यह 16 अक्टूबर 1905 को लागू हुआ।
- राष्ट्रीय नेताओं ने विभाजन को भारतीय राष्ट्रवाद के लिए एक चुनौती समझा।
- बंगाल के नेताओं ने इसे क्षेत्रीय और धार्मिक आधार पर बांटने का प्रयास माना।
- अतः इस विभाजन का व्यापक विरोध हुआ तथा 16 अक्टूबर को पूरे देश मे शोक दिवस के रुप मे मनाया गया।
- हिंदू मुसलमानो ने अपनी एकता प्रदर्शित करते हुए एक बहुत ही तीव्र आंदोलन 7 अगस्त 1905 से चलाया।
- स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन की उत्पत्ति बंगाल विभाग विभाजन विरोधी आंदोलन के रुप मे हुई।
- इसके अंतर्गत अनेक स्थानो पर विदेशी कपड़ो की होली जलाई गई और विदेशी कपड़े बेचने वाली दुकानो पर धरने दिए गए।
- इस प्रकार बंगाल के नेताओं ने बंगाल विभाजन विरोधी आंदोलन को स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के रुप मे परिवर्तित कर इसे राष्ट्रीय स्तर पर व्यापकता प्रदान की।
मुस्लिम लीग की स्थापना – 1906 ई0
- मुस्लिम लीग की स्थापना नवाब सलीमुल्ला के नेतृत्व में 30 दिसम्बर 1906 ई0 को ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना हूई।
- मुस्लिम लीग के प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता मुश्ताक हुसैन ने की।
- मुसलमानों क पृथक निर्वाचन मण्डल की माँग मुस्लिम लीग द्वारा की गई।
कांग्रेस का सूरत अधिवेशन – 1907 ई0
- सूरत अधिवेशन का आयोजन 26 दिसंबर, 1907 ई0 को ताप्ती नदी के किनारे सूरत में संपन्न हुआ।
- इस अधिवेशन में काँग्रेस स्पष्ट रुप से नरमपंथियों व गरमपंथियों में विभाजित हुई।
- उग्रवादी लाला लाजपत राय को काँग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहते थे।
- वही उदारवादी रास बिहारी बोस को अध्यक्ष चुनना चाहते थे। तथा रासबिहारी बोस ने इसकी अध्यक्षता की।
दिल्ली दरबार – 1911 ई0
- सन् 1911ई0 में एक भव्य दरबार को आयोजन किया गया
- जिसमें इंगलैण्ड के तत्कालीन सम्राट जार्ज पंचम व उनकी पत्नी मैरी ने शिरकत की।
- इस आयोजन प्रमुख कारण बंगाल विभाजन से रुष्ट लोगों मनाने के लिये बंगाल विभाजन को रद्द करने का फैसला लिया गया।
- तथा बंगाल को पूर्वत स्थिति में लाने का एलान किया गया।
- साथ ही भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानान्तरित करने की घोषणा की गई
- क्योंकि अंग्रेजो का यह मानना था। कि भारत पर शासन करने के लिये राजधानी केन्द्र में होना जरुरी है।
होमरुल आन्दोलन – 1916 ई0
- बाल गंगाधर ने होमरुल आन्दोलन का गठन सन् 1916 ई0 में गठन किया।
- एनी बेसेन्ट नें सितम्बर 1916 में होमरुल की स्थापना अड्यार में की । इसके प्रथम सचिव जाँर्ज अरुण्डेल थे।
- प्रथम विश्व युद्ध के आरंभ होने पर भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं ने सरकार के युद्ध प्रयास मे सहयोग का निश्चय किया।
- इसके लिए एक वास्तविक राजनीतिक जन आंदोलन की आवश्यकता थी।
- ऐसा कोई जन-आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व मे संभव नही था।
- नरमपंथियो के नेतृत्व मे एक निष्क्रिय और जड़ संगठन बन चुकी थी इसलिए 1915-1916 मे दो होमरूल लीगों की स्थापना हुई।
- भारतीय होम रुल लीग का गठन आयरलैंड के होमरुल लीग के नमूने पर किया गया।
- तत्कालीन परिस्थितियों में तेजी से उभरती हुई प्रतिक्रियात्मक राजनीति के नए स्वरुप का प्रतिनिधित्व करता था।
- एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक इस नए स्वरुप के नेतृत्वकर्ता थे।
- होमरुल आंदोलन के दौरान तिलक ने अपना प्रसिद्ध नारा होमरुल या स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मै इसे लेकर रहूँगा दिया था।
- 1917 का वर्ष होमरुल के इतिहास मे एक मोड़ बिंदु था।
- जून मे एनी बेसेंट तथा उसके सहयोगियो को गिरफ्तार कर लेने के पश्चात आंदोलन अपने चरम पर था।
- सितंबर 1917 मे भारत सचिव मांटेग्यू की घोषणा, जिस मे होमरुल का समर्थन किया गया था, ने इस आंदोलन मे एक और निर्णायक मोड़ ला दिया।
- लीग ने अपने उद्देश्यो की सफलता के लिए एक कोष बनाया तथा धन एकत्रित किया, सामाजिक कार्यो का आयोजन किया तथा स्थानीय प्रशासन के कार्योँ मेँ भागीदारी भी निभाई।
चम्पारण विद्रोह – 1917 ई0
- बिहार में स्थित चम्पारण स्थान में अंग्रेजो द्वारा जबरन किसानों से नील की खेती तिनकठिया पद्रति से कराई जाती थी।
- किसानों पर किये जा रहे अत्याचार पर महात्मा गाँधीजी ने आवाज उठाई।
- यही से महात्मा गाँधी का प्रवेश भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में प्रांरभ हुआ था।
राँलेट एक्ट – 1919 ई0
- अंग्रेजी सरकार द्वारा 10 सिंतम्बर 1917ई0 में न्यायाधीश सर सिड़नी रौलेट को अध्यक्षता में एक सडीशन समिति की स्थापना की गई।
- इसका उद्देश्य भारत में काँन्तिकारी आन्दोलन की जाँच करना था।।
- सन् 1919 ई0 में अंग्रेजो ने भारत की क्रान्तकारी घटनाओं पर ब्रेक लगाने के लिये एक नया कानून रोलेट एक्ट पारित किया गया।
- इस कानून में किसी भी व्यक्ति को संग्दिध बताकर बिना सबूत, बिना वकील, बिना चशमदीद 24 घंटे के लिये जेल बन्द किया जा सकता था।
- प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर, जब भारतीय जनता संवैधानिक सुधारो की उम्मीद कर रही थी तो ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी रौलेट एक्ट को जनता के सम्मुख प्रस्तुत किया।
- रौलेट एक्ट के द्वारा सरकार को यह अधिकार प्राप्त हुआ कि, वह किसी भी भारतीय पर अदालत मे बिना मुकदमा चलाए और दंड दिए बिना ही जेल मे बंद कर सके।
- 1919 मे रौलेट एक्ट के विरोध मे गांधी जी ने पहली बार एक अखिल भारतीय सत्याग्रह आंदोलन का आरंभ किया।
- सरकार इस जन आंदोलन को कुचल देने पर उतारु थी उसने निहत्थे प्रदर्शनकारियों को ऐसे कुचलने का प्रयास किया जिसने दमन के इतिहास मे नये अध्याय जोड़े हैं।
- दमनात्मक नीतियों तथा डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल जैसे लोकप्रिय नेताओं की गिरफ़्तारी के विरोध में अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ मे एक सभा का आयोजन किया गया।
- जनरल डायर ने सभा के आयोजन को सरकारी आदेशो की अवहेलना माना तथा सभा स्थल को सशक्त सैनिको के साथ घेर लिया और बिना किसी पूर्व चेतावनी के शांतिपूर्ण ढंग से चल रही सभा पर गोलियाँ चलाने का आदेश दे दिया।
- इस घटना मे एक हजार से अधिक लोग मारे गए जिसमे युवा, महिलाएँ, बूढ़े, बच्चे सभी शामिल थे।
- यह घटना आधुनिक भारतीय इतिहास मे जलियावाला कांड हत्या कांड के नाम से प्रसिद्द है।
- इस घटना के विरोध मे रवींद्रनाथ टैगोर ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की गई
- नाइटहुड की उपाधि वापस कर दी तथा सर शंकरन नायर ने गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद से त्याग पत्र दे दिया।
जलियाँवाला बाग हत्याकांड – 1919 ई0
- भारत के पंजाब प्रान्त के अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के निकट जालियाँ वाला बाग में 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन हुआ था।
- रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थीं।
- जनरल डायर नामक एक अंग्रेज ऑफिसर ने अचानक उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियां चलवा दी।
- जिसमें 400 से अधिक व्यक्ति मर गए और 2000 से अधिक घायल हो गए।
- अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है।
- ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है।
- जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था।
- यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जघन्य हत्याकाण्ड ही था।
- माना जाता है कि यह घटना ही भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत बनी।
- 1997 में महारानी एलिज़ाबेथ ने इस स्मारक पर मृतकों को श्रद्धांजलि दी थी।
- 2013 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भी इस स्मारक पर आए थे।
- विजिटर्स बुक में उन्होंनें लिखा कि “ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी।”
खिलाफत आन्दोलन – 1920 ई0
- नवम्बर 1919 ई0 में अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का गठन किया गया।
- इस आन्दोलन का नेतृत्व मुहम्मद अली और शौकत अली द्वारा किया गया।
- इस आन्दोलन की मुख्य वजह अंग्रेजो द्वारा तुर्की के खलीफा का पद समाप्त करने के लिये वहाँ अपना प्रभुत्व बढा रहे थे।
- जिससे मुस्लिमान इनके खिलाफ हो गये तथा उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ खिलाफत आन्दोलन चलाने की रास्ता प्रदस्त किया।
- 31 अगस्त 1920ई0 को खिलाफत दिवस मनाया गया।
- महात्मा गाँधी ने इस आन्दोलन का सर्मथन किया।
असहयोग आन्दोलन – 1920 ई0
- इस आन्दोलन का उदेश्य यह था। कि अंग्रेजी हुकुमत का किसी प्रकार सहयोग न किया जाये यानि में हम बिना हिंसा किये अंग्रेजी हुकुमत पर दबाव बनाने के लिये यह आन्दोलन चलाया गया ।
- इस आन्दोलन में शिक्षण संस्थाओं तथा न्यायालयों का बहिष्कार किया गया।
- अगस्त 1920ई0 में गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन की शुरुआत की।
- यह आन्दोलन काफी अच्छा चल रहा था। तभी गोरखपुर स्थित चौरी-चौरा पुलिस चौकी पर 5 फरवरी 1922 ई0 को प्रदर्शनकारीयों की भीड़ ने 22 पुलिस जवानों को थाने में अन्दर जिन्दा जला दिया।
- इस घटना से आहत होकर महात्मा गाँधीजी ने 12 फरवरी 1922 ई0 को इस आन्दोलन को वापस ले लिया।
साइमन कमीशन – 1927 ई0
- ब्रिटिश सरकार ने सर जाँन साइमन के नेतृत्व में 7 सदस्यों वाले आयोग की स्थापना की जिसमें सभी 7 अंग्रेज थे।
- किसी भी भारतीय को इसमें शामिल नहीं किया गया। 3 फरवरी 1928 को यह कमीशन बम्बई आया।
- इस आयोग का कार्य इस बात की सिफारिश करना था कि भारत के संवैधानिक विकास का स्वरुप कैसा हो
- इस का विरोध इस आयोग में किसी भी भारतीय को शामिल नहीं करने की वजह से काफी बड़े स्तर पर हुआ।
- आयोग के विरोध के दौरान लाहौर में लाला लाजपत राय की मृत्यु सर पर साड़र्स द्वारा लाठी मारने से हो गई।
नेहरु रिपोर्ट – 1928 ई0
- 11 मई 1928ई0 को पण्डित मोतीलाल नेहरु की अध्यक्षता में भारतीय संविधान के प्रारुप को तैयार करने के लिये 8 सदस्यीय समिति गठित की गई।
- इस समिति नें अगस्त 1928ई0 में सविधान का प्रारुप तैयार किया ।
- इस प्रारुप को नेहरु रिपोर्ट कहते हैं।
पूर्ण स्वराज की घोषणा (लाहौर अधिवेशन) – 1929 ई0
- दिसम्बर 1929 ई0 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में हुआ।
- इस अधिवेशन की अध्यता पं0 जवाहर लाल नेहरु ने की
- इस अधिवेशन के दौरान 31 दिसम्बर 1929 की रात को रावी नदी के तट पर सभी ने पूर्ण स्वराज की घोषणा की गई।
- इस दिन को हर वर्ष 26 जनवरी को मनाने का फैसला किया गया।
- इसी अधिवेशन में सुभाष चन्द्र बोस के कुछ सुझाव काँग्रेस द्वारा नहीं माने गये तो इन्होने एक दूसरी पार्टी काँग्रेस डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना की।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन -1930 ई0
- महात्मा गांधी ने इरविन के समक्ष 13 जनवरी, 1930 को 11 सूत्रीय प्रस्ताव रखा।
- जब महात्मा गाँधी के इन विचारों पर कोई विचार नहीं किया गया। तब उन्होने सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ किया।
- इस आन्दोलन में 12 मार्च 1930 ई0 को गाँधीजी ने 79 स्वंय सेवकों के साथ साबरमती आश्रम से 322 कि0 मी0 दाण्डी तक मार्च किया गया।
- नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने गाँधीजी की इस यात्रा की तुलना नेपोलियन के एल्बा से पेरिस यात्रा से की।
प्रथम गोलमेज सम्मेलन – 1930 ई0 से 31 ई0
- यह सम्मेलन 12 नवम्बर, 1930 से 13 जनवरी 1931 तक लन्दन में आयोजित किया गया।
- यह सम्मेलन क्रांगेस के वहिष्कार के कारण समाप्त हो गया।
दितीय गोलमेज सम्मेलन – 1931 ई0
- यह सम्मेलन 7 सितम्बर, 1931ई0 से 1 दिसम्बर, 1931 तक लन्दन में हुआ, जिसमें कांग्रेस ने भाग लिया।
- यह सम्मेलन साम्प्रदायिक समस्या पर विचार के कारण असफल रहा।
- लन्दन से वापस आकर गाँधी ने फिर से सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रांरम्भ कर दिया।
तृतीय गोलमेज सम्मेलन – 1932 ई0
- इसका आयोजन नवम्बर 1932ई0 से आरम्भ हुआ इसमें कांग्रेस ने भाग नहीं लिया।
- तीनों गोलमेज सम्मेलनों के दौरान इंग्लैण्ड का प्रंधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड था।
अगस्त प्रस्ताव – 1940 ई0
- अगस्त प्रस्ताव में भारत के लिये डोमिनियन स्टेट्स को मुख्य लक्ष्य माना गया।
- युध्द के पश्चात् संविधान सभा के गठन का लक्ष्य रखा गया।
- क्रांगेस द्वारा इस प्रस्ताव को अस्वीकरा कर दिया गया।
क्रिप्स मिशन – 1942 ई0
- डोमिनियन स्टेट्स के साथ भारतीय संघ की स्थापना क्रिप्स मिशन में प्रस्तावित थी।
- युध्द के पश्चात् प्रान्तीय विधानसभाओं द्वारा संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव करने की बात की गई।
भारत छोड़ो आन्दोलन 1942 ई0
- 8 अगस्त 1942 ई0 को बम्बई में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की एक बैठक में भारत छोड़ो आन्दोलन प्रस्ताव रखा गया तथा इसे सर्वसम्मति से पारित किया गया।
- इसमें गाँधी ने इस आन्दोलन को सफल बनाने के लिये करो या मरो का नारा दिया ।
- 9 अगस्त को इसका प्रभाव दिखना प्रारम्भ हो गया। तथा सभी प्रमुख कांग्रेसी नेताओं की गिरफ्तारी हुई।
- मुस्लिम लीग ने भारत छोड़ो आन्दोलन का विरोध किया। तथा 23 मार्च 1943 को पाकिस्तान दिवस मनाया गया।
राजगोपालाचारी फाँर्मूला – 1944 ई0
इस फाँर्मूला के अनुसार –
- मुस्लीम लीग को भारतीय स्वतन्त्रतां आन्दोलन का समर्थन करने को कहा गया।
- देश के विभाजन की स्थिति में रक्षा, वाणिज्य, एवं दूरसंचार का संचालन एक ही केन्द्र से किया जाये।
वेवेल योजना (शिमला सम्मेलन 1945 ई0)
- इस योजना में एक प्रकार से भारतीयों को मनाने का प्रयास किया गया।
- यह कहा गया कि गर्वनर – जनरल एंव कमाण्डर-इन-चीफ को छोड़कर गर्वनर- जनरल की कार्यकारिणी के सभी सदस्य भारतीय होगें।
- परिषद् में हिन्दु एवं मुसलमानों की संख्या बराबर रखें जाने की बात की गई।
- मुस्लिम लीग ने शर्त रखी कि परिषद् के सभी मुस्लिमों सदस्यों का मनोनयन यह खुद करेंगी।
कैबिनेट मिशन – 1946 ई0
- प्रान्तीय विधानसभाओं में संविधान सभा के सदस्यों का चयन।
- रक्षा, विदेश मामले एवं सचार के लिए एक सामान्य केन्द्र की व्यवस्था।
- देशी रियासते, उत्तराधिकारी सरकार या ब्रिटिश सरकार से समझौता करने हेतू स्वतन्त्र।
- जून, 1946 में लीग तथा कांग्रेस दोनो ने कैबिनेट मिशन योजना को स्वीकार्य कर लिया गया।
- मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त 1946ई0 को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस मनाने की घोषणा की।
- फरवरी 1947 ई0 में काग्रेंस के सदस्यों ने मुस्लिम लीग के सदस्यों को अन्तरिम सरकार से निष्कासित करने की माँग की।
- लीग ने संविधान सभा को भंग करने की माँग उठाई।
एटली घोषणा
- इस घोषणा में 30 जून, 1948 तक सत्ता- हस्तान्तरण करने की बात की गई।
- सत्ता हस्तान्तरण या तो एक सामान्य केन्द्र द्वारा या कुछ क्षेत्रों में प्रान्तीय सरकारों को गठित करने की घोषणा द्वारा हुई।
माउण्टबेटन योजना
- 22 मार्च 1947 ई0 को भारत के अन्तिम ब्रिटिश वायसराय माउन्टबेटन भारत आये।
- जून 1947 ई0 में माउण्टबेटन द्वरा एक योजना की घोषणा की गई।
- माउण्टबेटन योजना के तहत भारतीय स्वतन्त्रंता विधेयक ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई 1947 को पास किया गया।
- जिस 18 जुलाई 1947 को स्वीकृति मिल पाई।
- इसके तहत भारत को 15 अगस्त 1947 को स्वंतन्त्रत राष्ट्र घोषित कर दिया गया।
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