इस पेज पर आप भूस्खलन की समस्त जानकारी पढ़ने वाले हैं तो आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़िए।
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चलिए आज हम भूस्खलन किसे कहते हैं इसके प्रकार, कारण, प्रभाव और रोकथाम के उपाय की जानकारी पढ़ते हैं।
भूस्खलन क्या हैं
भूस्खलन एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन मानवीय गतिविधियों के कारण भी भूस्खलन हो सकता हैं। चट्टान या मलबे आदि के खिसकने की घटना को भूस्खलन कहते हैं।
यह प्राकृतिक आपदाओं में से एक है और इसके कारण जान-माल को बड़ी मात्रा में क्षति पहुंचती हैं।
ऑक्सफोर्ड लर्नर्स डिक्शनरी के अनुसार, “भूस्खलन पृथ्वी, चट्टान आदि का एक समूह है जो किसी पहाड़ या चट्टान की ढलान से नीचे गिरता है”।
भूस्खलन के कारण
भूस्खलन विभिन्न कारकों के कारण होता है, जिनका उल्लेख नीचे किया गया है।
- भूस्खलन भारी बारिश के कारण हो सकता है।
- वनों की कटाई भी भूस्खलन के मुख्य कारणों में से एक है क्योंकि पेड़, पौधे आदि मिट्टी के कणों को संकुचित रखते हैं और वनों की कटाई के कारण बारिश का पानी ढलानों को बहा ले जाता है।
- भूस्खलन भूकंप के कारण भी हो सकता है। उदाहरण के लिए, हिमालय में भूस्खलन इसलिए हुआ क्योंकि भूकंप ने पहाड़ों को अस्थिर कर दिया था।
- विशेष क्षेत्रों में ज्वालामुखी विस्फोट भी भूस्खलन का कारण बन सकते हैं।
- सड़कों और इमारतों को बनाते समय अक्सर पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन होता है क्योंकि वहां से बड़ी संख्या में चट्टानों को हटाना पड़ता है।
- उत्तर पूर्व भारत के क्षेत्रों में स्थानांतरित कृषि (स्थान बदल कर” की जाने वाली कृषि) के कारण भूस्खलन होता है।
- बढ़ती आबादी के कारण बड़ी संख्या में घर बन रहे हैं, जिससे बड़ी मात्रा में मलबा बन रहा है जो भूस्खलन का कारण बन सकता है।
भूस्खलन के प्रभाव
भूस्खलन बड़ी मात्रा में जान-माल को क्षति पहुंचाते हैं। जिनका उल्लेख नीचे किया गया है।
भूस्खलन के प्रभावों को दो भागों में बांटा गया हैं।
- अल्पकालिक प्रभाव
- दीर्घकालिक प्रभाव
1. अल्पकालिक प्रभाव
- भूस्खलन प्राकृतिक सुंदरता को नुकसान पहुंचाता है।
- इससे जान और माल की हानि होती हैं।
- भूस्खलन के कारण सड़क और रेलवे लाइन टूट जाते हैं।
- चट्टानों के गिरने से चैनल ब्लॉक हो जाते हैं।
- इससे नदी के पानी का डायवर्जन होता है, जिससे बाढ़ भी आ सकती है।
2. दीर्घकालिक प्रभाव
- भूस्खलन से उपजाऊ भूमि या खेती की भूमि का नुकसान होता हैं।
- मिट्टी के कटाव के नुकसान से पर्यावरणीय समस्याएं हो सकती हैं।
- भूस्खलन वाले क्षेत्रों से जनसंख्या स्थानांतरण और प्रवास होता हैं।
- भूस्खलन के कारण जल स्रोतों पर प्रभाव पड़ता हैं।
- इसके कारण कुछ सड़कें स्थायी रूप से बंद हो सकती हैं।
भूस्खलन के रोकथाम के उपाय
भूस्खलन के रोकथाम के संबंध में निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं।
- सभी देशों को भूस्खलन वाले क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिए और इस संबंध में कार्रवाई की जानी चाहिए।
- भूस्खलन या किसी अन्य आपदा का अनुमान पहले से लगाना चाहिए और लोगों को सावधान करना चाहिए।
- जिन क्षेत्रों में भूस्खलन अधिक होता है उन क्षेत्रों में निर्माण कार्य पर रोक लगाना चाहिए।
- अधिक से अधिक पेड़ पौधे लगाने चाहिए।
- भूस्खलन से हुए नुकसान की भरपाई के लिए लोगों को बीमा की सुविधा लेनी चाहिए।
- पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ी दार खेती को अपनाना चाहिए।
- यदि भूस्खलन होता है तो जल्द से जल्द कार्रवाई करनी चाहिए।
भारत के भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र
भारत में अधिकतर निम्नलिखित क्षेत्र भूस्खलन से प्रभावित होते हैं।
1. पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र :- इस क्षेत्र में हिमांचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, उत्तर प्रदेश तथा उत्तरांचल आते हैं।
2. पूर्वी और उत्तर-पूर्वी हिमालयी क्षेत्र :- इस क्षेत्र में पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम आते हैं।
3. नागा-अराकान पर्वतीय क्षेत्र :- इस क्षेत्र में त्रिपुरा, नागालैंड, मिजोरम तथा मणिपुर आते हैं।
4. पश्चिमी घाटी क्षेत्र तथा नीलगिरी की पहाड़ी :- इस क्षेत्र में कर्नाटक, तमिलनाडू, महाराष्ट्र तथा गोवा आते हैं।
5. मेघालय का पठार :- इस क्षेत्र में भारत के उत्तर-पूर्वी भाग आते हैं।
भारत में भूस्खलन
जून 2013 में भारत के केदारनाथ में हुई उत्तर भारत की बाढ़ का भूस्खलन दुनिया के सबसे घातक भूस्खलनों में से एक था।
इस आपदा में करीब 5700 लोगों की मौत हुई थी। यह भारत में होने वाली अब तक की सबसे भीषण आपदाओं में से एक थी।
निष्कर्ष
इस लेख में हमने भूस्खलन नामक एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय को कवर किया है। हमने इसकी संबंधित अवधारणाओं जैसे कारण, प्रभाव और रोकथाम आदि को कवर किया है। इसलिए इस प्रकार के विषयों को सीखना बहुत महत्वपूर्ण है।