इस पेज पर आप 1857 की क्रान्ति से संबंधित जानकारी जैसे 1857 का क्रांतिकारी आंदोलन, राजनीतिक कारण, धार्मिक कारण, तत्कालीन कारण, विद्रोह की योजनाएं आदि समस्त जानकारी विस्तार से पढ़ेंगे।
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1857 की क्रान्ति
अंग्रेजों की राजनीतिक जीत, भारत में 1757 ई0 के प्लासी के युद्ध से ही शुरू हो चुकी थी। इसके बाद हुए 1764 ई0 के बक्सर युद्ध में भारत में कंपनी अपनी व्यापारिक पकड़ के साथ-साथ भारत में राजनीति का आरंभ कर चुकी थी।
उसने सर्वप्रथम बंगाल की सत्ता को हथिआया इसके बाद धीरे-धीरे मैसूर, दक्कन, मराठा आदि को अपने अधिकार में ले लिया तथा 1857ई0 आते-आते अंग्रेजों ने भारत की करीब आधी आबादी को अपने अधिकार में कर लिया।
1857ई0 तक भारतीयों ने अंग्रेजों की 100 साल की सरकार के जुल्मों को देखा व सहन किया इनके जुल्मो सह सह कर भारतीयों में आक्रोश आने लगा।
जिसके लिए बीच-बीच में तरह तरह के आंदोलन अंग्रेजो के खिलाफ होने लगे जिसमें में किसानों के आंदोलन, आदिवासी आंदोलन महत्वपूर्ण है साथ ही इन्होंने भारत की कई तबको की उपेक्षा की।
1857 की क्रान्ति के कारण
1857 की क्रांति के मुख्य पांच कारण निम्नानुसार है।
1. राजनीतिक कारण
(a). गोद प्रथा पर रोक
इस सिंद्धांत को तत्कालीन गर्वनर जरनल लार्ड डलहौजी द्वारा लागू किया गया। जिसमें उन्होने अपने राज्य विस्तार के लिये कुटनीति व नये तौर तरीके अपनाये। कुछ राज्यो को वह युध्द के जरिये जीत चुके थे। लेकिन कुछ राज्य बड़े व शक्तिशाली थे। तथा अंग्रेज जानते थे कि भारतीय हिन्दु राजाओं के अगर कोई संन्तान नहीं होती थी तो अपने राज्य के उत्तराधिकारी बनाने के लिये संन्तान गोद लेने की प्रथा उनमें प्रचलित थी।
अंग्रेजो ने इसी चीज को हथियार बना कर बड़ा ऐलान कर दिया कि जिन राज्यो के पास अपने स्वंय के उत्तराधिकारी नहीं है यानि गोद लिये हुये उत्ताराधिकारी हैं उन्हे कोई मान्यता नहीं दी जायेगीं। तथा ऐसे राज्यों को अंग्रेजी हुकुमत में विलय कर लिया जायेगा।
जिससे कम्पनी की संन्धि व शर्तौ में बधे हुये प्रान्त अंग्रेजो की बिना अनुमति के बिना किसी को गोद नहीं ले सकते थे। जिसमें सतारा, झाँसी, नागपुर के राज्यो को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया। अंग्रेजो के इस प्रकार किये गये अपहरण कारी नीतियों से इन राज्यो के राजाओं को बड़ी पीड़ा तथा अंग्रेजो के खिलाफ नफरत हो गई। वह बदले की भावना में आगे आये।
इसके लिये अंग्रेजी इतिहास लेखक लाइलो ने लिखा है “निस्सन्देह इस तरह के हालात में जिन नरेशों की रियासते अंग्रेजी राज्य में मिला ली गई उनके पक्ष में अंग्रेजों के विरुध्द भारतवासियों के भाव न भड़क उठते तो भारतवासियो को मनुष्यता से गिरा हुआ कहा जाता।
निस्सन्देह एक भी स्त्री ऐसी न होगी, जिसे इन रियासतों के अपहरण ने हमारा शत्रु न बना दिया हो, एक भी बच्चा ऐसा न होगा जिसे हमारे इन कार्यो के कारण अंग्रेजी राज्य के विरुध्द आरम्भ से घृणा की शिक्षा न दी जाती हो।
(b). कुशासन के आधार पर
अंग्रेज केवल यही पर नहीं रुके उन्होने राज्यो को अपने साम्राज्य में मिलाने के लिये और भी कई बहुत घृणित तरीके अपनाये उन्होेंने कुशासन के आधार पर देशी रियासतो को अपने राज्य मिला लिया। इस नीति के तहत उन्होंने हैदराबाद क निजाम तथा अवध के नवाब को अपना शिकार बनाया।
यही नहीं उन्होने अवध के नवाब वाजिद अली शाह तथा मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर के साथ द्रुर्यव्यहार तथा अपमानजनक व्यवहार किया। तथा भारतीय उच्च वर्ग के साथ अ्न्याय किया।
2. धार्मिक कारण
(a). ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार
1857ई0 की क्रान्ति के धार्मिक कारण भी थे। क्योंकि अंग्रेज भारतीयो में अपने धर्म को फैलाना चाहते थे। इस वजह से उन्होने भारतीय हिन्दु व मुस्लिमों में धर्म के आधार पर काफी भेदभाव को बढ़या तथा अपने धर्म का प्रचार – प्रसार किया। तथा इसे न मानने वालो को कठिन यातनायें दी। ईसाई धर्म -प्रचार करने की चाल अत्यन्त गुप्त रुप से होती थी और कम्पनी का उसमें पूरा -पूरा सहयोग रहता था।
शिक्षण संस्थाओ में भी यह शिक्षा दी जाती थी, आप एक बेहतर धर्म को अपनाये जो कि आपके जीवन में नया उजाला लायेगा। तथा लोगो को ईसाई धर्म के अनमोल बातो में उलझाया जाता था। हिन्दू रिती – रिवाजो का मजाक बनाने लगे। जिसके बाद भारतीय इनकी चालो को समझने लगे तथा इस सबका विरोध करने लगे।
3. सामाजिक कारण
(a). भारतीय के साथ बुरा व्यवहार
अंग्रेजी हुकुमत भारतीयों के साथ बुरा व्यवहार करती थी। यह अंग्रेज कर्मचारी भारतीय समाज से पर्याप्त दूर रहते थे और उनके साथ उनका व्यवहार भी बहुत अधिक निन्दनीय होताा था। प्रारम्भ उनका व्यवहार जरुर बराबरी का था। लेकिन समय से साथ उनके व्यवहार में बहुत अन्तर आने लगे।
माइकल एडवर्ड के अनुसार – 18वी सदीं में भारतीयों और अंग्रेजो में बराबरी का व्यवहार था। पर शताब्दी के अन्त के साथ, जिन तनावों के बढ़ते-बढ़ते 1857 का सिपाही विद्रोह हुआ वे मिटते दिखाई पड़ने लगे।
ज्यों ही अंग्रेजो को अपनी शक्ति का आभास हुआ त्यों ही वे लोगों से दूर होते गये और भारतीयों को हेय समझने लगे। अंग्रेज उच्च वर्ग की सामाजिक स्थिति को गिराने में लगे हुये थे। स्थान-स्थान पर अंग्रेज पदाधिकारी अपने सामने घोड़े पर चढ़ने वाले हिन्दुस्तानियों को घोड़े से उतरकर चलने को विवश करते थे।
4. सैनिक कारण
बंगाल सेना का 60 प्रतिशत भाग अवध तथा उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्तो से आते थे। और उसमें से अधिकतर ऊँची जाति के ब्राह्मण तथा राजपूत कुलों से थे। जो प्रायः अनुशासन को स्वीकार करने में इतने सहमत नहीं होते थे।
अंग्रेज उनको नीचा दिखाने प्रयास करते तथा पदोन्नति तथा वेतन विंगति कर इनका अपमान किया जाता था। जिससे सैनिक सर्वाधिक तस्त्र थे। क्योंकि वह अंग्रेजो को नजदीकी से पहचान चुके थे। इसलिये वह विद्रोह को आमादा हुए।
5. तत्कालीन कारण
1857 के विद्रोह का तत्कालीन कारण सन 1856 में सरकार द्वारा पुराने लोहे वाली बंदूक का उपयोग बंद कर नवीन एनफील्ड राइफल का प्रयोग कारतूस इस्तेमाल किए जाते थे। गाय व सुअर का प्रयोग किया जाता था। जिसका इस्तेमाल करने से पहले इसे मुँह से खोला जाता था। जिससे हिन्दू व मुस्लिम दोनो को धार्मिक ठेस पँहुची।
भारतीय सैनिक इसके विरोध में आ गए तथा एक सैनिक मंगल पांडे ने तो अपने एजेंट हत्या कर दी । तथा क्रान्ति की चिंगारी सुलग गई । इसके बाद मई 1857 में 85 सैनिकों ने इन कारतूसों को प्रयोग करने से मना कर दिया। तथा 12 मई को विद्रोही दिल्ली पँहुच गये तथा दिल्ली का घेराव कर दिया तथा तत्कालीन मुगल सम्राट बहादुर जफर को भारत का सम्राट घोषित कर दिया गया तथा क्रान्ति का प्रारम्भ हो गया।
विद्रोह की योजना
1. बिठूर में क्रान्ति योजना
अजीमुल्लाखाँ व नानासाहब ने साथ बैठकर बिठूर में क्रान्ति योजना का निर्माण किया। इसमें सबसे पहले इस बात पर विचार किया गया कि भारत के समस्त हिन्दू और मुसलमान बूढ़े सम्राट बहादुरशाह जफर के झण्डे तले आकर फिर अंग्रेजो को यहाँ (भारत ) से निकालने का प्रयास किया जायेगा।
2. गुप्त संगठन की आयोजना
क्रान्ति की योजना को सफल बनाने के लिये एक विशाल और गुप्त संगठन के विषय में श्री सुन्दरलाल जी लिखते हैं संगठन इतना विशाल होते हुए भी इतना सम्पूर्ण, सुन्दर और सुव्यवस्थित था। और उसे अंग्रेजी जैसी जागरुक कौम से वर्षों इतनी अच्छी तरह गुप्त रखा गया कि इस विषय में अनेक अंग्रेज इतिहास लेखकों तक ने क्रांन्ति के प्रवर्तकों और संचालको की योग्यता की मुक्त कण्ठ से प्रंशसा की है।
इस योजना में बेगम जीनतमहल व सम्राट बहादुरशाह जफर ने पूरा सहयोग का संकल्प लिया। दिल्ली में भी जगह-जगह पर गुप्त सभाये की जाने लगीं। जब कम्पनी ने अवध पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया तो नाना साहब को भी मजबूती इसलिये मिली की जिन राजा व नबावो का उन्हे सर्मथन अबतक हासिल नहीं हो पा रहा था वह हासिल होने लगा।
तथा इसका प्रतीक कमल, तथा रोटी को बनाया गया, व इस आन्दोलन का तय समय 31 मई केे बाद शुरु करने के लिये रखा गया। इस प्रकार की रणनीति इसलिए बनाई गयी। क्योंकि भारतीय जानते थे कि इन दिनों अंग्रेज अपनी जगह बदलकर जम्मू एंव श्रीनगर में जा बसते थे। ऐसे में उनकी शक्ति कमजोर पड़ जाती क्योंकि यह मौसम उनके प्रतिकूल था
1857 की क्रान्ति के केन्द्र व उनको संचालित करने वाले नेता
केन्द्र | भारतीय लीडर | विद्रोह की तिथि | विद्रोह दबाने वाला | व्रिदोह दबाने की तिथि |
---|---|---|---|---|
दिल्ली | बख्त खाँ (सैन्य नेतृत्व) | 11, 12 मई 1857 | निकल्सन एवं हड़सन | 21 सितम्बर 1857 ई0 |
कानपुर | नाना साहब, तात्याँ टोपे | 5 जून 1857 ई0 | कैम्पबेल | 6 सितम्बर 1857 ई0 |
लखनऊ | बेगम हजरत महल | 4 जून 1857 ई0 | कैम्पबेल | मार्च 1858 ई0 |
झाँसी | रानी लक्ष्मीबाई | जून, 1857 ई0 | ह्यूरोज | 3 अप्रैल 1858 ई0 |
इलाहाबाद | लियाकत अली | 1857 | कर्नल नील | 1858 ई0 |
जगदीशपुर | कुँवर सिंह | अगस्त 1857 ई0 | विलियम टेलर, आयर | 1858 ई0 |
फैजाबाद | मौलवी अहमदुल्ला | 1857 | – | 1858 ई0 |
फतेहपुर | अजीमुल्ला | 1857 | जनरल रेनर्ड | 1858 ई0 |
बरेली | खान बहादुर खाँ | 1857 | – | 1858 ई0 |
1857 की क्रान्ति के परिणाम
- दिल्ली – सितंबर 1857 में अंग्रेजी का कब्जा
- कानपुर – 6 दिंसम्बर को अंग्रेजी का पुनः अधिकार
- लखनऊ – मार्च 1858 में अंग्रेजी का कब्जा
- झाँसी – 4 मई को अंग्रेजो का कब्जा
- बरेली – 5 मई 1858 को अंग्रेजों का कब्जा
- बनारस एवं इलाहाबाद – जून 1857ई0 में अंग्रेजों का पुनः अधिकार कर लिया
विद्रोह के पश्चात् भारतीय नेतृत्व
- बहादुर शाह – रंगुन भेज दिये गए
- नाना साहब – नेपाल भाग गए
- तात्या टोपे – फाँसी दे दी गई।
- झाँसी की रानी – मारी गई।
- बेगम हजरत महल – नेपाल में छिप गई।
विद्रोह से सम्बधित तत्थ
दक्षिण भारत इस विद्रोह से अछूता बना रहा। इसमें किसान, दस्तकार, धर्मगुरु, नौकरीपेशा वाले व्यक्तियों ने इसमें सक्रिय भूमिका नहीं निभाई इसी वजह से यह विद्रोह केवल सिपाही विद्रोह बनकर रह गया।
नवंबर 1857 में विद्रोहियो ने जनरल वंडहम को कानपुर के समीप परास्त किया।
1858 का भारत सरकार अधिनियम
- इस बिल के अनुसार भारत का प्रशासन कंपनी से छीन कर सीधा ब्रिटिश क्राउन को सौंप दिया गया।
- अब भारत का गर्वनर जनरल अब भारत का वायसराय कहा जाने लगा।
- सभी अधिकार भारत सचिव को सौंप दिये गये।
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