शिक्षा की परिभाषा, इतिहास, महत्व, उद्देश्य, प्रकार, और लाभ

शिक्षा लोगों के लिए एक ऐसा हथियार है जिसके द्वारा वह उच्च गुणवत्ता वाला जीवन जी सकते हैं। इस पेज पर आप शिक्षा की समस्त जानकारी पढ़ने वाले हैं तो आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़िए।

पिछले पेज पर हमने विज्ञान की समस्त जानकारी शेयर की हैं तो उसे जरूर पढ़िए। चलिए आज हम शिक्षा की जानकारी पढ़ते और समझते हैं।

शिक्षा किसे कहते हैं

शिक्षा शब्द का मतलब सीखने-सिखाने की क्रिया होती है। शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की बाहरी दुनिया, किसी विशेष या निश्चित क्षेत्र के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।

Education
शिक्षा

शिक्षा किसी भी विषय को जानने अथवा सीखने की प्रक्रिया होती है। शिक्षा कभी समाप्त नहीं होती है। यह मनुष्य को शिक्षित बनाती हैं।

भारत में शिक्षा का इतिहास

भारत में शिक्षा का एक समृद्ध और दिलचस्प इतिहास है। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों द्वारा मौखिक रूप से शिक्षा दी जाती थी और जानकारी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाई जाती थी।

अक्षरों के विकास के बाद इसने ताड़ के पत्तों और पेड़ों की छाल का उपयोग करके लेखन का रूप ले लिया। इससे लिखित साहित्य के प्रसार में भी मदद मिली। मंदिरों और सामुदायिक केंद्रों ने स्कूलों की भूमिका निभाई। बाद में, शिक्षा की गुरुकुल प्रणाली अस्तित्व में आई।

गुरुकुल शिक्षा के पारंपरिक हिंदू आवासीय विद्यालय थे जो आमतौर पर शिक्षक के घर या मठ में होते थे। शिक्षा मुफ्त होने के बावजूद संपन्न परिवारों के छात्रों ने गुरुदक्षिणा का भुगतान किया जो उनकी पढ़ाई पूरी होने के बाद अपनी इच्छा से देने वाला योगदान था।

गुरुकुलों में शिक्षक धर्म के विभिन्न पहलुओं, शास्त्रों, दर्शन, साहित्य, युद्ध, राज्य शिल्प, चिकित्सा ज्योतिष और इतिहास पर ज्ञान प्रदान करते थे। इस प्रणाली को शिक्षा की सबसे पुरानी और सबसे प्रभावी प्रणाली के रूप में जाना जाता हैं।

पहली सहस्राब्दी में और कुछ सदियों पहले, नालंदा, तक्षशिला विश्वविद्यालय, उज्जैन और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा का विकास हुआ था। महत्वपूर्ण विषय मुख्य रूप से कला, वास्तुकला, पेंटिंग, तर्क, व्याकरण, दर्शन, खगोल विज्ञान, साहित्य, बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म, अर्थशास्त्र, कानून और चिकित्सा थे। 

ब्रिटिश रिकॉर्ड से पता चलता है कि 18 वीं शताब्दी में देश के अधिकांश क्षेत्रों में हर मंदिर, मस्जिद या गांव के लिए एक स्कूल शिक्षा थी। जिसमे मुख्य विषय अंकगणित, धर्मशास्त्र, कानून, खगोल विज्ञान, नैतिकता, चिकित्सा विज्ञान और धर्म थे। 

केरल का पहला मेडिकल कॉलेज द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1942-43 में कालीकट में शुरू किया गया था। 1964 में, शिक्षा आयोग ने 16 सदस्यों के साथ काम करना शुरू किया, जिनमें से 11 भारतीय विशेषज्ञ थे और 5 विदेशी विशेषज्ञ थे। 

बाद में 1976 में संविधान में किए एक संशोधन के माध्यम से शिक्षा राज्य और केंद्र दोनों की जिम्मेदारी बन गई। NPE 1986 और संशोधित POA 1992 ने यह बताया कि 21वीं सदी की शुरुआत से पहले 14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जायेगी। 

साथ ही भारत सरकार ने यह वचन दिया कि 2000 तक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 6% शिक्षा पर खर्च किया जाएगा, जिसमें से आधा प्राथमिक शिक्षा पर खर्च किया जाएगा।

शिक्षा का महत्व

शिक्षा लोगों को स्वतंत्र बनाती है। इसके अलावा यह ज्ञान को बढ़ाती है, मन को मजबूत करती है, और बेहतर चरित्र बनाती है। इसके अलावा शिक्षा लोगों को अपनी क्षमता का अधिक से अधिक उपयोग करने के सक्षम बनाती हैं।

शिक्षा भी मानव मन के लिए एक प्रकार का सुधार है। शिक्षा के बिना मानव मन हमेशा अधूरा रहेगा। शिक्षा एक व्यक्ति को एक सही निर्णय लेने वाला और एक सही विचार रखने वाला व्यक्ति बनाती हैं।

शिक्षा व्यक्ति को उसके आसपास और उससे परे की दुनिया के ज्ञान से परिचित कराती है। शिक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्ति के पास अपनी पसंद के जीवन जीने के लिए अधिक अवसर होते है।

यही कारण है कि रोजगार के उद्देश्य से अशिक्षित लोगों की तुलना में शिक्षित लोगों की इतनी अधिक मांग हैं।

शिक्षा की कमी के नकारात्मक प्रभाव

विद्या के बिना व्यक्ति अपने आप को फंसा हुआ महसूस करता है। इसे एक ऐसे व्यक्ति के उदाहरण से समझा जा सकता है जो एक अंधेरे कमरे में बंद है।

बाहरी दुनिया से पूरी तरह से अनजान है, बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है। एक अशिक्षित व्यक्ति की तुलना इसी व्यक्ति से की जा सकती हैं।

विद्या व्यक्ति को खुली दुनिया में प्रवेश करने में सक्षम बनाती है। इसके अलावा विद्या के बिना एक व्यक्ति पढ़ने और लिखने में असमर्थ होता है।

बिना विद्या वाला व्यक्ति उन सभी ज्ञान से अनजान रहता है जो एक शिक्षित व्यक्ति किताबों और अन्य माध्यमों से प्राप्त कर सकता हैं।

शेष विश्व की साक्षरता दर 80% से अधिक तो वही भारत की साक्षरता दर लगभग 60% है।

इसके अलावा, 2001 की जनगणना के अनुसार महिला की साक्षरता दर 54.16% है। यह आंकड़े भारत में शिक्षा की कमी की भारी समस्या को उजागर करते हैं।

सरकार इस समस्या को हल करने के लिए मुफ्त विद्या कार्यक्रम आदि जैसे विभिन्न साक्षरता कार्यक्रम चला रही है।

इन कार्यक्रमों की लगातार सफलता दर के साथ, उम्मीद है कि चीजें बेहतर हो जायेगी।

शिक्षा का अधिकार

वर्ष 2002 में 86वें संविधान के संशोधन से शिक्षा के अधिकार को संविधान के भाग 3 में एक मौलिक अधिकार के तहत शामिल किया गया। 

इसे अनुच्छेद 21A के अंतर्गत शामिल किया गया है जिसमें 6-14 वर्ष के बच्चों के लिये शिक्षा के अधिकार को एक मौलिक अधिकार बना दिया गया। 

शिक्षा के अधिकार का महत्व

व्यक्तिगत विकास करने के लिए शिक्षा एक आवश्यक शर्त है। यह वही है जो किसी भी व्यक्ति को देश के नागरिक के तौर पर उसे अनेक कार्यों के लिए उपयुक्त बना सकता है।

इसके अलावा जब आप शिक्षित नहीं होंगे तो आप शायद ही राजनीति को समझ पाएंगे।

यह लोकतंत्र की विफलता होगी। विद्या का अधिकार एक नागरिक अधिकार है। हालांकि यह सभी के लिए समान प्रशिक्षण की गारंटी नहीं देता हैं।

शिक्षा के अधिकार के बिना लोग अपनी इच्छानुसार अपना जीवन नहीं जी पाएंगे। इस प्रकार, शिक्षा का अधिकार उन लोगों के लिए जीवन बदलने वाला हो सकता है जो अपना जीवन बदलना चाहते हैं।

यह व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के किसी भी अन्य नागरिक की तरह शिक्षा तक पहुंच प्राप्त करने में मदद करता हैं।

शिक्षा के अधिकार के लाभ

ऐसे कई लाभ हैं जो शिक्षा का अधिकार हमें प्रदान करते हैं। सबसे पहले, इसने शिक्षा में आसानी के मामले में समाज में कई बदलाव लाए हैं। इसके अलावा, यह सभी के लिए एक सुसंगत शुल्क संरचना सुनिश्चित करता हैं।

दूसरे शब्दों में, स्कूल फीस में अचानक कोई बढ़ोतरी नहीं कर सकते ताकि लोगों को इससे परेशानी न हो। उसके बाद, यह यह भी सुनिश्चित करता है कि सभी को विद्या उपलब्ध कराकर सभी को आसानी से मिल जाए।

बहुत से वंचित छात्रों को प्रतिभा होने के बावजूद पर्याप्त संसाधन नहीं मिल पाते हैं। इस प्रकार, यह सुनिश्चित करता है कि वे अपनी विद्या को सही तरीके से आगे बढ़ा सकें। नतीजतन, यह एक राष्ट्र की साक्षरता दर को बढ़ाता हैं।

यह निस्संदेह किसी भी देश के लिए एक बड़ा लाभ है। इसके अलावा, यह विशेष रूप से विभिन्न आर्थिक पृष्ठभूमि से संबंधित लोगों के लिए किसी भी प्रकार के भेदभाव को दूर करता है। इसी तरह यह विकलांग लोगों पर भी लागू होता हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह सुनिश्चित करता है कि स्कूल उन लोगों को सीट प्रदान करें जो अपनी फीस का भुगतान नहीं कर सकते।

इस प्रकार, यह वंचित लोगों को इसमें भाग लेने में मदद करता है जिससे शिक्षा समाज के सभी क्षेत्रों तक पहुँचती हैं।

भारत में शिक्षा के समस्या का समाधान कैसे होना चाहिए

यह एक सच्चाई है कि भारत में हमारी शिक्षा प्रणाली सबसे अच्छी नहीं है। सुधारों की कमी इसे काफी उबाऊ और अप्रभावी बना रही है। छात्र पढ़ाई में ज्यादा रुचि नहीं ले रहे हैं। ऐसे कई कारण हैं जो छात्रों की शिक्षा के प्रति अरुचि की इस समस्या का समर्थन कर रहे हैं।

हमारी शिक्षा प्रणाली का सबसे बोझिल पहलू केवल किताबों और कागजी कार्रवाई पर ध्यान देना है। आज की दुनिया में कंप्यूटर असिस्टेड तकनीकों के माध्यम से विद्या दी जानी चाहिए। शिक्षा प्रणाली में सभी कार्यों को पूरी तरह से कम्प्यूटरीकृत किया जाना चाहिए।

शिक्षकों को छात्रों को शिक्षा और सीखने के आकर्षण के साथ-साथ ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। शिक्षकों को छात्रों को ज्ञान प्रदान करने की प्रक्रिया में रोमांच को प्रकट करना चाहिए। 

हमारी सरकार द्वारा हमारी शिक्षा प्रणाली की कमियों को दूर करने के लिए कई नीतियां पेश की गई हैं। इसलिए यह एक बेहतरीन शुरुआत है। छात्रों के स्कूल आने-जाने पर नजर रखने के लिए फुलप्रूफ सिस्टम होना चाहिए। 

पहचान पत्र (Identity Card) में लगे सेंसर माता-पिता को अपने बच्चों के स्कूल आने और जाने की पुष्टि करने के लिए ऑटोमैटिक मैसेज भेजते हैं सभी स्कूलों को इस नई तकनीक का उपयोग करना चाहिए। 

भारत के सबसे अधिक शिक्षित व्यक्ति

चेन्नई के प्रोफेसर वीएन पार्थिबान भारत के सबसे अधिक शिक्षित व्यक्ति है। ऐसा इसलिए क्योंकि इनके पास 145 शैक्षणिक डिग्रियां हैं।

सुनने में तो यह मजाक लगेगा, लेकिन इन्होंने 30 वर्ष की पढ़ाई में इतनी डिग्रियां हासिल कर ली हैं।

उन्होंने कानून से लेकर एमबीए तक की पढ़ाई की है और चेन्नई के कई कॉलेजों में 100 से ज्यादा विषय पढ़ाते हैं। 

वीएन पार्थिबन की डिग्रियां

  • 12 Research Degrees
  • 8 Master Of Law Degrees
  • 10 MA Degrees
  • 8 M.Com Degrees
  • 3 M.Sc Degrees
  • 9 MB Degrees

2011 की जनगणना के अनुसार भारत में साक्षरता दर

भारत/राज्य/केन्द्र शासित प्रदेशसाक्षरता दर (%) – 2011 जनगणनापुरुष साक्षरता दर (%) – 2011 जनगणनामहिला साक्षरता दर (%) – 2011 जनगणनासाक्षरता दर (%) – 2011 जनगणनादशकिय अन्तर
भारत74.0482.146564.839.21
केरल93.9196.0291.9890.863.05
लक्षद्वीप92.2896.1188.2586.665.62
मिजोरम91.5893.7289.488.82.78
त्रिपुरा87.7592.1883.157314.56
गोवा87.492.8181.84825.39
दमन और दीव8791.4879.59788.89
पुडुचेरी8792.1281.2281.245.31
चण्डीगढ़8690.5481.38824.49
दिल्ली86.3491.0380.93824.67
अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह8690.1181.8481.34.97
हिमाचल प्रदेश8490.8376.6767.3
महाराष्ट्र8389.8275.48776.03
सिक्किम8287.2976.436913.39
तमिलनाडु8086.8173.86736.88
नागालैंड8083.2976.896713.52
मणिपुर79.8586.4973.1769.939.92
गुजरात7987.2370.736910.17
उत्तराखंड7987.470.01728.01
दादरा और नगर हवेली7886.4665.935820.02
पश्चिम बंगाल77.0882.6771.1668.648.44
पंजाब7781.4871.34707.03
हरियाणा7785.3866.77688.73
कर्नाटक7682.8568.13678.96
मेघालय7577.1773.786312.92
ओडिशा7382.464.366310.37
असम7378.8167.27639.93
छत्तीसगढ़7181.4560.59656.38
मध्य प्रदेश7180.5360.02646.89
उत्तर प्रदेश7079.2459.265613.45
जम्मू और कश्मीर68.7478.2658.0155.5213.22
झारखंड6878.4556.2153.5614.07
आंध्र प्रदेश6775.5659.74
राजस्थान6780.5152.6660.416.65
अरूणाचल प्रदेश6773.6959.5754.3412.61
तेलंगाना67
बिहार6473.3953.334716.82

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