भारत देश की संस्कृति सर्वोपरि है, यहाँ पर अनेक त्योहारों को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। उन्हीं में से एक त्यौहार नाग पंचमी का है, जो सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है।
इस दिन नाग देवता या सर्प की पूजा-अर्चना की जाती है और दूध से स्नान कराया जाता है, साथ ही लोग भगवान शिव की आराधना करते है और नाग देवता को प्रसन्न करने की कोशिश करते है।
हिन्दू पुराणों के अनुसार इस दिन अष्ट नाग की पूजा करना श्रेष्ठ बताया गया है, ताकि जीवन भर नाग देवता का आशीर्वाद प्राप्त हो। इस दिन नाग देवता के दर्शन को करना अति शुभ होता है और सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
2024 में नाग पंचमी कब है
मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन रुद्राभिषेक करने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है तो चलिए जानते है वर्ष 2024 में कब है नाग पंचमी? और क्या रहेगी पंचमी की तिथि?
वर्ष 2024 में नाग पंचमी 9 अगस्त, दिन शुक्रवार को है। इस व्रत के आठ नाग प्रमुख देव माने गए है। इस दिन अनन्त, वासुकी, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट और शंख नामक नाग अष्टको की पूजा की जाती है।
नाग पंचमी के व्रत को करने से पहले चतुर्थी के दिन सिर्फ एक बार भोजन करे और पंचमी के दिन उपवास करें।
नाग पंचमी क्यों मनाई जाती है
भारत में नाग पंचमी क्यों मनाई जाती है? अक्सर यह सवाल हमारे मन में उठता है। नाग पंचमी का पर्व नागों के प्रति सम्मान को व्यक्त करने का एक तरीका है। भगवान शिव की गले की माला भी नाग है, इसलिए नाग पूजनीय है।
जिस समय अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन हुआ था, तब वासुकी नाग को रस्सी के रूप में देवताओं और दैत्यों द्वारा उपयोग किया गया था। उसी समय पर देवों के देव महादेव ने विष का पान किया था, उस समय उनके साथ सर्पों ने भी उस विष को ग्रहण किया था और उन्हें महादेव से सदैव पूजनीय स्थान मिलने का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
यह मान्यता भी है कि धरती माता को ब्रह्मा जी के द्वारा इसी दिन शेषनाग के फन पर स्थित किया गया था। नाग पंचमी के दिन जो भी व्यक्ति सांप को दूध से स्नान कराते है उनको तथा उनके परिवार को सांपों का भय नहीं होता।
जरूर पढ़े :
नाग पंचमी कैसे मनाये
हमारे देश में भिन्न-भिन्न सभ्यता के लोग निवास करते है और हर एक त्यौहार को अपने-अपने तरीके से मनाते है, इसलिए नाग पंचमी का त्यौहार भी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है।
नाग पंचमी के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान कर के स्वच्छ वस्त्र धारण करे और गंगाजल से पूरे घर को शुद्ध करे, फिर प्रसाद के लिए मीठी खीर बनाये।
इसके पश्चात एक लकड़ी की चौकी पर लाल कपडा बिछा कर उस पर नाग देवता की प्रतिमा या मिट्टी की नाग मूर्ति को स्थापित करे, इसके साथ ही कलश की स्थापना भी करे।
इसके बाद उनकी प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराये और जल, फूल, चन्दन आदि नाग देवता को अर्पित करे, फिर धूप-दीप दिखा कर पूजा करे और व्रत का संकल्प ले, साथ ही किसी सफेरे को दक्षिणा दे और अंत में नाग पंचमी की कथा अवश्य सुने शाम के समय प्रतिमा की पूजा कर के व्रत तोड़े।
कही-कही नाग पूजा में घर के दरवाजों के किनारों पर गोबर या चावल के आटे से नागों के चित्र बनाये जाते है और कही पर सोने, चाँदी, लकड़ी या मिट्टी से पृथ्वी पर नाग बना कर फूल, धूप, दीपक, गुड से नागों का पूजन किया जाता है।
नाग पंचमी का महत्व
प्राचीन काल से ही भारत में नागों का विशेष महत्व रहा है। नागों को देवता के समान माना जाता है, श्री हरि विष्णु के साथ सदा शेषनाग रहते है। श्री हरी विष्णु के राम अवतार में शेषनाग पूरे समय लक्ष्मण के रूप में उनकी सेवा में रहे थे।
भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय उन्हें गोकुल ले जाते समय भयंकर वर्षा से बचाने के लिए शेषनाग ने अपने फन का छत्र बना कर, उन्हें सुरक्षा प्रदान की।
पुराणों में सूर्य के रथ में 12 नागों का उल्लेख मिलता है जो कि वर्ष के प्रत्येक महीने में उनके रथ के वाहक बनते है। इस प्रकार नाग भारतीय संस्कृति मे देव रूप में स्वीकार किये गए है।
एक पौराणिक कथा :-
पौराणिक कथा के अनुसार जब द्वापर युग में श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, तब उनके मामा कंस ने उन्हें मारने के लिए अनेक प्रयत्न किये और कलियाँ नाग को उन्हें मारने के लिए भेजा। कलियाँ नाग यमुना नदी में रहता था और इसके विष से पूरी नदी का पानी जहरीला हो गया था, जिससे आसपास की फसलें नष्ट हो रही थी और पशु भी मर रहे थे।
जब एक दिन श्री कृष्ण अपने मित्रों के साथ यमुना के तट पर खेल रहे थे, तो उनकी गेंद नदी में जा गिरी। तब वह गेंद लेने नदी में कूद गए, जहां कलियाँ नाग ने उन पर आक्रमण कर दिया, लेकिन श्री कृष्ण ने अपने पैरो से उसका फन कुचल दिया और कलियाँ नाग के अभिमान को चूर-चूर कर दिया।
कलियाँ नाग ने श्री कृष्ण से अपने प्राणों का दान माँगा और यमुना के तट को छोड़ कर जाने की बात मानी। कही कही इस दिन को कलियाँ नाग पर श्री कृष्ण की विजय के रूप में भी मनाया जाता है, इसलिए इस दिन का विशेष महत्व है।
नाग पंचमी पर निबंध
नाग पंचमी के विषय में सिर्फ एक कथा नहीं है, अपितु ऐसी अनेक कथाएँ है जिससे हमें नाग देवता की महानता का पता चलता है।
नागों को देवता और भगवान के समान माना गया है। प्राचीन काल से ही नाग पूजा का विशेष महत्व रहा है, स्त्रियां नाग को भाई के रूप में पूजती है।
नाग देवता को भाई का स्थान :-
प्राचीन काल में एक सेठ थे, जिनके सात पुत्र और पुत्र-वधुए थी। उनकी सबसे छोटी पुत्रवधू सुशील और उत्तम विचारो की महिला थी।
एक बार वह सभी बहुएँ घर छापने के लिए मिट्टी लेने गयी और खेत में मिट्टी खोदते समय वहां से एक सांप निकल गया।
जैसे ही बड़ी बहु ने उस सांप को मारने की कोशिश की। छोटी बहु ने उसे रोक लिया और सांप से कहा – “तुम हमारा यही इंतजार करो हम अभी आते है” लेकिन छोटी बहु वापस आना भूल गयी।
जब अगले दिन छोटी बहु को याद आया, तो वह दौड़ी दौड़ी वहां पहुँची और सांप से क्षमा मांगी और बोली भैया मुझे माफ़ करे। तब सांप ने उसे अपनी बहन बना लिया।
फिर कुछ दिनों पश्चात वह सांप मनुष्य रूप में छोटी बहू के घर पहुंचे और अपनी बहन को साथ ले जाने की अनुमति मांगी, लेकिन छोटी बहू के मायके में कोई भी नहीं है। यह बात उसके ससुराल वालों को पता थी।
तब सांप ने कहा में इसके दूर का रिश्तेदार हूँ और कई वर्षों बाद यहाँ आया हूँ। उसके विश्वास दिलाने के बाद छोटी बहु को उसके साथ भेज दिया गया।
सांप से उसे मार्ग में बताया की में तुम्हारा नाग भाई हूँ। उसके बाद छोटी बहु सांप के घर पहुँची और वहां के ऐश्वर्य को देख कर चकित रह गयी।
एक दिन नाग की माता ने छोटी बहु से कहा कि मैं बाहर जा रही हूँ, तू अपने भाई को ठंडा दूध दे देना, लेकिन भूल वश उसने उसे गरम दूध दे दिया और नाग का मुँह बुरी तरह से जल गया।
यह देख कर नाग माता बहुत क्रोधित हुई, लेकिन नाग ने कहा यह आपकी पुत्री है इसे क्षमा करे। कुछ समय पश्चात नाग ने अपनी बहन को उसके ससुराल भेजने की बात कही, तब नाग पिता ने छोटी बहु को सोना, चाँदी, हीरे जवाहरात और वस्त्र आदि देकर विदा किया।
इतने बहुमूल्य उपहार देख कर बड़ी बहु जल गयी और बोली तेरा भाई तो बहुत धनी व्यक्ति है। तुम्हें तो उससे और धन लाना चाहिये था। तब नाग ने यह बात सुन ली और सब सोने की वस्तु ला कर दे दी।
नाग ने अपनी बहन को एक बहुमूल्य हीरे-मणियों का हार दिया। उस हार की प्रशंसा पूरे राज्य में होने लगी। तो रानी ने वह हार अपने लिए मंगवा लिया। और यह बात छोटी बहु को बहुत बुरी लगी।
उसने अपने भाई नाग से कहा कि तुम ऐसा चमत्कार करो, कि जब भी वह हार कोई और पहने तो वह नाग बन जाये और मेरे गले मे पहनते ही पहले जैसा हो जाये। नाग ने बहन की ख़ुशी की ख़ातिर बिलकुल वैसा ही किया।
जब रानी ने वह हार पहना, तो वह नाग बन गया और रानी डर गयी। तो राजा ने छोटी बहु को बुलाया और उससे पूछा की तुमने इस पर कौन सा जादू किया है।
छोटी बहु ने कहा – राजन! मुझे क्षमा करो, पर यह हार दूसरे के गले में नाग बन जाता है और मेरे गले हीरे और मणियों का रहता है। तब राजा ने वह नाग बना हार उसे पहनने को दिया और वह पहले जैसा हार बन गया।
राजा उसकी सच्चाई से खुश हुआ और उसे इनाम में सोने की मुद्राएँ दी। उसके धन को देख कर बड़ी बहु ने ईर्ष्या के कारण उसके पति को भड़काया कि छोटी बहु के पास इतना धन कहा से आ रहा है।
यह सुनकर छोटी बहू के पति ने उस पर शक जताया और छोटी बहु ने नाग को याद किया। तब नाग ने वहां प्रकट हो कर कहा – मेरी बहन पवित्र है और यदि कोई मेरी बहन के आचरण पर शक करेगा, तो मैं उसे यमलोक पहुंचा दूंगा।
यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने नाग देवता का आदर सत्कार किया। उसी दिन से सभी महिलाएँ नाग को भाई मानकर उनकी पूजा अर्चना करती है और नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है।
यह अत्यंत प्राचीन पर्व है। भारत का नागों से एक अनूठा संबंध रहा है और देश के पर्वतीय प्रदेशों में नाग पूजा का विशेष महत्व है।
नागों का मूल स्थान पाताल लोक बताया गया है नाग पंचमी के दिन नागों को दूध नहीं पिलाना चाहिए, क्योंकि नाग दूध को पचा नहीं पाते है जिसके कारण उनकी मृत्यु होती है और व्यक्ति को नाग दोष लगता है।
इस दिन किसान अपने खेतों में हल नहीं चलता है ताकि किसी सांप को हानि न पहुंचे। नाग हमारी कृषि संपदा की कीटनाशक जीवों से रक्षा करते है और पर्यावरण का संतुलन बनाये रखने में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
नाग पंचमी पर हल न चलने के पीछे की कथा
एक समय लीला धर नाम का किसान था उसके तीन बेटे और एक बेटी थी। एक दिन जब लीला धर अपने खेतों में हल चला रहा था, तो उसके हल से सांप के बच्चे की मौत हो गयी।
जब सांप की माता ने अपने बच्चे को मृत देखा, तो अपने बच्चे की मृत्यु का बदला लेने वह किसान के घर पहुंची वहां जा कर उसने किसान सहित उसके पूरे परिवार को डस लिया, लेकिन बेटी को नहीं डस पाई थी।
अगले दिन लीला धर की बेटी को डसने के लिए वह उसके घर पहुँची। तब उस कन्या ने सांप की माता को खुश करने के लिए दूध का कटोरा भर कर रख दिया और उससे अपने पिता के द्वारा हुई गलती की माफ़ी मांगी।
जिससे सांप की माता प्रसन्न हो गयी और उसे वरदान मांगने के लिए कहा। तब उस कन्या ने अपने पूरे परिवार के लिए जीवन दान माँगा, साथ ही यह वरदान भी माँगा की अगर कोई सच्चे मन से इस दिन नागों की पूजा करे तो उसकी कई पीढ़ियां सुरक्षित रहे।
कहा जाता है कि सांप बिना किसी कारण के नहीं डसते है वह तब ही डसते है जब उन्हें किसी से खतरा महसूस होता है।
भारतीय संस्कृति में नागों को बहुत महत्व प्रदान किया गया है, इसलिए नाग पंचमी के त्यौहार का भी सदा विशेष महत्व रहा है। नाग पंचमी मनाने के साथ हमें नागों को न मरने का संकल्प भी लेना चाहिए, ताकि नागों की विलुप्त होती जातियों को बचाया जा सके।
जरूर पढ़े :
- सुहागनें वट सावित्री का व्रत क्यों करती हैं
- दशहरा का पर्व क्यों मनाया जाता है
- गुड़ी पड़वा क्यों कैसे मानते हैं
उम्मीद करते है दोस्तों आपको आज का हमारा आर्टिकल “नाग पंचमी” पसंद आया होगा और नाग पंचमी से संबंधित सभी प्रश्नों जैस नाग पंचमी क्यों मनाते है?
इसका क्या महत्व है और इस बार किस तिथि और तरीके से नाग पंचमी मनाये आदि की समस्त जानकारी आपको प्राप्त हुई होगी।