इस पेज में आप हिंदी व्याकरण के महत्वपूर्ण अध्याय कारक की परिभाषा, प्रकार नियम और उदाहरण को विस्तार पूर्वक पड़ेंगे जो सभी प्रकार की परीक्षाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
तो चलिए कारक के बारे में पढ़ना शुरू करते हैं।
कारक किसे कहते है?
कारक ऐसे शब्दों को कहते हैं जो क्रिया के करने से होते हैं, कारक शब्द का अर्थ होता है “क्रिया को करने वाला” जब क्रिया को करने में कोई न कोई अपनी भूमिका निभाता है उसे कारक कहते है।
जैसे : श्रीराम को वनवास जाना था।
इस वाक्य में श्रीराम कर्ता हैं और जाना एक क्रिया हैं क्रिया और कर्ता को मिलाने वाला शब्द “को” हैं इसलिए इस वाक्य में “को” शब्द कारक होगा।
अथार्त
संज्ञा और सर्वनाम का एक क्रिया के साथ दूसरे शब्दों में संबंध बताने वाले निशानों को कारक कहते है।
विभक्तियों या परसर्ग जिन प्रत्ययों की वजह से कारक की स्थिति का बोध कराते हैं उसे विभक्ति या परसर्ग कहते हैं।
कारक के उदाहरण |
राम ने रावण को बाण मारा। |
रोहन ने पत्र लिखा। |
सीता ने गाना गाया। |
राम को बाजार जाना पड़ा। |
मोहन ने कुत्ते को डंडा मारा। |
प्रतीक ने पत्र लिखा। |
सुनीता ने खाना खा लिया। |
ट्रेन ने रफ्तार पकड़ ली थी। |
रीना के द्वारा मुझे यह बात पता चली। |
कारक कितने प्रकार के होते है?
करक मुख्यतः आठ प्रकार के होते है जो निम्नानुसार है।
1. कर्ता कारक
जो किसी भी वाक्य में कार्य करता है उसे ‘कर्ता’ कहा जाता है वाक्य के जिस रूप से क्रिया को करने वाले का पता चले उसे ‘कर्ता’ कहते हैं।
कर्ता कारक की विभक्ति ने होती है ‘ने’ विभक्ति का प्रयोग भूतकाल की क्रिया में किया जाता है। कर्ता स्वतंत्र होता है, कर्ता कारक में ‘ने’ विभक्ति का लोप भी होता है।
अथार्त
इस पद को संज्ञा या सर्वनाम माना जाता है हम प्रश्नवाचक शब्दों के प्रयोग से भी कर्ता का पता लगा सकते हैं।
संस्कृत का कर्ता ही हिंदी का कर्ता कारक होता है कर्ता की ‘ने’ विभक्ति का प्रयोग ज्यादातर पश्चिमी हिंदी में होता है ने शब्द का प्रयोग केवल हिंदी और उर्दू भाषा में ही होता है।
उदाहरण : |
राम ने पत्र लिखा। |
हम कहाँ जा रहे हैं। |
रमेश ने आम खाया। |
सोहन किताब पढ़ता है। |
राजेन्द्र ने पत्र लिखा। |
अध्यापक ने विद्यार्थियों को पढ़ाया। |
पुजारी जी पूजा कर रहे हैं। |
कृष्ण ने सुदामा की सहायता की। |
सीता खाती है। |
कर्ता कारक का प्रयोग
- परसर्ग सहित
- परसर्ग रहित
1. परसर्ग सहित
(a) भूतकाल की सकर्मक क्रिया में कर्ता के साथ ने परसर्ग लगाया जाता है।
उदाहरण :
- राम ने पुस्तक पढ़ी।
- श्याम ने खाना खाया।
- मोहन ने होमवर्क किया।
(b) प्रेरणार्थक क्रियाओं के साथ ने का प्रयोग किया जाता हैं।
उदाहरण :
- मैंने उसे पढ़ाया।
- मैंने उसे समझाया।
- मैंने उसे खिलाया।
(c) जब संयुक्त क्रिया के दोनों खण्ड सकर्मक होते हैं तो कर्ता के बाद ने का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण :
- श्याम ने उत्तर कह दिया।
- मोहन ने होमवर्क कर लिया।
- सीता ने खाना बनाया।
2. परसर्ग रहित
(a) भूतकाल की अकर्मक क्रिया में परसर्ग का प्रयोग नहीं किया जाता है।
उदाहरण :
- राम गिरा।
- मोहन गया।
- लक्ष्मण चढ़ा।
(b) वर्तमान और भविष्यकाल में परसर्ग नहीं लगता।
उदाहरण :
- बालक लिखता है।
- सोहन खेलता हैं।
- कृष्णा बासुरी बजाता हैं।
(c) जिन वाक्यों में लगना, जाना, सकना, चूकना आदि आते हैं वहाँ पर ने का प्रयोग नहीं किया जाता हैं।
उदाहरण :
- उसे पटना जाना है।
- उसे बाजार जाना हैं।
- उसे खेलने जाना हैं।
(C) कर्ता कारक में ‘को’ का प्रयोग
विधि क्रिया और संभाव्य बहुत में कर्ता प्राय: को के साथ आता है।
उदाहरण :
- राम को जाना चाहिए।
- श्याम को आना चाहिए।
2. कर्म कारक
जिस व्यक्ति या वस्तु पर क्रिया का प्रभाव पड़ता है उसे कर्म कारक कहते हैं इसके चिन्ह को माना जाता है लेकिन कहीं-कहीं पर कर्म का चिन्ह लोप होता है।
बुलाना, सुलाना, कोसना, पुकारना, जमाना, भगाना आदि क्रियाओं के प्रयोग में अगर कर्म संज्ञा हो तो को विभक्ति जरुर लगती है। जब विशेषण का प्रयोग संज्ञा की तरह किया जाता है तब कर्म विभक्ति को जरुर लगती है। कर्म संज्ञा का एक रूप होता है।
उदाहरण : |
अध्यापक, छात्र को पीटता है। |
गीता फल खाती है। |
रानी ढोलक बजा रही है। |
श्री राम ने रावण को मारा। |
कृष्णा ने राधा को बुलाया। |
गोपाल के द्वारा यह काम हुआ। |
श्री कृष्ण ने कंस को मारा। |
श्री राम जी को बुलाओ। |
बड़ों को सम्मान दो। |
माँ बच्चे को सुला रही है। |
3. करण कारक
जिस साधन से क्रिया होती है उसे करण कारक कहते हैं इसका विभक्ति चिन्ह से और के द्वारा होता है जिसकी सहायता से कोई कार्य किया जाता है उसे करण कारक कहते हैं करण कारक का क्षेत्र बाकी कारकों से बड़ा होता है।
उदाहरण : |
बच्चे गेंद से खेल रहे हैं। |
बच्चा बोतल से दूध पीता है। |
राम ने रावण को बाण से मारा। |
सुनील पुस्तक से कहानी पढ़ता है। |
मोहन कलम से पत्र लिखता है। |
नरेंद्र गिलास से दूध पीता हैं। |
4. सम्प्रदान कारक
देना सम्प्रदान कारक का अर्थ होता है जिसके लिए कर्ता काम कर्ता है उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं सम्प्रदान कारक के विभक्ति चिन्ह के लिए और का ‘को’ होता है।
सम्प्रदान कारक में किसके के लिए प्रश्नवाचक शब्द लगाकर भी पहचाना जा सकता है समान्य रूप से जिसे कुछ दिया जाता है या जिसके लिए कोई कार्य किया जाता है उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं।
उदाहरण : |
अमित ब्राह्मण को भोजन कराता हैं। |
मैं बच्चों के लिए पड़ा रहा हूँ। |
गरीबों को खाना दो। |
मेरे लिए दूध लेकर आओ। |
माँ बेटे के लिए सेब लायी। |
अमन ने श्याम को गाड़ी दी। |
मैं सूरज के लिए चाय बना रहा हूँ। |
मैं बाजार को जा रहा हूँ। |
भूखे के लिए रोटी लाओ। |
वे मेरे लिए उपहार लाये हैं। |
सोहन रमेश को पुस्तक देता है। |
मोहन ब्राह्मण को दान देता है। |
5. अपादान कारक
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी वस्तु के अलग होने का बोध हो वहाँ पर अपादान कारक होता है।
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से अलग होना, उत्पन्न होना, डरना, दूरी, लजाना, तुलना करना आदि का पता चलता है उसे अपादान कारक कहते हैं।
इसका विभक्ति चिन्ह से होता है इसकी पहचान किससे जैसे प्रश्नवाचक शब्द से भी की जा सकती है।
उदाहरण : |
लड़की छत से गिर गई। |
पेड़ से आम गिरा। |
हाथ से छड़ी गिर गई। |
महेश शेर से डरता है। |
गंगा हिमालय से निकलती है। |
पेड़ से पत्ते गिरे। |
आसमान से बूँदें गिरी। |
राम साँप से डरता है। |
दूल्हा घोड़े से गिर पड़ा। |
चूहा बिल से बाहर निकला। |
पृथ्वी सूर्य से दूर है। |
6. संबंध कारक
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप की वजह से एक वस्तु की दूसरी वस्तु से संबंध का पता चले उसे संबंध कारक कहते हैं।
इसके विभक्ति चिन्ह का, के, की, रा, रे, री आदि होते हैं। इसकी विभक्तियाँ संज्ञा, लिंग, वचन के अनुसार बदल जाती हैं।
उदाहरण : |
बम्बई, भारत देश का शहर हैं। |
ललितपुर, सोहन का गाँव है। |
सेना के जवान आ रहे हैं। |
यह महेश का भाई है। |
यह सुनील की किताब है। |
राजा दशरथ का बड़ा बेटा राम था। |
लडके का सिर दुःख रहा है। |
राम का लड़का, सीता की लडकी, गीता के बच्चे। |
7. अधिकरण कारक
अधिकरण का अर्थ होता है आधार या आश्रय।
संज्ञा के जिस रूप की वजह से क्रिया के आधार का बोध हो उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इसकी विभक्ति ‘में’ और ‘पर’ होती है।
भीतर, अंदर, ऊपर, बीच आदि शब्दों का प्रयोग इस कारक में किया जाता है।
इसकी पहचान किसमें, किसपर, किस पे आदि प्रश्नवाचक शब्द लगाकर भी की जा सकती है। कहीं कहीं पर विभक्तियों का लोप होता है तो उनकी जगह पर किनारे, आसरे, दीनों, यहाँ, वहाँ, समय आदि पदों का प्रयोग किया जाता है। कभी कभी में के अर्थ में पर और पर के अर्थ में में लगा दिया जाता है।
उदाहरण : |
पुस्तक मेज पर है। |
पानी में मछली रहती है। |
फ्रिज में सेब रखा है। |
कमरे के अंदर क्या है। |
कुर्सी आँगन के बीच बिछा दो। |
महल में दीपक जल रहा है। |
मुझमें शक्ति बहुत कम है। |
रमा ने पुस्तक मेज पर रखी। |
वह सुबह गंगा किनारे जाता है। |
कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध हुआ था। |
तुम्हारे घर पर चार आदमी है। |
उस कमरे में चार चोर हैं। |
8. सम्बोधन कारक
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से बुलाने या पुकारने का बोध हो उसे सम्बोधन कारक कहते हैं।
जहाँ पर पुकारने, चेतावनी देने, ध्यान बटाने के लिए जब सम्बोधित किया जाता है उसे सम्बोधन कारक कहते हैं।
इसकी पहचान करने के लिए (!) चिन्ह लगाया जाता है। इसके चिन्ह हे, अरे, अजी आदि होते हैं। इसकी कोई विभक्ति नहीं होती है।
उदाहरण : |
हे ईश्वर! रक्षा करो। |
अरे! बच्चो शोर मत करो। |
हे राम! यह क्या हो गया। |
अरे भाई! यहाँ आओ। |
अजी! तुम उसे क्या मरोगे ? |
बाबूजी! आप यहाँ बैठें। |
अरे राम! जरा इधर आना। |
कर्म और सम्प्रदान कारक में अंतर
इन दोनों कारक में ‘को’ विभक्ति का प्रयोग होता है। कर्म कारक में क्रिया के व्यापार का फल कर्म पर पड़ता है और सम्प्रदान कारक में देने के भाव में या उपकार के भाव में ‘को’ का प्रयोग होता है।
उदाहरण : |
मोहन ने सोहम को आम खिलाया। |
मोहन ने साँप को मारा। |
राजू ने रोगी को दवाई दी। |
स्वास्थ्य के लिए सूर्य को नमस्कार करो। |
करण और अपादान कारक में अंतर
करण और अपादान दोनों ही कारकों में से चिन्ह का प्रयोग होता है। परन्तु अर्थ के आधार पर दोनों में अंतर होता है।
करण कारक में जहाँ पर से का प्रयोग साधन के लिए होता है वहीं पर अपादान कारक में अलग होने के लिए किया जाता है।
कर्ता कार्य करने के लिए जिस साधन का प्रयोग करता है उसे करण कारक कहते हैं। लेकिन अपादान में अलगाव या दूर जाने का भाव निहित होता है।
उदाहरण : |
मैं कलम से लिखता हूँ। |
जेब से सिक्का गिरा। |
बालक गेंद से खेल रहे हैं। |
सुनीता घोड़े से गिर पड़ी। |
गंगा हिमालय से निकलती है। |
कारक के लक्षण, चिन्ह, और विभक्ति चिन्ह इस प्रकार हैं
कारक | कारक के लक्षण | कारक के चिन्ह | विभक्ति |
कर्ता | क्रिया को पूरा करने वाला | ने | प्रथमा |
कर्म | क्रिया को प्रभावित करने वाला | को | द्वितीया |
करण | क्रिया का साधन | से, के द्वारा | तृतीया |
सम्प्रदान | जिसके लिए काम हो | को, के लिए | चतुर्थी |
अपादान | जहाँ पर अलगाव हो | से | पंचमी |
संबंध | जहाँ पर पदों में संबंध हो | का, की, के, रा, री, रे | षष्ठी |
अधिकरण | क्रिया का आधार होना | में, पर | सप्तमी |
सम्बोधन | किसी को पुकारना | हे, अरे!, हो! | सम्बोधन |
विभक्तियाँ
जब कारक में स्पष्टता दिखाने के लिए जब संज्ञा या सर्वनाम के आगे प्रत्यय लगा दिए जाते हैं उसे विभक्ति कहते हैं। विभक्ति से जो शब्द रूप बनता है उसे पद कहा जाता है।
विभक्तियों की प्रयोगिक विशेषताएं
1. विभक्तियाँ स्वतंत्र होती हैं और इनका अस्तित्व भी स्वतंत्र होता है। क्योंकि एक काम शब्दों का संबंध दिखाना है इस वजह से इनका अर्थ नहीं होता।
जैसे: ने, से आदि।
2. हिंदी की विभक्तियाँ विशेष रूप से सर्वनामों के साथ प्रयोग होकर विकार उत्पन्न करती हैं और उनसे मिल जाती हैं।
जैसे: मेरा, हमारा, उसे, उन्हें आदि।
3. विभक्तियों को संज्ञा या सर्वनाम के साथ प्रयोग किया जाता है।
जैसे : मोहन के घर से यह चीज आई है।
विभक्तियों का प्रयोग
हिंदी व्याकरण में विभक्तियों के प्रयोग की विधि निश्चित होती हैं। विभक्तियाँ दो तरह की होती हैं – विश्लिष्ट और संश्लिष्ट।जो विभक्तियाँ संज्ञाओं के साथ आती हैं उन्हें विश्लिष्ट विभक्ति कहते हैं। लेकिन जो विभक्तियाँ सर्वनामों के साथ मिलकर बनी होती है उसे संश्लिष्ट विभक्ति कहते हैं।
जैसे : के लिए में दो विभक्तियाँ होती हैं इसमें पहला शब्द संश्लिष्ट होता है और दूसरा शब्द विश्लिष्ट होता है।
संक्षेप में
इस post में आपने कारक की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण आदि की जानकारी पढ़ी मुझे उम्मीद हैं कि आपको ये post जरूर पसंद आई होगी यदि इस पोस्ट से संबंधित कोई भी प्रश्न है तो कमेंट में जरूर पूछे।
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