नमस्कार दोस्तों, आज के इस आर्टिकल में हम शांत रस की जानकारी पढ़ने वाले हैं तो इस आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़िए।
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चलिए आज हम इस पेज पर शांत रस की जानकारी को पढ़ते और समझते हैं।
शांत रस किसे कहते हैं
जब मनुष्य मोह-माया को त्याग कर सांसारिक कार्यों से मुक्त हो जाता है और वैराग्य धारण कर परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होता है तो मनुष्य के मन को जो शान्ति मिलती है, उसे शांत रस कहते हैं।
शांत रस का स्थायी भाव निर्वेद होता है, जिसका आशय उदासीनता से है।
शांत रस की परिभाषा
जब मनुष्य मोह-माया को त्याग कर सांसारिक कार्यों से मुक्त हो जाता है और वैराग्य धारण कर परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होता है।
तो मनुष्य के मन को जो शान्ति मिलती है, उसे शांत रस कहते हैं। शांत रस का स्थायी भाव निर्वेद होता है, जिसका आशय उदासीनता से है।
शांत रस के उदाहरण
1. मन रे तन कागद का पुतला।
लागै बूँद बिनसि जाए छिन में, गरब करे क्या इतना॥
2. कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगौ।
श्री रघुनाथ-कृपालु-कृपा तें सन्त सुभाव गहौंगो।
जथालाभ सन्तोष सदा काहू सों कछु न चहौंगो।
परहित-निरत-निरंतर, मन क्रम वचन नेम निबहौंगो।
3. मन पछितैहै अवसर बीते।
दुरलभ देह पाइ हरिपद भजु,
करम वचन भरु हीते सहसबाहु दस बदन आदि नृप,
बचे न काल बलीते॥
4. ‘ तपस्वी! क्यों इतने हो क्लांत,
वेदना का यह कैसा वेग?
आह! तुम कितने अधिक हताश बताओ यह कैसा उद्वेग?
5. मन रे !
परस हरि के चरण,
सुलभ सीतल कमल कोमल,
त्रिविधा ज्वाला हरण
6. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहिं।
सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि॥
7. देखी मैंने आज जरा हो जावेगी क्या ऐसी मेरी ही यशोधरा हाय।
मिलेगा मिट्टी में वह वर्ण सुवर्ण खरा सुख जावेगा मेरा उपवन जो है आज हरा।।
8. जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं
सब अंधियारा मिट गया जब दीपक देख्याँ माहीं।।
9. मेरा तार हरि से जोड़े,
ऐसा कोई संत मिले।।
10. कहं लौ कहौ कुचाल कृपानिधि, जानत हों गति मन की।
तुलसिदास प्रभु हरहु दुसह दुख, करहु लाज निज पन की।।
11. लम्बा मारग दूरी घर, विकट पंथ बहुमार।
कहौ संतों क्यूँ पाइए दुर्लभ हरि दीदार।।
शांत रस के 10 उदाहरण
1. अब लौं नसानी, अब न नसैहौं।
राम कृपा भव-निसा सिरानी, जागै फिरि न डसैहौं।।
पायौ नाम चारु-चिन्तामनि, उर-करते न खसैहौं।
स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी, उर-कंचनहि कसैहौ।।
परबस जानि हस्यौ इन इन्द्रिन, निज बस ह्वै न हँसैहौं।
मन-मधुकर पन करि तुलसी, रघुपति पद-कमल बसैंहौं।।
2. बैठे मारुति देखते राम चरणाबिंद।
युग अस्ति-नास्ति के एक रूप गुण गुण अनिंद्य।।
3. भरा था मन में नव उत्साह सीख लूँ ललित कला का ज्ञान
इधर रह गंधर्वों के देश, पिता की हूँ प्यारी संतान।
4. ऐसी मूढता या मन की।
परिहरि रामभगति-सुरसरिता, आस करत ओसकन की।।
5. ज्ञान दूर कुछ क्रिया भिन्न है,
इच्छा क्यों पूरी हो मन की।
एक-दूसरे से न मिल सकें,
यह विडंबना है जीवन की।
6. कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगौ।
श्री रघुनाथ-कृपालु-कृपा तें सन्त सुभाव गहौंगो।
जथालाभ सन्तोष सदा काहू सों कछु न चहौंगो।
परहित-निरत-निरंतर, मन क्रम वचन नेम निबहौंगो।
7. मन फूला फूला फिरै जगत में कैसा नाता रे।
चार बाँस चरगजी मँगाया चढ़े काठ की घोरी।
चारों कोने आग लगाया फूँकि दिया जस होरी।
हाड़ जरै जस लाकड़ी केस जरै जस घास।
सोना जैसी काया जरि गई, कोई न आए पास।।
8. मन रे! परस हरि के चरण,
सुलभ
सीतल कमल कोमल,
त्रिविधा ज्वाला हरण।
9. ज्यौं गज काँच बिलोकि सेन जड़ छांह आपने तन की।
टूटत अति आतुर अहार बस, छति बिसारि आनन की।।
10. तपस्वी! क्यों इतने हो क्लांत,
वेदना का यह कैसा वेग?
आह! तुम कितने अधिक हताश
बताओ यह कैसा उद्वेग?
11. मोरी चुनरी में परि गयो दाग पिया।
पाँच तत्त की बनी चुनरिया सोरहसै बंद लागे जिया।
यह चुनरी मोरे मैके ते आई ससुरे में मनुवाँ खोय दिया।
मलि मलि धोई दाग न छूटै ज्ञान को साबुन लाय पिया।
कहें कबीर दाग तब छुटि हैं जब साहब अपनाय लिया।
शांत रस के अवयव
स्थायी भाव : निर्वेद।
आलंबन (विभाव) : आत्म चिंतन, संसार का विश्लेषण, मोहभंग जनित परिस्थितियाँ आदि।
उद्दीपन (विभाव) : ध्यान, सत्संग, परमात्मा का विचार आदि।
अनुभाव : आँखें भीग जाना, आँखें बंद कर लेना, विश्राम आदि।
संचारी भाव : स्मृति, निर्विचार, शांतचित्तता आदि स्मृति।
FAQ
Ans. अन्य सभी रसों की अनुपस्थिती ही शांत रस है। शांत रस एक ऐसा रस है, जिसमें किसी भी रस का अनुभव ना हो।
Ans. मेरा तार हरि से जोड़े,
ऐसा कोई संत मिले।।
Ans. शांत रस का स्थायी भाव निर्वेद है।
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