नमस्कार दोस्तों, आज के इस आर्टिकल में हम वात्सल्य रस की जानकारी पढ़ने वाले हैं तो इस आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़िए।
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चलिए आज हम इस पेज पर वात्सल्य रस की जानकारी को पढ़ते और समझते हैं।
वात्सल्य रस किसे कहते हैं
काव्य को सुनने पर जब प्रेम विशेषतः अनुजों के प्रति, के से भावों की अनुभूति होती है तो इस अनुभूति को ही वात्सल्य रस कहते हैं।
अन्य शब्दों में वात्सल्य रस वह रस है, जिसमें अनुराग व स्नेह का भाव होता है अथवा जिसका स्थायी भाव वत्सल होता है।
वात्सल्य रस के उदाहरण
1. यशोदा हरि पालने झुलावै ।
हलरावै दुलरावै जोइ-सोई कुछ गावै ।
जसुमति मन अभिलाष करे
कब मेरो लाल घुटुरुवन रेगै,
कब धरनि पग दै धेरै ।
स्पष्टीकरण – रस- वात्सल्य । स्थायी भाव-पुत्र के प्रति स्नेह । आश्रय-माता यशोदा । आलम्बन – पुत्र श्रीकृष्ण उद्दीपन- बालक की चेष्टाएँ। अनुभाव-बालक को पालने झुलाना, लोरी गाना। संचारी भाव-हर्ष, आवेग आदि। अतः यहाँ पर वात्सल्य रस है।
2. हरि अपने रँग में कछु गावत ।
तनक- तनक चरनन सों नाचत, मनहिं मनहिं रिझावत ॥
बाँगि उँचाइ काजरी-धौरी गैयन टेरि बुलावत ।
माखन तकन आपने कर ले तनक बदन में नावत ॥
कबहुँ चितै प्रतिबिंब खंभ में लवनी लिये खवावत।
दुरि देखत जसुमति यह लीला हरखि अनन्द बढ़ावत ॥
स्पष्टीकरण – रस- वात्सल्य । स्थायी भाव-स्नेह (वात्सल्य) । आश्रय-यशोदा। आलम्बन-बालक कृष्ण। उद्दीपन-कृष्ण का गाना, नाचना, बाँह उठाकर गायों को बुलाना, मुँह में माखन डालना, प्रतिबिंब को माखन खिलाना। अनुभाव- यशोदा का छिपकर देखना। संचारी भाव-हर्ष आदि । अतः यहाँ पर वात्सल्य रस है।
वात्सल्य रस के प्रकार
- संयोग वात्सल्य रस
- वियोग वात्सल्य रस
1. संयोग वात्सल्य रस :- काव्य में जब बालकों की ऐसी बातों का वर्णन होता है, जो उनके माता-पिता आदि के पास उपस्थित रहने के काल से सम्बंध रखती है, तो उसे संयोग वात्सल्य रस कहा जाता है।
जैसे :-
वर दन्त की पंगति कुन्दकली अधराधर पल्लव खोलन की।
चपला चमकै घन बीच जगै छवि मोतिन माल अमोलन की॥
घुँघरारि लटैं अटकै मुख ऊपर कुण्डल लोल कपालन की।
निवछावर प्राण करें तुलसी बलि जाऊँ लला इन बेलन की ॥
2. वियोग वात्सल्य रस :- काव्य में जब बालकों के माता-पिता आदि से अलग हो जाने से उनके या उनके कारण माता-पिता की दशा का वर्णन होता है, तब वियोग वात्सल्य रस होता है।
जैसे :-
संदेश देवकी सों कहिए।
हौं तो धाय तिहारे सुत की कृपा करत ही रहियो ।
तुक तौ टेव जानितिहि है हो तउ, मोहि कहि आवै।
प्रात उठत मेरे लाल लड़ैतहि माखन रोटी भावै ॥
वात्सल्य रस के अन्य उदाहरण
1. कबहुँ पलक हरि मूँद लेत है कबहु अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन है रहि-रहि करि-करि सेन बतावै।
इहि अंतर अकुलाय उठै हरि जसुमति मधुरै गावै।
जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ सो नंदभामिनि पावै।
2. यशोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै दुलरावै जोइ-सोई कुछ गावै॥
जसुमति मन अभिलाष करे
कब मेरो लाल घुटुरुवन रेगे,
कब धरनि पग दै धरै॥
3. कान्ह घुटुरुवनि आवत।
मनिमय कनक नंद के आँगन, बिम्ब पकरिबैं धावत॥
4. मैया कबहु बढ़ेगी चोटी
कित्ति बार मोहे दूध पिवाती भई अजहुँ हे छोटी। ।
5. मैया मैं तो चंद्र खिलौना लेहों। ।
6. मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो
बाल ग्वाल सब पीछे परिके बरबस मुख लपटाओ। ।
स्थायी भाव : वत्सल।
आलंबन (विभाव) : कोई छोटा बच्चा, शिष्य या कोई भी अनुज।
उद्दीपन (विभाव) : बाल चेष्टा, बाल लीला, तुतलाना, मासूमियत इत्यादि।
अनुभाव : आलिंगन, सिर पर हाथ फेरना, पीठ थपथपाना, मुस्कराना, हंस देना, गले से लगा लेना, चूमना इत्यादि।
संचारी भाव : हर्ष, उत्साह, मोह, ममता, गर्व आदि।
FAQ
Ans. “जब परम प्रेम माता-पिता के रिश्ते में विकसित होता है और लगातार स्थापित हो जाता है , तो उस रिश्ते को वात्सल्य-रस कहा जाता है।
Ans. वात्सल्य रस : इसका स्थायी भाव वात्सल्यता (अनुराग) होता है माता का पुत्र के प्रति प्रेम, बड़ों का बच्चों के प्रति प्रेम, गुरुओं का शिष्य के प्रति प्रेम, बड़े भाई का छोटे भाई के प्रति प्रेम आदि का भाव स्नेह कहलाता है यही स्नेह का भाव परिपुष्ट होकर वात्सल्य रस कहलाता है।
Ans. महात्मा सूरदास जी
Ans. सूरदास
Ans. मैया कबहु बढ़ेगी चोटी।।
कित्ति बार मोहे दूध पिवाती भई अजहुँ हे छोटी।।
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