स्वतंत्रता आंदोलन के लेखक एवं प्रकाशित पत्र, पत्रिकाएँ एवं पुस्तकें

इस पेज पर आप स्वतंत्रता आंदोलन के लेखक एवं उन से संबंधित प्रकाशित पत्र, पत्रिकाएँ एवं पुस्तकें के बारे में समस्त जानकारी पड़ेगें जो परीक्षा की दृष्टि से जरुरी हैं।

पिछले पेज पर हमने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व की घटनाओ से सम्बन्धित जानकारी शेयर की हैं यदि आपने उस आर्टिकल को नहीं पढ़ा हैं तो जरूर पढ़िए।

तो चलिए इस पेज पर हम स्वतंत्रता आंदोलन के लेखक एवं प्रकाशित पत्र, पत्रिकाएँ एवं पुस्तको के बारे में पढ़ते हैं।

स्वतंत्रता आंदोलन के लेखक

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय आह्वानों, उत्तेजनाओं एवं प्रयत्नों से प्रेरित, भारतीय राजनैतिक संगठनों द्वारा संचालित अहिंसावादी और सैन्यवादी आन्दोलन था, जिनका एक समान उद्देश्य, अंग्रेजी शासन को भारतीय उप महाद्वीप से जड़ से अलग करना था।

इस आन्दोलन की शुरुआत 1857 में हुए सिपाही विद्रोह को माना जाता है। स्वाधीनता के लिए हजारों लोगों ने अपने प्राणों की बलि दी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1929 के लाहौर अधिवेशन में अंग्रेजो से पूर्ण स्वराज की मांग की।

तो चलिए नीचे आप स्वतंत्रता आंदोलन के लेखक एवं उन से संबंधित प्रकाशित पत्र, पत्रिकाएँ एवं पुस्तकों के बारे में पढ़िए जिसकी जानकारी होना आपके लिए जरूरी हैं क्योंकि इस टॉपिक से गवर्मेंट परीक्षा में प्रश्न पूछे जाते हैं इसलिए इस पोस्ट को पूरा जरूरी पढ़िएगा।

महात्मा गांधी

 महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में पोरबंदर कठियावाड़ गुजरात में हुआ था, महात्मा गांधी के पिता का नाम करमचंद गांधी था। करमचंद गांधी सनातन धर्म की पंसारी जाति से संबंध रखते थे, गुजराती भाषा में गांधी को “पंसारी” भी कहते हैं और हिंदी भाषा में गांधी शब्द का अर्थ है “फूल बेचने वाला” और इंग्लिश भाषा में इसको “परफ्यूमर” भी कहा जाता है।

इनकी माता का नाम पुतली बाई था जो कि परनामी वैश्विक समुदाय से थी महात्मा गांधी की माताजी बड़ी पूजा-पाठ वाली व भक्ति भाव करने वाली थी माता की देखरेख में मोहनदास पले बड़े थे, जिसका प्रभाव उन पर प्रारंभ में ही पड़ गया था उन प्रभावों ने आगे चलकर उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

मई 1883 मैं साढ़े 13 साल की आयु में गांधी जी का विवाह 14 साल की कस्तूरबा से कर दिया गया।

महात्मा गांधी 1888 ई0 में अपने 29 वें जन्मदिन पर यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में कानून की पढ़ाई करने चले गए, इंग्लैंड में गांधी जी ने वहां के लोगों को श्रीमद्भागवत गीता पढ़ने के लिए प्रेरित किया और वहां के लोगों को हिंदू ईसाई बौद्ध इस्लाम अन्य धर्मों के बारे में पढ़ने के लिए अपनी विशेष रुचि दिखाई।

इंग्लैंड से एसोसिएशन मैं वापस बुलाने पर वे भारत लौट आए और मुंबई में वकालत करने लगे जहां उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली उसके बाद उन्हें एक केस के सम्बध में दक्षिण अफ्रीका मिला जिसमें गाँधी जी की काबिलियत का सभी को पता चला।

उसके बाद दक्षिण अफ्रिका में उनका उत्साह व प्रंशसा को देख कर सभी यही सोचने लगे की देश की जो लड़ाई अग्रेंजो के साथ चल रही है उसमें इस तरह के व्यक्ति का साथ जरुरी है।

उसके बाद जब गाँधी जी स्वदेश वापस आये तो उन्होंने देश के हालातो को समझकर अपने अंत करण में एक नई ऊर्जा भर कर देश के आन्दोलन में जाने की इच्छा जाहिर की लेकिन उनके राजनैतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले द्वारा राह दिखाई गई।

तब उन्होंने सबसे पहला आन्दोलन सन् 1917 में चम्पारण बिहार से हुई जिसमें वहाँ किसानों से अग्रेंज जबरन नील की खेती कराते थे। जिसमें किसानों की बिल्कुल सहमति इस कार्य करने की नहीं थी।

फरवरी 1919 में रौलट एक्ट जो कि अंग्रेजों द्वारा बनाया गया कानून था जिसके तहत किसी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए जेल भेजने का प्रावधान था महात्मा गांधी ने इस एक्ट के  खिलाफ अंग्रेजों का विरोध किया फिर गांधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन की घोषणा की जिससे एक ऐसा राजनीतिक भूचाल आया।

1919 में पूरे समूचे उपमहाद्वीप  को  हिला कर रख दिया महात्मा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपने और अभियान सत्याग्रह और अहिंसा का विरोध जारी रखा उन्होंने असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, दांडी यात्रा, भारत छोड़ो आंदोलन और इन सब के बाद गांधी जी को आखिर में सफलता मिल ही गई।

भारत को 15 अगस्त 1947 को गांधी जी ने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए स्वतंत्रता मिली अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर ही दिया तभी से संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2007 से गांधी जयंती को विश्व अहिंसा दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा कर दी।

लेकिन महात्मा गाँधी केवल सत्य, अंहिसा के मार्ग को प्रतिस्त तो कर ही रहे थे। साथ ही वह  महात्मा गाँधी जी द्वारा रचित साहित्य पुस्तके व प्रकाशित पत्र, पत्रिकाएँ  हैं – यंग इडिंया, हरिजन, नवजीवन, हिन्द स्वराज, माई एक्सपेरीमेंट विथ टूथ है।

30 जनवरी 1948 को जब गाँधी जी नई दिल्ली के बिड़ला भवन में चहलकदमी कर रहे थे उस समय नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई।

रवीन्द्र नाथ टैगोर

रवीन्द्र नाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ासाँको बाड़ी में हुआ। इनके पिताजी का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर और माताजी का नाम शारदा देवी था।

रवीन्द्र नाथ टैगोर ने अपनी आरम्भिक शिक्षा प्रतिष्ठित सेंट स्कूल से की, बैरिस्टर बनने की इच्छा में उन्होंने 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में एडमिशन लिया फिर लन्दन विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया लेकिन 1880 में बिना डिग्री प्राप्त किए ही स्वदेश वापस लौट आए। सन् 1883 में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ।

रवीन्द्र नाथ टैगोर की माता का निधन उनके बचपन में हो गया था और उनके पिता व्यापक रूप से यात्रा करने वाले व्यक्ति थे, अतः उनका लालन-पालन ज्यादातर नौकरों द्वारा ही किया जाता था।

टैगोर परिवार बंगाल पुनर्जागरण के समय अग्रणी था उन्होंने साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन किया बंगाली और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत एवं रंगमंच और पटकथाएं वहां नियमित रूप से प्रदर्शित हुईं थीं।

11 वर्ष की उम्र में उनके उपनयन संस्कार के बाद, टैगोर और उनके पिता कई महीनों के लिए भारत का दौरा करने के लिए फरवरी 1873 में कलकत्ता छोड़कर अपने पिता के शांतिनिकेतन सम्पत्ति और अमृतसर से डेलाहौसी के हिमालयी पर्वतीय स्थल तक निकल गए थे। वहां टैगोर ने जीवनी, इतिहास, खगोल विज्ञान, आधुनिक विज्ञान और संस्कृत का अध्ययन किया था और कालिदास की शास्त्रीय कविताओं के बारे में भी पढ़ाई की थी।

1873 में अमृतसर में अपने एक महीने के प्रवास के दौरान, वह सुप्रभात गुरबानी और नानक बनी से बहुत प्रभावित हुए थे, जिन्हें स्वर्ण मंदिर में गाया जाता था जिसके लिए दोनों पिता और पुत्र नियमित रूप से आगंतुक थे। उन्होंने इसके बारे में अपनी पुस्तक मेरी यादों में उल्लेख किया जो 1912 में प्रकाशित हुई थी।

उन्होने सन् 1901ई0 में विश्व भारतीय विश्वविध्यालय स्थापित किया। मानव संस्कृति, अध्यात्मवाद तथा राष्ट्रीयता एवं अन्तर्राष्ट्रीयता के निमित समर्पित व्यक्तित्व टैगोर गुरुदेव के नाम से प्रसिध्द हैं। वे भारत के राष्ट्रीयगान के प्रणेता, बांग्लादेश के राष्ट्रीयगान के प्रणेता, गीतांजलि, गोरा के लेखक थे।

1913 में गींताजलि पुस्तक के लिये नोबल पुरुस्कार के साथ-साथ ब्रिटिश सरकार द्वारा नाइटहुड (सर) की उपाधि से सम्मानित हुए। इन्होने स्वदेशी आन्दोलनों में सक्रिय रुप से भाग लिया तथा 1919 के जलियाँवाला काण्ड के विरोध में नाइट हुड (सर) की उपाधि त्याग दी। 7 अगस्त 1941 को कलकत्ता में रवींद्रनाथ टैगोर का निधन हो गया था।

डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद

राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे इनका जन्म 3 दिसम्बर 1884 को हुआ था राजेन्द्र प्रसाद के पूर्वज मूलरूप से कुआँगाँव, अमोढ़ा (उत्तर प्रदेश) के निवासी थे। यह एक कायस्थ परिवार था। इन्होंने 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक राष्ट्रपति पद का शासन संभाला।

राजेन्द्र प्रसाद के पिता महादेव सहाय संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे एवं उनकी माता कमलेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं। 5 वर्ष की उम्र में ही राजेन्द्र बाबू ने एक मौलवी साहब से फारसी में शिक्षा लेना शुरू किया। उसके बाद वे अपनी प्रारंभिक शिक्षा के लिए छपरा के जिला स्कूल गए।

राजेंद्र प्रसाद का विवाह उस समय के अनुसार बाल्यकाल में ही, लगभग 13 वर्ष की उम्र में, राजवंशी देवी से हो गया। विवाह के बाद भी उन्होंने पटना की टी० के० घोष अकादमी से अपनी पढाई जारी रखी। उनका वैवाहिक जीवन बहुत सुखी रहा और उससे उनके अध्ययन अथवा अन्य कार्यों में कोई रुकावट नहीं पड़ी।

राजेन्द्र प्रसाद जल्द ही जिला स्कूल छपरा चले गये और वहीं से 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा दी। उस प्रवेश परीक्षा में उन्हें प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था।

सन् 1902 में उन्होंने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। उनकी प्रतिभा ने गोपाल कृष्ण गोखले तथा बिहार-विभूति अनुग्रह नारायण सिन्हा जैसे विद्वानों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।

1915 में उन्होंने स्वर्ण पद के साथ विधि परास्नातक (एलएलएम) की परीक्षा पास की और बाद में लॉ के क्षेत्र में ही उन्होंने डॉक्ट्रेट की उपाधि भी हासिल की। राजेन्द्र बाबू कानून की अपनी पढाई का अभ्यास भागलपुर, बिहार में किया करते थे।

ये भारत के प्रमुख स्वाधीनता सेनानी थे 1917 के चम्पारन आन्दोलन में वे महात्मा गाँधी के अनुयायी बन गए 1934 ई0 को काँग्रेस के बंबई अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गये। तथा 1946 ई0 की अंतरिम सरकार में वे खाद्द व कृषि मंत्री बने।

राजेन्द्र बाबू ने अपनी आत्मकथा 1946 के अतिरिक्त कई पुस्तकें भी लिखी जिनमें बापू के कदमों में बाबू (1954), इण्डिया डिवाइडेड (1946), सत्याग्रह ऐट चम्पारण (1922), गान्धीजी की देन, आदि।

सन 1962 में अवकाश प्राप्त करने पर राष्ट्र ने उन्हें भारत रत्‍न की सर्वश्रेष्ठ उपाधि से सम्मानित किया। यह उस पुत्र के लिये कृतज्ञता का प्रतीक था जिसने अपनी आत्मा की आवाज़ सुनकर आधी शताब्दी तक अपनी मातृभूमि की सेवा की थी। इन्होने देश नामक साप्ताहिक समाचार पत्र का संपादन किया साथ ही इंडिया डिवाइडेड नामक पुस्तक की रचना भी की।

अपने जीवन के आख़िरी महीने बिताने के लिये उन्होंने पटना के निकट सदाकत आश्रम चुना। यहाँ पर 28 फ़रवरी 1963 को राजेन्द्र प्रसाद का निधन हो गया।

मदनमोहन मालवीय

मदनमोहन मालवीय का जन्म इलाहाबाद (प्रयागराज) में 25 दिसम्बर 1861 ई0 को हुआ था। इनका पूरा नाम महामना मदन मोहन मालवीय था। इनके पिताजी का नाम ब्रजनाथ व माताजी का नाम मूनादेवी था। यह काशी हिन्दु विद्धालय प्रणेता व तत्कालीन समाज के एक आदर्श व्यक्तित्व वाले विचारक थे।

मदनमोहन मालवीय जी को उनके माता-पिता ने 5 वर्ष की आयु में संस्कृत भाषा में प्रारम्भिक शिक्षा लेने हेतु पण्डित हरदेव धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला में भर्ती करा दिया जहाँ से उन्होंने प्राइमरी परीक्षा उत्तीर्ण की।

उसके पश्चात वे एक अन्य विद्यालय में भेज दिये गये जिसे प्रयाग की विद्यावर्धिनी सभा संचालित करती थी। यहाँ से शिक्षा पूर्ण करके वे इलाहाबाद के जिला स्कूल पढने गये।

इलाहाबाद में उन्होंने मकरंद के उपनाम से कवितायें लिखनी प्रारम्भ कीं। यह पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार, मातृभाषा तथा भारत माता की सेवा में इन्होने अपना पूरा जीवन अर्पण कर दिया। यह साहित्य के बहुत धनी थे।

इन्होने कुछ पुस्तक, पत्र- पत्रिकाओं का संपादन किया हैं वे हैं – अभ्युदय, लीडर, हिस्दुस्तान उनकी कवितायें पत्र-पत्रिकाओं में छपती थीं। लोग उन्हें चाव से पढते थे। 1

879 में उन्होंने म्योर सेण्ट्रल कॉलेज से, जो आजकल इलाहाबाद विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है, दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। हैरिसन स्कूल के प्रिंसपल ने उन्हें छात्रवृत्ति देकर कलकत्ता विश्वविद्यालय भेजा जहाँ से उन्होंने 1884 ई० में बी०ए० की उपाधि प्राप्त की।

85 वर्ष की आयु में 12 नवम्बर 1946 को बनारस में मदनमोहन मालवीय का निधन हो गया।

मोतीलाल नेहरु

मोतीलाल नेहरू का जन्म 6 मई 1861 को आगरा (उत्तरप्रदेश) में हुआ था उनके पिता का नाम गंगाधर था एवं मोतीलाल भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पिता थे।

मोतीलाल इलाहाबाद के एक प्रसिद्ध अधिवक्ता थे इन्होने इलाहाबाद के म्योर केन्द्रीय विद्यालय से शिक्षा ग्रहण की तथा फिर कैम्ब्रिज (इंग्लैण्ड) से बार एट लाँ की उपाधि प्राप्त की इसके बाद इन्होने लम्बे समय तक इलाहाबाद में रह कर एक प्रसिध्द अधिवक्ता के रुप में कार्य किया वह पश्चिमी ढँग की शिक्षा पाने वाले प्रथम पीढ़ी के गिने-चुने भारतीयों में से थे।

मोतीलाल इलाहाबाद के म्योर केंद्रीय महाविद्यालय में शिक्षित हुए किन्तु बी०ए० की अन्तिम परीक्षा नहीं दे पाए बाद में उन्होंने कैम्ब्रिज से “बार ऐट लॉ” की उपाधि ली और अंग्रेजी न्यायालयों में अधिवक्ता के रूप में कार्य प्रारम्भ किया।

मोतीलाल नेहरू की पत्नी का नाम स्वरूप रानी था। जवाहरलाल नेहरू उनके एकमात्र पुत्र थे एवं उनकी पुत्री भी थी, उनकी बड़ी बेटी का नाम विजयलक्ष्मी था, जो आगे चलकर विजयलक्ष्मी पण्डित के नाम से प्रसिद्ध हुई, उनकी छोटी बेटी का नाम कृष्णा था जो बाद में कृष्णा हठीसिंह कहलायीं।

मोतीलाल नेहरू ने अपनी वकालत छोडकर भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में कार्य किया था। 1923 में उन्होने देशबंधु चित्तरंजन दास के साथ काँग्रेस पार्टी से अलग होकर अपनी स्वराज पार्टी की स्थापना की।

1928 में कोलकाता में हुए काँग्रेस अधिवेशन के वे अध्यक्ष चुने गये। 1928 में काँग्रेस द्वारा स्थापित भारतीय संविधान आयोग के भी वे अध्यक्ष बने। इसी आयोग ने नेहरू रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।

मोतीलाल नेहरू ने इलाहाबाद में एक अलीशान घर बनवाया और उसका नाम आनंद भवन रखा। इसके बाद उन्होंने अपना पुराना वाला घर स्वराज भवन काँग्रेस दल को दे दिया।

वे भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के आरम्भिक कार्यकर्ताओं की मुख्य कड़ी में से एक थें उन्होने इस संबध में कई पुस्तक, पुस्तिकाये, तथा पत्र-पत्रिकाओं की रचना की जिनमें मुख्यतः इंडिपेडेंट थी। मोतीलाल नेहरू का 1931 में इलाहाबाद में निधन हो गया।

अरविंन्द घोष

अरविंन्द घोष का जन्म 15 अगस्त 1872 ई0 को कलकत्ता बंगाल में हुआ था, यह एक योगी व एवं दार्शनिक थे, इनके पिता एक डाक्टर थे इन्होंने युवा अवस्था में स्वतन्त्रता संग्राम में क्रान्तिकारी के रूप में भाग लिया, किन्तु बाद में यह एक योगी बन गये और इन्होंने पांडिचेरी में एक आश्रम स्थापित किया।

वेद, उपनिषद ग्रन्थों आदि पर टीका लिखी योग साधना पर मौलिक ग्रन्थ लिखे। उनका पूरे विश्व में दर्शन शास्त्र पर बहुत प्रभाव रहा और उनकी साधना पद्धति के अनुयायी सब देशों में पाये जाते हैं यह कवि भी थे और गुरु भी।

अरविन्द के पिता डॉक्टर कृष्णधन घोष उन्हें उच्च शिक्षा दिला कर उच्च सरकारी पद दिलाना चाहते थे, इसलिए सिर्फ 7 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने अरविंन्द घोष इंग्लैण्ड भेज दिया। उन्होंने केवल 18 वर्ष की आयु में ही आई० सी० एस० की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। इसके साथ ही उन्होंने अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, ग्रीक एवं इटैलियन भाषाओँ में भी निपुणता प्राप्त की थी।

यह स्वच्छ विचार रखने वाले व्यक्ति थे। इन्होंने युवा अवस्था से ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागेदारी निभाई तथा बाद में यह योगी बन गये तथा अपना निवास स्थान एक आश्रम को बनाया जो कि पाँडिचेरी में स्थित था।

इनको वेद, उपनिषद, पुराणो आदि का बेहद अच्छा ज्ञान था इनमें कवि तथा गुरु दोनों तरह की प्रकृति थी। इनके द्वारा रचित पुस्तके व पत्रिकायें कर्मयोगी, युगान्तर, लाइफ डिवाइन, वन्देमातरम्, सावित्री आदि हैं।

30 मई 1909 को उत्तरपाड़ा में एक संवर्धन सभा की गयी वहाँ अरविन्द का एक प्रभावशाली व्याख्यान हुआ जो इतिहास में उत्तरपाड़ा अभिभाषण के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने अपने इस अभिभाषण में धर्म एवं राष्ट्र विषयक कारावास-अनुभूति का विशद विवेचन करते हुए कहा था।

दिव्य जीवन, द मदर, लेटर्स आन् योगा, सावित्री, योग समन्वय, फ्यूचर पोयट्री आदि साहित्यिक कार्य किए 5 दिसम्बर 1950 को पाण्डिचेरी में अरविंन्द घोष का निधन हो गया।

बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 ई0 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में हुआ था। यह शुरु से ही एक क्रान्तिकारी थे यह आधुनिक कालेज से शिक्षित पहली भारतीय पीढी से थे। गणित इनके रोचक विषयो में से एक था लेकिन अंग्रेजी विषय के सर्वोधिक विरोधी थे।

लोकमान्य तिलक ने इंग्लिश मेमराठा दर्पण व मराठी में केसरी नाम से दो दैनिक समाचार पत्र शुरू किये जो जनता में बहुत लोकप्रिय हुए। लोकमान्य तिलक ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की बहुत आलोचना की। उन्होंने माँग की कि ब्रिटिश सरकार तुरन्त भारतीयों को पूर्ण स्वराज दे। केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया।

लोकमान्य तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन जल्द ही वे कांग्रेस के नरमपंथी रवैये के विरुद्ध बोलने लगे। 1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गयी। गरम दल में लोकमान्य तिलक के साथ लाला लाजपत राय और श्री बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे। इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाने लगा।

1908 में लोकमान्य तिलक ने क्रान्तिकारी प्रफुल्ल चाकी और क्रान्तिकारी खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) स्थित मांडले की जेल भेज दिया गया। जेल से छूटकर वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गये और 1916 में एनी बेसेंट जी और मुहम्मद अली जिन्ना के साथ अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की।

इन्होने दक्कन शिक्षा सोसायटी की स्थापना इस वजह से की क्योंकि भारत का आने वाला युवा शिक्षित हो सके। तथा शिक्षा स्तर में कहीं न कहीं सुधार हो बाल गगाधर तिलक ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की विभिन्न मौके पर अध्यता की तथा देश को आन्दोलन से जोड़ने के लिये इन्होने मराठी में केसरी नाम से दो दैनिक समचार पत्र शुरु किये जो जनता में बहुत लोकप्रिय हुए।

उन्होने इनमें भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की बहुत आलोचना की तथा सबसे पहले पूर्ण स्वराज की माँग की उनके द्वारा समाचार पत्र व पुस्तिकाऐ – केसरी (मराठी), द मराठा (अंग्रेजी), गीता – रहस्य की शुरआत व रचना की गई।

ब्रिटिश सरकार ने लोकमान्य तिलक को 6 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई इस दौरान कारावास में लोकमान्य तिलक ने किताबो की मांग की लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हे ऐसे किसी पत्र को लिखने पर रोक लगायी थी जिसमे राजनैतिक गतिविधियां हो।

लोकमान्य तिलक ने कारावास में एक किताब भी लिखी, कारावास की पूर्ण होने के कुछ समय पूर्व ही बाल गंगाधर तिलक की पत्नी का स्वर्गवास हो गया, इस ढुखद खबर की जानकारी उन्हे जेल में एक ख़त से प्राप्त हुई। और लोकमान्य तिलक को इस बात का बेहद अफसोस था की वे अपनी म्रतक पत्नी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सकते।

सन 1919 ई. में कांग्रेस की अमृतसर बैठक में हिस्सा लेने के लिये स्वदेश लौटने के समय तक लोकमान्य तिलक इतने नरम हो गये थे कि उन्होंने मॉन्टेग्यू-चेम्सफ़ोर्ड सुधारों के द्वारा स्थापित लेजिस्लेटिव कौंसिल (विधायी परिषद) के चुनाव के बहिष्कार की गान्धी जी की नीति का विरोध ही नहीं किया।

लोकमान्य तिलक ने क्षेत्रीय सरकारों में कुछ हद तक भारतीयों की भागीदारी की शुरुआत करने वाले सुधारों को लागू करने के लिये प्रतिनिधियों को यह सलाह अवश्य दी कि वे उनके प्रत्युत्तरपूर्ण सहयोग की नीति का पालन करें। लेकिन नये सुधारों को निर्णायक दिशा देने से पहले ही 1 अगस्त, 1920 ई. को बम्बई में उनकी मृत्यु हो गयी।

स्वतंत्रता आंदोलन के लेखक व उनके द्वारा लिखी गई पुस्तके, पत्रकाये व समाचार पत्र

पत्र-पत्रिकाएँ एवं पुस्तकेंलेखक या संपादक
इंडियन मिरर, वाम बोधिनीकेशवचंन्द्र सेन
इंडिपेंडेंटमोतीलाल नेहरु
अभ्युदय, लीडर, हिन्दुस्तानमदन मोहन मालवीय
कामरेड, हमदर्दमुहम्मद अली
कालपरांजपे
केसरी (मराठी), द मराठा (अंग्रेजी), गीता रहस्यबाल गंगाधर तिलक
कर्मयोगी, युगान्तर, वन्देमातरम्, लाइफ डिवाइन, सावित्रीअरविंद घोष
नेशनगोपाल कृष्ण गोखले
बंगाली, ए नेशन इन मेकिंगसुरेन्द्र नाथ बनर्जी
यंग इंडिया, हरिजन, नवजीवन, हिन्द स्वराज, माई एक्सपेरीमेंट विथ टूथमहात्मा गाँधी
संवाद कौमुदीराजा राममोहन राय
भवानी मंदिरवीरेन्द्र कुमार घोष
सोमप्रकाशईश्वरचन्द्र विधासागर
अमृतबाजार पत्रिका (वर्नाकुलर प्रेस एक्ट के कारण बांग्ला से अंग्रेजी में प्रकाशित होने लगा) शिशिर कुमार घोष
फ्री हिन्दुस्तानतारकनाथ दास
द रिवोल्यूशनरीशचींन्द्रनाथ सान्याल
इंडिया डिवाइहेड डा0 राजेन्द्र प्रसाद
इंडिया विन्स फ्रीडम, गुब्बारे खातिर, अल हिलालअबुल कलाम आजाद
अनहैपी इंडियालाला लाजपत राय
डिस्कवरी आँफ इंडिया, ग्लिम्प्सेज आँफ व्लर्ड हिस्ट्री, मेरी कहानीजवाहरलाल नेहरु
इंडियन फाँर इण्डियन्सचित्तरंजन दास
इंडियन अनरेस्टसर वैलेंटाइन शिराँल
वाँर आँफ इंडियन इंडिपेन्डेन्स वीर सावरकर
नील दर्पण दीनबंधु मित्र
सोजो वतन, कर्मभूमि, शतरंज के खिलाड़ीप्रेमचन्द्र
बाँगे दरा, तराने हिन्दमुहम्मद इकबाल
भारत भारतीमैथलीशरण गुप्त
भारत दुर्दशाभारतेन्दु हरिश्चंन्द्र
काँग्रेस का इतिहास पट्टाभि सीतारमय्या
सत्यार्थ प्रकाशदयानंद सरस्वती
इंडियन स्ट्रगलसुभाष चन्द्र बोस
आनंदमठ, देवी चोधरानीबंकिमचन्द्र चटोपाध्याय

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