समाजशास्त्र का अर्थ, परिभाषा, महत्व, सिद्धांत और विशेषताएँ

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चलिए आज हम समाजशास्त्र की जानकारी पढ़ते और समझते हैं।

समाजशास्त्र क्या हैं

‘समाजशास्त्र’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन (Latin) के शब्द ‘Socius’ (समाज) एवं ग्रीक (Greek) के शब्द ‘Ology’ (विज्ञान/शास्त्र) के मिलने से हुई हैं।

समाज, सामाजिक संबंधों का जाल होता है। समाज व्यक्तियों का एक समूह है। इन व्यक्तियों की संस्कृति समरूप होती है एवं यह सब एक निश्चित भू-भाग में निवास करते हैं और एक समान इतिहास द्वारा एक-दूसरे से बँधे होते हैं।

समाज न केवल जीवित रहने के लिए बल्कि अच्छे जीवन के लिए भी अनिवार्य है। समाज एक निरंतर प्रक्रिया है। यह किसी प्राकृतिक प्रक्रिया की तरह आगे बढ़ता है। सामाजिक संबंध सामाजिक संरचना का आधार हैं। 

समाजशास्त्र उस सामाजिक दुनिया को देखने और समझने का एक विशेष तरीका प्रदान करता है जिसमें हम रहते हैं और जो हमारे जीवन को आकार देता हैं।  

कुछ मुख्य विचारको द्वारा समाजशास्त्र की परिभाषाएं

1. इमाइल दुर्खाइम (Emile Durkheim) के अनुसार, समाजशास्त्र सामूहिक प्रतिनिधानों (Collective representation) का विज्ञान हैं।

मानव व्यक्तित्व जैसे-ज्ञानात्मक चिंतन (Cognitive thinking), क्रियात्मक व्यवहार (Conative behaviour) तथा प्रभावित आवेश (Affective feeling) में सामाजिक तथ्यों का समावेश हैं।

यह सामाजिक तृथ्य मानव मस्तिष्क का बाहरी आयाम हैं, जो सामाजिक तंत्र के सुपोषण हेतु मानव व्यवहारों को नियंत्रित करते हैं।

दुखाइम (Durkheim) के अंतर्गत, “सभी सामाजिक तथ्यों में समाज शास्त्र की विषय-वस्तु अंतर्विष्ट (समाहित) हैं।

2. हॉबहाउस (Hobhouse) के अनुसार, “समाजशास्त्र मानव मस्तिष्क की अंतःक्रियाओं का अध्ययन हैं।

3. पार्क (Park) और बर्गेस (Burgese) ने अनुसार, “समाज शास्त्र सामूहिक व्यवहारों के अध्ययन का विज्ञान हैं।

4. मैक्स वेबर के अनुसार, ” समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो कि सामाजिक क्रिया का उद्देश्यपूर्ण (व्याख्यात्मक) बोध कराने का प्रयत्न करता है।”

5. जानसन के अनुसार, “समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो सामाजिक समूहों, उनके आन्तरिक स्वरूपों या संगठन के प्रकारों, उन प्रक्रियाओं का जो संगठन के इन स्वरूपों को बनाये रखने अथवा उन्हें परिवर्तित करने का प्रयत्न करती है तथा समूहों के बीच संबंधों का अध्ययन करता हैं।

मैकाइवर और पेज, “समाजशास्त्र समाजिक सम्बन्धों का जाल हैं।”

मौरिस गिन्सबर्ग, “समाजशास्त्र मानवीय अन्त:क्रियाओं,अन्त:सम्बन्धों उनकी अवस्थाओं एवं परिणामों का अध्ययन है।”

6. दुर्खीम के अनुसार, “समाजशास्त्र सामूहिक प्रतिनिधित्व का विज्ञान है।”

7. ऑगस्त काॅम्टे के अनुसार, “समाजशास्त्र सामाजिक व्यवस्था और प्रगति का विज्ञान है।”

वान विज, “समाजशास्त्र एक विशेष सामाजिक विज्ञान है, जो अन्तर-मानवीय व्यवहारों, सामाजिक सहयोग की प्रक्रियाओं, एकीकरण व पृथक्करण की प्रक्रियाओं पर केन्द्रित हैं।”

हिलर, “व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बंधों का अध्ययन, एक-दूसरे के प्रति उनका व्यवहार, उनके मापदण्डों, जिनसे वे अपने व्यवहार को नियंत्रित करते हैं, समाजशास्त्र के विषय के अन्तर्गत आते है।

8. बर्गेस के अनुसार, “समाजशास्त्र सामूहिक व्यवहार का विज्ञान हैं।”

9. टाॅनीज के अनुसार,” सामान्य समाजशास्त्र संपूर्ण रूप से मानव के साथ-साथ रहने का सिद्धांत हैं।”

10. ओडम के अनुसार,” समाजशास्त्र वह विज्ञान हैं, जो समाज का अध्ययन करता हैं।”

11. एबल के अनुसार,” समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों, उनके प्रकारों, स्वरूपों तथा जो कोई उन्हें प्रभावित करता हैं अथवा उनसे प्रभावित होता है, उनका वैज्ञानिक अध्ययन हैं।”

ई. ए. राॅस के शब्दों में,” समाजशास्त्र सामाजिक घटनाओं का शास्त्र हैं।”

12. बोगार्डस के अनुसार,” समाजशास्त्र उन मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन हैं, जो सामाजिक वर्गों द्वारा समूहों में व्यक्तित्व को विकसित एवं परिपक्व करने का कार्य करती हैं।”

13. जार्ज सिमेल के अनुसार,” समाजशास्त्र मनुष्य के अतःसंबंधों के स्वरूपों का विज्ञान हैं।”

14. टाॅनीज के अनुसार,” सामान्य समाजशास्त्र संपूर्ण रूप से मानव के साथ-साथ रहने कि सिद्धांत हैं।”

15. ई. सी. र् यूटर के अनुसार,” इसका उद्देश्य सिद्धांतों के एक ऐसे समाज की स्थापना करनि हैं, एक ऐसे उद्देश्यपूर्ण ज्ञान के कोष का निर्माण करना हैं, जो सामाजिक व मानवीय वास्तविकताओं के निर्देश व नियंत्रण को संभव बना सके।”

16. एल. एफ. वार्ड के अनुसार,” समाजशास्त्र समाज का विज्ञान हैं।”

17. ई. ए. राॅस के अनुसार,” समाजशास्त्र सामाजिक घटनाओं का विज्ञान हैं।”

18. गिलिन और गिलिन के अनुसार,” समाजशास्त्र उन अन्तःक्रियाओं का अध्ययन हैं, जो जीवित प्राणियों के संबंधों से उत्पन्न होती हैं।”

19. एल. टी. हाॅबहाउस के अनुसार,” समाजशास्त्र की विषय-वस्तु मानव मस्तिष्क की व्याख्या करना हैं।”

20. एच. पी. फेयरचाइच्ड के अनुसार,” समाजशास्त्र मानव के सामूहिक संबंधों से उत्पन्न घटनाओं का वैज्ञानिक अध्ययन हैं। यह मनुष्यों तथा उनके एक-दूसरे से संबंधों में व्याप्त मानवीय वातावरण का अध्ययन हैं।”

21. ए.डब्ल्यू ग्रीन के अनुसार, “समाजशास्त्र मानव का उसके समस्त सामाजिक सम्बन्धों मे समन्वित और सामान्यीकरण करने वाला विज्ञान हैं।”

22. समाजशास्त्र की परिभाषाओं को देखने से ज्ञान होता है कि समाजशास्त्री इस बात पर समान विचार नही रखते कि समाजशास्त्र के अध्ययन की केन्द्रीय विषय-वस्तु क्या हैं?

इस विषय पर उनके विचारों मे अन्तर देखने को मिलता हैं। हालांकि यह अन्तर दिखावटी अधिक है वास्तविक कम। वास्तव मे अगस्त कोम्त से लेकर वर्तमान समाजशास्त्रियों तक समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र एवं सामग्री के निर्धारण मे थोड़ी बहुत हेर-फेर होता रहा हैं। अतः समाजशास्त्र की उनकी परिभाषाओं मे भिन्नता का आना स्वाभाविक हैं।

समाजशास्त्र की उत्पति

समाजशास्त्र का जन्म 19वीं शताब्दी में हुआ। समूह के क्रिया-कलापों में भाग लेने के लिए आवश्यक है कि समस्याओं को सुलझाया जाए। इन्हीं कोशिशों के परिणामस्वरूप ही समाजशास्त्र की उत्पत्ति हुई हैं।  

19वीं शताब्दी के प्रारंभ में फ्रांस के विचारक अगस्त कॉम्ट ने समाज शास्त्र का नाम सामाजिक भौतिकी रखा और 1838 में बदलकर समाजशास्त्र रखा। इस कारण से कॉम्ट को “समाजशास्त्र का जनक” कहा जाता हैं।

समाजशास्त्र को एक विषय के रूप में विकसित करने में दुर्खीम, स्पेंसर तथा मैक्स वेबर आदि विद्वानों के विचारों का काफी योगदान रहा है। भारत में समाज शास्त्र की उत्पति का विकास का इतिहास पुराना हैं।

समाजशास्त्र के प्रकार

समाजशास्त्र के मुख्य रूप से दो प्रकार हैं।

1. समष्टि समाजशास्त्र :- इसमें बड़े समूहों, संगठनों तथा सामाजिक व्यवस्थाओं का अध्ययन किया जाता हैं।

2. व्यष्टि समाजशास्त्र :- इसमें आमने-सामने की अंतःक्रिया के बारे में मनुष्यों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता हैं।

समाजशास्त्र की प्रकृति की मुख्य विशेषताएँ

  • समाजशास्त्र समाज के अध्ययन से सम्बन्धित है।
  • समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है, न कि प्राकृतिक विज्ञान।
  • समाजशास्त्र एक निरपेक्ष विज्ञान है, न कि आदर्शात्मक विज्ञान।
  • समाज अपेक्षाकृत एक अमूर्त विज्ञान है, न कि मूर्त विज्ञान।
  • समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है, न कि विशेष विज्ञान।
  • समाजशास्त्र का अध्ययन-क्षेत्र सामाजिक समूह है।
  • समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों का जाल हैं।
  • समाजशास्त्र सामाजिक घटनाओं का शास्त्र है।
  • समाजशास्त्र मे सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।
  • समाजशास्त्र मानव ज्ञान की वह शाखा है, जिसमे ‘सामाजिक क्रियाओं’ का अध्ययन किया जाता है।
  • समाजशास्त्र में सामाजिक क्रिया के कारणों और परिणामों के सम्बन्ध मे जानकारी दी जाती है।
  • इसके अन्तर्गत मानव प्रकृति का अध्ययन किया जाता है। काम्टे ने नैतिकता को समाज की सर्वोच्च प्रगति के रूप मे स्वीकार किया है।
  • समाजशास्त्र का सम्बन्ध मानव जीवन से हैं। समाजशास्त्र मानव की अन्त: क्रियाओं एवं अन्त:सम्बन्धों का अध्ययन करता हैं। समाजशास्त्र उन अवस्थाओं का अध्ययन करता है जिनमे ये अन्त:क्रियाओं व अन्त:सम्बन्ध उत्पन्न होते है।
  • काॅम्टे ने समाजशास्त्र को वैषयिक विज्ञान माना है। इसके माध्यम से वह साकारवाद कि प्रतिस्थापना करना चाहता था।
  • समाजशास्त्र मे उन प्रक्रियाओं का भी अध्ययन किया जाता है, जिनके द्वारा समूहों का निर्माण होता है तथा उनमें परिवर्तन होता हैं।
  • समाज एक सावयव है। इस सावयव के दो भाग हैं – बाहरी और आन्तरिक। समाजशास्त्र मानव कि वह शाखा है जो समाज का एक समग्रता के रूप मे अध्ययन करता है।

समाजशास्त्र के कार्य

samajshastra
समाजशास्त्र

समाजशास्त्र निम्नलिखित कार्यों में अहम भूमिका निभाता हैं।

1. समाजशास्त्र समाज का वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन करता हैं।

समाजशास्त्र के उद्भव से पहले मानव समाज को उसकी सभी समस्याओं को अध्ययन करने का कोई व्यवस्थित और वैज्ञानिक प्रयास नहीं था।

समाज शास्त्र ने वैज्ञानिक तरीके से समाज का अध्ययन करना संभव बनाया है। विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति प्राप्त करने के लिए मानव समाज के बारे में इस वैज्ञानिक ज्ञान की आवश्यकता हैं।

2. समाजशास्त्र मनुष्य की सामाजिक प्रकृति पर अधिक प्रकाश डालता हैं।

समाजशास्त्र हमें बताता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी क्यों है, वह एक समूह, समुदायों और समाजों में क्यों रहता हैं।

यह व्यक्ति और समाज के बीच संबंधों, मनुष्य पर समाज के प्रभाव और अन्य मामलों की जांच करता हैं।

3. समाजशास्त्र सामाजिक क्रिया की शक्ति को बढ़ाता हैं।

समाज का विज्ञान व्यक्ति को स्वयं को, उसकी क्षमताओं, प्रतिभाओं और सीमाओं को समझने में सहायता करता हैं।

इससे वह अपने आप को पर्यावरण के साथ ढालने में सक्षम होता है। समाज, सामाजिक समूहों, सामाजिक संस्थाओं, संघों, उनके कार्यों आदि का ज्ञान हमें एक सामाजिक जीवन जीने में मदद करता हैं।

4. समाजशास्त्र व्यक्तियों के विकास में संस्थाओं की भूमिका का अध्ययन करता हैं।

समाज शास्त्र के माध्यम से ही महान सामाजिक संस्थाओं का वैज्ञानिक अध्ययन किया जा रहा है और प्रत्येक व्यक्ति के संबंध का अध्ययन किया जा रहा हैं।

घर और परिवार, स्कूल और शिक्षा, चर्च और धर्म, राज्य और सरकार, उद्योग और काम, समुदाय और संघ, यह ऐसी संस्थाएँ हैं जिनके माध्यम से समाज कार्य करता हैं।

समाज शास्त्र इन संस्थानों और व्यक्ति के विकास में उनकी भूमिका का अध्ययन करता है और उन्हें व्यक्ति की बेहतर सेवा करने में सक्षम बनाने के लिए उन्हें मजबूत करने के लिए उपयुक्त उपाय सुझाता हैं।

5. समाज को समझने और योजना बनाने के लिए समाजशास्त्र का अध्ययन जरूरी हैं।

समाज शास्त्र के समर्थन के बिना समाज की कई समस्याओं को समझना और हल करना असंभव हैं।

यह ठीक ही कहा गया है कि हम समाज को उसके तंत्र और निर्माण के किसी भी ज्ञान के बिना समझ और सुधार नहीं सकते हैं।

किसी भी सामाजिक नीति को लागू करने से पहले समाज के बारे में एक निश्चित मात्रा में ज्ञान आवश्यक हैं।

6. सामाजिक समस्याओं के समाधान में समाज शास्त्र का बहुत महत्व हैं।

वर्तमान में विश्व अनेक समस्याओं से जूझ रहा है जिनका समाधान समाज के वैज्ञानिक अध्ययन से किया जा सकता हैं।

समाज शास्त्र का कार्य वैज्ञानिक अनुसंधान के तरीकों के माध्यम से सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करना और उनका समाधान खोजना हैं।  

7. समाजशास्त्र ने मनुष्य के आंतरिक मूल्य और गरिमा की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया हैं।

मनुष्य के प्रति हमारे नजरिए को बदलने में समाज शास्त्र का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। एक समाज में हम सभी उस पूरे संगठन और संस्कृति की मात्रा तक सीमित हैं जिसे हम सीधे अनुभव कर सकते हैं।

हम अन्य क्षेत्रों के लोगों को शायद ही करीब से जान पाते हैं। दूसरों के जीने के उद्देश्यों और जिन परिस्थितियों में वह रहते हैं, उनके बारे में जानने और सराहना करने के लिए समाज शास्त्र का ज्ञान आवश्यक हैं।

8. अपराध की समस्याओं के संबंध में समाज शास्त्र ने हमारे नजरिए को बदल दिया हैं।

समाज शास्त्र के अध्ययन के माध्यम से अपराध के विभिन्न पहलुओं पर हमारा पूरा नजरिया बदल गया हैं।

अपराधियों को अब मानसिक कमियों से पीड़ित मनुष्य के रूप में माना जाता है और उसके अनुसार उन्हें समाज के सदस्यों के रूप में  फिर से स्वीकार करने का प्रयास किया जाता हैं।

9. मानव संस्कृति को समृद्ध बनाने में समाजशास्त्र का बहुत बड़ा योगदान हैं।

समाज शास्त्र के योगदान से मानव संस्कृति को समृद्ध बनाया गया हैं।

समाज शास्त्र ने हमें स्वयं, अपने धर्म, रीति-रिवाजों, नैतिकता और संस्थानों से संबंधित प्रश्नों के लिए तर्क के साथ नजरिया बनाने का शिक्षण दिया हैं।

यह मनुष्य को अपने और दूसरों के बारे में बेहतर समझ रखने में सक्षम बनाता हैं।

10. अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में समाज शास्त्र का बहुत महत्व हैं।

भौतिक विज्ञान द्वारा की गई प्रगति ने दुनिया के देशों को एक दूसरे के करीब ला दिया है। लेकिन सामाजिक क्षेत्र में दुनिया विज्ञान की प्रगति से पीछे छूट गई हैं।

दुनिया तनाव और संघर्ष को जन्म देते हुए राजनीतिक रूप से विभाजित है। पुरुष शांति लाने में विफल रहे हैं।

समाज शास्त्र हमें उनके कारणों और तनावों को समझने में मदद कर सकता हैं।

11. समाजशास्त्र हमें आधुनिक परिस्थितियों से अपडेट रखता हैं।

यह अच्छे नागरिक बनाने और सामुदायिक समस्याओं के समाधान खोजने में योगदान देता हैं।

इससे समाज का ज्ञान बढ़ता है। यह व्यक्ति को समाज के साथ अपने संबंध को खोजने में मदद करता हैं।

12. समाज के अध्ययन ने सरकारों को आदिवासी के समुदायों के कल्याण को बढ़ावा देने में मदद की हैं।

आदिवासी के समुदायों को कई सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं।

जनजातीय समाजों और समस्याओं के संबंध में समाजशास्त्रियों और मानवविज्ञानियों द्वारा किए गए अध्ययनों ने सरकारों को कल्याणकारी उद्देश्यों के लिए सामाजिक कल्याण उपायों और कार्यक्रमों को शुरू करने में मदद की हैं।

13. समाजशास्त्र एक शिक्षा के विषय के रूप में उपयोगी हैं।

समाजशास्त्री व्यवसाय, सरकार, उद्योग, सामाजिक क्षेत्र, संचार और सामुदायिक जीवन के कई अन्य क्षेत्रों में योगदान दे रहे हैं।

समाजशास्त्र अब इतना महत्त्वपूर्ण हो गया है कि स्थानीय, राज्य, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर अन्य क्षेत्रों में प्रमुखता से इसका अभ्यास किया जा सकता हैं।

समाजशास्त्र और इतिहास में अंतर

संस्कृति और संस्थाओं का इतिहास समाजशास्त्र को समझने एवं उसकी सामग्री जुटाने में मदद करता हैं। वास्तव में समाजशास्त्र ऐतिहासिक निष्कर्षों के आधार पर ही सामाजिक जीवन को समझने का प्रयत्न करता हैं।

समाजशास्त्रइतिहास
समाजशास्त्र सामाजिक समस्याओं का विश्लेषण करता है तथा इसका समाधान (निदान) प्रस्तुत करता हैं।इतिहास केवल तथ्यों का विवरण प्रस्तुत करता हैं।
समाज शास्त्र एक विश्लेषणात्मक विधा हैं।इतिहास एक वर्णनात्मक विधा हैं।
समाजशास्त्र का संबंध वर्तमान एवं कुछ सीमा तक भविष्य से हैं।इतिहास केवल अतीत का विश्लेषण करता हैं।

समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र में अंतर

समाजशास्त्र एवं राजनीति विज्ञान एक-दूसरे से संबंधित है। इसकी वजह यह है कि दोनों सामाजिक विज्ञान है, लेकिन दोनों के कार्यक्षेत्र अलग अलग हैं। समाज शास्त्र को राजनीति विज्ञान का विस्तृत रूप या आकार समझा जाता हैं।

समाज शास्त्र और राजनीति विज्ञान के संबंध में बारनेस (Barnes) ने लिखा है समाज शास्त्र और आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्त के विषय में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि राज्य सिद्धान्त में पिछले पचास वर्षों में जो परिवर्तन हुए हैं, उनमें अधिकतर समाज शास्त्र द्वारा सुझाए गए और बतलाए हुए मार्ग के अनुसार हुए हैं।

समाजशास्त्रराजनीतिशास्त्र
समाज पर राज्य के कानूनों का बहुत नियंत्रण रहता है। कानून के द्वारा राज्य समाज को परिवर्तनशील रखता है, एवं इसके साथ ही उसमें सुधार लाता हैं।कानून बनाते समय देश के रीति-रिवाजों, प्रथाओं, परंपराओं आदि का ध्यान रखना पड़ता है। इसके लिए समाजशास्त्रिय ज्ञान की आवश्यकता हैं।
समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान हैं।राजनीति विज्ञान एक विशिष्ट विज्ञान, जो मानव जीवन के राजनीतिक दृष्टिकोण की व्याख्या करता हैं।

समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान में अंतर

समाजशास्त्रमनोविज्ञान
मनोविज्ञान को व्यवहारिक विज्ञान के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह मुख्यतः व्यक्ति से संबंधित हैं। सामजिक मनोविज्ञान जो समाज शास्त्र तथा मनोविज्ञान के बीच एक पुल का काम करता हैं।
समाज शास्त्र में सकारात्मक (Positive) संपर्क हैं। सामाजिक मनोविज्ञान (Social Psychology) में सकारात्मक (Positive) संपर्क हैं।
समाज शास्त्र समाज का अध्ययन करता हैं।मनोविज्ञान व्यक्तियों का अध्ययन करता हैं।
समाज शास्त्र सामाजिक विधियों की व्याख्या करता हैं।मनोविज्ञान मानसिक क्रियाओं का अध्ययन है; जैसे- याददाश्त (Memory), ध्यान (Attention), सीखना (Learn up) आदि।

समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में अंतर

समाजशास्त्रअर्थशास्त्र
आधुनिक समय में विभिन्न समाजशास्त्रिय अध्ययन आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए लगे हैं।जनसंख्या, आर्थिक नियोजन, निर्धनता, बेकारी, आदि समस्याओं का समाधान अर्थशास्त्र में सामान्य रूप से किया जाता है। इस तरह दोनों ही विज्ञानों को एक-दूसरे से पर्याप्त मदद लेनी पड़ती हैं।
समाज शास्त्र पूरे समाज का वैदिक अध्ययन हैं। अर्थशास्त्र समाज के केवल आर्थिक भाग का अध्ययन करता हैं।

समाजशास्त्र के क्षेत्र

समाजशास्त्र को कई विशेष क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

  • Applied sociology
  • Collective behaviour
  • Community
  • Comparative sociology
  • Crime and delinquency
  • Cultural sociology
  • Demography
  • Deviant behaviour
  • Formal and complex organizations
  • Human ecology
  • Industrial sociology
  • Law and society
  • Marriage and Family
  • Medical sociology
  • Military sociology
  • Political sociology
  • Sociology of Religion
  • Urban sociology
  • Social psychology
  • Social control
  • Rural sociology
  • Sociological theory
  • Sociology of Education

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